पौधों में वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है - paudhon mein vaashpotsarjan kee kriya hotee hai

उद्देश्य

हमारा उद्देश्य पत्ती की ऊपरी और निचले सतहों के बीच वाष्पोत्सर्जन की दर की तुलना करना है।

सिद्धांत

वाष्पोत्सर्जन क्या है?

वाष्पोत्सर्जन पौधे के माध्यम से होने वाले पानी के आवागमन और इसके हवाई भागों से वातावरण में होने वाले वाष्पीकरण की प्रक्रिया है। पत्तियों में और युवा कलियों में एपिडर्मल (बाह्यत्वचा) परत में सूक्ष्म  रंध्र की तरह की संरचनाएं होतीं है, इसे स्टोमेटा कहा जाता है। वाष्पोत्सर्जन मुख्य रूप से पत्तियों के स्टोममेटा के माध्यम से होता है। स्टोमेटा मुख्य रूप से प्रकाश संश्लेषण और श्वसन की प्रक्रिया के दौरान गैसों के आदान-प्रदान से संबंधित होता हैं। हरेक स्टोममेटा में दरार जैसे निकासमुख होते हैं । इन्हें स्टोमेटल रंध्र कहा जाता है। यह पहरेदार कोशिकाओं (गार्ड सेल्‍) नामक दो विशेष कोशिकाओं से घिरा रहता है। ये विशेष कोशिकाएं स्टोमेटा को खोल और बंद करके वाष्पोत्सर्जन की दर को विनियमित करने में मदद करती हैं।

वाष्पोत्सर्जन का महत्व

  1.  वाष्पोत्सर्जन मिट्टी से पानी के अवशोषण में मदद करता है।
  2. अवशोषित पानी जड़ों से पत्तियों तक जाइलम वाहिकाओं के माध्यम से जाता है। ये बहुत हद तक वाष्पोत्सर्जन खिंचाव से प्रभावित होते हैं।
  3. वाष्पीकरण के दौरान वाष्पोत्सर्जन पौधे की सतह ठंडी रखने में मदद करता है।

वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक

  1. प्रकाश: स्‍टोमेटा प्रकाश में खुलना शुरू होता हैं इसलिए पौधे अंधेरे की तुलना में प्रकाश की उपस्थिति में और ज्‍यादा तेजी से वाष्‍पोत्‍सर्जन करते हैं।
  2. तापमान: पौधे अधिक तापमान में ज्यादा तेजी से वाष्पोकत्सार्जन करते हैं क्‍योंकि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है पानी और ज्यादा तेजी से भाप बनकर उड़ता है।
  3. आर्द्रता: आर्द्रता को वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। बाहरी वायुमंडल की सापेक्ष आर्द्रता जितनी ज्यादा होती है वाष्पोत्सर्जन की दर उतनी ही कम होती है।
  4. हवा: जब कोई हवा नहीं चलती है, तो पत्ती की सतह के चारों ओर की हवा ज्‍यादा से ज्‍यादा नम हो जाती है। इस प्रकार वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। हवा के वेग में वृद्धि पत्ती की सतह से नमी हटाकर वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ा देती है।

अलग-अलग पौधों में स्टोमेटा का वितरण, संख्या, आकार और प्रकार अलग-अलग होता है। यहां तक कि पौधे के अंदर ही पत्ती की ऊपरी और निचली सतहों में अलग-अलग वितरण हो सकता है। कुछ पौधों में पत्ती की ऊपरी सतह की तुलना में निचली सतह पर बड़ी संख्या में स्टोमेटा मौजूद होते हैं। इसलिए, निचली सतह से होनेवाली पानी की हानि ऊपरी सतह से ज्यांदा होती है।

हम पत्ती की दो सतहों से होने वाली जलवाष्प की हानि की तुलना करके पत्ती की दो सतहों से होने वाले वाष्पोत्सर्जन की दर का अध्ययन कर सकते हैं।

वाष्पोत्सर्जन की दर को आसानी से कोबाल्ट क्लोराइड पेपर परीक्षण के जरिए प्रदर्शित किया जा सकता है। नीले रंग वाला सूखा कोबाल्ट क्लोराइड पेपर जब पानी के संपर्क में आता है तो गुलाबी हो जाता है। कोबाल्ट क्लोराइड पेपर के इस गुणधर्म का उपयोग करके हम वाष्पोत्सर्जन के दौरान होने वाली पानी की हानि का प्रदर्शन कर सकते हैं ।

हम पेपर का रंग नीले से गुलाबी में बदलने में लगने वाले समय का उपयोग करके वाष्पोत्सर्जन की दर का मापन कर सकते हैं।

सीखने के परिणाम

● छात्र वाष्पोत्सर्जन की अवधारणा समझते हैं।

● छात्र वाष्पोकत्सर्जन का महत्व समझते हैं।

● छात्र वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करने वाले कारकों को समझते हैं।

● एक बार जब छात्र एनीमेशन और सिमुलेशन के माध्यम से चरणों को समझ लेंगें वे वास्तविक प्रयोगशाला में और ज्यादा सही ढंग से प्रयोग करने में सक्षम हो जाएंगे

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वाष्पोत्सर्जन (Transpiration in hindi ) : पादपों के वायवीय भागो द्वारा जल , वाष्प के रूप में बाहर निकलता है , इस क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते है |

वाष्पोत्सर्जन मुख्यतः पर्णरन्ध्रो द्वारा होता है |

पर्णरन्ध्र की संरचना : पत्तियों की निचली सतह पर पर्णरन्ध्र अधिक व ऊपरी सतह पर पर्णरंध्र कम संख्या में पाये जाते है | रंध्रो की संख्या 1000 – 60000 प्रति वर्ग सेमी हो सकती है | प्रत्येक पर्णरंध्र दो सेम के बीजो के आकार की द्वार कोशिकाओं से बना होता है जिनके चारों तरफ सहायक कोशिकाएँ होती है , द्वार कोशिकाओं में हरित लवक पाये जाते है |

वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया

दिन के समय द्वार कोशिकाओ में शर्करा का निर्माण होता है , जिससे द्वार कोशिकाओं में विसरण दाब न्यूनता उत्पन्न हो जाती है , इस कारण द्वार कोशिकाओं की भीतरी सतह में तनाव उत्पन्न होता है |

परिणामस्वरूप पर्णरन्ध्र खुल जाते है , रात्रि के समय द्वार कोशिकाओ में ग्लूकोज का स्तर कम हो जाता है | जिससे द्वार कोशिकाएँ श्लथ हो जाती | परिणामस्वरूप रन्ध्र बंद हो जाते है | पर्णरंध्र खुलने के दौरान ही जल वाष्प बनकर रंध्रो से बाहर निकलता है , जिसे वाष्पोत्सर्जन कहते है |

वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक

  1. ताप
  2. प्रकाश
  3. आर्द्रता
  4. वायु की गति
  5. रंध्रों की संख्या व वितरण
  6. खुले रंध्रो की प्रतिशतता
  7. पौधे में पानी की उपस्थित

वाष्पोत्सर्जन एवं प्रकाश संश्लेषण : एक समझौता

  1. पौधों में जल अवशोषण एवं परिवहन के लिए वाष्पोत्सर्जन खिंचाव उत्पन्न करता है |
  2. प्रकाश संश्लेषण : हेतु आवश्यक जल का संभरण में वाष्पोत्सर्जन सहायक होता है |
  3. मृदा से प्राप्त खनिजों का पौधे का सभी भागों में परिवहन करता है |
  4. पत्ती के सतह को वाष्पीकरण द्वारा 10-15 डिग्री तक ठंडा रखता है |
  5. कोशिकाओं को स्पिति रखते हुए पादपों के आकार एवं बनावट को नियंत्रित रखता है |
  6. अत: वाष्पोत्सर्जन , प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रक्रम है |

खनिज पोषक का उदग्रहण एवं संचरण

पौधे , कार्बन व ऑक्सीजन वातावरण में उपलब्ध CO2 से प्राप्त करते है , जबकि हाइड्रोजन व अन्य लवणों को मृदा व जल से प्राप्त करते है |

फ्लोएम परिवहन

उद्गम से कुंड (sink) की ओर प्रवाह पत्तियों में निर्मित कार्बनिक भोज्य पदार्थो का परिवहन फ्लोएम द्वारा होता है | पौधे के वे भाग जो भोजन का संश्लेषण करते है स्त्रोत कहलाते है |

तथा जहाँ भोजन का संचय होता है , कुंड कहलाते है , पौधे में स्त्रोत व कुंड बदलते रहते है | स्त्रोत से कुंड तक इन पदार्थो का स्थानान्तरण फ्लोएम द्वारा होता है , यदि किसी अंग में भोज्य पदार्थ की आवश्यकता होती है | तो फ्लोएम द्वारा कुण्ड से उस अंग तक पहुंचते है अत: फ्लोएम द्वारा परिवहन दिशीय होता है |

दाब प्रवाह या सामूहिक प्रवाह परिकल्पना

इस परिकल्पना का प्रतिपादन 1930 में मुंच ने किया था , इसके अनुसार खाद्धय पदार्थो का स्थानान्तरण सांद्रता प्रवणता के अनुरूप फ्लोएम द्वारा पत्तियों से उपयोग के अंगो तक होता है | प्रकाश संश्लेषण के दौरान पत्तियों में निर्मित पदार्थ शर्करा में बदलता है जिससे विलयन की सांद्रता बढ़ जाती है और परासरण दाब अधिक हो जाता है | पत्तियों की कोशिकाओं से विलयन तने में स्थित फ्लोएम की चालनी नलिकाओं से होकर जडो तक पहुंचता है , जहाँ कुछ खाद्धय पदार्थ श्वसन में व्यय हो जाता है , शेष पादप में संचित हो जाता है |

पौधों में वाष्पोत्सर्जन किसकी प्रक्रिया है?

पौधों द्वारा अनावश्यक जल को वाष्प के रूप में शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है। पैड़-पौधे मिट्टी से जिस जल का अवशोषण करते हैं, उसके केवल थोड़े से अंश का ही पादप के शरीर में उपयोग होता है। शेष अधिकांश जल पौधों द्वारा वाष्प के रूप में शरीर से बाहर निकाला जाता है।

पौधों में वाष्पोत्सर्जन कितने प्रकार के होते हैं?

Solution : वाष्पोत्सर्जन तीन प्रकार के होते हैं - <br> (1) रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन <br>(2) उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन <br>(3) वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन

पौधों में वाष्पोत्सर्जन क्यों होता है?

Solution : वाष्पोत्सर्जन का महत्व : <br> 1. इसके द्वारा पौधों में उपस्थित अतिरिक्त जल की मात्रा को वाष्प के रूप में उत्सर्जित कर दिया जाता है, इससे पौधो में जल का नियमन होता है। <br> 2. यह पौधों में एक खिंचाव पैदा करता है जिससे जड़े मृदा से लवण एवं जल को अवषोषित करके पौधो के ऊपरी भाग में पत्तियों तक प्रेषित कर पाते है।

वाष्पोत्सर्जन से आप क्या समझते हैं पौधों में वाष्पोत्सर्जन के महत्त्व का वर्णन?

वाष्पोत्सर्जन का महत्व वाष्पोत्सर्जन मिट्टी से पानी के अवशोषण में मदद करता है। अवशोषित पानी जड़ों से पत्तियों तक जाइलम वाहिकाओं के माध्यम से जाता है। ये बहुत हद तक वाष्पोत्सर्जन खिंचाव से प्रभावित होते हैं। वाष्पीकरण के दौरान वाष्पोत्सर्जन पौधे की सतह ठंडी रखने में मदद करता है।

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