दौसा जिले के गीजगढ़ की नाथ वाली ढाणी में रविवार को एक भैंस ने विचित्र भ्रूण को जन्म दिया है। जिसके सिर व पैर तो अलग-अलग हैं, लेकिन धड़ एक ही है। ऐसे में यह लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है। पशुपालन विभाग के नोडल अधिकारी डॉ. हीरालाल बैरवा ने बताया कि पशुओं में इस प्रकार के भ्रूण के जन्म की प्रक्रिया को डिस्टोकिया कहा जाता है। यह डिस्टोकिया बहुत क्रिटिकल था लेकिन डॉक्टर ने तत्परता दिखाते हुए पूरी सजगता के साथ सिर्फ 10 मिनट में भैंस के गर्भ से 2 भ्रूण निकाले। राहत की बात यह रही कि दोनों भ्रूण जिंदा बाहर निकले। गीजगढ़ क्षेत्र में संभवतया यह पहला मामला है।
डॉ. बैरवा ने बताया कि गाय-भैंस जैसे पशुओं में बच्चे देने में आने वाली इस समस्या को डिस्टोकिया कहा जाता है, जिसमें गर्भवती पशु के बच्चे का प्रसव तब कराना होता है जब उसने गर्भावस्था का पूरा कार्यकाल पूरा कर लिया हो। लेकिन पशु बिना सहायता के बछड़े को जन्म देने में सक्षम नहीं हो सकता है। अगर ऐसे में पशुओं के साथ जरा भी लापरवाही बरती जाए या उन्हें सावधानी से हैंडल नहीं किया जाता है, तो इससे भ्रूण या भैंस या दोनों की मौत तक हो सकती है।
डिस्टोकिया के कारण
डिस्टोकिया के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि आनुवांशिक, पोषण व रखरखाव, संक्रमण और या फिर चोट लगने से भी।
डिस्टोकिया के लक्षण
- गर्भवती पशु के अगर पानी की थैली दो घंटे तक दिखाई देती है और पशु कोशिश नहीं कर रहा है।
- संकुचन के कारण शारीरिक कष्ट के लक्षण, बार-बार उठना-बेठना और चक्कर काटना, लात मारना और पूंछ को घूमाना।
- जन्म देने से ठीक पहले, पशु अपनी पूंछ को उठाए हुए और आधार से चिपकाए हुई रखती है।
- ब्याने से पहले एक पीले रंग का पानी का थैला निकलेगा।
अगर इनमें से कोई भी स्थिति हो तो आपको पशुचिकित्सक की सहायता से बच्चे को बहार निकलने का शीघ्र प्रयास करनी चाहिए।
पशु पालकों कोदय्री फार्मिंग से पूरा लाभ उठाने के लिए नवजात बछडियों की उचित देखभाल व पालन-पोषण करके उनकी मृत्यु डर घटना आवश्यक है| नवजात बछडियों को स्वत रखने तथा उनकी मृत्यु डर कम करने के लिए हमें निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिए:- 1.गाय अथवा भैंस के ब्याने के तुरन्त बाद बच्चे के नाक व मुंह से श्लैष्मा व झिल्ली को साफ कर देना चाहिए जिससे बच्चे के शरीर में रक्त का संचार सुचारू रूप से हो सके|
- 2.बच्चे की नाभि को ऊपर से 1/2 इंच छोडकर किसी साफ कैंची से काट देना चाहिए तथा उस पर टिंचर आयोडीन लगानी चाहिए|
- 3.जन्म के 2 घंटे के अन्दर बच्चे को माँ का पहला दूध (खीस) अवश्य पिलाना चाहिए| खीस एक प्रकार का गढा दूध होता है जिसमें साधारण दूध की अपेक्षा विटामिन्स, खनिज तथा प्रोटीन्स की मात्रा अधिक होती है| इसमें रोग निरोधक पदार्थ जिन्हें एन्टीवाडीज कहते हैं भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं|एन्तिबडीज नवजात बच्चे को रोग ग्रस्त होने से बचाती है|खीस में दस्तावर गुण भी होते हैं जिससे नवजात बच्चे की आंतों में जन्म से पहले का जमा मल (म्युकोनियम) बाहर निकल जाता है तथा उसका पेट साफ हो जाता है| खीस को बच्चे के पैदा होने के 4-5 दिन तक नियमित अंतराल पर अपने शरीर के बजन के दसवें भाग के बराबर पिलाना चाहिए| अधिक मात्र में खीस पिलाने से बच्चे को दस्त लग सकते हैं|
- 4.यदि किसी कारणवश (जैसे माँ की अकस्मात् मृत्यु अथवा माँ का अचानक बीमार पड़ जाना आदि) खीस उपलब्ध न हो तो किसी और पशु की खीस को प्रयोग किया जा सकता है| और यदि खिन और भी यह उपलब्ध न हो तो नवजात बच्चे को निम्नलिखित मिश्रण दिन में 3-4 बार दिया जा सकता है| 300 मि.ली. पानी को उबाल कर ठंडा करके उसमें एक अंडा फेंट लें| इसमें 600 मि.ली.साधारण दूध व आधा चमच अंडी का तेल मिलाएं| फिर इस मिश्रण में एक चम्मच फिश लिवर ओयल तथा 80मि.ग्रा.औरियोमायसीन पाउडर मिलाएं| इस मिश्रण को देने से बच्चे को कुछ लाभ हो सकता है लेकिन फिर भी यह प्राकृतिक खीस की तुलना नहीं कर सकता क्योंकि प्राकृतिक खीस में पाई जाने वाली एंटीबाड़ीज नवजात बच्चे को रोग से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है| खीस पीने के दो घंटे के अन्दर बच्चा म्युकोनियम (पहला मल) निकाल देता है लेकिन ऐसा न होने पर बच्चे को एक चम्मच सोडियम बाईकार्बोनेट को एक लीटर गुनगुने पानी में घोल कर एनीमा दिया जा सकता है|
- 5.कई बार नवजात बच्चे में जन्म से ही मल द्वार नहीं होता इसे एंट्रेसिया एनाई कहते हैं| यह एक जन्म जात बिमारी है तथा इसके कारण बच्चा मल विसर्जन नहीं कर सकता और वह बाद में मृत्यु का शिकार हो जाता हैं| इस बीमारी को एक छोटी सी शल्य क्रिया द्वारा ठीक किया जा सकता है| मल द्वार के स्थान पर एक +के आकार का चीर दिया जाता है तथा शल्य क्रिया द्वारा मल द्वार म्ब्नाक्र उसको मलाशय (रेक्टम) से जोड़ दिया जात है जिससे बच्चा मल विसर्जन करने लगता है| यह कार्य पशुपालक को स्वयं न करके नजदीकी पशु चिकित्सालय में करना चाहिए क्योंकि कई बार इसमें जटिलतायें पैदा हो जाती है|
- 6.कभी-कभी बच्छियों में जन्म से ही चार थनों के अलावा अतिरिक्त संख्या में थन पाए जाते है| अतिरिक्त थनों को जन्म के कुछ दिन बाद जीवाणु रहित की हुई कैंची से काट कर निकाल देना चाहिए| इस क्रिया में सामान्यत: खून नहीं निकलता| अतिरिक्त थनों को न काटने से बच्छी के गाय बनने पर उससे दूध निकालते समय कठिनाई होती है|
- 7.यदि पशु पालक बच्चे को माँ से अलग रखकर पालने की पद्यति को अपनाना चाहता है तो उसे बच्चे को शुरू से ही बर्तन में दूध पीना सिखाना चाहिए तथा उसे मन से जन्म से ही अलग कर देना चाहिए|इस पद्यति में बहुत सफाई तथा सावधानियों की आवश्यकता होती है जिनके बिना बच्चों में अनेक बिमारियों के होने की सम्भावना बढ़ जाती है|
- 8.नवजात बच्चों को बड़े पशुओं से अलग एक बड़े में रखना चाहिए ताकि उन्हें चोट लगने का खतरा न रहे| इसके अतिरिक्त उनका सर्दी व गर्मीं से भी पूरा बचाव रखना आवश्यक है|