बेलपत्र कितने प्रकार का होता है? - belapatr kitane prakaar ka hota hai?

शिवजी को कभी भी ऐसा बेलपत्र न चढ़ाएं, लगता है दोष

भगवान शिव को जो चीजें सबसे प्रिय होती हैं, बेलपत्र का स्‍थान उसमें सर्वप्रथम है। शिवजी की पूजा में बेलपत्र चढ़ाना सबसे जरूरी होता है। लेकिन बेलपत्र को चढ़ाने में कुछ बातों का ध्‍यान रखना बेहद जरूरी होता है। आज हम इन्‍हीं सावधानियों और बेलपत्र के संबंध में जरूरी बातों को आपको बताने जा रहे हैं।

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ऐसा होना चाहिए बेलपत्र

कई बार देखने में आता है कि बेलपत्र एक, 3 या फिर 5 पत्र वाला भी होता है। शास्‍त्रों में बताया गया है कि बेलपत्र जितने अधिक पत्र वाला होता है उतना ही अच्‍छा होता है। इसलिए शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने में कम से कम यह 3 पत्र वाला होना चाहिए। जब यह 3 पत्र पूरे होते हैं तो इसे एक बेलपत्र माना जाता है।

बेलपत्र पर नहीं होनी चाहिए धारियां

शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए बेलपत्र चुनते वक्‍त यह देख लें कि बेलपत्र पर अधिक धारियां नहीं होनी चाहिए। बेलपत्र के बहुत से पत्‍तों पर चक्र और धारियां होती हैं जिन्हें पूजा में प्रयोग नहीं करना चाहिए। कहते हैं चक्र और वज्र वाले बेलपत्र को खंडित माना जाता है।

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कटा-फटा न हो बेलपत्र

महाशिवरात्रि पर बेलपत्र चढ़ाने के लिए छांटते वक्‍त य‍ह देख लें कि बेलपत्र कहीं से भी कटा-फटा नहीं होना चाहिए। अगर आप अधिक बेलपत्र नहीं जुटा पाए हैं तो एक बेलपत्र से भी काम चला सकते हैं, लेकिन ध्‍यान रहे कि यह कहीं से भी कटा फटा नहीं होना चाहिए।

इस तरफ से शिवलिंग पर चढ़ाएं बेलपत्र

बेलपत्र चढ़ाने में एक बात का ध्‍यान रखें कि बेलपत्र का जो भाग चिकना हो उसी भाग को शिवलिंग के ऊपर रखना चाहिए। शास्‍त्रों में बताया गया है कि अगर आपके पास बेलपत्र अधिक नहीं हैं तो एक आप एक ही बेलपत्र को पानी से धोकर बार-बार चढ़ा सकते हैं। कभी भी शिवलिंग पर बिना जल चढ़ाए बेलपत्र न चढ़ाएं।

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इस दिन न तोड़ें बेलपत्र

शास्‍त्रों में बेलपत्र को तोड़ने को लेकर यह नियम बताया गया है कि कभी भी बेलपत्र सोमवार या फिर चतुर्दशी को नहीं तोड़ना चाहिए। आपको बता दें कि इस बार महाशिवरात्रि मंगलवार की पड़ रही है तो इस बार आपको रविवार को ही बेलपत्र तोड़कर रख लेना चाहिए, क्‍योंकि अगले दिन सोमवार है और उसके अगले दिन चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि है। कहते हैं कि सोमवार और चतुर्दशी तिथि को बेलपत्र तोड़कर शिवलिंग पर चढ़ाने वाले से शिवजी अप्रसन्न होते हैं।

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जानें बिल्व पत्र के बारे में रहस्यमय बातें और बनें मालामाल

आध्यात्मिक डायरी में जोड़ें।

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बिल्व पत्र का महत्व

बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध यह फल बहुत ही काम का है। यह जिस पेड़ पर लगता है वह शिवद्रुम भी कहलाता है। बिल्व का पेड़ संपन्नता का प्रतीक, बहुत पवित्र तथा समृद्धि देने वाला है। बेल के पत्ते शंकर जी का आहार माने गए हैं, इसलिए भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से इन्हें महादेव के ऊपर चढ़ाते हैं। शिव की पूजा के लिए बिल्व-पत्र बहुत ज़रूरी माना जाता है। शिव-भक्तों का विश्वास है कि पत्तों के त्रिनेत्रस्वरूप् तीनों पर्णक शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं।

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भगवान शंकर का प्रिय

भगवान शंकर को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं। भांग धतूरा और बिल्व पत्र से प्रसन्न होने वाले केवल शिव ही हैं। शिवरात्रि के अवसर पर बिल्वपत्रों से विशेष रूप से शिव की पूजा की जाती है। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, किंतु कुछ ऐसे बिल्व पत्र भी होते हैं जो दुर्लभ पर चमत्कारिक और अद्भुत होते हैं। आइये जानें इनके बारे में....

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बिल्वाष्टक और शिव पुराण

बिल्व पत्र का भगवान शंकर के पूजन में विशेष महत्व है जिसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। बिल्वाष्टक और शिव पुराण में इसका स्पेशल उल्लेख है। अन्य कई ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर एवं पार्वती को बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है।

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मां भगवती को बिल्व पत्र

श्रीमद् देवी भागवत में स्पष्ट वर्णन है कि जो व्यक्ति मां भगवती को बिल्व पत्र अर्पित करता है वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं होता। उसे हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और वह भगवान भोले नाथ का प्रिय भक्त हो जाता है। उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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बिल्व पत्र के प्रकार

बिल्व पत्र चार प्रकार के होते हैं - अखंड बिल्व पत्र, तीन पत्तियों के बिल्व पत्र, छः से 21 पत्तियों तक के बिल्व पत्र और श्वेत बिल्व पत्र। इन सभी बिल्व पत्रों का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्व है। आप हैरान हो जाएंगे ये जानकर की कैसे ये बेलपत्र आपको भाग्यवान बना सकते हैं और लक्ष्मी कृपा दिला सकते हैं। इनके बारे में पढ़िए....

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अखंड बिल्व पत्र

इसका विवरण बिल्वाष्टक में इस प्रकार है - ‘‘अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धर्थ लक्ष्मी’’। यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। एकमुखी रुद्राक्ष के समान ही इसका अपना विशेष महत्व है। यह वास्तुदोष का निवारण भी करता है। इसे गल्ले में रखकर नित्य पूजन करने से व्यापार में चैमुखी विकास होता है।

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तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र

इस बिल्व पत्र के महत्व का वर्णन भी बिल्वाष्टक में आया है जो इस प्रकार है- ‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्म पाप सहारं एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम’’ यह तीन गणों से युक्त होने के कारण भगवान शिव को प्रिय है। इसके साथ यदि एक फूल धतूरे का चढ़ा दिया जाए, तो फलों में बहुत वृद्धि होती है।

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तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र

इस तरह बिल्व पत्र अर्पित करने से भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। रीतिकालीन कवि श्री पद्माकर जी ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है- ‘‘देखि त्रिपुरारी की उदारता अपार कहां पायो तो फल चार एक फूल दीनो धतूरा को’’ भगवान आशुतोष त्रिपुरारी भंडारी सबका भंडार भर देते हैं।

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तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र

आप भी फूल चढ़ाकर इसका चमत्कार स्वयं देख सकते हैं और सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र में अखंड बिल्व पत्र भी प्राप्त हो जाते हैं। कभी-कभी एक ही वृक्ष पर चार, पांच, छह पत्तियों वाले बिल्व पत्र भी पाए जाते हैं। परंतु ये बहुत दुर्लभ हैं।

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छह से लेकर 21 पत्तियों वाले बिल्व पत्र

ये मुख्यतः नेपाल में पाए जाते हैं। पर भारत में भी कहीं-कहीं मिलते हैं। जिस तरह रुद्राक्ष कई मुखों वाले होते हैं उसी तरह बिल्व पत्र भी कई पत्तियों वाले होते हैं।

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श्वेत बिल्व पत्र

जिस तरह सफेद सांप, सफेद टांक, सफेद आंख, सफेद दूर्वा आदि होते हैं उसी तरह सफेद बिल्वपत्र भी होता है। यह प्रकृति की अनमोल देन है। इस बिल्व पत्र के पूरे पेड़ पर श्वेत पत्ते पाए जाते हैं। इसमें हरी पत्तियां नहीं होतीं। इन्हें भगवान शंकर को अर्पित करने का विशेष महत्व है।

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कैसे आया बेल वृक्ष

बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में 'स्कंदपुराण' में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं।

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कांटों में भी हैं शक्तियाँ

कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियाँ समाहित हैं। यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेल वृक्ष में वास है। जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है। 'शिवपुराण' में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बतायी गयी है।

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ये भी है श्रीफल

नारियल से पहले बिल्व के फल को श्रीफल माना जाता था क्योंकि बिल्व वृक्ष लक्ष्मी जी का प्रिय वृक्ष माना जाता था। प्राचीन समय में बिल्व फल को लक्ष्मी और सम्पत्ति का प्रतीक मान कर लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए बिल्व के फल की आहुति दी जाती थी जिसका स्थान अब नारियल ने ले लिया है। प्राचीन समय से ही बिल्व वृक्ष और फल पूजनीय रहा है, पहले लक्ष्मी जी के साथ और धीरे-धीरे शिव जी के साथ।

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यह एक रामबाण दवा भी है

वनस्पति में बेल का अत्यधिक महत्व है। यह मूलतः शक्ति का प्रतीक माना गया है। किसी-किसी पेड़ पर पांच से साढ़े सात किलो वजन वाले चिकित्सा विज्ञान में बेल का विशेष महत्व है। आजकल कई व्यक्ति इसकी खेती करने लगे हैं। इसके फल से शरबत, अचार और मुरब्बा आदि बनाए जाते हैं। यह हृदय रोगियों और उदर विकार से ग्रस्त लोगों के लिए रामबाण औषधि है।

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यह एक रामबाण दवा भी है

धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। बिल्व वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी होता है। यह शर्बत कुपचन, आंखों की रोशनी में कमी, पेट में कीड़े और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए उत्तम है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण बिल्व की पत्तियों मे टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं।

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बेल पत्र कितने प्रकार के होते हैं?

बिल्व पत्र चार प्रकार के होते हैं - अखंड बिल्व पत्र, तीन पत्तियों के बिल्व पत्र, छः से 21 पत्तियों तक के बिल्व पत्र और श्वेत बिल्व पत्र।

बेलपत्र के कितने पत्ते होते हैं?

4 पत्तों से चार वेदों का होता है। ऐसा ही 9 पत्तों का महत्व नव दुर्गा से है। पुजारी मांगू महाराज ने बताया उनकी उम्र करीब 85 साल की है, पूरी उम्र में उन्होंने कभी भी 9 पत्रों का बेलपत्र नहीं देखा और न सुना है। इस संबंध में मृदा वैज्ञानिक डॉक्टर कामिनी कुमारी ने बताया बेलपत्र के पत्ते सामान्यतः चार से पांच तक हो सकते हैं

शिव जी पर कितने बेलपत्र अर्पित करने चाहिए?

शिवलिंग पर कितने बेलपत्र चढ़ाना है शुभ शिव पुराण के अनुसार, आपके पास जितने बेलपत्र हो उतने ही चढ़ा सकते हैं। वैसे तो शिवजी को 3 से लेकर 11 बेलपत्र चढ़ाना शुभ माना जाता है।

चार मुखी बेलपत्र का क्या महत्व है?

पंडितों का कहना है कि यह चार पत्तियों वाले बेल पत्र दुर्लभ माना गया है। इस तरह के बेल पत्र में यदि राम का नाम लिखकर उसे शिवजी को अर्पित कर दिया जाए तो उसका अनंत फल प्राप्त होता है। इसी तरह इस बेल पत्र में राम का नाम लिखकर उसे उनके प्रिय भगवान शिवजी को अर्पित कर दिया।

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