Makhanlal Chaturvedi Ka UpNaam
GkExams on 12-05-2019
माखनलाल चतुर्वेदी का उपनाम एक भारतीय आत्मा है।
सम्बन्धित प्रश्न
Comments सर्व जीत on 18-03-2021
माखन लाल चतुर्वेदी का उपनाम क्या है?
Gopal Sharma on 18-03-2021
Makhanlal Chaturvedi ko kis upnaam se pukara jata hai
Aman on 01-05-2020
"नकेन वाद" कहां प्रारंभ हुआ था?
Ayesha Khanan on 05-10-2019
Makhanlal chaturvedi ka upnaam kya hai
Uday bhan chauhan on 01-09-2019
माखनलाल चतुर्वेदी के उपनाम क्या है
Famous poems of makhan lal chaturvedi on 01-08-2019
Famous poems of makan lal chaturvedi
Makhan lal Chaturvedi ka upnaam kya hai on 21-04-2019
Makhan lal Chaturvedi ka upnaam kya hai
Mona chouhan on 08-04-2019
Maakhanlaal chaturvedi ka upnaam kya he
माखनलाल चतुर्वेदी का उपनाम on 15-02-2019
माखनलाल चतुर्वेदी का उपनाम
Sonu on 21-12-2018
Jjhu
माखनलाल चतुर्वेदी (4 अप्रैल 1889-30 जनवरी 1968) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा।[1] वे सच्चे देशप्रेमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। उनकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है, इसलिए वे सच्चे अर्थों में युग-चारण माने जाते हैं।[2]
जीवनी[संपादित करें]
श्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई[3] नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था जो गाँव के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक थे। प्राथमिक शिक्षा के बाद घर पर ही इन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
कार्यक्षेत्र[संपादित करें]
माखनलाल चतुर्वेदी का तत्कालीन राष्ट्रीय परिदृश्य और घटनाचक्र ऐसा था जब लोकमान्य तिलक का उद्घोष- 'स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' बलिपंथियों का प्रेरणास्रोत बन चुका था। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र का सफल प्रयोग कर कर्मवीर मोहनदास करमचंद गाँधी का राष्ट्रीय परिदृश्य के केंद्र में आगमन हो चुका था। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए स्वदेशी का मार्ग चुना गया था, सामाजिक सुधार के अभियान गतिशील थे और राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता की चाह के रूप में सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई थी। ऐसे समय में माधवराव सप्रे के 'हिंदी केसरी' ने सन १९०८ में 'राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार' विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया। अप्रैल १९१३ में खंडवा के हिंदी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका 'प्रभा' का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलालजी को सौंपा गया। सितंबर १९१३ में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। इसी वर्ष कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी ने 'प्रताप' का संपादन-प्रकाशन आरंभ किया। १९१६ के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलालजी ने विद्यार्थीजी के साथ मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गाँधी से मुलाकात की। महात्मा गाँधी द्वारा आहूत सन १९२० के 'असहयोग आंदोलन' में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी देने वाले माखनलालजी ही थे। सन १९३० के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें गिरफ्तारी देने का प्रथम सम्मान मिला। उनके महान कृतित्व के तीन आयाम हैं : एक, पत्रकारिता- 'प्रभा', 'कर्मवीर' और 'प्रताप' का संपादन। दो- माखनलालजी की कविताएँ, निबंध, नाटक और कहानी। तीन- माखनलालजी के अभिभाषण/ व्याख्यान।[4]
पुरस्कार व सम्मान[संपादित करें]
१९४३ में उस समय का हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा 'देव पुरस्कार' माखनलालजी को 'हिम किरीटिनी' पर दिया गया था। १९५४ में साहित्य अकादमी पुरस्कार की स्थापना होने पर हिंदी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार दादा को 'हिमतरंगिनी' के लिए प्रदान किया गया। 'पुष्प की अभिलाषा' और 'अमर राष्ट्र' जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने १९५९ में डी.लिट्. की मानद उपाधि से विभूषित किया। १९६३ में भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' से अलंकृत किया। १० सितंबर १९६७ को राजभाषा हिंदी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलालजी ने यह अलंकरण लौटा दिया। १६-१७ जनवरी १९६५ को मध्यप्रदेश शासन की ओर से खंडवा में 'एक भारतीय आत्मा' माखनलाल चतुर्वेदी के नागरिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। तत्कालीन राज्यपाल श्री हरि विनायक पाटसकर और मुख्यमंत्री पं॰ द्वारकाप्रसाद मिश्र तथा हिंदी के अग्रगण्य साहित्यकार-पत्रकार इस गरिमामय समारोह में उपस्थित थे। भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है। उनके काव्य संग्रह 'हिमतरंगिणी' के लिये उन्हें १९५५ में हिंदी के 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।[5]
प्रकाशित कृतियाँ[संपादित करें]
- हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चारण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी काजल आँज रही आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं।
- कृष्णार्जुन युद्ध, साहित्य के देवता, समय के पाँव, अमीर इरादे :गरीब इरादे आदि इनके प्रसिद्ध गद्यात्मक कृतियाँ हैं।
निबंध संग्रह
- साहित्य देवता।
- अमीर इरादे गरीब इरादे(1960ई०)
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- कविता कोश में माखनलाल चतुर्वेदी
- एक भारतीय आत्मा यादों के झरोखे से[मृत कड़ियाँ] (जागरण)
- माखनलाल चतुर्वेदी : भारतीय आत्मा (विजयदत्त श्रीधर)
- bahadur singh.htm स्वाधीनता के असाधारण बिम्ब हैं दद्दा[मृत कड़ियाँ] (डॉ॰ विजय बहादुर सिंह)
- माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली (गूगल पुस्तक)
- समय के पाँव (गूगल पुस्तक ; लेखक - माखनलाल चतुर्वेदी)
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ "पत्रकारिता की कालजयी परंपरा" (एसएचटीएमएल). बीबीसी. मूल से 15 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २२ दिसंबर २००८.
- ↑ Sārasvata, Gaṇeśadatta (1978). Sāhityika nibandha. Vidyā Vihāra. यह वर्णन कवि की सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का परिचायक है। इस प्रकार हम देखते हैं कि चतुर्वेदी जी सच्चे अर्थों में युग चारण हैं। उन्होंने आजीवन राष्ट्रीयता की अलख जगाया । उनकी वाणी राष्ट्र के मर्म की वाणी बन गई है । आधुनिक राष्ट्रीय काव्यधारा में बलि पत्थी युग - तारुण्य के ज्योति पुरुष के रूप में वे सर्वथा अविस्मरणीय हैं ।
- ↑ "पंडित माखनलाल चतुर्वेदी". हिन्दिनी. मूल से 7 अक्तूबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २२ दिसंबर २००८.
- ↑ "माखनलाल चतुर्वेदी : बहुआयामी व्यक्तित्व". वेबदुनिया. मूल (एचटीएम) से 22 दिसंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २२ दिसंबर २००८.
- ↑ "माखनलाल चतुर्वेदी". अनुभूति. मूल (एचटीएम) से 24 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २२ दिसंबर २००८.