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and TechnologyHindi लघु उत्तरीय प्रश्न Solution 1: कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि उसे जीवन की विपदाओं से दूर ना रखे पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सके। सुख के दिनों में उनमें कभी घमंड न आए। दुखों में भी ईश्वर को न भूले,
उसका विश्वास अटल रहे। कवि दुखो में सांत्वना नहीं पाना चाहता क्योंकि उनके अनुसार सुख और दुख जीवन के अनिवार्य अंग हैं। Solution 2:
‘विपत्तियों से रक्षा कर’ कविता में कवि ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’ ने ईश्वर से प्रार्थना रहा है कि उसे जीवन की विपदाओं से दूर ना रखे पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सके। उनके अनुसार सुख और दुख जीवन के अनिवार्य अंग हैं।
दुखों का सामना करने से मनुष्य को आत्मबल मिलता है तथा वह जीवन में नई चुनौतियों का सामना बड़ी आसानी से कर
सकता है। उसे लोगों की तथा अपनों-परायों की पहचान होती है।
Solution 3:
‘विपत्तियों से रक्षा कर’ कविता में कवि ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’ ने ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि उसे जीवन की विपदाओं से दूर ना रखे पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सके।
त्राण शब्द का प्रयोग इस कविता के संदर्भ में बचाव, आश्रय और भय निवारण के अर्थ में किया जा सकता है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करते है कि मैं यह नहीं चाहता के दुखों में आप मेरी रक्षा करें बल्कि मिले हुए दुखों को
सहने, उसे झेलने की शाक्ति के लिए प्रार्थना करता है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे। कवि के अनुसार संघर्षों से लड़कर ही सच्चे सुख की प्राप्ति होती है।
Solution 4:
‘विपत्तियों से रक्षा कर’ कविता में कवि ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’ ने ईश्वर से प्रार्थना रहा है कि उसे जीवन की विपदाओं से दूर ना रखे पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सके।
कवि अनुनय करता है कि चाहे सब लोग उसे धोखा दे, सब दुख उसे घेर ले पर ईश्वर के
प्रति उसकी आस्था कम न हो, उसका विश्वास बना रहे। उसका ईश्वर के प्रति विश्वास कभी न डगमगाए।
Solution 5:
‘विपत्तियों से रक्षा कर’ कविता में कवि ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’ ने ईश्वर से प्रार्थना रहा है कि उसे जीवन की विपदाओं से दूर ना रखे पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सके।
इस कविता में कष्टों से छुटकारा नहीं कष्टों को सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना की गई है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे और कोई भी कष्ट वह
धैर्य से सह ले। यहाँ ईश्वर में आस्था बनी रहे, कर्मशील बने रहने की प्रार्थना की गई है।
हेतुलक्ष्यी प्रश्न
Solution 1:
- अपने दुख से व्यथित चित्त को सांत्वना देने की भिक्षा।
- संसार से हानि ही मिले केवल वंचना ही पाऊँ।
- मेरा भार हल्का करके, मुझे सांत्वना न दे।
- मैं तेरा मुख पहचान पाऊँ।
Solution 2:
- कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर का मन संसार से मिली हानि या वंचना को क्षति नहीं मानता।
- कवि ईश्वर से विपत्तियों से भयभीत न होने का वरदान चाहता है।
- सुखभरे क्षण में भी कवि नतमस्तक रहना चाहता है, ताकि उनके मन में कभी घमंड उत्पन्न न हो।
- कवि दुखभरी रातों में ईश्वर के सामर्थ्य पर शंका नहीं करना चाहता है।
अाज मैं अापको एक कविता अौंर उसका अर्थ बताने वाला हू। जिसमे कवि विपत्तियों से रक्षा कि नही उन विपत्तियों से लडने की शक्ति मागता है इश्वर से।
विपत्तियों से रक्षा कर - यह मेरी प्रार्थना नहीं,
मै विपत्तियों से भयभीत न होऊ !
अपने दुख से वयथित चितत को सांत्वना देने की भीक्षा
नहीं माँगता,
मैं दु:खो पर विजय पाऊँ !
यदि सहायता न जुटे तो भी मेरा बल न टुटे !
संसार से हानि हि मिले, केवल वंचना हि पाऊं
तो भी मेरा मन उसे क्षति न माने !
"मेरा त्राण कर " यह मेरी प्रार्थना नहीं,
मेरा भार हलका करके मुझे सांत्वना न दे,
यह भार वहन करके चलता रहुुुँ !
सुखभरे क्षणो मे नतमस्तक मैं तेरा मुख पहचान पाऊँ
किंतु दु:ख -भरी रातों मे जब सारी दुनिया मेरी वंचना करे,
तब
भी मैं तेरे प्रति शंकित न होऊँ !
कविता अर्थ:-
कविता मे कवि ईश्वर से विपत्तियों से मुक्ति पाने की प्रार्थना न करते हुए , उन विपत्तियों से निरभिक होकर सामना करने की शक्ति माँगता है। वह जीवन की दोनो परिस्थितियों -सुख और दुख - मे समान रुप से ईश्वर से जुडे रहना चाहता है। कवि दु:खो का भार लेकर चलना चाहता है , वह उनसे मुक्ति नहीं
चाहता। वह सिर्फ प्रभु से यह विनती करता है कि दु:ख मे वह प्रभु के प्रति शंकित न हो। संघर्षपुर्ण जीवन ही, जीवन की सार्थकता है।