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भारत की स्वतंत्रता में वीर सावरकर का योगदान अमूल्य रहा है. उन्होंने देश के भीतर और बाहर रहते हुए आजादी के लिए न केवल क्रांतिकारी गतिविधियों को चलाया, बल्कि मदनलाल ढींगरा जैसे कई देशभक्तों के प्रेरणास्रोत भी बने. वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) प्रतिभा के धनी थे. वैसे तो भारतीय इतिहास में सावरकर को हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद के विस्तार के लिए जाना जाता है लेकिन कई लोगों के मन में आज भी यह जानने की उत्सुकता है कि आखिर सावरकर को अण्डमान निकोबार द्वीप समूह स्थित सैल्यूलर जेल में किस तरह की यातनाएं दी गईं.
सैल्यूलर जेल में सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar in Cellular Jail)
को सैल्यूलर जेल की तीसरी मंजिल की छोटी-सी कोठरी में रखा गया था. कोठरी के कोने में पानी वाला घड़ा और लोहे का गिलास. कैद में सावरकर के हाथों में हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियां जकड़ी रहती थीं. माना जाता है कि वीर सावरकर जब कैद में थे तो उनके बड़े भाई गणेश सावरकर को भी वहीं कैद में डाला गया था. वीर सावरकर को यह पता ही नहीं था कि इसी जेल में उनके भाई साहब भी हैं. वीर सावरकर दस वर्षों तक इस काल कोठरी में एकाकी कैद की सजा भोगते रहे. सावरकर अप्रैल 1911 से मई 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे.
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Cellular Jail) की यातनाएं
सैल्यूलर जेल में उन क्रांतिकारियों को रखा जाता था जो ब्रिटिश शासन के लिए टेढ़ी खीर थे. सावरकर के मुताबिक इस जेल में स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था. क्रांतिकारियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था. साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था. इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमि व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था. रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थी. उन्हें बस जीने के लिए खाना दिया जाता था.
यातना की डर से अंग्रेजों से माफी मांगी
स्वतंत्र भारत के इतिहास में कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सावरकर वीर पुरुष थे, लेकिन काले पानी की सजा से उनका हौसला तोड़ दिया. वह काफी कमजोर हो गए थे. इसी वजह से उन्होंने अंग्रेजों से माफी भी मांग ली थी. यह उनके जीवन का काला अध्याय बना. माना यह भी जाता है सावरकर जेल में दूसरे साथियों को तो भूख हड़ताल के लिए प्रेरित करते थे, लेकिन खुद भूख का अवसाद नहीं सह पाते थे. लेकिन कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि सावरकर जिस तरह का संताप करते थे यह उनकी अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी योजना थी ताकि वह जेल से बाहर निकलकर एक बार फिर सक्रिय हो सकें.
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