इतिहास और प्रागितिहास में क्या अंतर है? - itihaas aur praagitihaas mein kya antar hai?

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प्राचीन भारतइतिहासप्रागैतिहासिक काल एवं आद्य इतिहास काल

IndiaOldDays .comनवम्बर 28, 2017

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प्रागैतिहासिक काल

इस काल में लिखित विवरण नहीं है, इस काल के विषय की जानकारी पाषाण के उपकरणों तथा मिट्टी के बर्तनों व खिलौनों से प्राप्त होती है । इस काल के बारे में  जानकारी  केवल पुरातात्तविक स्रोतों से मिलती है।

आद्य इतिहास

इस काल में  लेखक कला के  प्रचलन  के बाद भी  लेख पढे नहीं जा सके । इस काल के संबंध में जानकारी पुरातत्तव पर ही निर्भर है।

पृथ्वी की उत्पति 4 अरब वर्ष प्राचीन मानी जाती है जीवों की उत्पती बहुत बाद में मानी गई है तथा   मानव की उत्पती इस पृथ्वी पर लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व मानी जाती है।  ज्ञानी मानव  ( होमोसैपियंस ) का प्रवेश इस धरती पर आज से लगभग 30 या 40 हजार वर्ष पूर्व हुआ ।

आदि काल ( प्रागैतिहासिक काल ) को वैज्ञानिक शब्दावली में प्लाइस्टोसीन ( अभिनूतन युग ) कहा गया है।

पूर्व पाषाण काल में मानव की जीविका का मुख्य आधार शिकार था ।

मानव सभ्यता के विकास में पाषाणों का बहुत महत्व रहा है। पाषाण से मानव ने भोजन संग्रहित किया , आवास बनाया , कला सीखी , आविष्कार किए, प्राचीनतम कलाकृतियां पाषाणों पर उत्कीर्ण की गई , पाषाणों से ही आविष्कारों की ऊर्जा अग्नि प्राप्त की । समस्त औजार , हथियार , आश्रय मानव ने पाषाणों से ही प्राप्त किए , इसी से आरंभिक मानव के इतिहास को पाषाण युग के नाम से जाना जाता है।

पाषाण युग में शनै-शनै क्रमिक रूप से मानव का जीवन अधिक व्यवस्थित होने लगा , इस आधार पर पाषाण युग को तीन भागों में विभाजित किया गया है –

  • पुरापाषाण काल (5 लाख – 10 हजार ई. पू. )
  • मध्य  पाषाण काल (10,000 हजार ई. पू. –  7000 हजार ई. पू. )
  • नवपाषाण काल ( 7000/6000 ई. पू. – 3000ई. पू. )

प्रागैतिहासिक काल एवं आद्य इतिहासकाल से संबंधित तथ्य

ज्ञानी मानव (होमोसैपियंस)का प्रवेश इस धरती पर आज से लगभग तीस या चालीस हजार वर्ष पूर्व हुआ।

पूर्व-पाषाण युग में मानव की जीविका का मुख्य आधार शिकार था।

आग का आविष्कार पुरा-पाषाणकाल में हुआ।

पहिले का आविष्कार नव-पाषाणकाल में हुआ।

मनुष्य में स्थायी निवास की प्रवृत्ति नव-पाषाणकाल में जाग्रत हुई तथा उसने सबसे पहले कुत्ते को पालतू बनाया।

मनुष्य ने सर्वप्रथम ताँबा धातु का प्रयोग किया तथा उसके द्वारा बनाया जाने वाला प्रथम औजार कुल्हाङी (प्राप्ति स्थल – अतिरम्पक्कम) था।

आज के इस लेख में हम भारत का प्रागितिहास और प्राचीन काल के बारें में जानेंगे, साथ ही ये भी समझेंगे की किस वजह से विश्व और भारत के प्रागितिहास और प्राचीन काल में कालक्रम का अंतर है। 

तो आइये समझते है……..

विषय सूची

  • विश्व के सन्दर्भ में भारत का प्रागितिहास और प्राचीन काल (India Prehistory and Ancient history in the context of the world)।
    • प्रागितिहास (PREHISTORY)।
      • भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग काल चल रहा था, जो कि भिन्नता की प्रमुख वजह बना।
    • प्राचीन काल (ANCIENT HISTORY)।
    • भारत का प्राचीन काल।
      • दक्षिण भारत में प्राचीनकाल की दो अवस्थाएं है।
        • 1. प्रथम प्राचीनकाल अवस्था (200BC-300AD)।
        • 2. दूसरी प्राचीन अवस्था (300-600AD)।

विश्व के सन्दर्भ में भारत का प्रागितिहास और प्राचीन काल (India Prehistory and Ancient history in the context of the world)।

प्रागितिहास (PREHISTORY)।

2 MILION YEARS AGO या 20 लाख साल पहले विश्व में तथा 2,50,000 साल वर्ष पहले भारत में प्रागितिहास की शुरुआत मानी जाती है। दोनों में अंतर 17 लाख 50 हजार वर्ष है। अफ्रीका महाद्वीप में PREHISTORY की शुरुआत 4 MILION YEARS AGO मानी जाती है। यही पहली बार HOMOGENOUS पाया गया था, जिसको लेकर अभी भी विवाद है कि इसको HOMOGENOUS माना जाय या नही।

होमोहैबलिस जिसका मतलब है हाथ का उपयोग करने वाला मानव। अंग्रेजी में इसे HANDYMAN कहा जाता है। यह बंदरो से अलग था। इस मानव ने पहली बार हथियार बनाए। हमारा सबसे निकटवर्ती सम्बन्ध चिम्पांजी से है। हमारे और उसके 98% जींस मिलते है। चिम्पांजी से मानव में परिवर्तन का क्रम 5-6 MILION YEARS AGO माना जाता है।

यूरोप में PREHISTORY की शुरुआत 2 MILION YEARS AGO मानी जाती है, मतलब यहाँ HOMOGENOUS 2 MILION YEARS पहले आया।

विश्व सन्दर्भ में भारत की बात की जाय तो यहाँ का सांस्कृतिक उद्विकास बहुत विलंबित रहा है। जहा विश्व में PREHISTORY की शुरुआत 2MYA पहले, मतलब 20 लाख साल पहले हुई, वही भारत में इसकी शुरुआत 2,50,000 वर्ष पहले की है। मतलब केवल ढाई लाख वर्ष पहले की। इस मामले में हम विश्व से 17 लाख 50 हजार वर्ष पीछे है। हमारे सांस्कृतिक उद्विकास का इतना लेट होने का प्रमुख कारण है मानव उद्विकास (HUMAN EVALUTION)।

मानव उद्विकास अफ्रीका में हुआ, मतलब हमारे पूर्वज अफ्रीका में रहते थे। अफ्रीका से भारत तक पहुचने में उन्हें बहुत समय लग गया। पहले अफ्रीका, अफ्रीका से यूरोप, यूरोप से फिर भारत, मतलब हर संस्कृति के वाहक को भारत आने में लम्बा समय लगा, इसलिए भारत में हर सांस्कृतिक अवस्था विश्व सन्दर्भ में लेट शुरू हुई।

भारत में PREHISTORY के अंत का कोई निश्चित समय नही है। निश्चित समय इसलिए नही है, क्योंकि किसी भी संस्कृति के ऐतिहासिक काल में प्रवेश करने का मुख्य लक्षण है लिपि(SCRIPT)। भारत में लिपि का उपयोग अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग समय शुरू हुआ। भारत की PREHISTORY को हम तीन भागो में विभाजित कर सकते है।

  1. पुरा पाषाण काल (PALAEOLITHIC)
  2. मध्य पाषाण काल (MESOLITHIC)
  3. नव पाषाण काल (NEOLITHIC)

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग काल चल रहा था, जो कि भिन्नता की प्रमुख वजह बना।

भारत के लिए समस्या की बात यह थी कि जिस समय भारत में हड़प्पा सभ्यता एक समृद्ध सभ्यता के रूप में अस्तित्व में थी, उसी समय भारत के शेष भाग में मध्य पाषाण काल चल रहा था। हड़प्पा सभ्यता भारतीय उपमहाव्दीप के केवल उत्तरी-पश्चिमी भाग में अवस्थित थी। जैसे पंजाब, राजस्थान, सिंध, कुछ गुजरात, कुछ बलूचिस्तान, इसके अलावा शेष भारत सभ्य नही था। शेष भारत मध्ययुगीन संस्कृति में पड़ा रहा।

मध्य पाषाण की संस्कृति छोटे-छोटे जानवरों के आखेटक की संस्कृति थी। FOOD GATHERING और HUNTING की संस्कृति थी। शेष भारत के लोगो ने अभी खेती करना नही सीखा था, ये तो NEOLITHIC AGE में ही नही प्रवेश कर पाए तो सभ्यताओ में कहा से जायेंगे। मध्य पाषाण काल (MESOLITHIC) से नव पाषाण काल (NEOLITHIC), NEOLITHIC से ताम्रपाषाण काल (CHA LCOLITHIC), CALCOLITHIC से कांस्य युग (BRONZE AGE) में जायेंगे, BRONZE AGE में पहुंचेंगे तो सभ्य कहलायेंगे।

कुलमिलाकर शेष भारत में BRONZE AGE आया ही नही, इस प्रकार अलग-अलग क्षेत्रो में अलग-अलग PREHISTORY चलती रही। इसके अंत की कोई सीमा ही नही थी। भारत का अंडमान निकोबार द्वीप समूह तो आज भी PREHISTORY में ही चल रहा है। यहाँ आज भी लिपि नही है, ये आज भी खेती नही करते, ये आज भी MESOLITHIC AGE में पड़े हुए है। यहाँ तो आज भी प्राचीनकाल की शुरुआत नही हुई है, क्योकि प्राचीन काल की शुरुआत तो स्क्रिप्ट से होगी और यहाँ स्क्रिप्ट है ही नही।

प्राचीन काल (ANCIENT HISTORY)।

विश्व सन्दर्भ में 4000BC के आसपास, वही भारत में प्राचीन इतिहास की शुरुआत तो 1500BC के पास होती है। लेकिन मोटेतौर पर 3000-1500BC मानी जाती है। विश्व में प्राचीन काल की शुरुआत 4000BC के आस-पास मानी जाती है। मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यता का उदय होता है या फिर ऐसा कहा जाता है कि जब सुमेर में लिपि का आविष्कार हुआ तब प्राचीन काल की शुरुआत मानी जाती है।

विश्व में प्राचीन काल की समाप्ति रोमन साम्राज्य के खत्म होने तक मानी जाती है। 476 AD में हुणों ने रोमन साम्राज्य पर आक्रमण कर रोमन साम्राज्य को तहस-नहस कर दिया (ये वही हुण है जो भारत में राजपूत कहलाते है)। भारत के सन्दर्भ में प्राचीन काल की शुरुआत 1500BC के आस-पास मानी जाती है, क्योंकि इस स्थान पर हमें एक ADDITIONAL- STAGE बनाना पड़ता है PROTOHISTORY का।

भारत में PROTOHISTORY 3000-1500 तक मानी जाती है। विश्व में कही भी PROTOHISTORY का कांसेप्ट नही है, लेकिन भारत का शुरूआती प्राचीन काल PROTOHISTORY में आता है। PROTOHISTORY में हड़प्पा सभ्यता आती है। हड़प्पा सभ्यता की लिपि को हम पढ़ नही पाए इसलिए इसे PROTOHISTORY में रखा गया।

भारत में प्राचीन काल 1500BC से ऋग्वैदिक काल में शुरू हुआ। जब शेष भारत में ऋग्वैदिक काल चल रहा था ठीक उसी समय दक्षिण भारत में मध्य पाषाण काल (MESOLITHIC) की शुरुआत हुई। तो आप सोच सकते है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रो में कितनी भिन्नताए थी।

भारत का प्राचीन काल।

  1.  1500BC – ऋग्वैदिक काल
  2. 1000BC – उत्तरवैदिक काल

उत्तरवैदिक काल 600 BC तक चला, इसमें ऋग्वेद के अलावा तीन वेद लिखे गए ब्राहमण, उपनिषद और अरण्यक। वैदिक काल ऋग्वैदिक काल का समय माना जाता है, ये भारत का इतिहास हड़प्पा सभ्यता के बाद एक बार फिर लगभग 1500 साल पीछे खिसकता है। पीछे खिसकने से आशय यह है कि हड़प्पा एक समृद्ध नगरीय संस्कृति थी। हड़प्पा के लोग नगरो में रहते थे, व्यापार होता था, लोग लिखते-पढ़ते थे, कृषि सरप्लस थी, जिसका व्यापार किया जाता था।

 

हड़प्पा सभ्यता के बाद जब आर्य भारत आए तो शहरो का अंत हो गया। सभ्यता एक बार पुनः ग्रामीण संस्कृति में बदल गयी। आर्य पशुपालक थे, गाय चराया करते थे। भारत आने के बाद आर्य धीरे-धीरे खेती करना सीख गये, जो स्थिति 3000 BC में थी वही स्थिति हमारी एक बार फिर हो गयी। मतलब 1500 BC में आकर भी हम 1500 सौ  साल पीछे हो गये। उत्तरवैदिक काल में हम गाव में रहने लगे थे। पशुपालन से कृषि पर पहुचे और धीरे-धीरे गाँवों की संख्या बढ़ती गयी, जिससे उत्तरवैदिक काल के बाद मध्य और उत्तर भारत में 16 महाजनपदो का उदय हुआ। रहे तो पता नही कितने होंगे, लेकिन तत्कालीन साहित्य में 16 महाजनपदो का उल्लेख मिलता है।

एक बार पुनः शक्ति का केन्द्रीयकरण शुरू हुआ। हम पुनः इसलिए कह रहे है, क्योकि हम जानते तो नही है, लेकिन ये कह सकते है कि बिना केन्द्रीयकृत राजनैतिक व्यवस्था के अभाव में इतनी बड़ी हड़प्पा सभ्यता विकसित नही हो सकती थी। असंभव था क्योकि पूरी सभ्यता की ईंटो की नाप ले तो आप बिल्कुल एकसमान पायेंगे। एक राजनैतिक शक्ति के अभाव में इस प्रकार की एकरूपता नही आ सकती थी। हड़प्पा सभ्यता एक बड़ा क्षेत्र था, यहाँ पर पक्का राजनैतिक व्यवस्था रही होगी, मतलब सभी उसके निर्देशानुसार काम करते रहे होंगे।

16 महाजनपदो में सबसे भारी महाजनपद था मगध साम्राज्य। इसके सबसे ज्यादा शक्तिशाली होने के कई कारण है। सबसे प्रमुख कारण है इसकी राजधानी गिरिव्रज/राजगिरि। यह पहाड़ी के ऊपर स्थित थी, इस पर आक्रमण करके इसको नही जीता जा सकता था। मगध के बीच से सोंन-नर्मदा बहती थी जो कि कृषि सरप्लस का बहुत बड़ा कारण था, जिससे भारी मात्रा में व्यापार होता था। मगध के क्षेत्र में लोहे की खदाने थी जिसकी वजह से युद्ध के लिए इनके पास पर्याप्त हथियार था। गंगा जो इनको सुरक्षा देती थी इसका उपयोग नौकाओ के सहारे दूसरे राज्यों पर आक्रमण करने के लिए करते थे।

मगध काल बुद्ध और महावीर का भी काल है।

मगध के बाद के काल।

  1. मौर्य साम्राज्य
  2. शुंग साम्राज्य
  3. सातवाहन
  4. कुषाण
  5. गुप्त वंश
  6. पुष्यभूति वंश

पुष्यभूति वंश के अंतिम सम्राट हर्षवर्धन (606-647AD) थे। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत में प्राचीन काल समाप्त हो जाता है। विश्व के सापेक्ष में 476 AD में रोम साम्राज्य के अंत से प्राचीनकाल का अंत होता है।

दक्षिण भारत में प्राचीनकाल की दो अवस्थाएं है।

1. प्रथम प्राचीनकाल अवस्था (200BC-300AD)।

आज जहा केरल क्षेत्र है, वहा चेर थे। तमिलनाडू का ऊपर का हिस्सा छोड़कर बाकी में पांड्य थे, ये मदुरा के पांड्य कहलाते है। मदुरा के नार्थ-ईस्ट में चोल थे, यह चोलो की प्रारंभिक अवस्था है। इनकी दूसरी भी अवस्था है जो कि बाद में आएगी।

2. दूसरी प्राचीन अवस्था (300-600AD)

मदुरा के पांड्य वही है दूसरी अवस्था में भी, लेकिन जहा पहले चोल थे वहा काँची के पल्लव आ गये। कर्नाटक के आस-पास बादामी के चालुक्य आ गये (पल्लवों के पश्चिम में)।

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