बहन को वीरता पुरस्कार मिलने पर बधाई संदेश - bahan ko veerata puraskaar milane par badhaee sandesh

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CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Term 2 Set 1 with Solutions

समय: 2 घंटे
पूर्णांकः 40

सामान्य निर्देश:

  • इस प्रश्न-पत्र में दो खंड हैं-खंड ‘क’ और खंड ‘ख’
  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं, यथासंभव सभी प्रश्नों के उत्तर क्रमानुसार ही लिखिए।
  • लेखन कार्य में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखिए।
  • खण्ड ‘क’ में कुल 3 प्रश्न हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए इनके उपप्रश्नों के उत्तर दीजिए।
  • खण्ड ‘ख’ में कुल 4 प्रश्न हैं, सभी प्रश्नों के साथ विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार विकल्प का ध्यान रखते हुए चारों प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

खण्ड – ‘क’
(पाठ्य पुस्तक व पूरक पाठ्य पुस्तक) (अंक 20)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए (2 x 4 = 8)
(क) ‘फ़ादर कामिल बुल्के संकल्प से संन्यासी थे, मन से नहीं।’ लेखक के इस कथन के आधार पर सिद्ध कीजिए कि फ़ादर का जीवन परंपरागत संन्यासियों से किस प्रकार अलग था?
उत्तरः
संन्यासी एक ऐसा व्यक्ति होता है जो मोह-माया, धन-संपत्ति से अलग वैराग्य जीवन व्यतीत करे, पर फ़ादर बुल्के एक संन्यासी की परंपरागत छवि से बिल्कुल अलग थे। वे संकल्प से संन्यासी थे मन से नहीं। उन्हें अपने आत्मीयजनों से गहरा लगाव था। वह सभी धार्मिक अनुष्ठानों उत्सवों, संस्कारों आदि में परिवार के एक बड़े-बुजुर्ग की तरह शामिल होकर अपने से छोटों को आशीर्वाद देते। संन्यासी अपने मोह-माया के बंधनों को तोड़ता है, वहीं फादर बुल्के किसी से भी अपने संबंध तोड़ते नहीं थे। काफी समय बाद भी किसी से जब भी मिलते थे तो उसी अपनत्व की भावना से मिलते थे जो वर्षों पहले महसूस कराते थे। वे सभी के सुख-दुःख में समान रूप से साथ देते थे। उनकी आँखों में वात्सल्य-भाव तैरता नज़र आता था, जिस कारण लोगों का उनसे जुड़ाव था। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण फादर बुल्के परंपरागत संन्यासी की छवि से बिल्कुल अलग थे।

(ख) फ़ादर की उपस्थिति लेखक को देवदार की छाया के समान क्यों लगती थी? पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तरः
देवदार का वृक्ष विशाल एवं छायादार होता है, फादर बुल्के का व्यक्तित्व भी देवदार वृक्ष की तरह विशाल था। फादर बुल्के भी समान रूप से सभी पर अपना प्रेम लुटाते थे। उनकी शरण में जो कोई भी आता था, उसे शांति और सुकून मिलता था। जिस प्रकार देवदार वृक्ष की छाया में अनेक छोटे-बड़े पौधों का विकास होता है उसी प्रकार फ़ादर बुल्के का हृदय ममता, करुणा एवं अपनेपन से भरा था। उनकी नीली आँखें वात्सल्य से परिपूर्ण थीं। वे सभी के पारिवारिक उत्सवों और अनुष्ठानों में शामिल होते तो लगता था घर का कोई बड़ा शामिल हुआ है। उनकी शरण में शांति और सुकून मिलता था इसलिए उन्हें देवदार के वृक्ष के समान माना गया है। उनकी छत्रछाया में लेखक तथा उनकी परिवारीजन एवं मित्रों को स्नेह एवं वात्सल्य की प्राप्ति होती थी। इन्हीं कारणों से लेखक ने दार्शनिक अंदाज में फ़ादर की उपस्थिति को देवदार की छाया माना है।।

(ग) क्या सनक सकारात्मक भी हो सकती है? सकारात्मक सनक की जीवन में क्या भूमिका हो सकती है? सटीक उदाहरणों द्वारा अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
हाँ, सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। सनक का अर्थ है धुन का पक्का होना। लगन, मेहनत तथा ईमानदारी से किसी काम को पूरा करने की ललक ही सकारात्मक सनक का रूप है। जब कोई समाज कल्याण के लिए, देश के लिए, समाज और संपूर्ण मानव जाति के लिए नि:स्वार्थ भाव से कार्य करता है तो इन कार्यों को करने के लिए सनक का होना जरूरी है, क्योंकि बिना सनक के कोई महान कार्य पूर्ण नहीं हो सकता। देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले भी सनकी थे, देश में आने वाले परिवर्तनों को लाने वाले महामात्य भी सनकी थे। मान-प्रतिष्ठा का ध्यान ना देते हुए केवल समाज के कल्याण के बारे में सोचने वाले नवाब आसिफुद्दौला कुशल शासक के साथ-साथ बड़े दयालु थे। उन्हें प्रजा के लिए सनक चढ़ी थी। अकाल के समय उन्होंने बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण करवाया था। बताया जाता है कि दिन में जो काम होता था उसे रात में ढहा दिया जाता था, ताकि प्रजा को अनाज के रूप में ज्यादा लाभ मिल सके। इसी प्रकार सभी दरवाजे और बड़ा इमामबाड़ा को बनवाने का काम 2 साल तक चला, जिसमें करीब 2 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, इस तरह अपनी सनक के कारण उन्होंने प्रजा के आत्मसम्मान को बिना चोट पहुँचाए उनकी मदद की।

(घ) ‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक की सार्थकता तर्क सहित सिद्ध कीजिए।
उत्तरः
‘लखनवी अंदाज’ में लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग पर व्यंग्य किया है। इस रचना में ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है जो वास्तविकता से दूर भागते हैं और अपनी बनावटी जीवनशैली का गर्व से लोगों के सामने दिखावा करते हैं। वे अपने वास्तविक सत्य को दिखाना नहीं चाहते। इस कहानी में यशपाल जी ने अपनी झूठी शान दिखाने वाले नवाबों पर करारा व्यंग्य किया है। जिस प्रकार नवाब साहब ने सिर्फ लेखक को दिखाने के लिए खीरा बिना खाये सिर्फ सूंघकर फेंक दिया। वह नवाबों की नवाबी दिखाने की सनक का ही उदाहरण है। अतः यह शीर्षक एकदम उपयुक्त है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए (2 x 3 = 6)
(क) ‘उत्साह’ कविता के शीर्षक की सार्थकता तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
‘उत्साह’ निराला जी द्वारा रचित संकेतात्मक एवं प्रतीकात्मक कविता है। बादल निराला जी का प्रिय विषय है। बादल एक ओर पीड़ित की प्यास बुझाता है तो दूसरी ओर नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति की चेतना को संभव करने वाला है। गरजता हुआ बादल उत्साह से परिपूर्ण होता है, वह अपने अंदर छिपी विद्युत शक्ति से गर्जन करने की क्षमता रखता है। कवि समाज में बादलों के माध्यम से क्रांति लाना चाहते हैं। बादलों से मन में उत्साह उत्पन्न होता है, इसलिए कवि ने कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रख दिया है।

(ख) इस सत्र में पढ़ी गई किस कविता में फागुन के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है? उसे अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तरः
इस सत्र में ‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि ने फागुन के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है। ‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि ने अपने अंतर्मन के भावों को व्यक्त करते हुए फागुन के अनूठे सौंदर्य का वर्णन किया है। फागुन का समय और वातावरण मानव हृदय को रोमांचित कर देता है। बालक, वृद्ध सभी फागुन की मस्ती में लीन होकर झूमने-नाचने लग जाते हैं। चारों ओर सुगंधित फूल खिले होते हैं। फागुन की सुंदरता प्रकृति पर अनेक रूपों में देखी जा सकती है और जन-मन उससे प्रभावित होता है। फागुन की सुगंधित हवा जन-जन के अंदर सेमांच भर देती है, पेड़ पुष्पित एवं पल्लवित हो जाते हैं, पक्षी भी पंख फैलाकर उड़ने के लिए व्याकुल हो जाता है, सृष्टि का कण-कण उत्साह में डूब जाता है। फागुन की शोभा जगह-जगह छा जाती है। स्वयं कवि भी फागुन के सौंदर्य में डूब जाते हैं। फागुन की सुंदरता ऐसी है जिसे शब्दबद्ध भी नहीं किया जा सकता।

(ग) इस सत्र में पढ़ी गई किस कविता में कोरी भावुकता न होकर जीवन में संचित किए अनुभवों की अनिवार्य सीख है? कविता के नाम के साथ कथन की पुष्टि के लिए उपयुक्त तर्क भी प्रस्तुत कीजिए। उत्तरः
ऋतुराज द्वारा रचित ‘कन्यादान’ में कोरी भावुकता नहीं बल्कि माँ के संचित अनुभव की पीड़ा की प्रमाणिकता अभिव्यक्त है। इस छोटी सी कविता में स्त्री जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति हुई है। यह कविता आधुनिक समाज को आइना दिखाती है। यह कविता नारी को अपने अस्तित्व की रक्षा करने, आत्मसम्मान की रक्षा करने तथा अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित करती है। माँ अपने अनुभव से स्वयं सीख कर पुत्री को लीक से हटकर शिक्षा दे रही है। उसकी शिक्षा, शिक्षा के परंपरागत आदर्श रूप से हटकर है। कन्यादान कविता की माँ अनुभवी है, अतः कविता में केवल भावुकता ही नहीं बल्कि माँ के संचित अनुभव एवं उनकी पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति है। माँ जानती है कि उसकी पुत्री को दुनियादारी की समझ नहीं है, माँ की चिंता है कि कहीं प्यार के छलावे में आकर ससुराल वालों की जायज या नायायज इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए बेटी को मनमाने अत्याचार सहन ना करना पड़े इसलिए वह अपनी बेटी को मजबूत बनाना चाहती है। वह बेटी को गहनों व वस्त्रों के बंधन तथा शोषण का पात्र ना बनने के प्रति भी सचेत करती है। वह दहेज के कारण जलाए जाने के खतरे के प्रति भी उसे आगाह करती है। माँ की इन सीखों से सिद्ध होता है कि कन्यादान कविता का नाम अपने आप में परिपूर्ण है एवं कन्यादान कविता की माँ परंपरागत माँ से बिल्कुल अलग है।

(घ) इस सत्र में पढ़ी गई किस कविता की अंतिम पंक्तियाँ आपको प्रभावित करती हैं और क्यों? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
मुझे ऋतुराज जी द्वारा रचित ‘कन्यादान’ की अंतिम 2 पंक्तियाँ काफी प्रभावित करती हैं “माँ ने कहा लड़की होना, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना”- ये दो पंक्तियाँ अपने आप में काफी प्रभावशाली हैं। माँ के जीवन का अनुभव यह बताता है कि लड़की जैसी दिखाई देने पर ही उस पर अत्याचार किए जाते हैं। वह अपनी बेटी को जीवन की वास्तविकता से परिचित करा कर उसे साहसी बनने की प्रेरणा देती है। माँ के जीवन का यह अनुभव/सीख जो वो अपनी बेटी को दे रही हैं एकदम वास्तविक है तथा व्यावहारिक हैं। आज के समय में महिलाओं की जो स्थिति है उससे उबरने के लिए यह सीख हर बेटी के लिए आवश्यक है इसलिए ये पंक्तियाँ मुझे प्रिय हैं तथा प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में लिखिए (3 x 2 = 6)
(क) ‘माता का अंचल’ पाठ में वर्णित बचपन और आज के बचपन में क्या अंतर है? क्या इस अंतर का प्रभाव दोनों बचपनों के जीवन मूल्यों पर पड़ा है? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
माता का अंचल पाठ में वर्णित बचपन और आज के बचपन में काफी अंतर है। इस पाठ में वर्णित बचपन में; बचपन में खेले जाने वाले खेल, कौतूहल, माँ की ममता, पिता का दुलार आदि शामिल है। आज के बचपन में कृत्रिमता का समावेश है। इस पाठ में गाँव के जीवन और संस्कृति का प्राकृतिक चित्रण है जबकि आज के बचपन में शहरीपन का रंग समाया हुआ है। गाँव में माता-पिता बच्चों के खेलने, सुलाने, खिलाने आदि पर विशेष ध्यान देते थे जबकि आज के बचपन में माता-पिता दोनों ही व्यस्त होने के कारण बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे सकते बल्कि अपने घर की सेविकाओं को अपने बच्चों के साथ रखते हैं। उन्हें आधुनिक खिलौने, खेल सामग्री, कंप्यूटर, मोबाइल, लैपटॉप, टैब आदि उपकरण देकर व्यस्त करते हैं। आज का समय सुरक्षा की दृष्टि से भी भिन्न है। पाठ में वर्णित बचपन में बच्चे अपने संगी-साथियों के साथ खेलते हैं लेकिन आजकल बच्चे अकेले रहने के अभ्यस्त होने लगे हैं। जीवन शैली में बदलाव होने, आस-पड़ोस के लोगों में घनिष्ठता घटने के कारण आज बच्चे पड़ोस तथा मोहल्ले में भी खेलने नहीं जा पाते और अब इस महामारी के दौर में लोगों के मेलजोल में आई कमी के कारण बच्चों का बचपन एवं पारिवारिक घनिष्ठता भी समाप्त होती जा रही है। परिवार के बड़ों का सही मार्गदर्शन ना मिलने के कारण बच्चों में अच्छे जीवन मूल्यों का विकास नहीं हो पा रहा है।

(ख) ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करते हुए बताइए कि मानसिक पराधीनता से मुक्ति पाना क्यों आवश्यक है?
उत्तरः
प्रस्तुत व्यंग्य ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ में दर्शाया गया है कि नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा की द्योतक है। जॉर्ज पंचम की मूर्ति भारत पर विदेशी शासन की प्रतीक थी और कटी हुई नाक ब्रिटिश शासन के अपमान की प्रतीक थी। सच्चे देशवासियों ने कभी भी जॉर्ज पंचम की नीतियों को स्वीकार नहीं किया परंतु रानी एलिजाबेथ के आगमन से सभी बड़े-बड़े सरकारी अधिकारी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध अपना रोष व्यक्त ना कर उनके स्वागत की तैयारियों में जुट गए, जबकि उनका मान सम्मान भारतीय नेताओं यहाँ तक कि बलिदानी बच्चों से भी अधिक ना था। उनकी नाक भारतीयों की नाक से भी छोटी थी, फिर भी सरकारी अधिकारी उसकी नाक बचाने के लिए लगे रहे और इस कार्य में लाखों-करोड़ों रुपए पानी की तरह बर्बाद करते हैं। अंत में किसी जीवित व्यक्ति की नाक काट कर जॉर्ज पंचम की नाक पर लगा दी गई। पूरी प्रक्रिया द्वारा भारतीय जनता के आत्मसम्मान पर करारी चोट की गई है एवं हमारी मानसिक पराधीनता को दर्शाया गया है। इससे केवल दिखावे के लिए या दूसरों को खुश करने के लिए अपनों को नुकसान पहुँचाया गया है और ऐसा करना देश के सच्चे विकास के लिए हानिकारक है। अतः देश के सही विकास और भ्रष्टाचार से छुटकारे के लिए इस मानसिक पराधीनता से मुक्ति पाना अति आवश्यक है।

(ग) नदी, फूलों, वादियों और झरनों के स्वर्गिक सौंदर्य के बीच किन दृश्यों ने लेखिका के हृदय को झकझोर दिया? ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तरः
नदी, फूलों, वादियों और झरनों के स्वर्गिक सौंदर्य के बीच कुछ ऐसे दृश्य लेखिका को दिखे, जिसने उनके हृदय को झकझोर दिया जैसे पत्थर तोड़ती औरतें जिन्होंने अपनी पीठ पर अपने बच्चों को बाँधा हुआ था। वे शरीर से कोमल लग रही थी पर उनके हाथों में कुदाल और हथौड़े थे। कई औरतों की पीठ पर बनी टोकरी में उनके बच्चे थे। लेखिका को लगा कि स्वर्गिक सौंदर्य नदी, फूलों और वादियों के बीच भूख, मौत, दीनता और जिंदा रहने की यह जंग जारी है। स्त्रियाँ किस प्रकार मातृत्व एवं श्रम साधना जैसी विपरीत जिम्मेदारियों का निर्वाह साथ-साथ कर रही हैं। उनके फूले हुए पांव और इन पत्थर तोड़ती पहाड़िनों के हाथों में पड़ी गांठे एक ही कहानी कहती हैं कि साधारण लोगों का जीवन हर स्थान पर एक जैसा ही है। एक वक्त की रोटी के लिए उन्हें बहुत कुछ कर गुजरना पड़ता है और यह हालात केवल मैदानों में ही नहीं बल्कि पहाड़ों में भी है।

खण्ड – ‘ख’
(रचनात्मक लेखन खंड) (अंक 20)

प्रश्न 4.
निम्नलिखित अनुच्छेदों में से किसी एक विषय पर संकेत-बिंदुओं के आधार पर लगभग 150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए- (5)
(क) कोरोना काल और ऑनलाइन पढ़ाई संकेत बिन्दुःभूमिका, लॉकडाउन की घोषणा, ऑनलाइन कक्षाओं का आरंभ, इसके लाभ, ऑफलाइन कक्षाओं से तुलना, तकनीकी से जुड़ी बाधाएँ, निष्कर्ष।
उत्तरः
दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान से शुरू हुआ कोविड-19 या कोरोना वायरस अत्यंत सूक्ष्म किंतु घातक वायरस है। इस वायरस ने विश्व के अनेक देशों में लाखों करोड़ों लोगों को अकाल मृत्यु का शिकार बना दिया है। इस वायरस के कारण पूरे विश्व में लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। कोरोना के संक्रमण को तेजी से फैलने से रोकने हेतु सरकार द्वारा समय-समय पर लॉकडाउन घोषित किया गया। सभी सार्वजनिक स्थल होटल, सिनेमा हॉल आदि बंद कर दिए गए। सभी शिक्षण संस्थाएँ बंद करके विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा प्रदान की जा रही है। ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से आज बच्चे शिक्षा ले रहे हैं पर यह सभी तक समान रूप से पहुँच नहीं रही है। इससे बच्चे घर पर ही अपने शिक्षकों की ऑनलाइन शिक्षा सेवा द्वारा शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं परंतु दूरदराज जहाँ इंटरनेट की सुविधा नहीं है वहाँ के बच्चों के लिए यह शिक्षा प्रभावकारी नहीं है जिससे उन्हें काफी हद तक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ज्यादा से ज्यादा इंटरनेट के माध्यम से बच्चों को शिक्षा देने के कारण बच्चों का पढ़ाई के प्रति रुझान भी कम होता जा रहा है। इंटरनेट की सुविधा हर जगह सुचारू रूप से उपलब्ध नहीं है और ग्रामीण व आर्थिक रूप से कमजोर छात्र मोबाइल व लैपटॉप ना होने के कारण इन कक्षाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। अतः अब ईश्वर से निवेदन है कि जल्द से जल्द यह महामारी जाए ताकि हमारी शिक्षा व्यवस्था दोबारा से पटरी पर आ जाए।

(ख) मानव और प्राकृतिक आपदाएँ संकेत बिन्दुःभूमिका, प्रकृति और मानव का नाता, मानव द्वारा बिना सोचे-विचारे प्रकृति का दोहन, कारण एवं प्रभाव, प्रकृति के रौद्र रूप के लिए दोषी कौन, निष्कर्ष।
उत्तरः
प्रकृति और मानव का नाता बहुत पुराना है। समय-समय पर मानव ने अपने लाभ के लिए बिना सोचे विचारे प्रकृति को अपने अनुसार ढालने की कोशिश की है और जिसका हर्जाना स्वयं मानव को ही देना पड़ा है। प्रकृति ने बिना विचारे मानव को बहुत कुछ दिया है परंतु अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए मानव ने प्रकृति को हमेशा ही नुकसान पहुँचाया है। प्राकृतिक आपदा अपने साथ बहुत सारा विनाश लेकर आती है। इससे धन-जन का भारी नुकसान होता है। मकान, घर, इमारतें, पुल, सड़कें टूट जाती हैं। करोड़ों रुपये का नुकसान हो जाता है। रेल, सड़क, हवाईमार्ग बाधित हो जाते हैं। वन्य जीव नष्ट हो जाते हैं, वातावरण प्रदूषित हो जाता है। वन नष्ट हो जाते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है। जिस शहर, देश में भूकंप, बाढ़, सुनामी, तूफान, भूस्खलन जैसी आपदा आती है वहाँ पर सब कुछ नष्ट हो जाता है। लाखों लोग बेघर हो जाते हैं। फोन सम्पर्क टूट जाता है। जलवायु परिवर्तित हो जाती है। लाखों लोग अचानक से काल के गाल में समा जाते हैं। प्राकृतिक आपदा हमेशा अपने पीछे भयंकर विनाश छोड़ जाती है। शहर को दोबारा बनाने में फिर से संघर्ष करना पड़ता है। 1992-93 में इथोपिया में भयंकर सूखा पड़ा जिसमें 30 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी है। आज भी हर साल हमारे देश में राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, मध्यप्रदेश में सूखा पड़ता रहता है। अतः प्रकृति के इस रौद्र रूप के लिए सिर्फ और सिर्फ मानव ही जिम्मेदार हैं इससे बचने के लिए मानव को अनावश्यक छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।

(ग) सड़क सुरक्षा : जीवन रक्षा संकेत बिन्दुःभूमिका, सड़क सुरक्षा से जुड़े कुछ प्रमुख नियम, सड़क सुरक्षा के नियमों की अनदेखी से होने वाली हानियाँ, इन्हें अपनाने के लाभ, निष्कर्ष।
उत्तरः
सड़क सुरक्षा एक आम और महत्वपूर्ण विषय है, आम जनता में खासतौर से नये आयु वर्ग के लोगों में अधिक जागरुकता लाने के लिए इसे शिक्षा, सामाजिक जागरुकता आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों से जोड़ा गया है। सभी को सड़क यातायात नियमों की अच्छे से जानकारी होनी चाहिए खासतौर से बच्चे और युवा लोगों को जो अधिकांशतः सड़क दुर्घटना के खतरे में रहते हैं। ये सड़क इस्तेमाल करने वाले सभी लोगों को सुरक्षित रखने के लिए जैसे पैदल चलने वाले, दो-पहिया, चार-पहिया, बहु-पहिया और दूसरे वाहन इस्तेमाल करने वालों के लिए है। सभी लोगों के लिए उनके पूरे जीवन भर सड़क सुरक्षा उपायों का अनुसरण करना बहुत ही अच्छा और सुरक्षित है। सभी को गाड़ी चलाते समय या पैदल चलते वक्त दूसरों का सम्मान करना चाहिए और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए। सड़क हादसों और चोट के मामलों की संख्या को कम करने के साथ ही सावधान और सुरक्षित होने के लिए सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए सड़क सुरक्षा बहुत जरुरी है। इसलिए, सभी को सख्ती से सड़क यातायात के सभी नियमों, नियंत्रकों और चिन्हों का अनुसरण करना चाहिए। स्कूल में शिक्षकों के द्वारा उचित शिक्षा पाने और घर पर अपने अभिभावकों से बच्चों को सही ज्ञान के द्वारा सड़क सुरक्षा के बारे में अच्छे से अभ्यस्त होना चाहिए।

प्रश्न 5.
आपकी चचेरी दीदी कॉलेज में दाखिला लेना चाहती हैं, किंतु आपके चाचा जी आगे की पढ़ाई न करवाकर उनकी शादी करवाना चाहते हैं। इस बारे में अपने चाचा जी को समझाते हुए लगभग 120 शब्दों में एक पत्र लिखिए। (5)
अथवा
आपके क्षेत्र में सरकारी राशन की दुकान का संचालक गरीबों के लिए आए अनाज की कालाबाजारी करता है और कुछ कहने पर उन्हें धमकाता है। उसकी शिकायत करने हेतु लगभग 120 शब्दों में जिलाधिकारी को पत्र लिखिए।
उत्तरः
परीक्षा भवन,
नई दिल्ली
दिनांक: 20 जनवरी, 20XX
आदरणीय चाचाजी,
चरण स्पर्श।

मैं स्वयं कुशल हूँ, आशा करती हूँ कि आपका भी स्वास्थ्य ठीक होगा। मेरी गत सप्ताह दीदी से बात हुई थी उन्होंने अपने विद्यालय में बारहवीं टॉप किया है यह समाचार मुझे सुनाया था। मैं उस खुशी की खबर की बधाई के लिए पत्र लिखने ही वाली थी कि चाची का फोन आया कि आप लोग उनके लिए वर की तलाश कर रहे हो। सच कहूँ तो मुझे यह सुनकर काफी दुःख हुआ कि हमारी दीदी इतनी

होनहार है पर आप इतनी जल्दी उनका विवाह करवाना चाहते हो। कृपया आप लोग ऐसा मत कीजिए। उन्हें आगे पढ़ाइए। ऐसे अंक सभी के नहीं आते। उन्हें पहले अपने पैरों पर खड़ा होने दीजिए फिर विवाह के विषय में सोचिए। आशा है कि आप मेरी इन बातों पर जरुर गौर करेंगे एवं दीदी का दाखिला कॉलेज में होने देंगे। चाचीजी को मेरा चरण स्पर्श एवं छोटों को मेरा प्यार दीजिएगा।