मात्रात्मक भूगोल की परिभाषा एवं विषय क्षेत्र की विवेचना कीजिए - maatraatmak bhoogol kee paribhaasha evan vishay kshetr kee vivechana keejie

You are here: Home / एकेडमिक / भूगोल / भूगोल के अध्ययन की मात्रात्मक उपागम अथवा मात्रात्मक क्रांति

भूगोल के अध्ययन में वैज्ञानिक एवं गणितीय विधियों का प्रयोग मात्रात्मक उपागम कहलाता है| इसके प्रयोग से भूगोल के निष्कर्ष अधिक विश्वसनीय हो गए और वह एक वैज्ञानिक विषय के रूप में स्थापित हो गया. इसके कारण ही इसे मात्रात्मक क्रांति की संज्ञा दी गई| हम इस लेख में भूगोल के अध्ययन की मात्रात्मक उपागम अथवा मात्रात्मक क्रांति के बारे में बता रहे है| Quantitative approach to the study of geography in hindi. Quantitative Revolution of Geography in hindi.

इस लेख को पढने के बाद आप निम्नलिखित प्रश्नों को उत्तर देने की स्थिति में होंगें|

  • भूगोल में मात्रात्मक उपागम या मात्रात्मक विधि की आवश्यकता को बताते हुए इसके प्रयोग से भूगोल में आने वाले गत्यात्मक परिवर्तन को बताएं|
  • उन आधारों की चर्चा करें जिसके कारण भूगोल में मात्रात्मक क्रांति आई|
  • भूगोल में मात्रात्मक क्रांति के सकारात्मक एवं नकारात्मक परिणामों को समझाएं|
  • मात्रात्मक भूगोल के उद्देश्य को समझाते हुए इसके प्रभावों की आलोचनात्मक परीक्षण करें|

हम इस लेख में इन्ही प्रश्नों पर विचार करते हुए भूगोल के अध्ययन की मात्रात्मक विधि (Quantitative Revolution of Geography in hindi) को समझने का प्रयास करेंगें| हम आशा करते है कि आप भूगोल में उत्पन्न द्वैधता की स्थिति से परिचित है| यह वह स्थिति है जहाँ दो विचारधारा एक ही समय में स्थापित हो जाती है|

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भूगोल के अध्ययन की विधि में गत्यात्मक परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की गई. इसी क्रम में मात्रात्मक उपागम को अपनाया गया. यह भूगोल के अध्ययन में वैज्ञानिक नियमों, सिद्धांतों, गणितीय एवं सांख्यिकी के सूत्र तथा आकड़ो के प्रयोग पर आधारित ऐसी विधि है, जिसमें वैज्ञानिक नियमों तथा सिद्धांतों का विकास किया गया.

इस तरह भूगोल के अध्ययन में वैज्ञानिक एवं गणितीय विधियों का प्रयोग ही मात्रात्मक उपागम कहलाता है. इसके प्रयोग से भूगोल के निष्कर्ष अधिक विश्वसनीय हो गए और वह एक वैज्ञानिक विषय के रूप में स्थापित हो गया. इसके कारण ही इसे मात्रात्मक क्रांति की संज्ञा दी गई.

मात्रात्मक उपागम का विकास अन्य सामाजिक विषयों के साथ भूगोल में भी वैज्ञानिकीकरण की आवश्यकता के साथ हुआ. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सामाजिक विषय अपनी प्रासंगिकता खोने लगे थे क्योंकि इनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव था. तब भूगोल सहित विभिन्न सामाजिक विषयों में अनुभविक विधि का प्रयोग किया जाता था. और इसमें व्यक्तिगत दृष्टिकोण (प्रत्येक व्यक्ति का अपना अपना विचार) का महत्व था. ऐसे में सामाजिक विषयों में सार्वभौमिक एवं सामान्य नियम का पुर्णतः आभाव था जबकि वैज्ञानिक विषय सार्वभौमिक नियम पर आधारित थे.

किसी भी विषय का महत्व और सामान्य स्वीकृति तभी संभव है जब उस विषय में सामान्य नियम और सामान्य सिद्धांत और मॉडल विकसित हो. लेकिन यह विशेषताएं भूगोल एवं अन्य सामाजिक विषयों में प्रायः नहीं थी इसी संदर्भ में सामाजिक विषयों के विज्ञानकिकरण की आवश्यकता महसूस की गई. ताकि सामाजिक विषय भी प्रासंगिक बनी रहे.

सामाजिक विषयों में वैज्ञानिककीकरण की संभावना के संदर्भ में 1949 में अमेरिका के प्रिस्टन विश्वविद्यालय में सामाजिक वैज्ञानिकों का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में भूगोल के अंतर्गत मात्रात्मक विधियों के प्रयोग का निर्णय लिया गया इसके बाद ही भूगोल के विषय के अंतर्गत आकड़ो तथा गणितीय सांख्यिकी सूत्रों का प्रयोग प्रारम्भ हुआ.

भौतिक भूगोल सहित मानव भूगोल के विभिन्न क्षेत्रों में मात्रात्मक उपागम का प्रयोग प्रारम्भ हुआ जिससे विभिन्न घटनाओं एवं विषयों का वैज्ञानिक विश्लेषण करना आसान हुआ. इससे भूगोल के निष्कर्ष अधिक विश्वसनीय हुए. इसी संदर्भ में मात्रात्मक उपागम के प्रयोग से उत्पन्न लाभों को मात्रात्मक क्रांति कहा गया.

भूगोल में मात्रात्मक उपागम का विकास – Quantitative approach development in Geography in hindi

भूगोल में मात्रात्मक उपागम के प्रारम्भ का श्रेय जीके जिफ को जाता है. प्रिस्टन विवि के सम्मेलन के बाद 1949 में ही जीके जिफ ने नगर नियोजन और नगरीय सेवा केंद्रों के नियोजित विकास के लिए कोटि आकार नियम का प्रतिपादन किया. इसमें किसी भी क्षेत्र में नियोजित नगरीय विकास के लिए पदानुक्रम सिद्धांतों पर बल दिया गया. इसके अनुसार यदि नियोजित तरीके से पदानुक्रम में नगरों का विकास किया जाए तब उस प्रदेश के विकास की प्रक्रिया तीव्र की जा सकती है इनमें निम्न सूत्र का प्रयोग किया गया.

इस सूत्र ने विश्व में नगर नियोजन और नगरीय सेवा केंद्रों के विकास के लिए एक सामान्य सर्वभौमिक नियम दिया और इसका प्रयोग विकसित देशों में प्रमुखता से किया गया.

यूएसए में मात्रात्मक उपागम का प्रयोग प्रमुखता से किया जाने लगा और 1960 तक मात्रात्मक क्रांति चरम अवस्था में आ चुकी थी. यहां मात्रात्मक उपागम को प्रसारित करने में बेरी और बंगे का भी योगदान है. बंगे ने सैद्धांतिक भूगोल पुस्तक लिखी, जो मात्रात्मक उपागम पर आधारित था. इसने भूगोल में सिद्धांत और मॉडल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. यूएसए के बाहर मात्रात्मक उपागम का प्रयोग व्यापकता से नहीं हो रहा था. यूएसए में प्रिस्टन विवि, वाशिंगटन विवि और बिसकोंसिस विवि में मात्रात्मक उपागम पर व्यापक कार्य हुआ.

यूएसए के बाहर स्वीडन लुंड विवि में पी हैंगर स्टैंड में मात्रात्मक उपागम की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किया. इन्होंने नवोत्पाद का विसरण सिद्धांत दिया. इसके अनुसार नवीन विचार नवीन आविष्कार वैज्ञानिक यंत्र का विश्वव्यापी मिश्रण आवश्यक है. भूगोल से संबंधित वैज्ञानिक नियमों के वैश्विक प्रसार की आवश्यकता बताई.

यह विचार मात्रात्मक उपागम की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हुआ. लेकिन यूएसए और स्वीडन से बाहर मात्रात्मक क्रांति का प्रसार नहीं हो पाया. 1970 के दशक में ब्रिटेन में शोर्ले एवं हैगेट ने मात्रात्मक उपागम पर विशेष कार्य किया तथा इसे वैश्विक स्तर पर प्रसारित और स्थापित किया. इन्होंने निम्न दो पुस्तके लिखी:

  • Frontiers of geographical teaching
  • Models in geography

पहली पुस्तक विश्व के शिक्षकों को मॉडल की आवश्यकता एवं मात्रात्मक उपागम से संबंधित जानकारी देने और शिक्षित करने के लिए था जबकि दूसरी पुस्तक में उस समय तक विकसित सभी मॉडल शामिल किए गए तथा मॉडल निर्माण की प्रक्रिया समझाइ गई.

इन पुस्तकों को राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों में विश्वविद्यालय में भेजा गया इससे मात्रात्मक उपागम का वैश्विक प्रसार हुआ इसी के साथ विश्व में प्रायः सभी क्षेत्रों में मात्रात्मक उपागम भूगोल के अध्ययन की एक प्रमुख विधि बन गई.

इन प्रयासों के बाद ही भौतिक भूगोल सहित मानव भूगोल के विभिन्न क्षेत्रों जनसंख्या भूगोल, कृषि भूगोल, औद्योगिक भूगोल, नगरीय भूगोल में मात्रात्मक विधियों का प्रयोग किया जाने लगा. नगरों के प्रभाव क्षेत्र को समझाने के लिए तथा मानव के प्रवास संबंधी निष्कर्ष के लिए गुरुत्वाकर्षण मॉडल का प्रयोग किया जाने लगा.

मात्रात्मक उपागम के विकास की प्रक्रिया में मानक विचलन विधि, सह संबंध विधि, बहुचर विधि तथा निकटतम पड़ोसी विधि का प्रयोग किया गया. अधिक जटिल सांख्यिकी सूत्रों के प्रयोग से निष्कर्ष बेहतर होने लगे. 1970 के दशक में उपग्रह आधारित अध्ययन का भी प्रयोग किया जाने लगा. 1980 के दशक में सुपरकंप्यूटर सुदूर संवेदी तकनीक का प्रयोग प्रारंभ हो गया तथा भौगोलिक सूचना तंत्र और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम का प्रयोग हुआ.

इन प्रक्रियाओं के अपनाए जाने से विभिन्न विषयों से संबंधित निष्कर्ष विश्वसनीय होते चले गए और भूगोल व्यक्तिपरक विषय से अलग हटकर एक वस्तुनिष्ठ विज्ञान के रूप में स्थापित हो गया. विषय की विज्ञानकीकरण की कारण भूगोल बहु आयामी और अंतर्देशीय संबंधों को स्थापित करने वाला विषय के रूप में स्थापित हो गया.

अध्ययन की मात्रात्मक उपागम की आलोचना

मात्रात्मक क्रांति के सकारात्मक प्रभाव के साथ ही इससे संबंधित कुछ समस्याएं भी उत्पन्न हुई, जिसके कारण इसकी आलोचना भी की गई. इसके प्रमुख आलोचक व्यवहारात्मक भूगोलवेत्ता थे. इनके अनुसार भूगोलवेत्ता सामाजिक वैज्ञानिक होता है अतः गणितीय सूत्र का प्रयोग गलत कर सकता है. अतः पहले से चली आ रही अनुभविक विधि ही अनुकूल है. गणितीय सूत्र में मानवीय व्यवहारों को स्थान नहीं दिया जा सकता. ऐसे में मानव भूगोल के निष्कर्ष में विश्वसनीयता की कमी की समस्या उत्पन्न होती है.

मॉडल निर्माण की प्रक्रिया में एक ही विषय पर कई मॉडल बनाए जाने लगे. ऐसे में मॉडल की चयन की समस्या उत्पन्न हुई इसी संदर्भ में इसे गृह युद्ध की संज्ञा दी गई. डेविड हार्वे जो कभी मात्रात्मक उपागम के बहुत बड़े समर्थक थे अब आलोचक हो गए. उन्होंने कहा कि मात्रात्मक क्रांति जिन उद्देश्यों के लिए प्रारंभ किया गया था वह प्राप्त हो चुका है अतः अब इसे समाप्त हो जाना चाहिए.

मात्रात्मक उपागम आंकड़ों पर आधारित है अतः आकड़ो की शुद्धता निष्कर्ष की शुद्धता के लिए आवश्यक है. यदि आकड़े अशुद्ध हो तो निष्कर्ष गलत हो जाएंगे. इन्हीं कारणों से मात्रात्मक उपागम के प्रयोग की आलोचना कई भूगोलवेत्ताओ द्वारा की जाने लगी. लेकिन इसके बावजूद मात्रात्मक उपागम के प्रयोग ने भूगोल को अधिक वैज्ञानिक विश्वसनीय और गत्यात्मक विषय बना दिया.

हम आशा करते है कि इस लेख ने आपको भूगोल के अध्ययन की मात्रात्मक उपागम अथवा मात्रात्मक क्रांति Quantitative approach to the study of geography in hindi. Quantitative Revolution of Geography in hindi के बारे में जानने में सहायता की|

यह जानकारी अच्छी लगी हो तो ऐसे लेखों की सूचना पाने के लिए हमारे ईमेल फीड की सदस्यता लें| आप हमसें फेसबुक और ट्विटर के जरिए भी जुड़ सकते है| आप हमारे हेल्थ साईट GGuka.com को मुफ्त पढ़ सकते है|

यह भी पढ़े:

मात्रात्मक क्रांति से आप क्या समझते हैं?

1950 के बाद भौगोलिक विषय सामग्री को सुचारु रूप से समझने के लिये सांख्यिकीय एवं गणितीय तकनीकों के प्रयोग में आई क्रांति को भूगोल में मात्रात्मक क्रांति कहते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य भूगोल को वैज्ञानिक रूप देना था।

मात्रात्मक क्रांति के जनक कौन हैं?

भूगोल में मात्रात्मक उपागम के प्रारम्भ का श्रेय जीके जिफ को जाता है.

मात्रात्मक क्रांति कब हुई थी?

1. प्रथम अवस्था ( 1950-58 )-इस अवस्था में निदर्शन तकनीक,माध्य,माध्यिका,बहुलक,मानक विचलन जैसी सरल सांख्यिकी विधियों का प्रयोग किया गया इस अवस्था में बी जे एलबेरी, किंग,डेविड हार्वे ,एकरमैन जैसे विद्वानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा.

मात्रात्मक विधियों से आप क्या समझते हैं?

मात्रात्मक शोध संख्यात्मक (संख्या आधारित) होता है। गुणात्मक शोध गुणात्मक या वर्णनात्मक (वर्णन आधारित) होता है। मात्रात्मक शोध में प्रयोग के सांख्यिकीय परीक्षण और सांख्यिकीय विश्लेषण की सम्भावना होती है। गुणात्मक शोध में किसी भी सांख्यिकीय परिक्षण की सम्भावना नहीं होती है।

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग