नमस्कार दोस्तो स्वागत है आप सभी का www.kailashedcation.com मे, आज एक इस लेख मे बात करेंगे ग्रामीण समाज के बारें मे।
ग्रामीण सामाजिक संरचना का अर्थ
ग्रामीण सामाजिक संरचना एक सुन्दर चित्र प्रस्तुत करती है जिसमें विवाह, परिवार, वंश, गोत्र, नातेदारी, जाति, धर्म, राजनैतिक और आर्थिक समूह, तथा वर्ग
शामिल है। जब हम ग्रामीण सामाजिक संरचना की बात करते है तो हमारे मस्तिष्क मे समुदाय का निर्माण करने वाले विभिन्न समूह जैसे, नातेदारी समूह, वंश, गोत्र, बिरादरी, जाति उपजाति तथा वर्ग भी होते है।
सामाजिक संरचना हम समाज के व्यवस्थित स्वरूप को कहते है। जिस प्रकार एक माकन ईट, सीमेंट और चूने का केवल ढेर नही होता बल्कि ईट, सीमेंट और चूने का व्यवस्थित स्वरूप होता है। उसी प्रकार सामाजिक संरचना सामाजिक प्रतिमानों, समितियों, संस्थाओं,
सामाजिक मूल्यों आदि के व्यवस्थित स्वरूप को सामाजिक संरचना कहा जाता है।
ग्रामीण सामाजिक संरचना का अर्थ जाननें के बाद अब हम ग्रामीण समाज का अर्थ जानेंगे, इसके बाद ग्रामीण समाज की परिभाषा और ग्रामीण समाज की विशेषताएं जानेंगे।
ग्रामीण समाज का अर्थ (gramin samaj ka arth)
जिस समुदाय की अधिकांशतः
अवयश्कताओं की पूर्ति कृषि या पशुपालन से हो जाती है उसे ग्रामीण समाज समुदाय के नाम से जाना जाता है।
नगर की अपेक्षा गाँव में जनसंख्या का धनत्व बहुत ही कम होता है। गाँव में घनी जनसंख्या न होने के कारण कृषक का सीधा सम्बन्ध प्रकृति से होता है। ग्रामीण समाज में महानगरीय सभ्यता और बनावटी भौतिक संस्कृति का जाल नहीं बिछा होता। ग्रामीण समाज सरल साधा जीवन व्यत्ती करता है।
ग्रामीण समाज की परिभाषा (gramin samaj ki paribhasha)
स्मिथ के मुताबिक," कृषक और ग्रामीण समाज प्रायः पर्यायवाची शब्द है।"
हेरेल्ड एफ. ई पीके के अनुसार," ग्रामीण समुदाय परस्पर सम्बन्धित व्यक्तियों का वह समूह है जो एक कुटुम्ब से
अधिक विस्तृत है और जो कभी नियमित, कभी अनियमित रूप से निकटवर्ती गृहों में या कभी निकटवर्ती गली मे रहते है। ये व्यक्ति कृषि योग्य भूमि में सामान्य रूप से खेती करते है और समतल भूमि को आपस में बाँट कर बंजर भूमि को चराने में प्रयोग करते है।"
ए.आर देसाई के अनुसार," ग्रामीण समाज की इकाई गाँव हैं, यह एक रंगमंच है, जहाँ ग्रामीण जीवन का प्रमुख भाग स्वयं प्रटक होता है और कार्य करता हैं। ग्राम सामूहिक निवास की प्रथम स्थापना है और कृषि अर्थव्यवस्था की उत्पत्ति है।"
बूनर के अनुसार," एक ग्रामीण समुदाय व्यक्तियों का एक सामाजिक समूह है, जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र मे निवास करते है तथा जीवन के सामान्य ढंग को अपनाते है।"
सेंडरसन के अनुसार," एक ग्रामीण समुदाय में स्थानीय क्षेत्रो के लोगों की सामाजिक अन्तक्रिया तथा उसकी संस्थायें सम्मिलित है जिनमें वह सामान्य क्रियाओं के क्रेन्द्र खेतों के चारों और बिखरी झोपड़ियों या ग्रामों में रहता है।"
ग्रामीण समाज की विशेषताएं (gramin samaj ki visheshta)
ग्रामीण समाज की निम्नलिखित विशेषताएं है--
1. जाति व्यवस्था
ग्रामीण समाज की मुख्य विशेषताओं मे से एक जाति व्यवस्था है। जाति के आधार पर ग्रामीण समाज मे संस्तरण पाया जाता है। जाति एक सामाजिक संस्था और समिति दोनों ही है। जाति की सदस्यता योग्यता के आधार पर नही बल्कि जन्म के आधार पर निर्धारित होती है। प्रत्येक जाति का एक परम्परागत व्यवसाय होता है। जाति के सदस्य अपनी ही जाति मे विवाह करते हैं।
2. कृषि
मुख्य व्यवसाय
ग्रामीण समाज की सबसे मुख्य विशेषता कृषि है ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था कृषि पर ही टिकी है। हांलाकि गांव मे अन्य व्यवसाय भी होते है लेकिन 70 से 75 प्रतिशत लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही आशर्ति होते है।
3. संयुक्त परिवार का होना
ग्रामीण समाज में संयुक्त परिवारों
की प्रधानता पाई जाती है, यहां एकल परिवारों का आभाव होता है। ग्रामीण समाज मे ऐसी परिवार पाई जाते है जिनमें तीन या अधिक पीढ़ियों के सदस्य एक स्थान पर रहते है। इनका भोजन, सम्पत्ति और पूजा-पाठ साथ-साथ होता है। ऐसे परिवारों का संचालन परिवार के सबसे बड़े व्यक्ति द्वारा होता है।
4. जनसंख्या का कम घनत्व
ग्रामों में नगर की तुलना मे जनसंख्या का घनत्व बहुत ही कम होता है।
5. प्रकृति के समीप
ग्रामीण समाज का कृषि मुख्य
व्यवसाय होने के कारण ग्रामीण समाज प्रकृति के समीप होता है।
6. भाग्यवादीता
भारतीय गाँवों के निवासियों मे शिक्षा का अभाव होता है। अतः वे अन्ध-विश्वासी और भाग्यवादी होता है।
7. सरल व सादा जीवन
भारत के ग्रामवासी सादा जीवन व्यतीत करते है। उनके जीवन मे कृत्रिमता और आडम्बर नही है। उनमें ठगी, चतुरता और धोखेबाजी के स्थान पर सच्चाई, ईमानदारी और अपनत्व की भावना अधिक होती है।
8. सामाजिक समरूपता
जहां नगरों की विशेषता सामाजिक विषमता है वही ग्रामीण समाज की विशेषता सामाजिक समरूपता का होना है। ग्रामीणों के जीवन स्तर में नगरों की भांति जमीन-आसमान का अन्तर नही पाया जाता। सभी लोग एक जैसी भाषा, त्यौहार-उत्सव प्रथाओं और जीवन-विधि का प्रयोग करते है। उनके सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक जीवन में अनेक अंतर नही पाये जाते है।
9. जनमत का अधिक महत्व
ग्रामवासी जनमत का सम्मान करते और उससे डरते है। वे जनमत की शक्ति को चुनौती नही देते वरन् उसके सम्मुख झुक जाते है। पंच लोग जो कुछ कह देते है उसे वे शिरोधार्य मानते है। पंच के मुंह से निकला वाक्य ईश्वर के मुंह से निकला वाक्य होता है। जनमत की अवहेलना करने वाले की निन्दा की जाती है।
10. आत्म निर्भरता
ग्रामीण
समाज मे हर क्षेत्र में आत्म निर्भरता पाई जाती है। चाहें वह आर्थिक हो, सामाजिक हो, सांस्कृतिक हो या राजनैतिक हो। गांव मे जनमानी प्रथा द्वारा जातियां परस्पर एक-दूसरे के आर्थिक हितों की पूर्ति करती है।
11. जजमानी प्रथा
जजमानी व्यवस्था भारतीय ग्रामीण और जातिगत ढ़ाचें की एक प्रमुख विशेषता है। इसका स्वरूप परम्परागत है, इस
व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक जाति का एक निश्चित व्यवसाय होता है। इस प्रकार जाति प्रथा ग्रामीण समाज में श्रम-विभाजन का एक अच्छा उदाहरण पेश करती है। सभी जातियां परस्पर एक-दूसरे की सेवा करती है।
12. समुदाय का छोटा आकार
ग्रामीण समुदाय का आकार अन्य समुदायों की तुलना मे छोटा होता हैं। राबर्ट रेडफील्ड ने ग्रामीण समुदाय को लघु समुदाय की संज्ञा दी हैं।
13. सामाजिक अस्थिरता
अधिकतर ग्रामीण समाज इतना ज्यादा अस्थिर नही है जितना नागरिक समाज है। ग्रामीण मनुष्य कठिनता से ही एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति को ग्रहण करते है। इसका कारण यह है कि सामाजिक स्थिति और उनके धन्धे मर्यादित है। इसके अतिरिक्त सामाजिक परिवर्तन भी उनमें कम पाया जाता है। ग्रामीण लोग एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना ज्यादा पसंद नही करते। सोरोकिन और जिम्मरमेन के मतानुसार ग्रामीण समुदाय जलाशय के जल की भाँति निश्चल रहता है।
यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी