कन्यादान कविता में मां की सोच परंपरागत मां के सोच से कैसे भिन्न हैं? - kanyaadaan kavita mein maan kee soch paramparaagat maan ke soch se kaise bhinn hain?

Solution : कन्यादान कविता की माँ, परंपरागत माँ से पूर्णतया भिन्न है। जहाँ परम्परागत माँ अपनी बेटी को सब कुछ सहकर कर्तव्य पालन करने की सीख देती है वहीं कविता में वर्णित माँ सामाजिक विकृतियों के प्रति जागरूक है। वह नारी शोषण के प्रति बेटी को सचेत करती है। वह उसे सबल बनने के लिए प्रेरित करती है।

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कन्यादान कविता में मां की सोच परंपरागत मां से कैसे भिन्न है

  • Posted by Divyanshi Dhakad 1 year, 7 months ago

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    परंपरागत माँ अपनी बेटी को सब कुछ सहकर दूसरों की सेवा करने की सीख देती है। लेकिन कविता में माँ सीख देती है कि लड़की के गुणों को बनाए रखना, कमज़ोर मत बनना। वह दहेज के लिए जलाए जाने के खतरे के बारे में लड़की को आगाह करती है।

    Posted by Shubhamnath Keshri 6 days, 13 hours ago

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    Posted by Rohit Jadhav Patil 6 days, 3 hours ago

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    Posted by Eera Sharma 1 week, 1 day ago

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    Posted by Pragati Pragati 1 week ago

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    Posted by Pragati Pragati 1 week ago

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    Posted by Pragati Pragati 1 week ago

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    Posted by Jazba Khan 1 week, 3 days ago

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    Posted by Anshit Srivastava 2 weeks ago

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    Posted by Muskan Manjhi 2 days, 22 hours ago

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    Posted by Pragati Pragati 1 week ago

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    कन्यादान कविता में कवि की मां परंपरागत मां से कैसे भिन्न है?

    'कन्यादान' कविता की माँ परम्परागत माँ से वैळसे भिन्न है? उत्तर: परंपरागत माँ अपनी बेटी को सब कुछ सहकर दूसरों की सेवा करने की सीख देती है। लेकिन कविता में माँ सीख देती है कि लड़की के गुणों को बनाए रखना, कमज़ोर मत बनना। वह दहेज के लिए जलाए जाने के खतरे के बारे में लड़की को आगाह करती है।

    कन्यादान पाठ के आधार पर मां की चिंता का मुख्य कारण क्या था?

    उत्तर: 'कन्यादान' कविता में माँ की मूल चिन्ता अपनी भोली, सरल स्वभाववाली और लोक व्यवहार से अपरिचित बेटी के भविष्य को सुरक्षित और सुखी बनाना है। इसलिए वह अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों के आधार पर लड़की को ऊँचे-ऊँचे आदर्शों और उपदेशों के बजाय समय के अनुकूल ठोस और व्यावहारिक शिक्षाएँ देती है।

    मां का कौन सा दुख प्रमाणित था और कैसे?

    माँ का कौन - सा दुःख प्रामाणिक था, कैसे ? Solution : विवाह के अवसर पर कन्यादान करते समय माँ जो दुःख अनुभव करती थी वह दुःख प्रामाणिक था, क्योंकि बेटी को कन्यादान स्वरुप वर - पक्ष के हाथों सौंपते समय माँ के ह्रदय की पीड़ा स्वाभाविक होती है उसमे किंचित भी कृत्रिमता नहीं होती है।

    कवि ने माँ के दुख को प्रामाणिक क्यों बताया है कन्यादान?

    उत्तर: कविता 'कन्यादान' में कवि ने माँ के दुख को प्रामाणिक इसलिए कहा है क्योंकि अभी उसकी बेटी बहुत समझदार और ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के काबिल भी नहीं हुई है और उसे उसका कन्यादान करना पड़ रहा है।

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