क्या 16 साल बाद 2036 में भारत में ओलंपिक गेम का सपना पूरा हो सकता है. इस सवाल का जवाब तो अगले कुछ महीनों में ही मिलेगा लेकिन अहमदाबाद ओलंपिक गेम की मेजबानी के लिए पूरी तरह कमर कस चुका है. इसकी तैयारी के लिए अहमदाबाद ने तैयारी करनी शुरू कर दी है. कई तरह के नए इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए जा रहे हैं. अहमदाबाद शहरी विकास प्राधिकरण (औडा) ने मंगलवार को ओलंपिक मानदंड के अनुसार स्पोर्ट्स और नॉन- स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर एनालिसिस के लिए टेंडर जारी किया है. टेंडर पर खड़ा उतरने वाली एजेंसियों को अगले तीन महीने के अंदर कंस्ट्रक्शन की रिपोर्ट तैयार करनी होगी.
2028 तक का फैसला हो चुका
दरअसल, 2028 तक के ओलंपिक मेजबान देश का फैसला हो चुका है. अब 2032 की मेजबानी के लिए अगले महीने बिड खुलने वाली है. 2020 के ओलंपिक गेम्स कोरोना के चलते 2021 में होने हैं. जापान में इसका आयोजन है. हालांकि इस पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं. 2024 ओलंपिक का आयोजन पेरिस में होने वाला है और 2028 का ओलंपिक लॉस एंजिलिस में होगा. 2032 के ओलंपिक स्थल का भी फैसला लगभग हो चुका है. ओलंपिक कमिटी ने इसके
लिए ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन को पसंदीदा स्थल माना है. हालांकि अंतिम फैसला होना अभी बाकी है.
कौन-कौन हैं 2036 के दावेदार
2036 ओलंपिक गेम के लिए जर्मनी, भारत, कतर, इंडोनेशिया, हंगरी, उत्तर और दक्षिण कोरिया तकनीकी रूप से पहले से ही कतार में हैं. इसके अलावा ब्रिटेन भी नया दावेदार हो गया है. ओलंपिक गेम के लिए जगह का चयन बहुत बारीकी से छानबीन के बाद किया जाता है. अब तक विकसित देशों में ही इसका आय़ोजन होता रहा है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से विकासशील देशों में इसे कराने की
मांग तेज होने लगी है. इसी क्रम में 2008 का ओलंपिक चीन में और 2016 का ओलंपिक ब्राजील में हुआ था. अब अगर जिन देशों में ओलंपिक नहीं हुआ है अगर उन देशों में इसके आयोजन को प्राथमिकता दी जाती है तो भारत और इंडोनेशिया इसका प्रबल दावेदार है. जिस तरह से दावे किए जा रहे हैं, उनमें भारत को इसका प्रबल दावेदार माना जाता है.
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Abhishek Mishra
7 months ago
1896 से ओलंपिक खेल का आयोजन हो रहा है लेकिन आज तक भारत में इसका आयोजन नहीं हुआ है. अब तक विकसित देशों में ही इसका आयोजन होता रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में विकासशील देशों में इसके आयोजन की मांग तेज हुई है. 2032 तक के ओलंपिक का फैसला हो चुका है और इस कड़ी में 2036 के ओलंपिक का भारत प्रबल दावेदार है.
भारत में ओलंपिक आयोजन के दावों में कितना दम?
- आदेश कुमार गुप्त
- खेल पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
24 अप्रैल 2018
इमेज स्रोत, Getty Images
पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट शहर में समाप्त हुए राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान 26 बार भारत का तिरंगा पदक मंच पर राष्ट्रीय गान के साथ लहराया.
यह इस बात का सबूत था कि भारत के खाते में इतने ही स्वर्ण पदक आ चुके हैं.
वैसे तो 20 रजत और 20 कांस्य पदकों के वितरण के समय भी भारत का तिरंगा लहराया.
यह पल ना सिर्फ खिलाड़ी को रोमांचित करते हैं, बल्कि देशवासियों को भी अभिभूत कर देते हैं. भीतर ही भीतर कुछ ऐसा महसूस होने लगता है कि उसकी पहली झलक आंखों में आंसू बनकर नज़र आने लगती है.
क्या है भविष्य की डगर?
तो क्या राष्ट्रमंडल खेलों में मिले 66 पदकों ने भारतीय ओलंपिक संघ में इतना जोश भर दिया है कि वह साल 2026 के युवा ओलंपिक खेल, 2030 के एशियाई खेल और 2036 के ओलंपिक खेलों की मेज़बानी के दावे कर रही है.
यहां तक कि इसी सिलसिले में उसने पिछले सप्ताह अंतराष्ट्रीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष थामस बाक़ और एशियाई ओलंपिक परिषद के अध्यक्ष शेख अहमद अल सबाह के साथ बैठक भी की.
भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने एक कदम आगे बढ़कर कहा कि हमें मेज़बानी मिले या नही हम दावेदारी करेंगे.
क्या ओलंपिक की मेजबानी संभव?
लेकिन पिछले रियो ओलंपिक खेलों में महज़ एक रजत और एक कांस्य पदक जीतने वाले भारत के क्या इतने बड़े खेल मेले की मेज़बानी करनी चाहिए.
हमारे सवाल का जवाब कुछ ऐसे अंदाज़ में साल 1975 में अपने गोल से मलेशिया में आयोजित हुए विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट का फाइनल जीताने और भारत को चैंपियन बनाने वाले पूर्व ओलंपियन अशोक कुमार ने दिया.
उन्होंने कहा कि पदक तालिका में हम हमेशा नीचे की तरफ रहते हैं.
भारत में सबसे अधिक खेलों के आयोजन होते है. इसमें कोई कमी या कोर-कसर नही रहती. इसके बावजूद हमें अपने खिलाड़ियों की तैयारी पर ध्यान देना चाहिए.
अगर खिलाड़ी चैंपियन बनने का यकीन दिलाए, अधिक से अधिक पदक आएं तो ओलंपिक की मेज़बानी करें. ऐसा ना हो कि स्टेडियमों में सिर्फ तालियां बजाने जाएं वह भी दूसरी टीमों के लिए.
यह सच है कि भारत में आईपीएल से लेकर विश्व हॉकी लीग, राष्ट्रमंडल, एशियाई खेल, वर्ल्ड कबड्डी लीग, ढ़ेरों क्रिकेट सिरीज़, यहां तक कि विश्व कप जैसे आयोजन भी कामयाबी से हो चुके हैं. लेकिन इनकी तुलना ओलंपिक खेलों से नहीं की जा सकती.
2010 राष्ट्रमंडल खेल हैं उदाहरण
अरबों-खरबों रुपये लगने के बाद स्टेडियम खेलों के समाप्त होने के बाद कैसे खिलाड़ियों से दूर हो जाते है इसका जीता जागता उदाहरण 2010 के बाद दिल्ली के स्टेडियम हैं, जिनका रोज़ाना का खर्चा उठाना नाकों चने चबाना जैसा है.
तो क्या भारत पदक मंच तक पहुंचने वाले खिलाड़ियों को तैयार करे और फिर उसके बाद ओलंपिक कराने की सोचे. खेल पत्रकार और बीते राष्ट्रमंडल खेलों में समीक्षक की भूमिका निभाने वाले अयाज़ मेमन का मानना है कि ओलंपिक खेल कराने से देश का मान तो बढ़ता है, खिलाड़ियों को भी प्रोत्साहन मिलता है. लेकिन ऐसा ना हो कि ओलंपिक तो हो गए लेकिन एथलीट को भूल गए. वह तो फिर फिज़ूल ही है.
अयाज़ आगे कहते है कि पहले यूथ ओलंपिक की सोचें और उसके बाद ओलंपिक की.
वैसे भी साल 2028 तक के ओलंपिक मेजबान तो तय हो चुके हैं.
छोटे-बड़े खेल मेलों में पदक हासिल करते ही खिलाड़ियों पर पैसे की बौछार होना बुरा नहीं है. लेकिन काश कि इसी बौछार की कुछ बूंदे तैयारी की उस जलती रेत पर भी पडतीं जिसमें झुलसकर खिलाड़ी तैयार होते है, तो शायद ही किसी को ओलंपिक कराने पर एतराज़ होता.
दरअसल तब यकीन भी होता कि अब हम पदक तालिका को नीचे से नही ऊपर से देखेंगे.
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