- भारतीय संविधान में क्या है प्रस्तावना का मतलब
- संविधान में क्या महत्व रखती है प्रस्तावना
- जानें- प्रस्तावना संविधान में कहां से ली गई
26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान पारित हुआ और 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ. बाबासाहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर को भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है. वे संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष थे.
भारत का संविधान लिखित संविधान है. इसकी शुरुआत में एक प्रस्तावना भी लिखी है, जो संविधान की मूल भावना को सामने रखती है. क्या आप प्रस्तावना के बारे में जानते हैं? पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसमें संशोधन किया था. संविधान को समझने से पहले समझिए आखिर प्रस्तावना है क्या और इसे उद्देशिका भी क्यों कहा जाता है?
प्रस्तावना से तात्पर्य है भारतीय संविधान के जो मूल आदर्श हैं, उन्हें प्रस्तावना के माध्यम से संविधान में समाहित किया गया. इन आदर्शों को प्रस्तावना में उल्लेखित शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है.
प्रस्तावना को कैसे लाया गया?
संविधान सभा द्वारा संविधान का निर्माण किया गया था. संविधान सभा में जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर 1946 को एक उद्देशिका पेश की थी. जिसमें बताया गया था कि किस प्रकार का संविधान तैयार किया जाना है.
इसी उद्देशिका से जुड़ा हुआ जो प्रस्ताव था वह संविधान निर्माण के अंतिम चरण प्रस्तावना के रूप में संविधान में शामिल किया गया. इसी कारण प्रस्तावना को उद्देशिका के नाम से भी जाना जाता है.
संविधान में प्रस्तावना कहां से ली गई?
भारतीय संविधान में प्रस्तावना का विचार अमेरिका के संविधान से लिया गया है. वहीं प्रस्तावना की भाषा को ऑस्ट्रेलिया संविधान से लिया गया है. प्रस्तावना की शुरुआत "हम भारत के लोग" से शुरू होती है और "26 नवंबर 1949 अंगीकृत" पर समाप्त होती है.
ये है प्रस्तावना
"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० "मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं."
आपको बता दें, प्रस्तावना में विभिन्न प्रकार के शब्दों के समाहित किया गया है. जिसमें से प्रस्तावना को जुड़े हुए तीन पक्षों को निकालकर इसके बारे में विस्तार से जान सकते हैं.
1. संविधान के स्रोत
संविधान के स्रोत "हम भारत के लोग" यानी भारत की जनता. भारत के लोग ही वो शक्ति हैं जो संविधान को शक्ति प्रदान करती है.
2. स्वरूप
प्रस्तावना में जो प्रारंभिक पांच शब्द है.
1. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न
2. समाजवादी
3. पंथनिरपेक्ष
4. लोकतंत्रात्मक
5. गणराज्य
आपको बता दें, ये पांच शब्द हमारे संविधान के स्वरूप को इंगित करते हैं. वहीं जो प्रस्तावना के अंतिम पांच शब्द वह इसके उद्देश्य को दर्शाते हैं.
1. न्याय (समाजिक,आर्थिक, राजनीतिक स्तर पर न्याय की बात की गई है)
2. स्वतंत्रता
3. समता
4. व्यक्ति की गरिमा
5. राष्ट्र की एकता, अखंडता
6. बंधुता
जानें- प्रस्तावना में दिए गए शब्दों का मतलब
1. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न
इसका मतलब है कि भारत अपने आंतरिक और बाहरी निर्णय लेने के लिए स्वंतत्र है. यानी तब से भारत पर ब्रिटिश सरकार का नियत्रंण नहीं रहा था.
2. समाजवादी
संविधान वास्तव में समाजवादी समानता की बात करता है. जिसका मतलब है भारत में रह रहे हर नागरिक को महसूस हो कि वह एक समान हैं. भारत ने 'लोकतांत्रिक समाजवाद' को अपनाया है. वह महात्मा गांधी और नेहरू के विचारों से प्रेरित है.
3. पंथनिरपेक्ष
पंथनिरपेक्ष से तात्पर्य है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है. जो भी धर्म होगा वह भारत की जनता का होगा. जिसमें सरकार की ओर से कोई रोक-टोक नहीं होगी.
4. लोकतंत्रात्मक
लोकतंत्रात्मक का अर्थ है ऐसी व्यवस्था जो जनता द्वारा जनता के शासन के लिए जानी जाती है.
5. गणराज्य
गणराज्य यानी गणतंत्र सिस्टम. गणतंत्र का तात्पर्य है, ऐसी शासन व्यवस्था जिसका जो संवैधानिक/ वास्तविक प्रमुख होता है वह जनता द्वारा चुना जाता है वह वंशानुगत नहीं होगा. यानी राजा का बेटा सीधे राजा न बने. वह जनता के द्वारा प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष या किसी और माध्यम से चुना जाए, लेकिन वंशानुगत माध्यम से नहीं.
जानें- प्रस्तावना के आखिरी शब्दों का मतलब
1. न्याय (समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्तर पर न्याय की बात की गई है)
समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्तर पर भारत के संविधान के तहत न्याय दिया जाएगा, लेकिन धार्मिक स्तर पर न्याय नहीं दिया जाएगा. क्योंकि भारत से संविधान में पंथनिरपेक्ष की बात की गई है. जिसमें राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है.
2. स्वतंत्रता
स्वतंत्रता का अर्थ है कि भारत के नागरिक को खुद का विकास करने के लिए स्वतंत्रता दी जाए ताकि उनके माध्यम से देश का विकास हो सके.
3. समता
समता यहां समाज से जुड़ी हुई है. जिसमें आर्थिक और समाजिक स्तर पर समानता की बात की गई है.
4. व्यक्ति की गरिमा
इसके तहत भारतीय जनता में गरिमा की बात की जाती है. जिसमें भारतीय जनता को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है.
5. राष्ट्र की एकता, अखंडता
भारत विविधता में एकता वाला देश है. जो भारत की विशेषता है. जिसे बनाए रखने के लिए प्रस्तावना में कहा गया है.
6. बंधुता
इससे तात्पर्य है सभी भारतीय नागरिकों में आपसी जुड़ाव की भावना पैदा होना. इन सभी बातों को प्रस्तावना के माध्यम से संविधान का उद्देश्य बताया गया है.