मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र के संदर्भ में क्या कहा है? - megasthaneej ne paataliputr ke sandarbh mein kya kaha hai?

मेगस्थनीज (Μεγασθένης, 350 ईसापूर्व - 290 ईसा पूर्व) एक ठो यूनानी इतिहासकार, यात्री, आ राजदूत रहलें। ऊ यूनान के सामंत सेल्यूकस प्रथम के भेजल राजदूत रहलें आ भारत के पाटलिपुत्र में चंद्रगुप्त के दरबार में आइल रहलें।

Quick facts: मेगस्थनीज, जनम, निधन...

मेगस्थनीजजनमनिधन

पाटलिपुत्र पहुँचत मेगास्थनीज के चित्र, बीसवीं सदी के कलाकार के कल्पना

350 BCE
290 BCE

मेगस्थनीज अपनी यात्रा आ भारत के आ चंद्रगुप्त के दरबार आ राजधानी पाटलिपुत्र के बर्णन अपनी किताब "इंडिका" में कइलें।

मेगस्थनीज के अनुसार मौर्यकालीन भारत

मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य वंश

 मेगस्थनीज के अनुसार मौर्यकालीन भारत

  • मेगस्थनीज की 'इण्डिकामौर्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी का दूसरा साधन मेगस्थनीज की 'इण्डिका है। इस पुस्तक में मेगस्थानीज ने उस समय के विषय में बहुत कुछ लिखा है। मेगस्थनीज यूनानी राजदूत था जिसे सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा था। 
  • इण्डिका हमें आज मूल रूप में प्राप्त नहीं होती। यूनानी लेखकों द्वारा उद्धृत उसके कुछ उद्धरण इधर-उधर पुस्तकों में देखने को मिलते हैं। डायोडोरस ने अपने पाठकों को समझाने के लिए इण्डिका के कुछ उद्धरणों को प्रस्तुत किया है। यह सम्भव है कि उद्धृत करते समय वे विकृत हो गये हों अथवा ऐसा करते समय महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य छूट गये हों लेकिन यह बात किसी भी हालत में मान्य नहीं हो सकती है कि इण्डिका में केवल कल्पना ही है। 
  • डॉ. जाली जैसे विद्वान इण्डिका की प्रामाणिकता पर कम विश्वास करते हैं। उनका कथन है कि मेगस्थनीज ने अन्य देशों की बातों को भी भारत के साथ जोड़ दिया है। मेगस्थनीज को भारत की किसी भाषा का ज्ञान नहीं था। भारत का उसने पूरा भ्रमण भी नहीं किया था। वह केवल पंजाब और पाटलिपुत्र तक ही सीमित रहा। इसके अतिरिक्त भारत में वह अधिक दिनों तक नहीं रहा। ऐसी हालत में भारत के सम्बन्ध में उसको जानकारी कितनी हुई होगीयह भी हो सकता है कि वह यहाँ की संस्थाओं और प्रथाओं का पूर्ण ज्ञान प्राप्त न कर सका हो। यह भी हो सकता है कि वह विशेष भारतीय नामों को समझ ही न पाया हो। इस बात की भी सम्भावना है कि उसके विदेशी कान भारतीय शब्दों के उच्चारण को नहीं समझ सके हों। जब वह बहुत समय बाद 'इण्डिकाको लिखने बैठा होसम्भवतः वह शब्दों के शुद्ध उच्चारण और वर्ग विन्यास को भूल गया हो। एक तर्क और है कि जिन लेखकों ने 'इण्डिकाके उद्धरण अपनी पुस्तकों में प्रस्तुत किये हैंवे भी शायद उन्हें ठीक प्रकार समझ न पाये हों।
  • इन त्रुटियों के बावजूद यह मानना पड़ेगा कि मेगस्थनीज ने अपने समय का अच्छा चित्रण किया है। डा. स्मिथ का कथन है कि कुछ भी होमेगस्थनीज की लेखनी विश्वसनीय है। उसने जो कुछ देखा है वही लिखा हैं। उसके द्वारा लिखित चन्द्रगुप्त का सैनिक और सामाजिक प्रशासन विश्वास की वस्तु है। उसे बिना किसी हिचकिचाहट के स्वीकार कर लेना चाहिए। यह ठीक हैं कि मेगस्थनीज का भारत सम्बन्धी विवरण स्वतंत्र पुस्तक के रूप में न मिलकर अनेक अंशों में मिला है फिर भी वे अंश इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि उनसे चन्द्रगुप्त मौर्य के सम्बन्ध में पर्याप्त और विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इन अंशों की सहायता से ही चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल तथा तत्कालीन संस्थाओं का सूक्ष्म दर्शन किया जा सकता है। उसने भारत की भौगोलिकराजनीतिक तथा सामाजिक दशा पर काफी प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है।

मेगस्थनीज के अनुसार भारत की भौगोलिक दशा

  • भारत की सीमा का वर्णन करते हुए मेगस्थनीज ने लिखा है कि इसके उत्तर में हिमालय पर्वतदक्षिण तथा पूर्व में समुद्र और पश्चिम में सिन्धुगंगासोन आदि नदियाँ विद्यमान हैं। दक्षिण भारत की नदियों का उल्लेख उसने बिल्कुल नहीं किया है। चूंकि अफगानिस्तान चन्द्रगुप्त के साम्राज्य का एक अंग थाअतएव उसने अफगानिस्तान की काबुलस्वातगोमल आदि नदियों का उल्लेख किया है। जलवायु के विषय में उसने लिखा है। कि गर्मी की ऋतु में बहुत गर्मी पड़ती है। वर्षा गर्मी तथा जाड़े दोनों ही ऋतुओं में होती है। परन्तु गर्मी के दिनों में अधिक वर्षा होती है।

मेगस्थनीज के अनुसार भारत की राजनीतिक दशा

  • मेगस्थनीज कहता है कि राजा दिन भर अपनी राजसभा में रहता था और न्याय किया करता था। उसे अपनी जान का सदैव भय लगा रहता था। अतएववह एक कमरे में एक रात से अधिक नहीं रहता था। जब कभी सम्राट शिकार के लिए जाता था तो उसका मार्ग रस्सियों से अलग कर दिया जाता था और यदि कोई इन रस्सियों को लांघने का प्रयत्न करता तो उसे प्राणदण्ड दिया जाता था। मेगस्थनीज ने सम्राट के राजभवन का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। वह लिखता है कि सम्राट के भवन पाटलिपुत्र में बने थे। इनके चारों ओर सुन्दर उद्यान तथा सरोवर थे। राजभवन के आंगन में पालतू मोर रखे जाते थे। उद्यानों में बड़े ही सुंदर-सुंदर शुक अर्थात् तोते बहुत बड़ी संख्या में पाये जाते थे जो राजभवन के ऊपर मंडराया करते थे। सरोवरों में बड़ी सुन्दर मछलियाँ रहती थीं। मछलियों को पकड़ने की किसी को आज्ञा न थी परन्तु राजकुमार लोग आमोद-प्रमोद के लिए उन्हें पकड़ लिया करते थे। सम्राट प्रायः राजप्रासाद के भीतर ही रहता था और उसकी रक्षा के लिए नारी संरक्षिकाएँ होती थीं। केवल चार अवसरों पर सम्राट अपने राजभवन के बाहर निकलता था अर्थात् युद्ध के समय न्यायाधीश का पदग्रहण करने के लिएबलि देने के लिए तथा आखेट के लिए मेगस्थनीज ने राजदरबार का भी बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। उसके कथनानुसार चन्द्रगुप्त का दरबार बड़े ठाट-बाट का था। सोने-चांदी के सुन्दर बर्तनजड़ाऊ मेज तथा कुर्सियाँ और कमख्वाब के बारीक वस्त्र देखने वालों की आंखों को चकाचौंध में डाल देते थे। सम्राट मोती की मालाओं से अलंकृत पालकी और सुनहले फूलों से विभूषित हाथी पर बैठ कर राजभवन के बाहर जाता था। सम्राट को शिकार का बड़ा शौक था। उसके आखेट के लिए बड़े-बड़े वन सुरक्षित रखे जाते थे। राजा को पहलवानों के दंगलघुड़दौड़पशुओं के युद्ध आदि देखने का बड़ा शौक था और इन्हीं से वह अपना मनोविनोद किया करता था। मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त की राजधानी पाटलिपुत्र का भी बड़ा विस्तृत वर्णन किया है। वह लिखता है कि पाटलिपुत्र भारत का सबसे बड़ा नगर है और यह सोन तथा गंगा नदियों के संगम पर स्थित है। यह नगर साढ़े नौ मील लम्बा और पौने दो मील चौड़ा है। नगर के चारों ओर एक खाई-सी है जिसकी चौड़ाई छ: सौ फीट और गहराई पैंतालीस फीट है। उसके चारों ओर एक दीवार है जिसमें चौंसठ फाटक और पांच सौ सत्तर बुर्ज बने हैं। पाटलिपुत्र के प्रबन्ध के विषय में मेगस्थनीज ने लिखा है कि नगर का प्रबन्ध छः समितियों द्वारा होता था जिसमें से प्रत्येक में पांच सदस्य होते थे। इन समितियों के कार्यों का वर्णन चन्द्रगुप्त के शासन प्रबन्ध का वर्णन करते समय किया जा चुका है।

मेगस्थनीज के अनुसार भारत की सामाजिक दशा 

  • मेगस्थनीज के वृतांत से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त के समय में सामाजिक तथा व्यक्तिगत नैतिकता का स्तर ऊँचा था। लोग बड़े सत्यवादी थे और कभी झूठ नहीं बोलते थे। सभी व्यक्ति एक-दूसरे का विश्वास करते थे और राज्य में कोई चोर अथवा डाकू नहीं था। लोग दरवाजे खुले छोड़कर बाहर चले जाते थे। लोग बड़े सुन्दरस्वस्थ और बड़े कद के थे। उनका भोजन बड़ा सादा था। केवल बलि देने के समय को छोड़कर वे शराब आदि का प्रयोग नहीं करते थे। बलि के अवसर पर वे सोमरस का पान करते थे। उन्हें सुन्दर व कीमती वस्त्र और आभूषण पहनने का बहुत शौक था। उनके वस्त्रों पर जरी का काम किया होता था। समाज में स्त्रियों को बड़ा सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त था। केवल कुलीन वर्ग में बहुविवाह की प्रथा प्रचलित थी पर्दा और सती प्रथाएँ नहीं थी।
  • मेगस्थनीज के अनुसार समाज सात वर्गों में विभक्त था। ये सात वर्ग (1) दार्शनिकों, (2) परिषद् सदस्यों, (3) अधिकारियों, (4) सैनिकों, (5) कृषकों, (6) शिल्पकारों व व्यापारियों तथा (7) शिकारियों और गड़रियों आदि के थे। जाति प्रथा के बन्धन बड़े कठोर थे। एक जाति दूसरी जाति में विवाह नहीं कर सकती थी। मेगस्थनीज लिखता है कि भारतीय अल्पव्ययी थे। खाने-पीने का कोई निश्चित समय नहीं था और वे अकेले ही खाते थे। दासप्रथा नहीं थी। मेगस्थनीज के इस कथन को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि भारत में दास प्रथा थी तो सही परन्तु दासों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया था जैसा यूनान में।
  • उपर्युक्त बातों के अतिरिक्त मेगस्थनीज ने कुछ ऐसी बातें भी लिखी हैं जो बड़ी विचित्र हैं और जिनका आधार काल्पनिक प्रतीत होता है। सम्भवतः उसने ऐसी मनगढ़ंत बातें लोगों से सुनी हों। उसने लिखा है कि भारत में कई लोगों के माथे में एक आंख हैकइयों के सिर कुत्तों की तरह हैं और कइयों की नाक ही नहीं है। परन्तु ये बातें बिल्कुल असत्य और अविश्वसनीय हैं।

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मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र को क्या कहा?

पाटलिपुत्र को वह समानांतर चतुर्भुज नगर कहता है।

मेगस्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र के प्रशासन के लिए कितनी समितियां थीं?

मेगस्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र का नगर प्रशासन और अर्थशास्त्र द्वारा भी पुष्टि की गई, छह समितियों द्वारा संचालित किया गया था जिसमें प्रत्येक में पांच सदस्य शामिल थे।

मेगस्थनीज कौन था उसकी पुस्तक का नाम लिखिए?

इंडिका (ग्रीक: Iνδικά; लैटिन: इंडिका ) ग्रीक लेखक मेगस्थनीज द्वारा मौर्यकालीन भारत का एक लेख है।

मेगस्थनीज पाटलिपुत्र कब आया था?

Megasthenes Ka Pataliputra AaGaman Hua Tha - 311 ई. पू.

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