जैविक खेती का महत्व
जैविक खेती का महत्व जैविक खेती का अच्छी तरह प्रचार करने के लिए ‘जैविक कृषि विश्व कुंभ’ जैसे आयोजन काफी महत्वपूर्ण हैं, जो हाल में ग्रेटर नोएडा में हुआ है। जैविक खेती ही भारत में...
Pankajहिन्दुस्तानThu, 09 Nov 2017 11:09 PM
जैविक खेती का महत्व
जैविक खेती का अच्छी तरह प्रचार करने के लिए ‘जैविक कृषि विश्व कुंभ’ जैसे आयोजन काफी महत्वपूर्ण हैं, जो हाल में ग्रेटर नोएडा में हुआ है।
जैविक खेती ही भारत में खेती को सही दिशा दिखाने का उचित विकल्प है। जितना महत्व नई तकनीक विकसित करने को दिया जाता है, उससे ज्यादा जोर जैविक खेती पर होना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों के सहारे होने वाली खेती से मिट्टी की उर्वरा शक्ति तो क्षीण होती ही है, वातावरण में प्रदूषण भी फैलता है। आज स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए जैविक अनाज खरीदने को लोग तैयार हैं, मगर ऐसे अनाज की मात्रा कम होने के कारण ज्यादातर लोगों को यह अनाज नहीं मिल पा रहा है। इसलिए आवश्यक है कि किसानों को जैविक खेती के बारे में जागरूक किया जाए
और परंपरागत ज्ञान के आधार पर की जाने वाली खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
जयेश राणे, मुंबई, महाराष्ट्र
धुंध से बेहाल लोग
दिल्ली में हवा की स्थिति बिगड़ रही है। यहां के करीब 60 फीसदी लोग फेफड़े से जुड़ी बीमारियों से ग्रसित हैं। धुंध के चलते रेल यातायात भी प्रभावित हुआ है। दिल्ली में हर वर्ष वायु प्रदूषण के कारण सैकड़ों मौतें होती हैं। कोर्ट ने सरकारों को इस बारे में फटकार भी लगाई है, जबकि सरकारें उचित कदम उठाने में निष्फल साबित हुई हैं। प्रदूषण जनित रोगों
से मरने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। बढ़ते प्रदूषण से दिल्ली और आसपास के राज्यों की हवा जहरीली हो गई है। धुंध से अनेक दुर्घटनाएं होती हैं। बुधवार को ही एक्सप्रेस-वे पर वाहन साफ-साफ न दिखने से अनेक वाहन एक-दूसरे से टकराकर क्षतिग्रस्त हो गए। प्रदूषण से होने वाली मौतों की गति कैसे रोकी जाए, इसके लिए सरकार को आवश्यक इंतजाम करने ही होंगे।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
दिल्ली का घुटता दम
इन दिनों जर्मनी के बॉन शहर में दस दिवसीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का आयोजन हो
रहा है, जिसमें केंद्रीय मंत्री डॉक्टर हर्षवद्र्धन शिष्टमंडल के साथ भाग ले रहे हैं। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उधर सम्मलेन शुरू हुआ और इधर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के वायुमंडल में प्रदूषण के बादल छा गए। स्कूलों को बंद करना पड़ा है। नागरिकों को कई तरह के एहतियात बरतने की सलाह दी जा रही है। दिल्ली में बड़ी संख्या में लोग मास्क लगाकर बाहर निकल रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस विकट परिस्थिति के लिए आस-पास के राज्यों में जलाई जाने वाली पराली जिम्मेदार है। धान के अवशेषों को जलाने की कवायद तो केवल एक सप्ताह
के लिए होती है, लेकिन दिल्ली के वातावरण में जहरीले कण बारहों महीने कहां से आते हैं? भारत के ज्यादातर अति विशिष्ट श्रेणी के लोग यहीं रहते हैं। सैकड़ों की संख्या में दूतावास हैं। फिर भी सरकार, हाथ पर हाथ धरे बैठी है। ऐसे में, दिल्ली के लोग घुट-घुटकर मरने को बाध्य नहीं होंगे, तो और क्या होगा?
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी
अठारहवें वर्ष में उत्तराखंड
उत्तराखंड अपने 18वें साल में प्रवेश का जश्न मना रहा है। और क्यों न मनाए, अनेक उत्तराखंडी वीरों ने इस राज्य को
बनाने में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। परंतु आज की स्थिति में विकास सिर्फ सांत्वना देता दिखता है। एक ताजा सर्वेक्षण की मानें, तो पिछले 16 साल में 52 लाख लोगों ने पहाड़ छोड़ दिए। गांव के गांव खाली हो चुके हैं। कई गांव आज भी बिजली, पानी, सड़क की समस्या से जूझ रहे हैं। ये सिर्फ चुनावी मुद्दे बनकर रह गए हैं। राज्य से पलायन का मुख्य कारण बुनियादी सुविधाओं का न होना, रोजगार की कमी जैसी समस्याएं हैं। हर सरकार इन मामलों में विफल रही है। सरकार पहाड़ी क्षेत्रों के हितों के बारे में सोचे। विकास की नींव रखे और
पलायन रोके, वरना पहाड़ खाली हो जाएंगे।
लछमण पुण्डीर, श्रीनगर, उत्तराखंड
“जैविक खेती का महत्व (Jaivik Kheti ka Mahatva)” दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहा है, जिसका प्रमुख कारण है दुनिया भर में बढ़ती विभिन्न प्रकार की शारीरिक रोग, वायरस, महामारी और जिस प्रकार से कोरोना महामारी ने पुरे विश्व में स्वच्छता के साथ स्वस्थ जीवन शैली और शुद्ध खान-पान पर लोगों का ध्यान केंद्रित किया है, इससे जैविक आहार के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी है और लोग स्वयं को रासायनिक खाद और कीटनाशक खेती से स्थानांतरण कर जैविक खेती से उत्पन्न हुए आहार का सेवन कर रहें हैं।
Jaivik Kheti की महत्ता का प्रमाण हम सबको भविष्य में और अधिक देखने को मिलेगा क्यूंकि किसी भी प्रकार का नाकारात्मक प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर इसके उपभोग से नहीं होता है। अगर किसान जैविक खेती करके उत्पादन करतें हैं तो इससे सम्बंधित बनने वाले उत्पाद भी जैविक होंगे और इसका परिणाम यह होगा की मनुष्य विभिन्न रोगों से दूर रहने के साथ स्वस्थ जीवन व्यतीत करेगा क्यूंकि ‘प्राकृतिक स्वयं सर्वोत्तम उपचारक होती है’।
जैविक खेती सम्पूर्ण रूप से प्रकृति के आधीन होती है, जो की अपनी उत्पादकता का स्त्रोत स्वयं प्रकृति से ग्रहण करती है और मनुष्यों के द्वारा उस स्त्रोत के चक्र को खंडित कर उसमे रासायनिक खाद और कीटनाशक उपायों को मिलाकर उसकी शुद्धता को नष्ट कर दिया जाता है।
और पढ़ें:- भारतीय कृषि में खड़ी खेती।
- जैविक खेती किसे कहतें हैं?
- जैविक खेती के प्रकार।
- जैविक खेती के फायदे और नुक्सान।
- जैविक खेती के फायदे।
- जैविक खेती के नुक्सान।
- जैविक खेती के लाभ।
- निष्कर्ष।
जैविक खेती किसे कहतें हैं?
Jaivik Kheti एक ऐसी कृषि प्रक्रिया है जहाँ किसानों के द्वारा खेत में फसलों के उत्पादन के लिए प्राकृतिक प्रक्रिया के जरिये जानवरों और पौधों के अपशिस्ट से प्राप्त किये गए जैविक उर्वरक, कीट नियंत्रण और हरी खाद का उपयोग किया जाता है। जैविक खेती का उपयोग भूमि की उत्पादन क्षमता को समाप्त होने से बचाती है, जो की रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग करने से नष्ट हो जाती है और साथ ही यह पर्यावरण को भी नुक्सान पहुँचाती है।
जैविक खेती का अभ्यास हमारी प्रकृति में प्राचीन काल से ही किया जाता है लेकिन आधुनिक समय में इसकी महत्ता कम होने लगी थी, जिसके लिए जिम्मेदार कारक हैं:-
- पृथ्वी पर बढ़ती जनसँख्या के कारण हमे सभी मनुष्यों की उपभोग क्षमता की पूर्ति करनी थी, जिसके लिए रासायनिक खाद का उपयोग खेती में करना पड़ा।
- रासायनिक खाद के उपयोग से उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई, जिसके कारण किसान अपनी आर्थिक स्तिथि को बेहतर बनाने के लिए इसका उपयोग करने लगे।
जैविक खेती के प्रकार।
जैविक खेती दो तरीके से अभ्यास किये जातें हैं:-
- शुद्ध जैविक खेती-> इस खेती में अप्राकृतिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। शुद्ध जैविक खेती पूर्ण रूप से प्राकृतिक स्त्रोतों से प्राप्त किये गए उर्वरक और कीटनाशक से की जाती है, जिसकी उत्पादकता बिलकुल शुद्ध होती है।
- एकीकृत जैविक खेती-> एकीकृत जैविक खेती में आवश्यकताओं और मांगों की स्तिथि को ध्यान में रखकर किट प्रबंधन और पोषक तत्वों के प्रबंधन का एकीकरण शामिल होता है।
Jaivik Kheti का प्रसार हमारे भारत में तेजी से हो रहा है और भारतीय किसान भी इसे अब अपना रहें हैं क्यूंकि जैविक उत्पाद की मांग केवल भारत तक ही सिमित नहीं है बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसकी मांग में बढ़ोतरी हुई है और भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए यह एक सुनहरा अवसर है की हम जैविक खेती में अपनी सर्वोचत्ता प्रस्तुत करे और ऐसा हुआ भी है क्यूंकि ‘जैविक खेती करने वाले किसानो की संख्या में भारत पुरे विश्व में पहले स्थान पर है और साथ ही जैविक खेती के लिए क्षेत्रफल में भारत नौवाँ स्थान पर है’।
भारतीय राज्य सिक्किम पूर्ण रूप से जैविक खेती को अपनाने वाला विश्व का पहला राज्य बन गया है और उत्तराखण्ड-त्रिपुरा भी इस उपलब्धि को प्राप्त करने में लगें हुए हैं। जैविक खेती के प्रति भारत अपनी अग्रसरता कायम करके सतत विकास लक्ष्य के ‘लक्ष्य-2 और लक्ष्य-3 की भी पूर्ति कर रहा है, जो की भुखमरी खत्म करने और अच्छे स्वास्थ्य और सबके कल्याण’ के बारे में बात करता है साथ ही यह खाद्य सुरक्षा, बेहतर पोषण हासिल करना और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देता है।
और पढ़ें:- भारतीय किसान हमारे अन्न देवता।
जैविक खेती के फायदे और नुक्सान।
हालाँकि, Jaivik Kheti किसी भी प्रकार से नुक्सान नहीं पहुँचाता है क्यूंकि इससे होने वाले फायदे तो अनेक हैं लेकिन रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक अथवा कारखाने में होने वाली खेती की तुलना में यह फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ा देता है, इसलिए किसान फसलों की अधिक पैदावार के लिए जैविक खेती को नज़रअंदाज़ करतें हैं।
जैविक खेती के फायदे।
- जैविक खेती भूमि की उत्पादन क्षमता को नष्ट होने से बचाती है और उसे बरकरार रखती है, जो की कृषि क्षेत्र के सतत विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
- फसलों के उत्पादन के लिए जैविक खेती अपने स्त्रोतों को प्रकृति से हासिल कर लेता है, जिसके कारण जैविक खेती किसी भी प्रकार से महँगा नहीं होता है और साथ ही यह किसानों को अच्छी कमाई भी प्रदान करती है।
- जैविक खेती की बढ़ती मांग के कारण यह भारत के किसानों के साथ भारत की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा क्यूंकि जैविक उत्पादों की मांग वैश्विक स्तर पर भी बढ़ चुकी है।
- जैविक खेती पूरी तरह से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से मुक्त होती है, जिससे पर्यावरण को नुक्सान नहीं पहुँचता है।
- जैविक खेती पूर्ण रूप से प्राकृतिक स्त्रोतों पर केंद्रित होती है, जिसका नाकारात्मक प्रभाव मानव शरीर पर शुन्य हो जाता है, जिसके कारण मानव पौष्टिक भोजन और एक स्वस्थ जीवन का निर्वाह कर सकता है।
जैविक खेती के नुक्सान।
- जैविक खेती कम उत्पादकता प्रदान करता है, जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर फसलों के उत्पादन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
- जैविक खेती में फसलों की उत्पादन बड़े पैमाने पर ना होने के कारण किसानों की आय में कमी आती है और साथ ही भारत की जनसँख्या के खाद्य की मांग को भी पूरा करने में कठिनाई आती है।
- जैविक खेती से उत्पादित सब्जियां और फल ज्यादा महँगे होतें हैं क्यूंकि बाजार में इसकी मांग अधिक है और उत्पादन कम।
- जैविक खेती सीमित उत्पादन का विकल्प प्रदान करती है और बेमौसमी फसलों का उत्पादन किसान जैविक में नहीं कर पातें हैं।
जैविक खेती के लाभ।
- जैविक खेती कृषि के सतत विकास को बढ़ावा देती है जो अप्रत्यक्ष रूप से सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में योगदान करती है।
- जैविक खेती पोषण, स्वस्थ और स्वादिष्ट भोजन का अच्छा स्रोत प्रदान करती है, जिससे लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ती है और जनसंख्या में कुपोषण कम होता है।
- जैविक खेती मिट्टी की उत्पादकता को बनाए रखती है क्योंकि यह रासायनिक उर्वरकों और हानिकारक कीटनाशकों का उपयोग नहीं कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप शून्य मिट्टी और जल प्रदूषण होता है जो हमारे पर्यावरण का संरक्षण करता है।
- यह रोजगार के अवसर पैदा करता है क्योंकि जैविक खेती श्रम प्रधान है और जैविक खेती और इसके संबंधित उत्पादों के निर्माण के क्षेत्र में भी स्टार्टअप तेजी से बढ़ रहे हैं।
और पढ़ें:- प्रकृति का महत्व।
निष्कर्ष।
Jaivik Kheti देश को बहुलाभ प्रदान कर सकती है, यह लोगों को शारीरिक रूप से, आर्थिक रूप से, पर्यावरण को सकारात्मक रूप से फायदा पहुचायेगा, जिस प्रकार प्राचीन काल के लोग जैविक खेती पर निर्भर रहकर स्वस्थ और खुशनुमा जीवन व्यतीत करते थें। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए देश में सरकार के द्वारा भी किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए सहायता और रसायन मुक्त खेती को प्रोत्साहित करने के लिए 2015 में ‘मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्ट रीजन (MOVCD) और परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY)’ नामक दो समर्पित कार्यक्रम शुरू किए गए थे।
भारत में आज जैविक कृषि के क्षेत्र में बहुत से नए स्टार्टअप्स सामने निकल कर आ रहें हैं, जो की देश के युवाओं के सामने जैविक कृषि के क्षेत्र में नए-नए आधुनिक अवसर प्रदान कर रही है। जहाँ स्टार्टअप्स के द्वारा जैविक खेती के साथ-साथ मछली पालन और पशु पालन भी किया जा रहा है।
भारत सरकार के सामने Jaivik Kheti के क्षेत्र में एक बहुत ही महत्वपूर्ण चुनौती है ‘जनसँख्या’ क्यूंकि भारत देश की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है और क्या भारत जैविक खेती को अपनाने के बाद अपनी आबादी के खाद्य की मांग की आपूर्ति कर पायेगा। इसलिए भारत सरकार को इसपर विचार करने के साथ-साथ काम करने की भी जरुरत है।
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