मोहनजोदड़ो का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है? - mohanajodado ka sabase bada sthal kaun sa hai?

मोहनजोदड़ो में सबसे बड़ा भवन कौन-सा है

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1 Answers

मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार या अन्नकोठार या धान्यागार है। यह 45.71 मी. लम्बा और 15.23 मी. चौडा है।

सिन्धु घाटी सभ्यता

प्रश्न 1   सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों की गलियां थीं -
 (अ) तंग और टेढी
 (ब) चौड़ी और सीधी
 (स) तंग और मैली
 (द) फिसलन वाली
 उत्तर  

प्रश्न 2   हड़प्पा के खंडहर निम्नांकित में से किस नदी के तट पर पाए जाते हैं -
 (अ) व्यास
 (ब) रावी
 (स) झेलम
 (द) सतलज
 उत्तर  

प्रश्न 3   मोहनजोदड़ो के खंडहर निम्नांकित में से किस नदी के तट पर पाए जाते हैं -
 (अ) रावी
 (ब) झेलम
 (स) सिन्धु
 (द) व्यास
 उत्तर  

प्रश्न 4   मोहनजोदड़ो में सबसे बड़ा भवन कौन-सा है -
 (अ) विशाल स्नानागार
 (ब) सस्तंभ हॉल
 (स) दो मंजिला मकान
 (द) धान्यागार
 उत्तर  

प्रश्न 5   विशाल स्नानागार (ग्रेट बाथ) कहां मिला था -
 (अ) मोहनजोदडो
 (ब) लोथल
 (स) हड़प्पा
 (द) रोपड़
 उत्तर  

प्रश्न 6   सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि कौनसी हैं -
 (अ) तमिल
 (ब) ब्राह्मी
 (स) अरबी
 (द) ज्ञात नहीं है
 उत्तर  

प्रश्न 7   सिंधु घाटी सभ्यता का पतन नगर (बंदरगाह) कौन-सा था -
 (अ) रोपड़
 (ब) लोथल
 (स) कालीबंगन
 (द) मोहनजोदड़ो
 उत्तर  

प्रश्न 8   पहली बार कपास उपजाने का श्रेय किस सभ्यता को जाता है -
 (अ) मिस्त्र
 (ब) सिन्धु
 (स) मेसोपोटामिया
 (द) फारसी
 उत्तर  

प्रश्न 9   सिन्धु सभ्यता के लोग किस धातु से अपरिचित (Unfamiliar) थे -
 (अ) सोना
 (ब) लोहा
 (स) तांबा
 (द) कास्य
 उत्तर  

प्रश्न 10   मोहनजोदड़ो का उत्खनन कार्य कब हुआ -
 (अ) 1920
 (ब) 1919
 (स) 1921
 (द) 1922
 उत्तर  

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युनेस्को विश्व धरोहर स्थल

मोहन जोदड़ो के पुरातात्विक अवशेषदेशप्रकारमानदंडसन्दर्भयुनेस्को क्षेत्रशिलालेखित इतिहासशिलालेख
विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम

एक सिन्धी अज्रुक पहने हुए पुरोहित-नरेश की 2500 इ पू की प्रतिमा। राष्ट्रीय संग्रहालय, कराची, पाकिस्तान

 
पाकिस्तान
सांस्कृतिक
ii, iii
138
एशिया-प्रशांत
1980 (4था सत्र)

मोहन जोदड़ो पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत का एक पुरातात्विक स्थल है। सिन्धु घाटी सभ्यता के अनेकों अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए हैं।[1]

मोहन जोदड़ो सभ्यता[संपादित करें]

मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है " मुर्दों का टीला "। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है 'मुअन जो दड़ो'। इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1921 ई. में की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ। यहाँ पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले। पिछले 100 वर्षों में अब तक इस शहर के एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है, और अब वह भी बंद हो चुकी है। माना जाता है कि यह शहर 125 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था तथा इस में जल कुड भी हुआ करता था! स्थिति- पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला।

इतिहास[संपादित करें]

मोहन जोदड़ो- (सिंधी:موئن جو دڙو और उर्दू: موئن جو دڑو) सिंध की वादी की क़दीम तहज़ीब का एक मरकज़ था। यह लड़काना से बीस किलोमीटर दूर और सक्खर से 80 किलोमीटर जनूब मग़रिब में वाक़िफ है। यह वादी सिंध के एक और अहम मरकज़ हड़पा से 400 मील दूर है यह शहर 2600 क़बल मसीह मौजूद था और 1700 क़बल मसीह में नामालूम वजूहात की बिना पर ख़त्म हो गया। ताहम माहिरीन के ख़्याल में दरयाऐ सिंध के रख की तबदीली, सैलाब, बैरूनी हमला आवर या ज़लज़ला अहम वजूहात हो सकती हैं।

मोहन जोदड़ो- को 1922ए में बर्तानवी माहिर असारे क़दीमा सर जान मार्शल ने दरयाफ़त किया और इन की गाड़ी आज भी मोहन जोदड़ो- के अजायब ख़ाने की ज़ीनत है। लेकिन एक मकतबा फ़िक्र ऐसा भी है जो इस तास्सुर को ग़लत समझता है और इस का कहना है कि उसे ग़ैर मुनक़िसम हिंदूस्तान के माहिर असारे क़दीमा आर के भिंडर ने 1911ए में दरयाफ़त किया था। मुअन जो दड़ो- कनज़रवेशन सेल के साबिक़ डायरेक्टर हाकिम शाह बुख़ारी का कहना है कि "आर के भिंडर ने बुध मत के मुक़ामि मुक़द्दस की हैसीयत से इस जगह की तारीख़ी हैसीयत की जानिब तवज्जो मबज़ूल करवाई, जिस के लगभग एक अशरऐ बाद सर जान मार्शल यहां आए और उन्हों ने इस जगह खुदाई शुरू करवाई।यह शहर बड़ी तरतीब से बसा हुआ था। इस शहर की गलियां खुली और सीधी थीं और पानी की निकासी का मुनासिब इंतिज़ाम था। अंदाज़न इस में 35000 के क़रीब लोग रिहाइश पज़ीर थे। माहिरीन के मुताबिक यह शहर सात मरत्तबा उजड़ा और दुबारा बसाया गया जिस की अहम तरीन वजह दरयाऐ सिंध का सैलाब था।यहाँ दुनिया का प्रथम स्नानघर मिला है जिसका नाम बृहत्स्नानागार है और अंग्रेजी में Great Bath. ये शहर अक़वाम मुतहदा के इदारा बराए तालीम, साईंस ओ- सक़ाफ़त युनीसको की जानिब से आलमी विरसा दिए क़रार गए मुक़ामात में शामिल हुए।"[2]

विशेषताएँ[संपादित करें]

मोहन जोदड़ो की खूबी यह है कि इस प्राचीन शहर की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम-फिर सकते हैं। यहाँ की सभ्यता और संस्कृति का सामान भले ही अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहें हों, यह शहर जहाँ था आज भी वहीं है। यहाँ की दीवारें आज भी मजबूत हैं, आप यहाँ पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वह एक खंडहर क्यों न हो, किसी घर की देहलीज़ पर पाँव रखकर आप सहसा-सहम सकतें हैं, रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकतें है। या शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर उस बैलगाड़ी की रून-झुन सुन सकते हैं जिसे आपने पुरातत्व की तसवीरो में मिट्टी के रंग में देखा है। सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ़ अधुरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं; वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके वर्तमान पार झाँक रहें हैं। यह नागर भारत का सबसे पुराना थल चिह्न कहा गया है। मोहन जोदड़ो के सबसे खास हिस्से पर बौद्ध स्तूप हैं।

प्रसिद्ध जल कुंड[संपादित करें]

मोहन जोदड़ो की दैव-मार्ग (डिविनिटि स्ट्रीट) नामक गली में करीब चालीस फ़ुट लम्बा और पच्चीस फ़ुट चौड़ा प्रसिद्ध जल कुंड है, जिसकी गहराई सात फ़ुट है। कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। कुंड के तीन तरफ़ बौद्धों के कक्ष बने हुए हैं। इसके उत्तर में ८ स्नानघर हैं। इस कुंड को काफ़ी समझदारी से बनाया गया है, क्योंकि इसमें किसी का द्वार दूसरे के सामने नहीं खुलता। यहाँ की ईंटें इतनी पक्की हैं, जिसका कोई जवाब ही नहीं। कुंड में बाहर का अशुद्ध पानी ना आए इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोडी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। दीवारों में डामर का प्रयोग किया गया है। कुंड में पानी की व्यवस्था के लिये दोहरे घेरे वाला कुआँ बनाया गया है। कुंड से पानी बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटों की नालियाँ भी बनाई गयी हैं, और खास बात यह है कि इसे पक्की ईंटों से ढका गया है। इससे यह प्रमाणित होता है कि यहाँ के लोग इतने प्राचीन होने के बावजूद भी हमसे कम नहीं थे। कुल मिलाकर सिंधु घाटी की पहचान वहाँ की पक्की-घूमर ईंटों और ढकी हुई नालियों से है, और यहाँ के पानी की निकासी का ऐसा सुव्यवस्थित बंदोबस्त था जो इससे पहले के लिखित इतिहास में नहीं मिलता।

कृषि[संपादित करें]

खुदाई में यह बात भी उजागर हुई है कि यहाँ भी खेतिहर और पशुपालक सभ्यता रही होगी। सिंध के पत्थर, तथा राजस्थान के ताँबो से बनाये गये उपकरण यहाँ खेती करने के लिये काम में लिये जाते थे। इतिहासकार इरफ़ान हबीब के अनुसार यहाँ के लोग रबी की फसल बोते थे। गेहूँ, सरसों, कपास, जौ और चने की खेती के यहाँ खुदाई में पुख़्ता सबूत मिले हैं। माना जाता है कि यहाँ और भी कई तरह की खेती की जाती थी, केवल कपास को छोडकर यहाँ सभी के बीज मिले है। दुनिया में सूत के दो सबसे पुराने कपड़ों में से एक का नमूना यहाँ पर ही मिला था। खुदाई में यहाँ कपड़ों की रंगाई करने के लिये एक कारख़ाना भी पाया गया जल्द ही आत्माओं का बसर होगा यहाँ ।

नगर नियोजन[संपादित करें]

मोहन जोदड़ो की इमारतें भले ही खंडहरों में बदल चुकी हों परंतु शहर की सड़कों और गलियों के विस्तार को स्पष्ट करने के लिये ये खंडहर काफ़ी हैं। यहाँ की सड़कें ग्रिड योजना की तरह हैं मतलब आड़ी-सीधी हैं।

पूरब की बस्तियाँ “रईसों की बस्ती” हैं, क्योंकि यहाँ बड़े-घर, चौड़ी-सड़कें, और बहुत सारे कुएँ हैं। मोहन जोदड़ो की सड़कें इतनी बड़ी हैं, कि यहाँ आसानी से दो बैलगाड़ी निकल सकती हैं। यहाँ पर सड़क के दोनों ओर घर हैं, दिलचस्प बात यह है, कि यहाँ सड़क की ओर केवल सभी घरो की पीठ दिखाई देती है, मतलब दरवाज़े अंदर गलियों में हैं। वास्तव में स्वास्थ्य के प्रति मोहन जोदड़ो का शहर काबिले-तारीफ़ है, कयोंकि हमसे इतने पिछड़े होने के बावज़ूद यहाँ की जो नगर नियोजन व्यव्स्था है वह कमाल की है। इतिहासकारों का कहना है कि मोहन जोदड़ो सिंघु घाटी सभ्यता में पहली संस्कृति है जो कि कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँची। मुअनजो-दड़ो में करीब ७०० कुएँ थे। यहाँ की बेजोड़ पानी-निकासी, कुएँ, कुंड, और नदीयों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि मोहन जोदड़ो सभ्यता असल मायने में जल-संस्कृति थी।

पुरातत्त्वशास्त्री काशीनाथ दीक्षित के नामकरण के अनुसार यहाँ “डीके-जी” परिसर हैं, जहाँ ज्यादातर उच्च वर्ग के घर हैं। इसी तरह यहाँ पर ओर डीके-बी,सी आदि नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं जगहों पर प्रसिद्ध “नृतकी” शिल्प खुदाई के समय प्राप्त हुई। यह मूर्ति अब दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में है।

संग्रहालय[संपादित करें]

मोहन जोदड़ो का संग्रहालय छोटा ही है। मुख्य वस्तुएँ कराची, लाहौर, दिल्ली और लंदन में हैं। यहाँ काले पड़ गए गेहूँ, ताँबे और कांसी के बर्तन, मोहरें, वाद्य, चॉक पर बने विशाल मृद-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औज़ार मौजूद हैं। संग्रहालय में काम करने वाले अली नवाज़ के अनुसार यहाँ कुछ सोने के गहने भी हुआ करते थे जो चोरी हो गए।

एक खास बात यहाँ यह है जिसे कोई भी महसूस कर सकता है। अजायबघर ( संग्रहालय ) में रखी चीज़ों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। इस बात को लेकर विद्वान सिंधु सभ्यता में शासन या सामाजिक प्रबंध के तौर-तरीके को समझने की कोशिश कर रहें हैं। वहाँ अनुशासन ज़रूर था, पर ताकत के बल पर नहीं बुद्धि के बल पर।

संग्रहालय में रखी वस्तुओं में कुछ सुइयाँ भी हैं। खुदाई में ताँबे और काँसे की बहुता सारी सुइयाँ मिली थीं। काशीनाथ दीक्षित को सोने की तीन सुइयाँ मिलीं जिनमें एक दो-इंच लंबी थी। समझा गया है कि यह सूक्ष्म कशीदेकारी में काम आती होंगी। खुदाई में सुइयों के अलावा हाथी-दाँत और ताँबे की सूइयाँ भी मिली हैं।

कला[संपादित करें]

सिंधु घाटी के लोगों में कला या सृजना का महत्त्व अधिक था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर सूक्ष्मता से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से अधिक कला-सिद्ध प्रदर्शित करता है। एक पुरातत्त्ववेत्ता के अनुसार सिंधु सभ्यता की विशेषता उसका सौंदर्य-बोध है, “जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।"

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • मोहेंजो दारो (फ़िल्म)
  • महास्नानघर (मोहन जोदड़ो)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "क्या हड़प्पा की लिपियाँ पढ़ी जा सकती हैं?". मूल से 24 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 जून 2019.
  2. "जर यदा". मूल से 21 नवंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 नवंबर 2010.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • आधिकारिक वेबसाइट

मोहनजोदड़ो सबसे बड़ा भवन कौन सा है?

Solution : मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार या अन्नकोठार या धान्यागार है। यह 45.71 मी. लम्बा और 15.23 मी. चौडा है।

हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है?

बता दें कि राखीगढ़ी हरियाणा के हिसार जिले में स्थित एक गांव है, जो सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा पुरातात्विक स्थल माना जाता है।

मोहनजोदड़ो का दूसरा नाम क्या है?

इस शहर की खोज राखलदास बनर्जी ने की थी। मोहनजोदड़ो सिंधी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है मुर्दों का टीला। इसे मुअन जो दाड़ो भी कहा जाता है। हालांकि शहर का असली नाम अब भी किसी को नहीं पता लेकिन मोहनजोदाड़ो की पुरानी सील को देखकर पुरातत्वविदों ने एक द्रविड़ियन नाम पता लगाया जो है कुकूतर्मा।

हड़प्पा सभ्यता का दूसरा सबसे बड़ा स्थल कौन सा है?

राखीगढ़ी सिन्धु सभ्यता का भारतीय क्षेत्रों में धौलावीरा के बाद दूसरा विशालतम ऐतिहासिक नगर है। राखीगढ़ी का उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997-1999 ई. के दौरान अमरेन्द्र नाथ द्वारा किया गया।

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