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पोथी क्या अथथ है?
इसे सुनेंरोकेंPothi Meaning in Hindi – पोथी का मतलब हिंदी में पोथी 1 – संज्ञा स्त्रीलिंग [संस्कृत पुस्तिका, प्रा० पोत्थिया] पुस्तकः । उदाहरण – पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोइ । एकै अक्षर प्रेम का पढै़ सो पंडित होइ । – कबीर (शब्द०) ।
पोथी का पर्यायवाची क्या है?
इसे सुनेंरोकेंपोथी – किताब, पुस्तक, ग्रन्थ।
पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय यह किसकी उक्ति है?
इसे सुनेंरोकेंइस दोहा को कबीर दास ने लिखा है। पोथी पढि पढि जग मुआ ,पंडित भया न कोय ।
पढि पढि में कौन सा अलंकार है?
इसे सुनेंरोकेंमित्र! इसमें दो अलंकार है। ‘प’ वर्णन की एक से अधिक बार आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार और पढ़ि-पढ़ि तथा घटी-घटी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
पंडित भया न कोय से कवि का क्या तात्पर्य है?
इसे सुनेंरोकेंपोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ। कबीर के अनुसार अर्थात् संसार पोथी पढ़-पढ़ कर मर गया कोई भी पंडित नही हुआ अर्थात् केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर ही कोई ज्ञानवान नहीं बन सकता यदि एक अक्षर प्रिय अर्थात् ईश्वरीय प्रेम का पढ़ लिया तो वह पंडित हो जायेगा, ज्ञानी हो जायेगा।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा पंडित भया न कोइ ऐकै अषिर पीव का पढ़ै सु पंडित होइ कबीर के अनुसार कौन ज्ञानी नहीं बन पाया?
इसे सुनेंरोकेंपोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ। एकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥ सारे संसारिक लोग पुस्तक पढ़ते-पढ़ते मर गए कोई भी पंडित (वास्तविक ज्ञान रखने वाला) नहीं हो सका। परंतु जो अपने प्रिय परमात्मा के नाम का एक ही अक्षर जपता है (या प्रेम का एक अक्षर पढ़ता है) वही सच्चा ज्ञानी होता है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
इसे सुनेंरोकेंAnswer. Answer: अनुप्रास अलंकार , और उत्प्रेक्षा अलंकार का मेल है।
पढ़ि पढ़ि में कौन सा अलंकार है *?
पोथी पढ़कर भी ज्ञान प्राप्त न होने से कबीर का क्या तात्पर्य है?
इसे सुनेंरोकेंकबीर के अनुसार अर्थात् संसार पोथी पढ़-पढ़ कर मर गया कोई भी पंडित नही हुआ अर्थात् केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर ही कोई ज्ञानवान नहीं बन सकता यदि एक अक्षर प्रिय अर्थात् ईश्वरीय प्रेम का पढ़ लिया तो वह पंडित हो जायेगा, ज्ञानी हो जायेगा।
पोथी पढि पढि जग मुवा पंडित भया न कोय किसका कथन है?
इसे सुनेंरोकेंइस दोहा को कबीर दास ने लिखा है। पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके।
हम ईश्वर को क्यों नहीं देख पाते?
इसे सुनेंरोकेंईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते? उत्तर: ईश्वर कण-कण में व्याप्त है फिर भी हम उसे देख नहीं पाते क्योंकि हम उसे उचित जगह पर तलाशते ही नहीं हैं। ईश्वर तो हमारे भीतर है लेकिन हम उसे अपने भीतर ढ़ूँढ़ने की बजाय अन्य स्थानों; जैसे तीर्थ स्थल, मंदिर, मस्जिद आदि में ढ़ूँढ़ते हैं।
कबीर की साखियों के आधार पर बताइए कि कबीर किन जीवन मूल्यों को मानव के लिए आवश्यक मानते हैं?
इसे सुनेंरोकेंकबीर अपनी साखियों के माध्यम से शिक्षा देना चाहते हैं कि हर एक मनुष्य को सभी के साथ प्रेमभाव व अच्छा व्यवहार करना चाहिए। ईश्वर को पाने के लिए आडंबर को छोड़कर सच्ची भक्ति से ईश्वर को पाने का प्रयास करना चाहिए। बड़े ग्रंथ, शास्त्र पढ़ने भर से कोई ज्ञानी नहीं होता। अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर पाता।