बंगाल के नवाब
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
यह सूची बंगाल के नवाबओं की है:-
(१७१७-१८८०)[संपादित करें]
मुर्शीदाबाद बंगाल के नवाबओं की आरंभिक उन्नीसवीं शताब्दी से ही राजधानी रहा था।
नसीरी (1717-1740)
- मुर्शीद कुली जाफर खान (1717-1727)
- शुजा-उद-दीन मुहम्मद खान (1727-1739)
- सरफराज़ खान (1739-1740)
अफशर (1740-1757)
- अलीवर्दी खान (1740-1756)
- सिराजुद्दौला (1756-1757)
नजफी (1757-1880)
- मीर जाफर अली खान (1757-1760)
- मीर कासिम (1760-1763)
- मीर जाफर अली खान (1763-1765)
- नजीमुद्दीन अली खान (1765-1766)
- नजाबुत अली खान (1766-1770)
- अशरफ अली खान (1770-1770)
- मुबारक अली खान (1770-1793)
- बाबर अली खान (1793-1810)
- ज़ैनुल अबीदीन अली खान (1810-1821)
- अहमद अली खान (1821-1824)
- मुबारक अली खान II (1824-1838)
- Mansur अली खान (1838-1880 abdicated)
मुर्शीदाबाद के नवाब (नजफ़ी) 1880-1969[संपादित करें]
- नवाब सैयद हसन अली मिर्ज़ा खान बहादुर (1880-1906)
- नवाब सैयद वासिफ अली मिर्ज़ा खान बहादुर (1906-1959)
- नवाब सैयद वारिस अली मिर्ज़ा खान बहादुर (1959-1969)
• मुर्शीद कुली जाफर खान • शुजा-उद-दीन मुहम्मद खान • सरफराज़ खान | |
• अलीवर्दी खान • सिराजुद्दौला (१७५६-१७५७) | |
• मीर जाफर अली खान • मीर कासिम • मीर जाफर अली खान • नजीमुद्दीन अली खान • नजाबुत अली खान • अशरफ अली खान • मुबारक अली खान • बाबर अली खान • ज़ैनुल अबीदीन अली खान • अहमद अली खान • मुबारक अली खान II • मंसूर अली खान | |
• नवाब सैयद हसन अली मिर्ज़ा खान बहादुर • नवाब सैयद वासिफ अली मिर्ज़ा खान बहादुर • नवाब सैयद वारिस अली मिर्ज़ा खान बहादुर |
"//hi.wikipedia.org/w/index.php?title=बंगाल_के_नवाब&oldid=5354218" से प्राप्त
श्रेणियाँ:
- बंगाल के नवाब
- बंगाल का इतिहास
- भारत का इतिहास
बंगाल के नवाब (Nawabs of Bengal)
मुर्शीद कुली खां (1700-1727)
- 1700 ई. में औरंगजेब ने मुर्शीद कुली खां को बंगाल का दीवान नियुक्त किया। उस समय बहादुरशाह का पुत्र अजीमुश्शान बंगाल का सूबेदार था। क्योंकि वह दरबार में रहता था। इस कारण बंगाल का शासन दीवान और नायब-निजाम मुर्शीद कुली खां करता था।
- 1717 ई. में मुगल सम्राट फर्रूखशियर ने इसे बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया और 1719 ई. में उड़ीसा को भी उसकी सूबेदारी में सम्मिलित कर दिया गया।
- बादशाह द्वारा सीधे तौर पर नियुक्त वह बंगाल का अंतिम सूबेदार था। मुर्शीद कुली खां ने बंगाल में वंशानुगत शासन की शुरूआत की।
- मुर्शीद कुली खां एक योग्य शासक प्रबन्धक था। उसने बंगाल के राजस्व सुदृढ़ीकरण हेतु महत्त्वपूर्ण कदम उठाए। उसने छोटे बिचौलिए जमींदारों का उन्मूलन कर दिया और जागीर भूमि के बड़े भाग को खालसा भूमि में परिवर्तित कर दिया।
- उन बड़े जमींदारों को प्रोत्साहन दिया जो राजस्व वसूली तथा भुगतान की जिम्मेदारी लेते थे। किसानों की स्थिति सुदृढ़ करने के लिए उनको तकावी (ऋण) प्रदान किया।
- पहला विद्रोहः सीताराम राय, उदयनारायण, गुलाम मोहम्मद ने किया।
- दूसरा विद्रोहः सुजात खां के नेतृत्व में
- तीसरा विद्रोहः नजात खां के नेतृत्व में हुआ। इन विद्रोहों को दबाने के बाद उनकी सारी जमींदारी अपने कृपापात्र राम जीवन को दे दी।
- मुर्शीद कुली खां ने भूमि बंदोबस्त में इजारेदारी प्रथा प्रारंभ की। उसके समय 1721 ई. में वास्तविक जमा 1 करोड़ 41 लाख 9 हजार 1 सौ 84 रुपये हो गया।
- 1727 सी.ई. में मुर्शीद कुली खां की मृत्यु हो गई।
शुजाउद्दीन (1727-39)
- यह मुर्शीद कुली खां का दामाद था। इसके समय राज्य की शक्ति कुछ स्वार्थी व्यक्तियों के गुट में निहित हो गई। इनमें प्रमुख थे- राय रायन आलमचंद, जगतसेठ फतेहचंद, हाजी अहमद एवं अलीवर्दी खां। इसने अलीवर्दी खां को बिहार का नायब सूबेदार बनाया। 1739 सी.ई. में इसकी मृत्यु हो गई।
सरफराज खां (1739-40)
- 1739 में शुजाउद्दीन का पुत्र सरफराज खां बंगाल के नबाब (Nawabs of Bengal) बने। इसके समय बिहार के नायब सूबेदार अलीवर्दी खां ने विद्रोह किया और मार्च 1740 सी.ई. में गिरिया के युद्ध में सरफराज खां को पराजित कर मार डाला।
अलीवर्दी खां (1740-56)
- 1740 सी.ई. में अलीवर्दी खां बंगाल के नवाब (Nawabs of Bengal) बने। उसने मुगल सम्राट मुहम्मदशाह को 2 करोड़ घूस देकर अपने पद की स्वीकृति प्राप्त की।
- गद्दी प्राप्त करने के पश्चात् अपने 16 वर्षों के शासनकाल में मुगल बादशाह को कभी राजस्व नहीं भेजा अर्थात् बंगाल के नवाब (Nawabs of Bengal) द्वारा भेजा जानेवाला राजस्व अलीवर्दी खां ने बंद कर दिया।
- अलीवर्दी खां को मराठों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। अंततः मराठा सरदार रघुजी भोंसले से 1751 सी.ई. में अलीवर्दी खां ने संधि कर ली।
- संधि के तहत अलीवर्दी खां ने मराठों को उड़ीसा प्रांत तथा 12 लाख रुपये वार्षिक चौथ देना स्वीकार किया।
- अलीवर्दी खां यूरोपीय कंपनियों के प्रति सतर्क था। उसने यूरोपियों की तुलना मधुमक्खियों से की, कहा-‘यदि इन्हें न छेड़ा जाए तो शहद देंगी और यदि छेड़ा जाए तो काट-काट कर मार डालेंगी।
- अलीवर्दी खां की तीन पुत्रियां थी, कोई पुत्र नहीं था। इनमें एक पुत्री ढाका, दूसरी पूर्णियां और तीसरी पटना के शासक को ब्याही गई थी। इसके जीवनकाल में ही इसके तीनों दामाद मर चुके थे।
- अलीवर्दी खां ने अपनी सबसे छोटी पुत्री के पुत्र सिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।
- अप्रैल 1756 में अलीवर्दी खां की मृत्यु के पश्चात सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब (Nawabs of Bengal) बने।
सिराजुद्दौला (1756-1757)
- सिराजुद्दौला का वास्तविक नाम मिर्जा मोहम्मद था। गद्दी पर बैठने के समय उसके तीन प्रमुख शत्रु थे- पूर्णिया का नवाब शौकत जंग, उसकी मौसी घसीटी बेगम (ढाका) तथा अंग्रेज।
- घसीटी बेगम ने ढाका के नायब सूबदेार अर्थात अपने दीवान राजवल्लभ से मिलकर सिराज के विरुद्ध षड्यंत्र प्रारंभ किया।
- अंग्रेजों ने राजवल्लभ को प्रश्रय दिया दूसरी तरफ शौकतगंज ने भी सिराज के खिलाफ षड्यंत्र किया।
- अंग्रेजों ने राजवल्लभ के पुत्र कृष्णादास को शरण दी थी और फ्रांसीसी आक्रमण से बचने के लिए फोर्ट विलियम की किलेबंदी शुरू की।
- सिराज ने किलेबंदी रोकने को कहा किन्तु अंग्रेज नहीं माने। अतः 4 जून 1756 को सिराजुद्दौला ने कासिम बाजार पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया।
- 15 जून, 1756 सी.ई. को कलकत्ता पर आक्रमण किया। उस समय कलकत्ता का गवर्नर रोजर ड्रेक था।
- 5 दिन के घेरे के बाद 20 जून, 1756 को बंगाल के नवाब ने फोर्ट विलियम पर अधिकार कर लिया।
- गवर्नर ड्रेक, सेनापति मिनीचन एवं अन्य अंग्रेज अधिकारी भागकर फुल्टा द्वीप में शरण लिए।
- हॉलवेल ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ नवाब के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
- हॉलवेल ने Black Hole कांड का वर्णन भी किया। इसके अनुसार 20 जून, 1756 सी.ई. को बंगाल के नबाब ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम पर अधिकार करने के पश्चात् 146 अंग्रेज बंदियों को 18 फीट लंबी, 14 फुट ऊँची 10 इंच चौड़ी कोठरी में बंद कर दिया। अगले दिन प्रातः उनमें से केवल 23 व्यक्ति जिन्दा बचे, उनमें से एक हॉलवेल भी था।
- कलकत्ता विजय के पश्चात् नवाब सिराजुद्दौला ने वहाँ माणिकचंद को नियुक्त कर वापस मुर्शिदाबाद लौट आया। सिराज ने कलकत्ता जीतने के बाद उसका नाम बदलकर अलीनगर रख दिया था।
- अक्टूबर, 1756 सी.ई. में सिराजुद्दौला ने मनिहारी के युद्ध में शौकतजंग को पराजित किया।
- कलकत्ता के पतन का समाचार मद्रास पहुंचने पर वहां से क्लाइव और वाट्सन के नेतृत्व में एक सेना बंगाल पहुंची।
- समुद्री मार्ग से एडमिरल वाट्सन एवं स्थल मार्ग से क्लाइव भेजा गया था।
- क्लाइव ने कलकत्ता के अधिकारी माणिकचंद को घूस देकर 2 जनवरी 1757 सी.ई. को कलकत्ता पर पुनः अधिकार कर लिया।
- अंततः 9 फरवरी 1757 सी.ई. को नवाब सिराजुद्दौला एवं क्लाइव के बीच अलीनगर की संधि सम्पन्न हुई।
अलीनगर की संधि (9 फरवरी, 1757) |
|
|
|
|
|
- इस संधि से अंग्रेजों को पर्याप्त लाभ हुआ। इस संधि की काफी आलोचना भी हुई क्योंकि संधि में सिराजुद्दौला ने कमजोरी दिखाई।
- उसने भी ब्रिटिश शर्तों को स्वीकार किया परंतु इसका कारण यह था कि नवाब को अपने ही अधिकारियों के पूर्ण समर्थन का भरोसा नहीं था।
- दूसरे उसे अहमदशाह अब्दाली के बिहार की ओर बढ़ जाने की भी आशंका थी।
- अब अंग्रेजों ने बंगाल में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने का प्रयास किया। इसके लिए फ्रांसीसी को कुचलना आवश्यक था।
- अतः क्लाइव ने मार्च 1757 सी.ई. में फ्रांसीसी बस्ती चंद्रनगर पर अधिकार कर लिया। इससे बंगाल से फ्रांसीसियों की शक्ति और स्वतंत्रता दोनों समाप्त हो गई।
- अब अंग्रेजों ने नवाब के विरुद्ध षड्यंत्र करना शुरू किया ताकि एक कठपुतली बनाकर बंगाल के नबाब के रूप में बैठाया जा सके।
- इस षड्यंत्र में शामिल थे- नवाब का प्रधान सेनापति मीरजाफर (मीरबख्शी), सेनाधिकारी रायदुर्लभ, खादिम खां, कलकत्ता प्रभारी माणिकचंद, सिक्ख पूंजीपति एवं व्यापारी अमीचंद, बैंकर जगतसेठ (फतेहचंद)।
- मीरजाफर, रायदुर्लभ एवं जगतसेठ से अंग्रेजों की संधि वार्ता अमीचंद की मध्यस्थता से अमीचंद के घर में 10 जून, 1757 सी.ई. को सम्पन्न हुई।
- इसके अनुसार अमीचंद को नवाब के कोष का 5 प्रतिशत देने का वादा किया गया। परंतु अमीचंद ने संधि की शर्त के अलावा 30 लाख रुपया अतिरिक्त राशि की मांग की।
- क्लाइव द्वारा आनाकानी करने पर षड्यंत्र के भंडाभोड़ करने की धमकी दी।
- क्लाइव ने संधि का एक जालीपत्र तैयार किया जिसमें अमीचंद की मांग को शामिल किया गया। किन्तु इस पर वाट्सन ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया।
- अतः क्लाइव ने उसके जाली हस्ताक्षर लुसिंगटन से बनवा लिए। प्लासी युद्ध के पश्चात् अंग्रेजों ने अमीचंद को एक पैसा भी नहीं दिया।
- प्लासी बंगाल के नदिया जिले में भागीरथी नदी के किनारे आम्रकुंज में स्थित है। युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व क्लाइव ने किया।
- बंगाल के नवाब के 50 हजार की सेना का नेतृत्व मीरजाफर कर रहा था।
- बंगाल के नवाब के चारों सेनानायकों मीरजाफर, रायदुर्लभ, यार लतीफ खां, व मोइनुद्दीन खां में से केवल मोइनुद्दीन खां ही लड़ा। बाकी चुपचाप युद्ध का नजारा देखते रहे।
- बंगाल के नवाब के अग्रगामी टुकड़ी का नेतृत्व मीरमदान और मोहनलाल कर रहे थे। इन दोनों ने वफादारी दिखाई।
- मीरमदान युद्ध मैदान में ही मारा गया। इससे नवाब विचलित हो गया और मीरजाफर को षड्यंत्रकारी मानकर युद्ध भूमि से भाग निकला।
- क्लाइव बिना लड़े ही विजयी रहा। युद्ध प्रातः नौ बजे प्रारंभ हुआ और दो बजे समाप्त हो गया।
- 24 जून, को सिराजुद्दौला मुर्शिदाबाद पहुंचा और वहाँ से अपनी पत्नी लुफ्रतुनिशां के साथ भाग खड़ा हुआ।
- मीरजाफर के लड़के मीरन ने भागते नवाब को पकड़ा और उसका वध कर दिया।
- मीरजाफर भी मुर्शिदाबाद पहुंचा तथा 28 जून, 1757 सी.ई. को क्लाइव द्वारा उसे बंगाल के नवाब की गद्दी पर बैठाया गया।
- सर यदुनाथ सरकार के अनुसार: ‘‘23 जून को भारत में मध्ययुग का अंत हो गया और आधुनिक युग का आरंभ हुआ।’’
- के. एम. पणिक्कर ने कहा थाः ‘‘प्लासी एक सौदा था जिसमें बंगाल के कुछ धनी स्वार्थी लोगों ने अपना देश अंग्रेजों को बेच दिया।’’
मीरजाफर (1757-60)
- मीरजाफर को ‘कर्नल क्लाइव का गीदड़’ कहा जाता है। नवाबी प्राप्त करने के उपरांत मीरजाफर ने कंपनी को 24 परगने की जमींदारी तथा क्लाइव को 2-34 लाख पौंड की रकम निजी भेंट दी।
- 1759 सी.ई. में मुगल शहजादा अलीगौहर (शाहआलम द्वितीय) ने इलाहाबाद के सूबेदार मुहम्मद अली खां के सहयोग से बिहार को अपने अधीन करने के लिए आक्रमण किया किन्तु ब्रिटिशों ने अलीगौहर के इस प्रयास को विफल बना दिया और मुहम्मद अली खां मारा गया।
- इस अवसर पर क्लाइव के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मीरजाफर ने क्लाइव को मुगल सम्राट आलमगीर द्वितीय से ‘उमरा’ की उपाधि प्रदान करवायी तथा 24 परगना की जमींदारी क्लाइव को व्यक्तिगत रूप से दी गई। वस्तुतः यह जिला पहले कम्पनी के पास था।
- मीरजाफर कम्पनी की बार-बार की मांगों से त्रस्त हो गया था। अतः उसने डचों के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध चिनसुरा में सैनिक षड्यंत्र रचा और जावा के डच ठिकानों से सैनिक सहायता मांगी गई किन्तु क्लाइव को खबर हो गई और उसने नवंबर 1759 सी.ई. में बेदारा के युद्ध (चंद्रनगर और हुगली के बीच) डचों को पराजित किया।
- 1760 सी.ई. को क्लाइव इंग्लैण्ड वापस लौट गया और उसके बाद कुछ दिनों के लिए अस्थायी रूप से हॉलवेल ने गवर्नर का दायित्व संभाला। बाद में जुलाई 1760 सी.ई. में हेनरी वेन्सिटार्ट बंगाल का स्थायी गवर्नर बना।
- मीरजाफर कम्पनी की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हो रहा था।
- दूसरी तरफ मीरजाफर के पुत्र मीरन की अकस्मात् मृत्यु से मीरजाफर एवं दामाद मीरकासिम में उत्तराधिकार को लेकर तनाव उत्पन्न हो गया।
- ऐसे में मीरजाफर से खफा अंग्रेजों को बंगाल में नवाब परिवर्तन का अवसर मिला।
- अतः सितम्बर 1760 सी.ई. को ब्रिटिश एवं मीरकासिम के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार कम्पनी को बर्दवान, मिदनापुर, चटगांव के जिले मिलने थे तथा मीरकासिम को नायब सूबेदार नियुक्त कर दिया जाना था।
- यह प्रस्ताव मीरजाफर को स्वीकार नहीं हुआ। इस संधि को लागू करने के लिए वेन्सिटार्ट और केलार्ड अक्टूबर 1760 सी.ई. को मुर्शिदाबाद पहुंचे।
- जब मीरजाफर ने देखा कि अंग्रेजों ने उसके महल को घेर लिया है तो उसने तुरन्त मीरकासिम के पक्ष में गद्दी छोड़ दी और 15,000 रुपये मासिक पेंशन पर कलकत्ता में रहना अधिक उचित समझा। इस तरह मीरकासिम बंगाल का नवाब बना।
- इसे ही वेन्सिटार्ट ने क्रांति की संज्ञा दी किन्तु इसे क्रांति कहना उचित नहीं है क्योंकि इसके पीछे कोई नया सिद्धांत व जनता की भूमिका नहीं थी बल्कि यह तो एक कठपुतली नवाब के बदले दूसरे कठपुतली नवाब की स्थापना थी।
मीरकासिम- (1760-63)
- 1761 सी.ई. में सम्राट शाहआलम द्वितीय से मीरकासिम ने बंगाल की सूबेदारी के लिए पटना में औपचारिक अनुमोदन प्राप्त किया। इसी समय शाहआलम का अंग्रेजों के साथ संघर्ष हो गया। अंग्रेज सेनापति मेजर चॉर्नाक ने उसे पराजित भी किया।
- मीरकासिम योग्य प्रशासक था। उसने कई प्रशासनिक सुधार भी किए। उसने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित कर दी ताकि अंग्रेजों का हस्तक्षेप न्यूनतम हो।
- अपनी सेना को मीरकासिम ने गुर्गिनर खां नामक एक अरमेनियाई के अधीन रखा जिसने यूरोपीय पद्धति पर सेना का पुनर्गठन किया। उसने मुंगेर में एक गन फैक्ट्री की स्थापना की।
- मीरकासिम ने नए अब्वाब (कर) लगाए तथा पुराने करों पर 3/32 भाग अतिरिक्त कर लेना आरंभ किया। उसने अधिकारियों द्वारा बचत के रूप में एक और कर खिजरी जमा भी वसूल किया।
- उसने सेना के आधुनिकीकरण के लिए एक जर्मन अधिकारी वाल्टर रीन हार्ड की नियुक्ति की जो ‘समरू’ के नाम से जाना जाता था।
- अंग्रेजों द्वारा दस्तक के दुरूपयोग को रोकने के लिए 1763 सी.ई. में समस्त आंतरिक व्यापार को कर मुक्त कर दिया।
- मीरकासिम ने बिहार के उपसूबेदार-रामनारायण की हत्या कर दी क्योंकि वह स्वतंत्र व्यवहार कर रहा था।
- मीरकासिम और अंग्रेजों के बीच मतभेद बहुत बढ़ गए और इसका कारण दस्तक का दुरूपयोग था।
- दस्तक का उपयोग कम्पनी के अधिकारी अपने निजी व्यापार के लिए भी करने लगे और इन दस्तकों को कुछ पैसों के बदले भारतीय व्यापारियों के हाथों बेच दिया जाता था।
- मीरकासिम ने जब इसे रोकने के लिए कहा। तब कम्पनी ने ध्यान नहीं दिया तब 1763 सी.ई. में भारतीय व्यापारियों पर से भी चुंगी उठा ली।
- ब्रिटिश ने इस पर विरोध जताया और बेन्सिटार्ट को बातचीत हेतु भेजा गया।
- दोनों के बीच यह समझौता हुआ कि कम्पनी के अधिकारी 9 प्रतिशत चुंगी नवाब को देंगे। किन्तु कम्पनी की परिषद ने इसे अस्वीकार कर दिया।
- पटना के एक ब्रिटिश अधिकारी एलिस ने पटना पर आक्रमण कर उसे लूट लिया। इस प्रकार मीरकासिम एवं अंग्रेजों में जुलाई 1763 सी.ई. में युद्ध आरंभ हो गया।
- अंग्रेजों ने कटवा, मुर्शिदाबाद, गिरिया, उधौनाला आदि में मीरकासिम की सेना को हराया।
- अंततः मीरकासिम अवध की ओर पलायन कर गया जहां उसने नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय से अंग्रेजों के विरूद्ध समझौता किया। इधर बंगाल में पुनः मीरजाफर को नवाब बना दिया गया।
मीरजाफर (1763-65)
- मीरकासिम को हटाने के बाद कम्पनी ने पुनः मीरजाफर को जुलाई 1763 सी.ई. में बंगाल के नवाब बना दिया।
- इसने कम्पनी से केवल 2.5 प्रतिशत नमक कर लेने के अलावा सभी छूट प्रदान की। इसी के काल में बक्सर का युद्ध हुआ।
- बक्सर के युद्ध में ब्रिटिश सेना का नेतृत्व हेक्टर मुनरो कर रहा था। दूसरी तरफ मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय, अवध का नवाब शुजाउद्दौला एवं बंगाल का अपदस्थ नवाब मीरकासिम शामिल था।
- मुनरो ने संकल्प लिया कि या तो हम जीतेंगे या मिट जायेंगे। अंततः अंग्रेज विजयी हुए और संयुक्त सेना पराजित हुई।
- मीरकासिम दिल्ली की ओर भागा और वहीं 1777 सी.ई. में उसकी मृत्यु हुई।
- शुजाउद्दौला एवं शाहआलम द्वितीय ने अंग्रेजों के साथ संधि की। बक्सर के युद्ध के समय बंगाल का गवर्नर बेन्सिटार्ट था।
नज्मुद्दौला (1765-66)
- फरवरी 1765, में मीरजाफर की मृत्यु के पश्चात् अल्पवयस्क पुत्र नज्मुद्दौला को नवाब बनाया गया।
- मई 1765 सी.ई. में क्लाइव पुनः ब्रिटिश गवर्नर बनकर भारत आया और उसने मुगल सम्राट एवं अवध के नवाब शुजाउद्दौला से संधि की।
- यह संधि मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय से इलाहाबाद में हुई। इस संधि पर शाहआलम द्वितीय, बंगाल के नवाब नज्मुद्दौला एवं क्लाइव ने हस्ताक्षर किए।
- इसके अनुसार मुगल सम्राट ने बंगाल, बिहार, उड़ीसा की दीवानी कम्पनी को दे दी।
- सम्राट को अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के जिले लेकर दे दिए गए।
- मुगल सम्राट को 26 लाख रुपया वार्षिक पेंशन के रूप में दिया जाना तय हुआ जिसे बंगाल के नवाब ने देना स्वीकार किया।
- अंग्रेजों ने हैदराबाद के उत्तर के जिलों ‘उत्तरी सरकार’ को जागीर के रूप में मुगल बादशाह से प्राप्त किया।
- नवाब ने कड़ा और इलाहाबाद मुगल बादशाह को दिए तथा शेष अवध का राज्य नवाब को मिला।
- नवाब ने अंग्रेजों को 50 लाख रुपया युद्ध हर्जाने के रूप में दिया।
- बनारस और गाजीपुर की जागीर अंग्रेजों के संरक्षण में राजा बलवंत सिंह को दी गई।
- अगर कोई शक्ति अवध पर हमला करती है तो अंग्रेज सहायता करेंगे और इसका खर्च नवाब को वहन करना होगा।
- चुनार का दुर्ग नवाब ने अंग्रेजों को दिया।
शैफ-उद्-दौला (1766-70)
मुबारक-उद्-दौला (1770-75)
बंगाल में द्वैध शासन (1765-1772 सी.ई.)- मीरजाफर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र नज्मुद्दौला नवाब बना। 20 फरवरी, 1765 सी.ई. को कंपनी ने उसके साथ संधि की, जिसके तहत नवाब की सेना समाप्त कर दी गई और अंग्रेजी सेना ने नवाब को पूर्णतः अपने अधीन कर लिया। इस प्रकार बंगाल में क्लाइव ने द्वैध शासन को लागू किया।
- वस्तुतः मुगल काल से ही प्रांतों में दो अधिकारी होते थे। एक सूबेदार और दूसरा दीवान।
- संधि के तहत् एक नायब सूबेदार की नियुक्ति की गयी जिसे सूबेदार के रुप में प्रशासनिक व्यवस्था देखनी थी।
- नायब सूबेदार की नियुक्ति अंग्रेजों द्वारा की जानी थी और मुहम्मद रजा खां को नायक सूबेदार नियुक्त किया गया।
- दीवानी वसूली हेतु कम्पनी ने दो उपदीवान नियुक्त किए। बंगाल के मुहम्मद रजा खां तथा बिहार के लिए राजा शिताब राय तथा उड़ीसा के लिए दुर्लभराय को नियुक्त किया।
- क्लाइव ने द्वैध शासन के अंतर्गत प्रशासन, राजस्व वसूली तथा दीवानी न्याय अपने पास रखे तथा आंतरिक शांति व्यवस्था फौजदारी न्याय एवं अन्य समस्त प्रशासनिक दायित्व नवाब पर छोड़ दिया। जिसे उप-निजाम (सूबेदार) द्वारा संचालित किया जाना था, जिसकी नियुक्ति कम्पनी करती अर्थात् क्लाइव ने प्रशासन का
- अधिकार तो लिया लेकिन उत्तरदायित्व स्वीकार नहीं किया। यही शासन व्यवस्था द्वैध शासन कहलाता है।
- नवाब नज्मुद्दौला को 53 लाख रुपये एवं शाहआलम को 26 लाख रुपये देकर क्लाइव ने समस्त भू-राजस्व एवं अन्य प्रकार की मालगुजारी पर कम्पनी का अधिकार प्राप्त किया।
- क्लाइव ने प्रत्यक्ष रूप से शासन इसलिए नहीं संभाला क्योंकि ऐसा करने पर उसका वास्तविक शोषणकारी स्वरूप सामने आ जाता और सभी भारतीय शक्तियां उसके विरोध में इकट्ठी हो सकती थी।
- अन्य विदेशी (यूरोपीय) कंपनियां आसानी से ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को स्वीकार नहीं करेगी तथा वह कर भी देना बंद कर देंगी जो अभी नवाब को मिला है।
- स्पष्ट रूप से सत्ता अपने हाथ में लेने से इंग्लैण्ड तथा विदेशी शक्तियों के मध्य कटुता पैदा हो जाती और संभवतः ये शक्तियाँ इंग्लैण्ड के विरुद्ध मोर्चा खड़ी कर सकती थी।
- क्लाइव के अनुसार यदि वह बंगाल की सत्ता हाथ में लेता है तो संसद, कम्पनी के कार्य में हस्तक्षेप करना आरंभ कर देगी।
- इंग्लैंड में ऐसे प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी थी जो भारत की कार्यप्रणाली के अनुसार कार्य कर सकते थे।
- भूमिकर संग्रह करने का भार प्रतिवर्ष अधिकाधिक बोली लगाने वाले को दिये जाने से कृषकों का शोषण बढ़ा, उत्पादकता घटी, फलतः निरंतर अकाल पड़ता रहा। 1770 सी.ई. में भयंकर अकाल पड़ा।
- निजाम की अव्यवस्था के कारण कानून व्यवस्था ठप्प हो गई।
- कम्पनी ने रेशम बुनने को निरूत्साहित किया क्योंकि इससे इंग्लैण्ड के वस्त्र उद्योग को हानि पहुंचती थी।
- 1857 सी.ई. में इंग्लैण्ड की संसद में सर जार्ज कार्नवाल ने कहा-‘‘मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूं कि 1765-1784 सी.ई. तक ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार से अधिक भ्रष्ट, झूठी तथा बुरी सरकार संसार के किसी भी सभ्य देश में नहीं थी।
- के. एम. पणिक्कर ने इसे ‘डाकुओं का राज्य’ कहा।
- पर्सीवल स्पियर ने इसे ‘बेशर्मी और लूट का काल’ कहा।
- बंगाल में द्वैध शासन की समाप्ति 1772 सी.ई. में वारेन हेस्टिंग्स ने की। द्वैध शासन प्रणाली का जनक लियोनिस कार्टिस को माना जाता है।