Home » class 8 Hindi » NCERT Solutions for Class VIII Vasant Part 3 Hindi Chapter 17 -Baaj aur saanp बाज और साँप Exercise : Solution of Questions on page Number : 114 प्रश्न 1: घायल होने के बाद भी बाज ने यह क्यों कहा,” मुझे कोई शिकायत नहीं है।” विचार प्रकट कीजिए। प्रश्न 2: बाज ज़िंदगी भर आकाश में ही उड़ता रहा फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना क्यों चाहता था ? प्रश्न 3: साँप उड़ने की इच्छा को
मूर्खतापूर्ण मानता था। फिर उसने उड़ने की कोशिश क्यों की ? प्रश्न
4: बाज के लिए लहरों ने गीत क्यों गाया था? प्रश्न 5: घायल बाज को देखकर साँप खुश क्यों हुआ होगा? Exercise : Solution
of Questions on page Number : 115 प्रश्न 1: कहानी में से अपनी पसंद के पाँच मुहावरे चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए। प्रश्न 2: ‘आरामदेह’ शब्द में ‘देह’ प्रत्यय है। ‘देह’ ‘देनेवाला’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। देनेवाला के अर्थ में ‘द’, ‘प्रद’, ‘दाता’, ‘दाई’ आदि का प्रयोग भी होता है, जैसे – सुखद, सुखदाता, साखदाई, सुखप्रद। उपर्युक्त समानार्थी प्रत्ययों को लेकर दो –
दो शब्द बनाइए।
उत्तर : बाज ने अपने जीवन को व्यर्थ नहीं जाने दिया। उसने सदैव जीवन के द्वारा दिए गए सुख व दुख को समान भाव से भोगा। उसने आकाश की असीम ऊँचाइयों को भी अपने पंखों द्वारा नाप डाला था। उसने कभी डर से आकाश में उड़ना नहीं छोड़ा। जब तक उसके शरीर में ताकत रही। ऐसा कोई कार्य व सुख नहीं था जो
उसने किया ना हो, उसने जीवन के समस्त सुखों का आनंद लिया था जिससे वह पूर्ण रूप से आश्वस्त था।
उत्तर : साँप की गुफा को देखकर बाज को अन्दर ही अन्दर साँप के जीवन से घृणा हो गई थी। वह साँप को उस दुर्गन्ध भरी अंधेरी गुफा में प्रसन्न देखकर उसके जीवन के लिए उसे धिक्कार रहा था। वह जान गया था कि इस साँप ने कभी इस गुफा से आगे का जीवन देखा ही नहीं है। वह अपना अन्तिम
समय उसी तरह जीना चाहता था जब वह पूर्ण रूप से स्वस्थ था।वह फिर से उस आनन्द का सुख पाना चाहता था जो सदैव उड़ते हुए उसे प्राप्त होता था। वह साँप की उस अन्धेरी गुफा में अपने प्राणों को त्यागकर अपना अन्तिम समय व्यर्थ नहीं जाने देना चाहता था। उसने सदैव बहादुरी से जीवन यापन किया था। अपने अंतिम समय में भी उस बहादुरी का परिचय देते हुए अपने जीवन की सार्थकता को सिद्ध करना चाहता था। यही उसका लक्ष्य था इसलिए उसने अंतिम उड़ान भरने का निर्णय लिया।
उत्तर : साँप के लिए आकाश में उड़ना कोई महत्वपूर्ण बात नहीं थी। उसके लिए उड़ना और रेंगना समान प्रक्रिया थी। परन्तु अन्त समय में बाज को उड़ान के लिए प्रयत्नशील होता देखकर उसके मन में भी उड़ने के लिए जिज्ञासा जग गई। वह भी सोच में पड़ गया कि आखिर इस आकाश में है क्या? जोकि बाज अन्तिम समय में भी, इतनी बुरी दशा होने के बाद भी उड़ना चाहता था। इसलिए उसने भी मन ही मन एक बार उड़ने का निश्चय किया।
उत्तर : बाज की साहस और वीरता के लिए लहरों ने उसके सम्मान में गीत गाया। बाज ने जिस तरह अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अपना जीवन यापन किया व अपने अन्त समय भी बहादुरी का परिचय देते हुए व्यतीत किया, लहरों के लिए बहुत शिक्षाप्रद था। वह इसका प्रसार समस्त संसार में अपने गीत के माध्यम से कर देना चाहती थी ताकि समस्त संसार बाज के जीवन से प्रेरणा ले और अपना जीवन स्वतंत्रता, साहस पूर्वक बिताए व समाज में मिसाल कायम कर सके। लहरों का गीत
उन दीवानों के लिए था जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते बल्कि उसका सामना हँसकर करते हैं।
उत्तर : साँप, बाज की मूर्खता पर हँस रहा था। उसके अनुसार बाज ने अपना समस्त जीवन व्यर्थ में उड़ने में व्यतीत कर दिया था। दूसरी ओर वह उसका परम शत्रु था क्योंकि बाज के होने के कारण साँप और बाज के बीच जाति से शत्रुता होती है। घायल बाज को देखकर साँप के लिए खुश होना स्वाभाविक ही था।
उत्तर :
(1) भाँप लेना – दादाजी की गिरती साँसें देखकर माता जी ने स्थिति भाँप ली व तुरन्त डाक्टर को बुलवा लिया।
(2) हिम्मत बाँधना – कम नम्बर आने पर पिताजी ने दुबारा मेहनत करने के लिए मेरी हिम्मत बांधी।
(3) लम्बी आह भरना – ज्योति को बीमार देखकर माता जी ने
लम्बी आह भरी।
(4) मन में आशा जागना- किशन की वीरतापूर्ण बातों ने मेरे मन में आशा जगा दी।
5) प्राण हथेली में रखना- गौरव ने प्रथा की जान बचाने के लिए अपने प्राणों को हथेली में रख दिया।
उत्तर : प्रत्यय शब्द
द- सुखद, दुखद
दाता- परामर्शदाता, सुखदाता
दाई- सुखदाई, दुखदाई
देह- विश्रामदेह, लाभदेह, आरामदेह
प्रद- लाभप्रद, हानिप्रद, शिक्षाप्रद
बाज के लिए लहरों ने गीत क्यों गाया था?
बाज ने शत्रुओं से लड़ते हुए अपना कीमती रक्त बहाया था और मरते दम तक वह आकाश की ऊँचाइयों को पाना चाहता था। वह साहसी और सकारात्मक विचारधारा का था तभी तो उसे अपने जीवन से किसी प्रकार की कोई शिकायत न थी। लहरों ने उसकी इसी वीरता और बहादुरी से प्रभावित होकर गीत गाया।
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लेखक ने इस कहानी का शीर्षक कहानी के दो पात्रों के आधार पर रखा है। लेखक ने बाज और साँप को ही क्यों चुना होगा? आपस में चर्चा कीजिए।
इस कहानी में दो नायक हैं साँप और बाज। इन दोनों नायकों का लेखक ने कुशलता से चुनाव किया है। आकाश असीम है और बाज उस असीम का प्रतीक है जो स्वतंत्र भाव से आकाश की ऊँचाइयों को पा जाना चाहता है। दूसरी और साँप है जो अपनी ही बनाई सीमाओं में बंद है, उसने स्वयं ही अपने लिए परतंत्रता का दायरा कायम किया है। साथ ही लेखक ने यह भी दर्शाया है कि बाज वीर है घायल होने पर भी लंबी उड़ान की चाह रखता है जबकि साँप कायर
है जो गुफा से बाहर निकलना ही नहीं चाहता।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि लेखक ने इन दोनों नायकों के माध्यम से स्वतंत्रता-परतंत्रता एवं वीरता-कायरता के भावों को प्रकट करना चाहा है।
यही कहानी बंदर और मगरमच्छ के द्वारा भी प्रस्तुत की जा सकती है क्योंकि बंदर स्वतंत्र व निरंतर विचरण करने वाला प्राणी है। उसके लिए कोई सीमा रेखा नहीं जबकि मगरमच्छ अपने सीमित दायरे में कभी धरती व कभी पानी में जीवन व्यतीत करता है, आलसी व धीमी गति से चलने वाला प्राणी है।
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बाज ज़िंदगी भर आकाश में ही उड़ता रहा फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना क्यों चाहता था?
बाज ज़िंदगी भर आकाश में ही उड़ता रहा, फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना चाहता था क्योंकि अपने अतीत की ऊँची उड़ान भरने के सुख को वह मरने तक भूलना नहीं चाहता था। इसलिए जीवन के अंतिम क्षणों में भी उसकी उड़ने की इच्छा बलवती थी, वह आकाश के असीम विस्तार को पाना चाहता था।
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घायल होने के बाद भी बाज ने यह क्यों कहा, “मुझे कोई शिकायत नहीं है।” विचार प्रकट कीजिए।
बाज को अपने जीवन में विस्तार और वीरता में ही आनंद की प्राप्ति हुई थी इसीलिए तो घायल अवस्था में साँप की गुफा में गिरने पर उसने यही कहा कि भले ही मेरी मृत्यु पास है परंतु मुझे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं। मैंने जिंदगी को जी भरकर जिया है। दूर-दूर तक उड़ानें भरी हैं, आकाश की असीम ऊँचाइयों को छुआ है। इस प्रकार उसने व्याख्यान दिया कि जीवन भर उसने असीम सुख भोगा है जबकि साँप ने अँधेरी व सीलनभरी गुफा में ही सारा जीवन व्यतीत किया है।
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यदि इस कहानी के पात्र बाज और साँप न होकर कोई और होते तब कहानी कैसी होती? अपनी कल्पना से लिखिए।
यदि इस कहानी के नायक बंदर और मगरमच्छ होते तो कहानी निम्न संकेत बिंदुओं कै आधार पर होती-
● बंदर का एक बरगद के पेड़ पर रहना।
● मगरमच्छ का तालाब के किनारे निवास।
● बंदर का पेड़ों की डालियाँ फाँदना, लंबी छलाँगे
मारना, अपने मन से दूर जंगलों में घूमकर आना, मन चाहे व मनभावन फल खाना।
● मगरमच्छ का घंटों एक ही स्थान पर पड़े रहना, छोटा-मोटा शिकार करना, कभी-कभार तालाब में जाना, सीमित दायरे में रहना।
● एक दिन बंदर का लंगूर द्वारा घायल हो जाना, बिल्कुल चल न पाना, थककर एक पेड़ के नीचे बैठ जाना।
● मगरमच्छ का वहीं पर बैठे होना। बंदर को देखकर सहानुभूति दिखाना व लंबी छलाँगों को बेकार बताना।
● बंदर का उसकी बातें सुनकर परेशान हो जाना व हर संभव प्रयत्न करना कि वहाँ से किसी तरह भागे और पेड़ों की डालियों पर जाकर
बैठे।
● बंदर का जोर से पेड़ की डाली की ओर छलाँग लगाना।
● धप्प से नदी में गिर जाना।
● नदी की लहरों द्वारा आखों से ओझल हो जाना।
● मगरमच्छ का उस पर हैरान होना व उसे मूर्ख बताना, लेकिन यह सोचना कि पेड़ों की स्वच्छता कैसी होगी?
● मगरमच्छ द्वारा छलाँग लगाने का प्रयास लेकिन भारी शरीर का ऊपर न उठना और चोट खाकर गिरना।
● अपने सीमित दायरे को बेहतर कहना।
● नदी द्वारा बंदर की प्रशंसा का गीत गूँजना।
● मगरमच्छ का अपना-सा मुँह लेकर रह जाना।
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क्या पक्षियों को उड़ते समय सचमुच आनंद का अनुभव होता होगा या स्वाभाविक कार्य में आनंद का अनुभव होता ही नहीं? विचार प्रकट कीजिए।
प्रकृति ने पक्षियों को पंख इसलिए दिए ताकि वे हवा में उड़ते हुए आकाश के विस्तार को देख सकें व उसकी ऊँचाइयों को पा सकें। पक्षी चहचहाते हुए, कलरव करते हुए जब उड़ते हैं तो उन्हें बहुत आनंद आता है। जबकि पंख होते हुए भी कुछ पक्षी जैसे बतख, शतुरमुर्ग आदि अधिक उड़ान नहीं भर पाते। उनका सुख व आनंद नाममात्र ही होता है।
सभी पक्षी
स्वाभाविक क्रियाओं को भी आनंदपूर्वक ही पूरा करते हैं जैसे चिड़िया घोंसला बनाते हुए तिनका-तिनका एकत्रित करने में भी आनंदित होती है। पक्षी अपने बच्चों को दाना खिलाने व सुरक्षित स्थान देने में भी आनंद का ही अनुभव करते हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पक्षी भले ही लंबी उड़ान भरने में अधिक आनंदित होते हों लेकिन स्वाभाविक क्रियाएँ भी उन्हे आनंद प्रदान करती हैं।
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