स्टोरी हाइलाइट्स
- उज्जैन में है भगवान मंगलनाथ मंदिर
- यहां होती है मंगल की विशेष पूजा
- जानें इस मंदिर का पौराणिक महत्व
उज्जैन को कालों के काल महाकाल की नगरी कहा जाता है और महाकाल की इस नगरी में बहती शिप्रा नदी मोक्षदायिनी क्षिप्रा कहा जाता है. शिप्रा के पवित्र तटों पर जन्मी आध्यात्मिक संस्कृति की बदौलत ही शास्त्रों में ये नगर उज्जैयनी के नाम से विख्यात हुआ और ये ही उज्जैयनी पुराणों में मंगल की जननी भी कहलाई. यहां अमंगल को मंगल में बदलने वाले भगवान मंगलनाथ भी हैं.
भगवान मंगलनाथ मंदिर की मान्यता
यूं तो देश में मंगल भगवान के कई मंदिर हैं, लेकिन भगवान मंगलनाथ मंदिर में की गई मंगल की पूजा का जो महत्व है वो कहीं और नहीं है. मान्यता है कि यहां पूजा अर्चना करने वाले हर जातक की कुंडली के दोषों का नाश हो जाता है. ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वो अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ करवाने आते हैं. मंगलनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करने से कुंडली में उग्ररूप धारण किया हुआ मंगल शांत हो जाता है. इसी धारणा के चलते हर साल हजारों नवविवाहित जोड़े, जिनकी कुंडली में मंगलदोष होता है, यहां पूजा-पाठ करवाने आते हैं.
मंगल ग्रह के जन्म की कथा
कहा जाता है कि अंधकासुर नामक दैत्य को शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे. वरदान के बाद इस दैत्य ने अवंतिका में तबाही मचा दी. तब दीन-दुखियों ने शिवजी से प्रार्थना की. भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया. दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ. शिवजी का पसीना बहने लगा. रुद्र के पसीने की बूंद की गर्मी से उज्जैन की धरती फटकर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल ग्रह का जन्म हुआ. शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूंदों को नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया. कहते हैं इसलिए ही मंगल की धरती लाल रंग की है.
भगवान मंगलनाथ का इतिहास
कहा जाता है कि ये मंदिर सदियों पुराना है. सिंधिया राजघराने ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था. यहां की गई मंगल की पूजा का विशेष महत्व है. भक्तों द्वारा यहां मंगलनाथ को शिव रुप में ही पूजा जाता है. मंगलवार के दिन यहां श्रद्धालु दूर-दूर से चले आते रहे हैं. यहां होने वाली भात पूजा को भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर में भात पूजा करवाने से कुंडली के मंगल की शांति होती है और मांगलिक दोष से ग्रस्त व्यक्ति के सारे काम निर्विघ्न पूरे होते हैं.
भगवान मंगलनाथ का महत्व
मान्यता है कि इस मंदिर में की गई नवग्रहों की पूजा से विशेष लाभ मिलता है. यहां शांत मन से की गई पूजा अर्चना से उग्र रूप धारण किया मंगल शांत हो जाता है. सामान्य दिनों में सुबह 6 बजे से मंगल आरती होती है लेकिन मंगलवार को यहां भक्तों का विशेष तांता लगता है. मंगल की शांति, वाहन और भूमि आदि के सुख की प्राप्ति के लिए भक्त यहां भात पूजा करते हैं.
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चित्र:Mangalnath.jpg |
हिंदू धर्म |
मंगलनाथ भगवान की शिवरूपी प्रतिमा |
उज्जैन, मध्य प्रदेश |
सिंधिया राजघरान |
११७३ ईस्वी में |
यह मंदिर मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन में स्थित है। पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल की जननी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए यहाँ पूजा-पाठ करवाने आते हैं। यूँ तो देश में मंगल भगवान के कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन इनका जन्मस्थान होने के कारण यहाँ की पूजा को खास महत्व दिया जाता है।
निर्माण[संपादित करें]
कहा जाता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है। हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।
मंगल ग्रह के जन्म की कथा[संपादित करें]
अंधकासुर नामक दैत्य को शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। वरदान के बाद इस दैत्य ने अवंतिका में तबाही मचा दी। तब दीन-दुखियों ने शिवजी से प्रार्थना की। भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। शिवजी का पसीना बहने लगा। रुद्र के पसीने की बूँद की गर्मी से उज्जैन की धरती फटकर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल ग्रह का जन्म हुआ। शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूँदों को नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया। कहते हैं इसलिए ही मंगल की धरती लाल रंग की है। (स्कंध पुराण के अवंतिका खंड के अनुसार)
मंदिर में हर मंगलवार के दिन भक्तों का ताँता लगा रहता है। लोगों का मानना है कि इस मंदिर में ग्रह शांति करवाने के बाद ग्रहदोष खत्म हो जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में मंगल होता है, वे मंगल शांति के लिए विशेष पूजा अर्चना करवाते हैं।
मार्च में आने वाली अंगारक चतुर्थी के दिन मंगलनाथ में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन यहाँ विशेष यज्ञ-हवन किए जाते हैं। इस समय मंगल ग्रह की शांति के लिए लोग दूर-दूर से उज्जैन आते हैं। यहाँ होने वाली भात पूजा को भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। मंगल ग्रह को मूलतः मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी माना जाता है।
मंदिर में सुबह छह बजे से मंगल आरती शुरू हो जाती है। आरती के तुरंत बाद मंदिर परिसर के आसपास तोते मँडराने लगते हैं। जब तक उन्हें प्रसाद के दाने नहीं मिल जाते, वे यहीं मँडराते रहते हैं। यहाँ के पुजारी निरंजन भारती बताते हैं कि यदि हम प्रसाद के दाने डालने में कुछ देर कर दें, तो ये पंछी शोर मचाने लगते हैं। लोगों का विश्वास है कि पंछियों के रूप में मंगलनाथ स्वयं प्रसाद खाने आते हैं।
मंगलनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करने से कुंडली में उग्ररूप धारण किया हुआ मंगल शांत हो जाता है। इसी धारणा के चलते हर साल हजारों नवविवाहित जोड़े, जिनकी कुंडली में मंगलदोष होता है, यहाँ पूजा-पाठ कराने आते हैं। www.mangalnathtemple.org
पावन दिवस[संपादित करें]
हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में लोगों का ताँता लगा रहता है, लेकिन मार्च की अंगारक चतुर्थी के दिन का नजारा बेहद भव्य होता है। आप अपनी सुविधा अनुसार इस मंदिर में कभी भी आ सकते हैं। यहाँ हर मंगलवार को विशेष पूजा-अर्चना का दौर चलता रहता है।
पहुंच[संपादित करें]
सड़क मार्ग से -उज्जैन-आगरा-कोटा-जयपुर मार्ग, उज्जैन-बदनावर-रतलाम-चित्तौड़ मार्ग, उज्जैन-मक्सी-शाजापुर-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग, उज्जैन-देवास-भोपाल मार्ग, उज्जैन-धुलिया-नासिक-मुंबई मार्ग।
रेल मार्ग-उज्जैन से मक्सी-भोपाल मार्ग (दिल्ली-नागपुर लाइन), उज्जैन-नागदा-रतलाम मार्ग (मुंबई-दिल्ली लाइन), उज्जैन-इंदौर मार्ग (मीटरगेज से खंडवा लाइन), उज्जैन-मक्सी-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग। वायुमार्ग- उज्जैन से इंदौर एअरपोर्ट लगभग 65 किलोमीटर दूर है। उज्जैन आने के बाद रिक्शा से मंगलनाथ मंदिर जाने के लिए 6265351822 नंबर पर संपर्क करे उज्जैन दर्शन करने के लिए
ठहरने के स्थान[संपादित करें]
उज्जैन में अच्छे होटलों से लेकर आम धर्मशाला तक सभी उपलब्ध हैं। इसके साथ-साथ महाकाल समिति की महाकाल और हरसिद्धि मंदिर के पास अच्छी धर्मशालाएँ हैं। इन धर्मशालाओं में एसी, नॉन एसी रूम और डारमेट्री उपलब्ध हैं। मंदिर प्रबंध समिति इनका अच्छा रखरखाव करती है।