मध्य हिमालय को नेपाल में किस नाम से जाना जाता है - madhy himaalay ko nepaal mein kis naam se jaana jaata hai

मध्य हिमालय या लघु हिमालय (अंग्रेजी: Lower Himalaya या Lesser Himalaya) हिमालय पर्वत तंत्र की एक श्रेणी है जो महान हिमालय के दक्षिण में और शिवालिक श्रेणी के उत्तर में स्थित है। इसे क्षेत्रीय रूप से कई नामों से जाना जाता है जैसे कुमाऊँ में धौलाधार श्रेणी, नेपाल में महाभारत श्रेणी इत्यादि। शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दून नमक घाटियाँ पायी जाती है। मध्य हिमालय और महान हिमालय के बीच दो प्रमुख घाटियाँ स्थित हैं, पश्चिम में कश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। श्रेणी:हिमालय.

3 संबंधों: हिमालय, कश्मीर, काठमांडू उपत्यका।

हिमालय पर्वत की अवस्थिति का एक सरलीकृत निरूपण हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत पाँच देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन। अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है। हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज। भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)। .

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ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायें: जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरी: (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .

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नगरकोट के समीप काठमाण्डू उपत्यका का दृष्य काठमांडू उपत्यका (नेपाली: काठमाडौं उपत्यका, नेपाल भाषा: स्वनिगः / नेपाः गाः), नेपाल में स्थित उपत्यका है जो एशिया के प्राचीन सभ्यताओं के सन्धिबिन्दु पर स्थित है। इसके अन्तर्गत १३० से भी अधिक महत्वपूर्ण स्मारक एवं हिन्दू और बौद्ध तीर्थस्थान हैं। इस उपत्यका में यूनेस्को द्वारा घोषित सात विश्व विरासत स्थल भी हैं। श्रेणी:नेपाल श्रेणी:काठमांडू श्रेणी:नेपाल में विश्व धरोहर स्थल.

Submitted by Hindi on Tue, 08/30/2011 - 11:20

मध्य हिमालय मध्य हिमालय का क्षेत्रफल 1,16,800 वर्ग किमी है और संपूर्ण नेपाल इसमें स्थित है। पश्चिम में कर्नाली नदी, मध्य में गंडक और पूर्व में कोसी नदी द्वारा यहाँ के जल का निकास होता है। नेपाल की मध्य घाटी, जहाँ नेपाल की राजधानी काठमांडू: स्थित है, नेपाल को दो भागों में विभक्त करती है। नेपाल की घाटी रूपांतरित अवसारी शैल की अपनत (anticlinal) पहाड़ियों के कटने से बनी है। उत्तर में अभिनत (Synclinal) पहाड़ियाँ इसे घेरे हुए हैं और दक्षिणी भाग उच्चावाच प्रतिलोमन (inverce of relief) प्रदर्शित करता है। संसार के आठ हजार मीटर ऊँचाई वाले शिखरों में से अधिकांश यहाँ हैं। यहाँ पश्चिम से पूर्व की ओर मिलनेवाले शिखर ये हैं : धौलागिरी (8,172 मी), अन्नपूर्णा (8,078 मी), मनासल (8,156 मी), गोसाईथान (8,013 मीटर), चो ओयू (Cho oyu, 8,153 मी), माउंट एवरेस्ट (8,848 मी), मकालू (8,481 मी), एवं कांचनजुंगा (8,598 मी)। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट एकनत (uniclinal) सरंचना है जो 1,070 मी मोटी है तथा रूपांतरित चूनापत्थर एवं अन्य अवसादों से बनी है। उपर्युक्त सभी शिखर सदा हिमच्छादित रहते हैं और अनेक हिमनदों का भरण करते हैं।

पूर्वी हिमालय

पूर्वी हिमालय के पश्चिमी भाग के अंतर्गत सिक्किम हिमालय, दार्जिलिंग हिमालय आते हैं तथा पूर्वी हिमालय के शेष भाग को असम हिमालय घेरे हुए है।

सिक्किम हिमालय- बृहत्‌ हिमालयमाला सिक्किम में प्रदेश करते ही अपनी दिशा बलकर पूर्ववर्ती हो जाती है और इस दिशा में 420 किमी तक, कंगटो (Kangto, 7,090 मी) तक चली जाती है। और अंत में इसकी दिशा उत्तर पूर्व की ओर हो जाती है तथा 300 किमी दूर नमचा बरवा (7,756 मी) में समाप्त हो जाती है। सिक्किम में हिमालय की दक्षिण सीमा पर शिवालिक श्रेणी का केवल संकीर्ण फ्रंज (fringe) है। जहाँ कहीं भी प्रमुख हिमालय क्षेत्र दक्षिण की ओर बड़ा है, वहँ शिवालिक श्रेणी तिरोहित हो गई है।

सिक्किम हिमालय के अंतर्गत बृहत्‌ नदी घाटी है, जो तिस्ता नदी और उसकी अनेक सहायक नदियों द्वारा चौड़ी एवं गहरी की गई है। यह संरचनात्मकत:, आनत घाटी है। भूस्खलन एवं हिम से ध्वस्त शैल सिक्किम में संचार को कठिन बना देते हैं। सिक्किम हिमालय की पश्चिमी सीमा सिंगालिला (Singalila) श्रेणी बनाती है। फलूत तक सिंगालिला के चौरस शिखर के कारण कांचनजुंगा तथा वैसी ही दो अन्य चोटियों कब्रु (7,316 मी) और जनो (7,710 मी) तक जाने का मार्ग सुगम है। डॉग्क्या (Dongkya) श्रेणी सिक्किम की पूर्वी सीमा बनाती है। यह श्रेणी बहुत दाँतेदार है, केवल नातु ला (Natu La) ओर जेलेप ला (Jelep La) दर्रें पर्याप्त चिकने हैं और इनसे होकर सिक्किम से चूंबी घाटी को जानेवाले व्यापारिक मार्ग नए हैं।

दार्जिलिंग हिमालय- दार्जिलिंग हिमालय में मुख्यत: उत्तरी एवं दक्षिणी दो श्रेणियाँ हैं। सिंगालिता श्रेणी पश्चिमी बंगल के दार्जिलिंग जिले को नेपाल से पृथक्‌ करती है। तराई के मैदानों से लेकर सेंचल शिखर (Senchal, 2,615 मी), सबरगम (3,543 मी) और फलूत (3,596 मी) दार्जिलिंग हिमालय का जल निकास पश्चिम से पूर्व की ओर मेवी बालासन, महान रंगित और तिस्ता से होता है। तिस्ता सबसे बड़ी नदी है। पहाड़ियों के मध्य में तिस्ता की घाटी की आकृति आयत के रूप में है और इसकी अधिकतम लंबई उत्तर से दक्षिण की ओर है। कोमल स्लेट और शिष्ट के काटने से तिस्ता की घाटी बनी है। तिस्ता, अपने और महान रंगित के संगम के दक्षिण में, अनुपस्थ अपनत के अक्ष के साथ साथ बहती है।

भूटान हिमालय- भूटान हिमालय का क्षेत्रफल 22,500 वर्ग किमी है। इसके अंतर्गत गहरी घाटियाँ एवं उच्च श्रेणियाँ सम्मिलित हैं। थोड़ी थोड़ी दूर पर स्थलाकृतिक लक्षण तीव्रता से परिवर्तित हो जाते हैं अत: इनका जलवायु पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। भूटान की एक दिन की यात्रा में ही साइबीरिया की कड़ाके की ठंढ, सहारा की भीषण गर्मी और भूमध्यसागरीय इटली के सुहावने मौसम सदृश मौसमों का अनुभव हो जाता है। भूटान में तोरसा नदी के पूर्व में शिवालिक श्रेणी पुन: प्रकट होती है और भूटान राज्य की संपूर्ण लंबाई में यह श्रेणी फैली हुई है। भूटान हिमालय में दक्षिण की ओर जानेवाली श्रेणियाँ हैं। इनमें से मसंग क्युंग्दु (Masang Kyungdu) श्रेणी का शिखर चोमो ल्हारी (Chomo Lhari) 7,314 मी ऊँचा है। थिंफू (Thimphu) श्रेणी लिंगशी (Lingshi) शिखर (5,623 मी) से आगे बढ़ती है। लिंगशी श्रेणी में लिंगशी ला और युले दर्रें चुंबा घाटी में जाने के मार्ग हैं। थिंफू श्रेणी से पूर्व में पुनखा घाटी है जिसका तल अत्यंत असम है।

असम हिमालय- हिमालय का सर्वाधिक पूर्वीय भाग असम के नेफा (Nepha) क्षेत्र में है। हिमालय के तीनों खंड, बृहत्‌ हिमालय, लघु हिमालय एवं बाह्य हिमालय, असम हिमालय में हैं। असम हिमालय का क्षेत्रफल 67,500 किमी है। ब्रह्मपुत्र घाटी के ऊपर जंगलों से भरी शिवालिक पहाड़ियाँ एकाएक 800 मीटर ऊँची उठ जाती हैं। लघु हिमालय की अधिकांश श्रेणियाँ शीतोष्ण जंगलों से ढँकी हुई हैं। यहाँ बृहत्‌ हिमालय (हिमाद्रि) का झुकाव उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर है और इसके अनेक शिखर 5,000 मी से अधिक ऊँचे हैं।

दिहांग नदी दिबांक एवं लुहित नदियों से मिलने के पश्चात्‌ ब्रह्मपुत्र कहलाती है। दिहांग मानसरोवर से लगभग 100 किमी दक्षिण पूर्व में तछोग खबब छोरटेन (Tachhog khabab Chhorten) के समीप के चेंमयुंगदुंग (Chemayoungdung) हिमनद के प्रोथ (Snout ) से निकलती है। यह पूर्व की ओर तिब्बत में उथली घाटी में 1,250 किमी बहने के बाद दक्षिण की ओर तीव्रता से मुड़ जाती है और इस मोड़ तक वह सांपो (Tsangpo) कहलाती है।

पूर्वी हिमालय में पश्चिम हिमालय की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है। दार्जिलिंग में लगभग 254 सेमी वर्षा होती है। तराई के क्षेत्र में घास, ऊँची झाड़ियों एवं छोटे पेड़वाले जंगल हैं। असम हिमालय के जंगल उपोषण कटिबंधी से लेकर मानसूनी जलवायुवाले हैं। बांज, चेस्टनट, रोडोडेनड्रान, मैग्नोलिया तथा देवदार के वृक्ष मिलते हैं।

हिमालय की उत्पत्ति- हिमालय पर्वतमाला विश्व की नूतन पर्वतमालाओं में से एक है। इसका निर्माण बृहत्‌ टेथिस सागर के तल के उठने से, आज से पाँच से छह करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। हिमालय को अपनी पूर्ण ऊंचाई प्राप्त करने में 60 से 70 लाख वर्ष लगे। यह ऐल्पीयप्रणाली का वलित पर्वत है। भूविज्ञानियों का मत है कि प्राचीन काल में स्थाल भाग के दो भूखंड थे। उत्तरी भूखंड से उत्तरी महाद्वीप, यूरेशिया आदि तथा दक्षिणी भूखंड से गोंडवाना, दक्षिणी भूखंडों के मध्य में टेथिस (Tethys) नामक समुद्र था जिसका अवशेष अब का भूमध्यसागर है। टेथिस सागर में उत्तर (upper) कार्बनी कल्प से उपर्युक्त दोनों भूखंडों से कीचड़, मिट्टी आदि का जमाव होता रहा। इस जमाव का उत्थान पर्वतन गति काल (Period of orogenic) से आरंभ हुआ। यह उत्थान मध्य आदिनूतन (Eocene) से लेकर तृतीय महाकल्प के अंत तक तीन आंतरायिक प्रावस्थाओं में हुआ। पहली प्रावस्था पश्च नुमुलाइटिक (Post Numulitic) से लेकर आदिनूतन के अंत तक रही। दूरी अवस्था लगभग मध्यनूतन (Miocene) में हुई। तीसरी प्रावस्था, जो सबसे महत्वपूर्ण प्रावस्था है, पश्च अतिनूतन (post pliocene) कल्प से प्रारंभ हुई और अत्यंतनूतन कल्प के मध्य तक समाप्त नहीं हुई थी। इस प्रावस्था में हिमालय की वर्तमान शृंखला को बनाने के लिए श्रेणी के अक्षीय भाग के साथ बाह्य शिवालिक के गिरिपादों का उत्थान हुआ। टेथिस सागर का उपर्युक्त निक्षेप 9,000 मी से अधिक मोटा है और इसमें उत्तर कार्बनी, परमियन (Permian), ट्राइऐस (Trias), जुरैसिक (Jurassic), क्रिटेशस (Cretaceous) और आदिनूतन (Eocene) कल्प के निक्षेप हैं जिनमें लाक्षणिक जीवाश्मों की सुरक्षित सिलसिला है।

भूविज्ञान- मध्य एशिया के बृहत पठार के साथ साथ भूपर्पटी के तीव्र आप्रोटन (Crumpling) से हिमालय का निर्माण हुआ है। हिमालय से पर्वतीय चाप के बाहर साल्टश्रेणी के अतिरिक्त भारतीय प्रायद्वीप में और कहीं भी इस आमोटन का प्रभाव परिलक्षित नहीं हुआ है। भारतीय प्रायद्वीप में पूराजीवी (Palaeozoic) महाकल्प के पहले का कोई भी वलन नहीं है। हिमालय में भूविज्ञानी अनुक्रम (कैंब्रियन से आदिनूतन तक) लगभग पूर्णत: समुद्री हैं। श्रेणी में प्राय: अंतराल भी हैं पर इस लंबी अवधि में संपूर्ण उत्तरी भाग टेथिस सागर के अंदर रहा। भारतीय प्रायद्वीप में जुरैसिक और क्रिटेशसकल्प के पूर्व के समुद्री जीवाश्म कहीं नहीं प्राप्त हुए हैं। हिमालय की वलित समुद्री तहों के मध्य में तथा सिंध और गंगा के मैदान के क्षैतिज स्तरों के मध्य में जलोढ़ एवं हवा द्वारा लाए गए नूतन निक्षेपों की मोटी तह है। यह स्पष्ट है कि हिमालय के सम्मुख बृहत गर्त है पर इसका कोई प्रमाण नहीं है कि यह गर्त समुद्र के अंदर रहा।

भूविज्ञानी दृष्टि से हिमालय को तीन क्षेत्रों में विभक्त कर सकते हैं : (1) उत्तरी क्षेत्र (तिब्बती क्षेत्र), (2) हिमालयी क्षेत्र तथा (3) दक्षिणी क्षेत्र।

(1) उत्तरी क्षेत्र- उत्तर पश्चिम को छोड़कर इस क्षेत्र में पुराजीवी एवं मध्यजीवीकल्प के जीवाश्मवाले स्तर अत्यधिक विकसित हैं। दक्षिणी पार्श्व में इस प्रकार के शैल नहीं हैं।

(2) हिमालयी क्षेत्र- इस क्षेत्र के अंतर्गत बृहत्‌ एवं लघु हिमालय का आधिकांश सम्मिलित है। यह क्षेत्र रूपांतरित एवं क्रिस्टलीय शैलों से निर्मित है तथा यहाँ के जीवाश्महीन स्तर पुराजीवीकल्प के हैं।

(3) दक्षिणी क्षेत्र- इस क्षेत्र के स्तर तृतीय कल्प के, विशेषत: उच्च तृतीय कल्प के हैं। इस क्षेत्र के प्राचीनतम स्तर स्पिटी घाटी में हैं तथा ये आद्यमहाकल्प के नाइस के बने हैं। ये स्तर जीवाश्मवाले स्तर हैं और कैब्रियनप्रणाली के हैं। स्पिटी क्षेत्र के निम्न पुराजीवीकल्प के स्तरों में कोई अव्यवस्था नहीं है लेकिन मध्य हिमालय के अन्य भागों में परमियनकाल के प्राचीन स्तरों के संगुटिकाश्म विषमत: विन्यस्त हैं। यह संगुटिकाश्म महत्वपूर्ण आधाररेखा (datum line) बनाता है। परमियन से लेकर लिएस (Lias) तक मध्य हिमालय में अंतराल के कोई च्ह्रि नहीं है। स्पिटी शेल अनुगामी हैं, यद्यपि इनमें मध्य एवं उच्च जुरेसिक के जीवाश्म मिलते हैं, तथापि इनके आधार पर कोई अंतराल सिद्ध नहीं होता है। स्पिटी शेल क्रिटेशस स्तरों का समविन्यस्तत: अनुवर्ती है और ये दोनों बिना किसी अंतराल के आदिनूतनकाल की नुमुलिटी स्तरों (Nummulitic beds) का अनुगमन करते हैं। तृतीय कलप का प्रारंभ भीषण आग्नेय सक्रियता द्वारा चि्ह्रत है जिसमें अंतर्वेधन (Intrusion) एवं बहिर्वेधन (Extrusion) हुआ। दूसरी अगामी निक्षेप चूनापत्थर है जो प्राय: अधिक झुका हुआ और नुमुलिटी स्तरों पर विषमत: विन्यस्त है तथा उप हिमालय के निम्नशिवालिक से मिलता जुलता है पर इसमें कोई भी जीवाश्म नहीं मिला है। संपूर्ण पर हुंद (Hundes) के नवीन तृतीयक काल के स्तर विषमविनस्यत: उपरिशयित है और ये स्तर वलित एवं क्षैतिज हैं।

हिमालय की पट्टी के उत्तरी भाग में, कम से कम स्पिटी क्षेत्र में, उत्तरी आद्यकल्प के तथा किसी भी विस्तार के वलन नहीं हैं। वलन, हुंद के तृतीय काल के स्तरों के बनने के पूर्व ही, पूर्ण हो गया था। अत: इस भाग शृंखलाओं का उत्थान मध्यनूतन (Miocene) काल में आरंभ हुआ था, जबकि शिवालिक सदृश चूनापत्थर का विक्षोभ यह प्रकट करता है कि वलन अतिनूतन (Pliocene) कल्प तक चलता रहा। हिमालय के दक्षिण पार्श्व में शृंखलाओं के निर्माण का इतिहास अधिक स्पष्ट है। उपहिमालय तृतीयकाल के स्तरों का बना हुआ है जब निम्न हिमालय तृतीयपूर्वकाल के स्तरों का बना है और इन स्तरों में कोई जीवाश्म नहीं मिला है। इस शृंखला की संपूर्ण लंबाई में जहाँ कहीं भी शिवालिक का तृतीयपूर्वकाल के शैलों से- संगम हुआ है वहाँ उत्क्रमित भ्रंश (Reversed fault) दिखाई पड़ता है। इस भ्रंश का शीर्ष अंदर शृंखला के केंद्र की ओर है। प्राचीन शैल, जो मुख्य हिमालय का निर्माण करते हैं, आगे की ओर उपहिमालय के नवीन स्तरों के ऊपर ढकेल दिए गए हैं। लगभग प्रत्येक जगह भ्रंश शिवालिक स्तरों की उत्तरी सीमा बनाता है। वास्तव में भ्रंश मुख्यत: शिवालिक स्तरों के निक्षेप के कारण उत्पन्न हुए हैं और जैसे ही ये बने हिमालय आगे की ओर इनपर ढकेल दिया गया जिससे ये वलित एवं उल्टे हो गए। शिवालिक नदीय (Fluviatile) एवं वेगप्रवाही (Torrential) निक्षेप हैं और उन्हीं निक्षेपों के समान हैं जो सिंध गंगा के मैदान में गिरिपादों पर बने हैं। उत्क्रमित भ्रंश लगभग समांतर भ्रंशों की माला है। हिमालय दक्षिण की ओर अनेक व्यवस्थाओं में बना है। शृंखला के पाद पर उत्क्रमित भ्रंश बना और इसपर पर्वत अपने आधार के स्तरों पर आगे की ओर ढकेल दिए गए और इस प्रक्रिया में उनमें अमोटन एवं वलन हुए तथा मुख्य शृंखला के सम्मुख उपहिमालय बना। यह प्रक्रिया अनेक बार दोहराई गई। इस क्षेत्र में होनेवाले आजकल के भूकंप भ्रंशरेखा पर खोजे जा सकते हैं और ये इस बात के प्रतीक हैं कि पर्यटीय संतुलन अभी तक नहीं हुआ है।

जलवायु- 2139 मी की ऊँचाई पर जाड़े में औसत ताप 5 सें. और ग्रीष्म का औसत ताप 18 से. रहता है, पर घाटियों में मई एवं जून के महीनों में दिन का ताप 32 सें. से लेकर 38 सें. रहता है। जाड़े में 3000 मीटर की ऊँचाई पर ताप 0 सें. रहता है। 4000 मीटर की ऊँचाई पर ताप मई के अंत से लेकर अक्टूबर के मध्य तक हिमांक से ऊपर रहता है। 5,000 मी की ऊँचाई पर ताप कभी भी हिमांक से ऊपर नहीं जाता चाहे कितनी हो गर्मी क्यों न पड़े। तिब्बत का ताप हिमालय के ताप की अपेक्षा अधिक परिवर्तनशील है। तिब्बत में 4000 मी की ऊँचाई पर सर्वाधिक गर्म महीनों में भी ताप लगभग 15 सें. रहता है। पश्चिम की अपेक्षा पूर्वी हिमालय में अधिक वर्षा होती है।

वन्यजंतु- भारत की ओर के हिमालय में लंगूर, हाथी, गैंडा, बाघ, तेंदुआ, गंधमार्जार, नेवला, भालू, मोल आदि मिलते हैं। शिवालिक में मध्यनूतन तथा अतिनूतनकल्प के स्तनधारियों से संबंधित स्तनधारियों के 84 स्पेशीज के जीवाश्म मिलते हैं। लंगूर लगभग 4000 मी की ऊँचाई तक मिलते हैं। हिमालय के जंगलों में लोमड़ी, एवं भेड़िये नहीं मिलते। पर ये दोनों जंतु एवं वनविलाव, हिमप्रदेशी चीता, जंगली गदहा, कस्तूरीमृग, बारहसिंहा और भेड़ तिब्बत की ओर के हिमालय में मिलते हैं। जंगली क्षेत्रों में जंगली कुत्ता एवं जंगली सूअर मिलते हैं लेकिन गवल नीची भूमि पर पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय में चींटीखोर के दो स्पेशीज मिलते हैं। अधिक ऊँचाई पर याक मिलते हैं जो वालों की मोटी तहों से ढँके रहते हैं।

महाश्येन, गिद्ध और अन्य शिकारी पक्षी हिमालय में ऊँचाई पर मिलते हैं। भारत की ओर के मैदार्नों से लगे जंगलों में मोर मिलते हैं। यहाँ तीतर और चकोर भी मिलते हैं जो ऊँचाई पर हिम में रहने के लिए अनुकूलित हो गए हैं।

भारत की ओर के हिमालय में अजगर मिलते हैं। नाग लगभग 2,000 मी की ऊँचाई तक मिलते हैं। छिपकलियाँ तथा मेढ़क असाधारण ऊँचाई तक मिलते हैं। फ्रनोसीफेलस (Phrenocephalus) छिपकली एवं मेढक तिब्बत में भी पाए गए हैं। हिमालय के जल में कैटफिश या कार्प कुल की मछलियाँ मिलती हैं। कैटफिश की कुछ जातियाँ तथा कार्य की अनेक जातियाँ तिब्बत के जल में मिलती है। तीव्र पर्वतीय जलप्रवाह में रहनेवाली मछलियों में शैलों को पकड़ने के लिए, चूषक (Sukers) रहते हैं। हिमालय क्षेत्र में सैलमॉन कुल की मछलियाँ नहीं मिलती हैं। यहाँ तितलियों के कई कुल मिलते हैं जिनमें से प्रमुख ये हैं। पैपिलिअनिडी (Papilionidae), निंफैलिडी (Nymphalidae), मार्फिडी (Morphidae) तथा डनेडी (Danaidae)।

हिमालय का महत्व- भारत के उत्तरी मैदान के निर्माण, आर्थिक जीवन एवं जलवायु पर हिमालय का बहुत प्रभाव पड़ा है। यदि उत्तर में हिमालय न होता तो सिंध एवं गंगा का विशाल उपजाऊ मैदान आज मरुभूमि होता। हिमालय ही भारत की अधिकांश वर्षा का कारण है। गर्मी के दिनों में हिमालय दक्षिण पश्चिमी मानसूनी हवाओं को भारत में ही रोक लेता है जिससे उत्तरी भारत के मैदान एवं हिमालय की भारतीय ढालों पर घोर वर्षा होती है। इस वर्षा के कारण अनेक नदियाँ हिमालय से निकलकर मैदान में बहती हैं, जिनसे बहुत सी मिट्टीश् बहकर सिंध गंगा के मैदान में एकत्र होती है जिससे भूमि उर्वरा हो जाती है। हिमालय के स्थायी हिमाच्छादित भागों में गर्मी के मौसम में बर्फ पिघलती है जिसके कारण गंगा के मैदान की हिमालय से निकलनेवाली नदियों में ग्रीष्म में भी जल रहता है।

शीतकाल से ध्रुवीय ठंढी हवाओं के कारण मध्य एशिया का अधिकांश जम जाता है और वहाँ ठंढी हवाओं की आँधियाँ चलती है, पर हिमालय की ऊँची श्रेणियाँ इन हवाओं को भारत में आने से रोकती है और भारत शीतकाल में जमने से बच जाता है।

हिमालय की 2,500 किमी लंबाई उत्तर में भारत की सीमा बनाती है और भारत को उत्तरी एशिया से पृथक्‌ करती है। इससे देश की सुरक्षा होती है। हिमालय में उत्तर पश्चिम में खैबर, बोलन, गोमल आदि दर्रें हैं जो भारत एवं मध्य एशिया के बीच प्राचीन व्यापारिक मार्ग है। हिमालय की तराई में घने वनों की पट्टियाँ है जिनसे उपयोगी लकड़ी, जड़ीबूटी आदि प्राप्त होती हैं। हिमालय की घाटियों में स्थित पहाड़ी नगर ग्रीष्म ऋतु में भारत के मैदानी प्रदेशों के लिए प्रमुख आकर्षण के स्थान हैं। काश्मीर तो विश्व भर के पर्यटकों के आर्कषण का केंद्र है। इससे भारत को पर्याप्त विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। श्रीनगर, शिमला,, अल्मोड़ा, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग, शिलौंग आदि प्रसिद्ध पर्वतीय नगर हैं जहाँ लोग ग्रीष्म ऋतु में मैदानी गर्मी से बचने के लिए जाकर रहते हैं। (अजितनारायण मेहरोत्रा)

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संदर्भ

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मध्य हिमालय का दूसरा नाम क्या है?

हिमाचल पर्वतमाला (Himachal Range), जिन्हें लघु हिमालय (Lower Himalaya, Lesser Himalaya) या मध्य हिमालय (Middle Himalaya) भी कहा जाता है, हिमालय की मध्यवर्ती क्षेणी है। यह शिवालिक पर्वतमाला से उत्तर में है और उस से ऊँची है, लेकिन हिमाद्रि पर्वतमाला से दक्षिण में है और उस से कम ऊँचाई रखती है।

हिमालय को नेपाल में क्या बोलते हैं?

हिमालय को नेपाल में किस नाम से जाना जाता है? हिमालय को हिमाल के नाम से जानते हैं . सागरमाथा नेपाल में एवेरेस्ट का नाम है और तिब्बत में चोमोलोंग्मा है.

मध्य हिमालय में क्या स्थित है?

यहाँ पश्चिम से पूर्व की ओर मिलनेवाले शिखर ये हैं : धौलागिरी (8,172 मी), अन्नपूर्णा (8,078 मी), मनासल (8,156 मी), गोसाईथान (8,013 मीटर), चो ओयू (Cho oyu, 8,153 मी), माउंट एवरेस्ट (8,848 मी), मकालू (8,481 मी), एवं कांचनजुंगा (8,598 मी)।

मध्य हिमालय और महान हिमालय के बीच की घाटी को क्या कहते हैं?

महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच दो बड़ी और खुली घाटियाँ पायी जाती है - पश्चिम में काश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। जम्मू-कश्मीर में इसे पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार,उत्तराखंड में मस्सोरी या नागटिब्बा तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप में जाना जाता है।

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