लेनिन का साम्राज्यवाद के सिद्धांत क्या है? - lenin ka saamraajyavaad ke siddhaant kya hai?

लेनिन के राजनीतिक विचार Lenin Political Thought मार्क्स और एंजेल्स के राजनीतिक विचारों से प्रभावित हैं। लेनिन साम्यवादी दल को सर्वोत्तम मानते हैं। उनके अनुसार साम्यवाद के विचारों के आधार पर ही एक क्रांति लायी जा सकती हैं। जिसकी सहायता से सामाजिक बुराइयों को समाज से दूर किया जा सकें।

लेनिन एक रूसी क्रांतिकारी थे। यह ऐसे विचारक थे जो क्रांति को आवश्यक मानते थे। रूस में रूसी क्रांति या बोल्शेविक क्रांति (1917) को प्रारंभ करने का श्रेय भी लेनिन को ही दिया जाता हैं। लेनिन एक ऐसे पाश्चात्य राजनीतिक विचारक थे जिन्होंने मार्क्स के राजीनीतिक विचारों को व्यवहारिक रूप दिया।

व्लादिमीर लेनिन का जन्म 1870 मे हुआ था और इनकी मृत्यु 1924 मे हुई थी। लेनिन को मार्क्सवाद का व्यवहारिक पिता भी कहा जाता हैं। तो दोस्तों चलिए आज हम इस पोस्ट के माध्यम से जानने का प्रयास करते हैं कि लेनिन के राजीनीतिक विचार क्या हैं? Lenin Political Thought in Hindi

लेनिन के राजीनीतिक विचार |Lenin Political Thought in Hindi

लेनिन के राजनीतिक विचार मार्क्सवाद से कई हद तक प्रभावित थे। अगर हम लेनिन के विचारों को मार्क्स के व्यवहारवादी विचार कहें तो वह गलत नही होगा। सामान्य शब्दों में कहें तो मार्क के विचारों को साकार करने का जो कार्य हैं वह लेनिन ने किया। लेनिन के विचारों के कारण ही रूसी क्रांति का भी जन्म हुआ और वह सफल भी हुई।

लेनिन को समाजवाद का पिता भी कहा जाता हैं। इनके विचारों को सामाजिक विचारधारा के आधार पर भी देखा जा सकता हैं। जहाँ मार्क्स श्रमिकों के पक्ष में बात करते हैं उनके अधिकारों की बात करते हैं या उनके ऊपर किये जाने वाले शोषण को दर्शाते है। तो वहीं लेनिन श्रमिकों के साथ-साथ किसानों की स्थितियों को समाज से परिचित करवाते हैं।

रूस साम्यवादी विचारधारा का समर्थन करते थे। उनके अनुसार इस विचारधारा को प्रत्येक राज्य में लागू करना चाहिए। जिसमें सिर्फ एक दल का वर्चस्व हो और वह अपने समाज के प्रति उत्तरदायी हो। वह साथ ही इसके प्रचार-प्रसार की भी बात करते थे। लेनिन साम्राज्यवाद की स्थापना करने के लिए क्रांति और हिंसा की बात करते थे।

लेनिन के राज्य संबंधित विचार (Lenin Thoughts on State) – लेनिन ने अपनी पुस्तक State and Revolution में अपने राज्य संबंधित विचारों को दर्शाया हैं। लेनिन अपने राज्य में साम्यवादी दल के शासन को प्रमुखता देते हैं। इनके अनुसार इस दल का कार्य सर्वहारा वर्ग की भावना का विकास करना होगा।

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लेनिन राज्य में साम्यवादी विचारधारा को सर्वोत्तम मानते हैं। इनके अनुसार विचारधारा की सहायता से ही समाज मे न्याय व्यवस्था लागू की जा सकती हैं एवं श्रमिकों एवं किसानों पर हो रहे शोषण को रोका जा सकता हैं। लेनिन के राजनीतिक विचारों (Lenin Political Thought) में लेनिन विकास और शोषण वर्ग के हित के लिए साम्यवादी दल को ही उत्तम मानते हैं।

अपने इन्ही विचारों का प्रचार-प्रसार कर उन्होंने रूस में बोल्शेविक क्रांति (रूसी क्रांति) को जन्म दिया। लेनिन को रूस का मार्क्स भी कहा जाता हैं, क्योंकि लेनिन ने मार्क्स के विचारों को रूसी परिस्थितियों के अनुसार साकार करने का कार्य किया था।

लेनिन के साम्राज्यवाद सिद्धांत (Lenin Imperialism Theory) – लेनिन का मानना था कि पश्चिमी यूरोप में मजदूरों और किसानों का शोषण हो रहा हैं। लेनिन साम्राज्यवाद को पूंजीवाद की अंतिम अवस्था मानते है। जिसमें सिर्फ एक दल का शासन होता हैं। लेनिन का साम्राज्यवाद कल्याणकारी योजनाओं पर निर्भर करता हैं। जिसमें श्रमिकों और किसानों का हित देखा जाता हैं।

लेनिन के द्वारा अपने राजनीतिक विचारों में साम्यवादी दल को महत्व दिया गया। जो श्रमिकों पर हो रहे शोषण के विरुद्ध क्रांति करेगा और सर्वहारा वर्ग के मध्य वर्गीय चेतना का विकास करना भी हैं। लेनिन इस दल के विरुद्ध किसी दल की बात नहीं करते थे।

लेनिन न्याय और शोषण के विरुद्ध क्रांति लाने की बात किया करते थे। लेनिन के अनुसार अगर क्रांति को पेशा बना लिया जाए तो मुट्ठी भर क्रांतिकारी भी किसी क्रांति को सफल बना सकते हैं। लेनिन अपने इन क्रांतिकारी विचारों को What is to be done नामक पुस्तक में प्रदर्शित करते हैं।

लेनिन का पूंजीवादी साम्राज्यवादी सिद्धांत (Lenin Capitalist Imperialist Theory) – मार्क्स की पूंजीवादी के अंत के संबंध में की भविष्यवाणी की असत्यता को बचाने के लिए लेनिन ने 1916 मे अपनी पुस्तक Imperialism: The Highest Stage of Capitalism प्रकाशित की। मार्क्स का कहना था कि पूंजीवादी और श्रमिको के अपनी वर्ग संघर्ष में पूंजीवादी का पूर्ण रूप से सफाया हो जाएगा।

किंतु ऐसा नहीं हुआ जिस कारण मार्क्स के इन विचारों को कई प्रकार के विरोधों का सामना करना पड़ा। लेनिन ने उन विरोधों के जवाब में इन पुस्तक को प्रकाशित किया। जिसमें उन्होंने कहा कि पूंजीवाद अपने अंतिम दौर में पहुच चुका हैं और पूंजीवाद के अंतिम दौर ही साम्राज्यवाद हैं।

लेनिन का द्वंदात्मक-भौतिकवादी सिद्धांत (Lenin’s dialectical-materialist theory) – लेनिन अपने इस सिद्धांत के विचारों को अपनी पुस्तक Materialism and Empiric Criticism में प्रदर्शित करते हैं। लेनिन के यह विचार एंजेल्स के विचारों से पूर्ण रूप से प्रभवित थे। लेनिन के अनुसार कोई दार्शनिक या तो आदर्शवादी होगा या फिर भौतिकवादी।

लेनिन सत्य को सापेक्ष और निरपेक्ष दोनों मानते थे। उनके अनुसार किसी व्यक्ति द्वारा दिये गए कोई विचार आंशिक रूप से सत्य भी हो सकते हैं या आंशिक रूप से असत्य भी हो सकते हैं। लेनिन का मानना था कि द्वंदात्मक भौतिकवाद का प्राकृतिक विज्ञानों से घनिष्ठ संबंध है।

निष्कर्ष – Conclusion

लेनिन के राजनीतिक विचार पूर्ण रूप से मार्क्स के राजनीतिक विचारों से प्रभावित थे। लेनिन ने मार्क्स के विचारों को रूस की परिस्थिति के अनुसार व्यवहारिक रूप प्रदान किया था। लेनिन का मानना था कि शोषण को खत्म करने के लिए क्रांति करना अति आवश्यक हैं। लेनिन राज्य में साम्राज्यवाद दल की स्थापना करने के पक्ष में थे।

लेनिन साम्राज्यवाद को पूंजीवाद की अंतिम अवस्था के रूप में मानते थे। तो दोस्तों आज आपने हमारी इस पोस्ट के माध्यम से जाना कि लेनिन के राजनीतिक विचार क्या हैं? (Lenin Political Thought in Hindi) हम आशा करते हैं कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई हो। हमारी नवीन पोस्ट को पढ़ने एवं अन्य पोस्ट की जानकारी प्राप्त करने हेतु हमें सोशल मीडिया पर अवश्य फॉलो करें।

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Pankaj Paliwal

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नमस्कार दोस्तों मेरा नाम पंकज पालीवाल है, और मैं इस ब्लॉग का फाउंडर हूँ. मैंने एम.ए. राजनीति विज्ञान से किया हुआ है, एवं साथ मे बी.एड. भी किया है. अर्थात मुझे S.St. (Social Studies) से जुड़े तथ्यों का काफी ज्ञान है, और इस ज्ञान को पोस्ट के माध्य्म से आप लोगों के साथ साझा करना मुझे बहुत पसंद है. अगर आप S.St. से जुड़े प्रकरणों में रूचि रखते हैं, तो हमसे जुड़ने के लिए आप हमें सोशल मीडिया पर फॉलो कर सकते हैं।

लेनिन का साम्राज्यवाद का सिद्धांत क्या था?

लेनिन ने 1916 में अपनी पुस्तक "साम्राज्यवाद पूंजीवाद का अंतिम चरण" में लिखा कि साम्राज्यवाद एक निश्चित आर्थिक अवस्था है जो पूंजीवाद के चरम विकास के समय उत्पन्न होती है। जिन राष्ट्रों में पूंजीवाद का चरमविकास नहीं हुआ वहाँ साम्राज्यवाद को ही लेनिन ने समाजवादी क्रांति की पूर्ववेला माना है।

लेनिन का समाजवाद का सिद्धांत क्या है?

लेनिन ने प्रतिपादित किया कि नयी अवस्थाओं में समाजवाद पहले एक या कुछ देशों में विजयी हो सकता है। उन्होंने नेतृत्वकारी तथा संगठनकारी शक्ति के रूप में सर्वहारा वर्ग की दल विषयक मत को प्रतिपादन किया जिसके बिना सर्वहारा अधिनायकत्व की उपलब्धि तथा साम्यवादी समाज का निर्माण असम्भव है।

मार्क्सवाद के प्रमुख सिद्धांत क्या है?

मार्क्सवाद के सात प्रमुख सिद्धांत हैं, जैसे द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद, अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत, वर्ग संघर्ष, क्रांति, सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व और साम्यवाद । अलगाव और स्वतंत्रता की अवधारणा जोकि सामन्यतया युवा मार्क्स से संबंधित हैं या मार्क्सवाद के मानवीय मुखौटा की भी चर्चा की गई है

साम्राज्यवाद कितने प्रकार के होते हैं?

साम्राज्यवाद के साधन.
सैनिक साम्राज्यवाद सैनिक साम्राज्यवाद में प्रत्यक्ष रूप से सैनिक आक्रमण कर साम्राज्यवाद स्थापित करने का प्रयास किया जाता हैं। ... .
आर्थिक साम्राज्यवाद आर्थिक साम्राज्यवाद में एक देश का दूसरे के राजनीतिक दृष्टि से अधीन होना आवश्यक नहीं है। ... .
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद.

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