बच्चे खेल के नियमों का पालन क्यों करते हैं? - bachche khel ke niyamon ka paalan kyon karate hain?

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल Textbook Exercise Questions and Answers.

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं?
उत्तर :
खेल एक –

  1. आनन्ददायक क्रिया है
  2. स्वतन्त्र क्रिया है
  3. आत्म-प्रेरित क्रिया है
  4. मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है
  5. सद्गणों का विकास करने वाली क्रिया है।

प्रश्न 2.
खेल को प्रभावित करने वाले तत्त्व क्या हैं?
उत्तर :

  1. शारीरिक स्वास्थ्य
  2. आयु
  3. क्रियात्मक विकास
  4. लिंग भिन्नता
  5. बौद्धिक विकास
  6. मौसम
  7. अवकाश की अवधि
  8. खेल के साधन
  9. सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति
  10. खेल के साथी
  11. परम्परा
  12. वातावरण।

प्रश्न 3.
खेल की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
ग्यूलिक के अनुसार खेल की परिभाषा इस प्रकार दी गई है “जो कार्य हम अपनी इच्छा से स्वतन्त्र वातावरण में करते हैं वही खेल है।” थामसन के अनुसार, “खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है।”

प्रश्न 4.
बाल्य जीवन में खेल का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
खेल का बाल्य जीवन में विशेष महत्त्व है। अभिभावकों की दृष्टि में खेलना समय को व्यर्थ गंवाना है। वे पढ़ने-लिखने और गृह-कार्य को महत्त्व देते हैं। बालक को खेल से दूर रखने से उसके शारीरिक और व्यक्तित्व का विकास ठीक से नहीं होता। इसलिए खेल और कार्य में सामान्य संतुलन होना चाहिए।

प्रश्न 5.
खेल कितने प्रकार के हैं? संक्षेप में लिखो।
उत्तर :

  1. साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के हैं –
    • समान्तर खेल
    • सहचरी खेल
    • सामूहिक खेल।
  2. घर के अन्दर खेले जाने वाले खेल-ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, साँप-सीढ़ी आदि।
  3. घर के बाहर खेले जाने वाले खेल-क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बैडमिंटन आदि।

प्रश्न 5.
(A) बच्चों के खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
(B) घर में तथा घर से बाहर खेले जाने वाले दो-दो खेलों के बारे में लिखो।
(C) खेल कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 5 का उत्तर।

प्रश्न 6.
खेल क्या है?
उत्तर :
खेल कोई भी ऐसी क्रिया है जिससे बच्चा आनन्द व सन्तोष प्राप्त करता है। बच्चा इसे स्वयं शुरू करता है। यह बच्चे पर थोपी नहीं जाती। जो चीज़ उसे पसन्द आ जाए वह उसकी खेल सामग्री बन जाती है अतः खेल अनायास, स्वाभाविक और आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है। खेल बच्चे के लिए मज़ा है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित क्रियाओं में से जो खेल हैं उन पर (✓) का चिह्न लगाएँ।
(i) मां द्वारा बच्चे से ज़बरदस्ती ढोलक बजवाना
(ii) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(iii) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(iv) मां द्वारा बच्चे को कहा जाना कि वह सिर्फ ब्लाक्स से ही खेल सकता है
उत्तर :
(i) ✗ (ii) ✓ (iii) ✓ (iv) ✗

प्रश्न 8.
मनोरंजन के विभिन्न साधनों के नाम लिखो।
उत्तर :
मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं –

  1. शिशु कविताएँ
  2. शिशु गीत
  3. लोरी
  4. कहानियाँ
  5. बालक साहित्य
  6. बाल-फिल्म
  7. खिलौने
  8. रेडियो
  9. टेलीविज़न
  10. संगीत
  11. खेल।

प्रश्न 9.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
चिकित्सा की दृष्टि से भी बालकों के जीवन में खेल का महत्त्व है। इनके द्वारा बालकों की समस्या का पता लगाकर समाधान किया जाता है।

प्रश्न 10.
बच्चे के जीवन में खेल के दो शारीरिक महत्त्व लिखें।
उत्तर :
1. तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
2. बालक की मांसपेशियां सुचारू रूप से विकसित होती हैं।

प्रश्न 11.
बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, क्या उसके खेल में अन्तर आता है ?
उत्तर :
आयु बढ़ने के साथ खेल क्रियाएँ कम होती हैं।

प्रश्न 12.
घर से बाहर खेले जाने वाले खेल कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, बैंडमिंटन आदि।

लघ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन कौन-से हैं?
उत्तर :
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं
1. शिशु गीत – बच्चा नर्सरी गीतों को बहुत शीघ्र सीखता है और याद कर के सुनाता है।
2. लोरी – बच्चा जब रात्रि को सोते समय नखरा करता है, तो मां उसे लोरी सना कर सुलाती है। मां द्वारा गाई लोरी सुनकर बच्चे शीघ्र सो जाते हैं।
3. कहानी – बच्चा कहानी बड़े शौक से सुनता है। कहानियों का बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है, अत: बच्चे को जो भी कहानियां सुनाई जाएं, वे डरावनी न हों बल्कि शिक्षाप्रद हों।
4. बाल साहित्य – बच्चा जब थोड़ा बड़ा होकर पढ़ने की स्थिति में आता है तब बाल साहित्य उसके मनोरंजन का साधन होता है। बाल साहित्य का चयन करते समय बालक के शारीरिक विकास का ध्यान रखना चाहिए। महापुरुषों की कहानियाँ, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों के बारे में तथा सांसारिक वस्तुओं की जानकारी देने वाला साहित्य होना चाहिए। साहित्य यदि चित्रों के रूप में हो, तो सोने पे सुहागा होता है।
5. खिलौने – खिलौनों से बच्चा शैक्षिक ज्ञान प्राप्त करता है। उसकी कल्पना शक्ति तथा विचार शक्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
बालकों के कार्य और खेल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कार्य और खेल में निम्नलिखित अन्तर हैं –

बालकों के कार्य बालकों के खेल
1. कार्य किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। 1. खेल में किसी प्रकार का लक्ष्य नहीं रहता है।
2. कार्य में समय का बन्धन रहता है। 2. खेल में स्वतन्त्रता रहती है।
3. कार्य प्रारम्भ से ही नियमबद्ध होते है। 3. प्रारम्भिक अवस्था में खेल नियमबद्ध नहीं होते।
4. कार्य के सम्पन्न होने पर ही आनन्द की प्राप्ति होती है। 4. खेल में खेलते समय ही आनन्द की प्राप्ति होती है, बाद में नहीं।
5. कार्य में वास्तविकता रहती है। 5. खेल काल्पनिक होते हैं।
6. कार्य से अपेक्षित विकास होना आवश्यक विकास नहीं है। 6. खेल से शारीरिक तथा मानसिक होता है।
7. कार्य में मस्तिष्क का नियन्त्रण आवश्यक होता है। सही रूप दिया जा सकता है। 7. खेल में मस्तिष्क के नियंत्रण की इसी के आधार पर कार्य को अधिक आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 3.
मनोरंजन का बालक के सामाजिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
बालक को मनोरंजन की जितनी अधिक सुविधाएं प्राप्त होती हैं, उतना ही अधिक वह घूमने-फिरने, खेल-तमाशों और मित्रों के साथ व्यस्त रहता है। इस प्रकार सुविधाएँ अधिक प्राप्त होने पर बालक का स्वभाव हँसमुख प्रकार का हो जाता है। अपने इस स्वभाव के कारण उसे सामाजिक परिस्थितियों में सफल समायोजन करने में सहायता मिलती है। फलस्वरूप उसका सामाजिक विकास शीघ्र होता है। मनोरंजन के साधनों और अवसरों की बहुलता से बालक में समाज विरोधी व्यवहार के उत्पन्न होने की भी सम्भावना कम होती है। मनोरंजन की सुविधाओं के फलस्वरूप उसमें सामाजिक विकास सामान्य ढंग से होता है और सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुरूप होता है।

प्रश्न 4.
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य बातें बताइए।
अथवा
बच्चों के लिए खिलौने कैसे होने चाहिए ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य छ: बातें बताएं।
उत्तर :
बच्चों के लिए खिलौनों का चयन निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर करना चाहिए

  1. बच्चों के खिलौने उनकी आयु के अनुरूप होने चाहिएं।
  2. बच्चों के लिए बहुत महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।
  3. बच्चों के खिलौने बहुत बड़े व वज़न वाले नहीं होने चाहिएं।
  4. बच्चों के लिए खिलौने बहुत छोटे भी नहीं होने चाहिएं।
  5. खिलौने उत्तम धातु या सामग्री के बने होने चाहिएं।
  6. खिलौने शीघ्र टूटने वाले नहीं होने चाहिएं।
  7. खिलौने का रंग पक्का होना चाहिए।
  8. खिलौने धुल सकने वाले होने चाहिएं।
  9. खिलौने आकर्षक, सुन्दर व सुन्दर रंग के होने चाहिएं।
  10. खिलौने सुन्दर आकार, आकृति और स्वाभाविक एवं प्राकृतिक होने चाहिएं।
  11. खिलौने बच्चों के लिए सुरक्षित होने चाहिएं।
  12. खिलौने शिक्षाप्रद व ज्ञान अर्जन में सहायक होने चाहिएं।
  13. खिलौने मनोरंजन करने वाले होने चाहिएं।
  14. खिलौने ऐसे होने चाहिएं कि बच्चे आत्म-निर्भर बन सकें।
  15. खिलौने शारीरिक सन्तुलन व शारीरिक वृद्धि में सहायक होने चाहिएं।

प्रश्न 5.
दैहिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा आमोद-प्रमोद का शारीरिक विकास में क्या महत्त्व है?
उत्तर :
दैहिक दृष्टि से खेलों का महत्त्व –

  1. खेल से बालक का तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
  2. खेल से बालक की मांसपेशियां सुचारु रूप से विकसित होती हैं।
  3. बालक की देह के सभी अवयवों का व्यायाम हो जाता है।
  4. आयु के साथ-साथ बालकों में वाद-विवाद, प्रतियोगिता, दूरदर्शन, चलचित्र निरीक्षण आदि में अभिव्यक्त होने लग जाती है। अभिभावकों के विपरीत होने पर उनके बालक भी विपरीत होंगे। वे अपनी दैहिक क्रियाओं को नहीं रोक पाएंगे।

प्रश्न 6.
नैतिक दृष्टि से खेल का क्या महत्त्व है?
अथवा
नैतिक दृष्टि से खेल के द्वारा बच्चों में किन-किन गुणों का विकास होता है ?
उत्तर :
नैतिक दृष्टि से खेल का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बालक में खेल के द्वारा सहनशीलता की भावना का भी विकास होता है।
  2. समुदाय के साथ खेलते हुए बालक आत्म-नियंत्रण, ईमानदारी, सत्य-भाषण, निष्पक्षता व सहयोगादि के गुणों को धारण करता है।
  3. बालक खेल के द्वारा यह सीख जाता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता है और न ही उसमें द्वेष की भावना पनप पाती है।

प्रश्न 7.
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा
खेलों का सामाजिक विकास की दृष्टि से क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बच्चे जब दूसरे बच्चों के साथ खेलते हैं तो वे सामाजिकता का पाठ सीखते हैं।
  2. खेलों के द्वारा बालक में सहनशीलता की भावना आ जाती है और वह दूसरे के अधिकारों का आदर करने लगता है।।
  3. एक-दूसरे के साथ खेलने से बालकों को बड़ों की तरह व्यवहार करना और उनका सम्मान करना भी आ जाता है।
  4. खेलों से बच्चों में स्नेह, प्यार, सहयोग, नियम, निष्ठता की भावना का विकास होता है।

प्रश्न 8.
आयु के साथ खेल में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं ?
उत्तर :
बच्चों के खेल उम्र के साथ बदल जाते हैं। 0-2 महीने के बच्चे अपने आप से खेलना पसंद करते हैं। अपने हाथ पैर चलाते हैं।
2 महीने से 2 वर्ष का बच्चा खिलौनों में दिलचस्पी लेता है। वह खिलौनों से खेलना पसन्द करता है और अकेले होने पर भी वह खिलौनों से खेल कर खुश होता है।
2 साल से 6 वर्ष तक के बच्चों के खेल में अनेक परिवर्तन आते हैं। 2 साल के बच्चे समूह में बैठ कर खेलते तो हैं पर समूह का हर एक बच्चा अपनी धुन में मस्त रहता है।
कुछ बड़े होने पर बच्चे समूह के अर्थ समझते हैं और सामूहिक खेल खेलना शुरू कर देते हैं। वह साथ में खेलते हैं और एक ही खिलौने से भी खेलते हैं। धीरे-धीरे बच्चे नियम वाले खेल खेलना सीख जाते हैं।

प्रश्न 9.
घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर क्यों है ?
उत्तर :
ऐसा इसलिए है क्योंकि घर की सामग्री से बने खिलौने सुरक्षित होते हैं। इसके अलावा घर का काफ़ी फालतू सामान जैसे बचा हुआ कपड़ा, माचिस की डिब्बी आदि प्रयोग में आ जाते हैं। इन खिलौनों से बच्चा जैसे चाहे खेल सकता है। चूंकि ये महंगे नहीं हैं अतः आप को बच्चे को बार-बार ध्यान नहीं दिलाना पड़ता है कि वह ध्यान से खेले। अत: इन खिलौनों से बच्चा अपनी इच्छानुसार खेल सकता है।

प्रश्न 10.
खेल और कार्य में दो अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 11.
खेल और कार्य में तीन अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 12.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
खेल चिकित्सा का प्रयोग 3 से 11 वर्ष के बच्चों पर किया जाता है। इसमें बच्चा खेलते-खेलते अपने मनो भावों को दर्शाता है। अपने अनुभवों, संवेगों, भावनाओं का प्रदर्शन करता है जिससे मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ बच्चे को समझता है तथा उसका इलाज करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं ?
उत्तर :
खेल के मापदण्ड निम्नलिखित हैं –
1. खेल एक आनन्ददायक क्रिया है – जिस क्रिया से व्यक्ति को आनन्द की प्राप्ति होती है, वह उसके लिए खेल हो जाती है। बच्चे जब जाग्रतावस्था में रहते हैं, तो सदैव ऐसी क्रियाओं में व्यस्त रहते हैं जिनसे उन्हें आनन्द की प्राप्ति होती है। जिस क्रिया में बच्चों को आनन्द की प्राप्ति नहीं होती बच्चे उसे करना ही नहीं चाहते। अतः जो क्रिया बच्चा आनन्द प्राप्ति के लिए करता है वह उसके लिए खेल है। इस प्रकार खेल एक आनन्ददायक क्रिया है।

2. खेल एक स्वतन्त्र क्रिया है – खेल में बच्चे बिल्कुल स्वतन्त्र होते हैं। बच्चा अपनी इच्छानुसार खेलता है। इस पर किसी तरह की बाहरी दबाव नहीं होता। ऐसा देखा जाता है कि बच्चे अपनी इच्छा से दिनभर उछलते-कूदते रहते हैं फिर भी थकते नहीं हैं, किन्तु उसी खेल के लिए उन्हें यदि बाहरी दबाव दिया जाए तो उन्हें तुरन्त थकावट आ जाती है जैसे बच्चे जब इच्छा से पढ़ने वाला खेल खेलते हैं तो दो-तीन घण्टे तक भी उस खेल में लगे रहने पर भी उन्हें थकावट नहीं आती, परन्तु जब उन्हें स्कूल का होम-वर्क करने को कहा जाता है या वे करते हैं, तो शीघ्र ही वे थकावट से घिर जाते हैं। अत: खेल में स्वतन्त्रता रहती है। यदि खेल में स्वतन्त्रता न रहे तो वह खेल, खेल न होकर काम हो जाता है।

3. खेल एक आत्म – प्रेरित क्रिया है-खेल व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। इसमें किसी उद्देश्य प्राप्ति की इच्छा नहीं होती है। वह बिलकुल निरुद्देश्य होता है; जैसे-बच्चा जब खेल के मैदान में गेंद खेलने जाता है, तो उस समय उसका कोई उद्देश्य नहीं होता, बच्चा केवल आत्म-प्रेरित होकर ही गेंद खेलता है। ऐसे खेल को ही खेल कहेंगे। किन्तु जब बच्चे में यह भावना आ जाए कि खेल के मैदान में अपने प्रतियोगी को हराना है तो वह खेल-खेल नहीं रह जाता। इसमें उद्देश्य आ गया और कोई भी उद्देश्यपूर्ण कार्य खेल नहीं होता बल्कि कार्य हो जाता है। अत: वे सभी क्रियाएं खेल हैं जिन्हें बच्चे स्वतन्त्रतापूर्वक आत्म-प्रेरित होकर आनन्द प्राप्ति के लिए करते हैं।

4. खेल एक मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है-बच्चे प्रायः जब भी खेलते हैं तो वे बड़े प्रसन्न होते हैं। प्राय: देखा गया है कि कुशाग्र बुद्धि एवं मानसिक रूप से स्वस्थ बालक खूब खेल खेलते हैं। वे प्रत्येक कार्य को खेल समझकर ही करते हैं।

5. खेल द्वारा सद्गुणों का विकास होता है-बच्चों की रुचि, चरित्र, ज़िम्मेदारी तथा मिल-जुलकर काम करने की भावना का विकास खेल के मैदान में ही होता है। जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य सन्तोषजनक नहीं होता।

प्रश्न 1. (A)
खेल के तीन मापदण्ड बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 2.
बालकों के खेल की विशेषताएं क्या हैं ?
अथवा
बालकों के खेल की किन्हीं तीन विशेषताओं के बारे में लिखें।
उत्तर :
अध्ययन के पश्चात् यह ज्ञात हुआ है कि बालक के खेलों की कुछ विशेषताएं होती हैं। बालक के खेल, युवा के खेलों से भिन्न होते हैं। बालकों के खेल की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
1. बालक अपनी इच्छानुसार खेलता है – छोटे बालकों के खेल में स्वतन्त्रता का अंश अधिक होता है। जब वह चाहता है, तब खेलता है। जहां चाहता है, वहां खेलता है। जो खिलौने उसे पसन्द आते हैं, उन्हीं से खेलता है। खेलने के लिए समय और स्थान का कोई बन्धन बालक को मान्य नहीं है। आयु वृद्धि के साथ-साथ बालकों के खेल में औपचारिकता का अंश बढ़ता जाता है।

2. खेल परम्परा से प्रभावित होते हैं – यह देखा जाता है कि बालक अधिकतर वही खेल खेलते हैं जो उनके परिवार में खेले जाते हैं । शतरंज, ताश, क्रिकेट, बास्केटबॉल आदि खेल-कूद के विषय में यही देखा जाता है।

3. खेलों का निश्चित प्रतिमान होता है-बालक की आयु, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, देश व वातावरण को देखकर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि बालक कौन-कौन से खेल खेलता होगा। आयु के अनुसार तीन महीने का बालक वस्तुओं को छू-छू कर खेल का अनुभव करता है। एक साल का बालक खिलौने से खेलना प्रारम्भ करता है। सात-आठ साल तक अधिकतर बच्चे खिलौना पसन्द करते हैं। जब बालक स्कूल जाता है तो खेल-कूद में भाग लेना प्रारम्भ कर देता है। दस साल के बाद अधिकतर बालक दिवास्वप्न देखने शुरू कर देते हैं। अब वह अपना अधिक समय खेल-कूद में न बिताकर कहानियां पढ़ने, अकेले में दिवास्वप्न देखने में व्यतीत करते हैं।

4. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं-जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, बालक की खेलों के प्रति रुचि घटती जाती है।

5. आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक खेल का समय घटाता जाता है क्योंकि खेल के अलावा वह अपना समय अन्य कामों में व्यतीत करता है।

6. बड़े होने पर बालक की रुचि किसी एक विशेष खेल में हो जाती है और उसी में वह अपना समय व्यतीत करता है।

7. आयु के साथ-साथ खेल के साथियों की संख्या भी कम होती जाती है।

8. पाँच-छ: साल की आयु के बाद बालक अपने ही लिंग के बच्चों के साथ खेलना पसन्द करता है।

9. जन्म से छ: सात वर्ष की आयु तक बालक के खेल अनौपचारिक होते हैं। बाद में वह केवल औपचारिक खेल खेलना पसन्द करते हैं।

10. बड़े हो जाने पर बालक सिर्फ वही खेल खेलना अधिक पसन्द करते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति कम खर्च होती है।

11. बालक खेल में जोखिम उठाते हैं। पेड़ों पर चढ़ना, साइकिल चलाना, तैरना आदि ऐसे ही खेल हैं। जोखिम भरे खेलों में बालकों को आनन्द आता है।

12. खेलों में आवृत्ति का अंश रहता है। बालक किसी खेल को बार-बार खेलना चाहता है।

प्रश्न 3.
खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
बालक के खेलों के प्रकार लिखिए।
अथवा
कार्ल ग्रूस व हरलॉक के अनुसार खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बच्चों के खेलों में व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है। इसी भिन्नता के आधार पर खेलों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है

उपर्युक्त खेलों के अतिरिक्त कार्लस ने खेलों को क्रमशः पाँच भागों में बांटा है –

  1. परीक्षणात्मक खेल-इन खेलों का मूल आधार जिज्ञासा है। बालक वस्तुओं को उलट-पुलट कर देखते हैं। खिलौने को तोड़कर फिर जोड़ते हैं।
  2. गतिशील खेल-इन खेलों की क्रिया में उछलना-कूदना, दौड़ना, घूमना आदि आता है।
  3. रचनात्मक खेल-इन खेलों में बच्चों की रचनात्मक प्रवृत्ति कार्य करती है। इसके अन्तर्गत ध्वंस तथा निर्माण दोनों ही प्रकार के खेल आते हैं।
  4. लड़ाई के खेल-यह खेल व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों प्रकार के होते हैं। इसमें हार और जीत प्रकट करने वाले खेल होते हैं।
  5. बौद्धिक खेल-इसमें बुद्धि का विकास करने वाले खेल सम्मिलित हैं, जैसे पहेलियां, शतरंज, बॅनो, मल्टिइलेक्ट्रो खेल आदि।

हरलॉक के अनुसार, खेल को निम्नलिखित प्रकारों में बाँटा जा सकता है –

  1. बालकों के स्वतन्त्र तथा स्वप्रेरित खेल
  2. कल्पनात्मक खेल
  3. रचनात्मक खेल
  4. क्रीड़ाएं।

1. स्वप्रेरित खेल – प्रारम्भ में बालक जो खेल खेलता है वे स्वप्रेरित होते हैं। कुछ महीनों का बालक अपने हाथ-पैरों को हिला-डुलाकर खेलता है। तीन महीनों के बाद उसके हाथों में इतनी शक्ति आ जाती है कि वह खिलौनों से खेल सके।

2. कल्पनात्मक खेल – बालक के कल्पनात्मक अभिनय का विशिष्ट समय 11-2 वर्ष की अवस्था है। प्रमुख कल्पनात्मक खेलों में घर बनाना, उसे सजाना, भोजन बनाना और परोसना, माता-पिता के रूप में छोटे-बड़े बालकों का पालन-पोषण करना, वस्तुएं खरीदना तथा बेचना, मोटर-गाड़ी, नाव आदि की सवारी करना, पुलिस का अफसर बनकर चोरों को पकड़ने का अभिनय करना, शत्रु को जान से मार डालने तथा मरने का अभिनय करना, सैनिक खेल आदि आते हैं।

3. रचनात्मक खेल – वास्तविकता कम तथा कल्पना के अधिक अंश वाले बालकों में रचनात्मक खेलों की प्रवृत्ति नहीं मिलती। रचनात्मक खेलों में गीली मिट्टी तथा बालू से मकान बनाना, मनकों से माला बनाना, कागज़ को कैंची से काटकर अनेक वस्तुएं बनाना, बालिकाओं में गुड़िया बनाना, गुड़ियों के रंग-बिरंगे कपड़े सीना, रंगदार कागज़ से रंग-बिरंगे फूल बनाना आदि खेल आते हैं।

4. क्रीड़ाएं – बालक 4-5 वर्ष की आयु में अपने पास-पड़ोस के बालक-बालिकाओं के साथ अनेकों क्रीड़ाएं करता है, जैसे-आँख-मिचौली, राम-रावण, चोर-सिपाही आदि।

प्रश्न 3A.
खेल कितने प्रकार के होते हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 3B.
बौद्धिक खेलों से आप क्या समझते हैं ? इन खेलों के दो उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3.

प्रश्न 4.
खेल का बालक के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेलों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
खेल-खेल शब्द का इतना अधिक सामान्य-सा प्रचलन हो गया है कि यह अपनी वास्तविक महत्ता खो बैठा है। खेल का मतलब परिणाम की चिन्ता किए बिना आनन्ददायक क्रिया में संलग्न रहने से है। इसका सम्बन्ध कार्य से नहीं है। कार्य का अर्थ किसी उद्देश्य की पूर्ति करना है। खेल एक सरल क्रिया है। बालक का खेल के माध्यम से सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक, भाषा आदि का सर्वांगीण विकास होता है। बेलेन्टीन के अनुसार, “खेल एक प्रकार का मनोरंजन है।” खेल का महत्त्व अग्रलिखित है

1. खेल का सामाजिक महत्त्व – खेल के माध्यम से बालकों में पारस्परिक सम्पर्क स्थापित होता है तथा इस मधुर सम्पर्क के परिणामस्वरूप जातिगत भेद-भाव, ऊँच-नीच के विचार एवं आपसी संघर्षों की सम्भावना कम होने लगती है। खेल में सदैव ही सहयोग की आवश्यकता होती है। खेल के समय विकसित हुई सहयोग की यह भावना जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी विकसित हो जाती है। इसके अतिरिक्त खेल के ही माध्यम से विभिन्न सद्गुणों का विकास होता है तथा बालक सम्भवतः अनुशासन, नियम पालन, नेतृत्व तथा उत्तरदायित्व आदि के प्रति सजग हो जाते हैं। इन सब आदतों, सद्गुणों एवं भावनाओं का जहाँ एक ओर सामान्य जीवन में लाभ है, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी इनसे पर्याप्त लाभ होता है।

2. खेल का मानसिक एवं बौद्धिक क्षेत्र में महत्त्व – प्रत्येक बालक के लिए उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी अत्यधिक आवश्यक होता है। खेल से इस विकास में विशेष योगदान प्राप्त होता है। खेल से विभिन्न मानसिक शक्तियों जैसे कि प्रत्यक्षीकरण, स्मरणशक्ति, कल्पना तथा संवेदना आदि का समुचित विकास होता है। खेल के ही माध्यम से कुछ ऐसी योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास होता है जो मानसिक सन्तुलन, नियन्त्रण तथा रचनात्मकता के विकास में सहायक होती हैं। खेल द्वारा ही बालकों की शब्दावली तथा भाषा का भी विकास होता है।

3. खेल द्वारा संवेगात्मक विकास – बालक के उचित संवेगात्मक विकास में भी खेल से समुचित योगदान मिलता है। खेल द्वारा बालक अपने संवेगों को स्थिरता प्रदान करके नियन्त्रित रूप में रख सकते हैं। खेलों में समुचित रुचि लेने से बालकों में पायी जाने वाली कायरता, चिड़चिड़ापन, लज्जाशीलता तथा वैमनस्य के भावों को समाप्त किया जा सकता है। कुछ बालक विभिन्न कारणों से यथार्थ जीवन से पलायन करके दिवास्वप्नों में खोये रहने लगते हैं। वह प्रवृत्ति भी खेलों में भाग लेने से समाप्त की जा सकती है। समुचित संवेगात्मक विकास के परिणामस्वरूप बालक शिक्षा में भी सही रूप से विकास कर सकते हैं।

4. शारीरिक विकास में खेलों का महत्त्व – यह एक निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक बालक का समुचित शारीरिक विकास होना अनिवार्य है। शारीरिक स्वास्थ्य का विशेष महत्त्व है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नियमित रूप से खेलों में भाग लेना विशेष महत्त्व रखता है। खेलों से जहाँ स्वास्थ्य का विकास होता है, वहीं साथ ही साथ व्यक्ति में पर्यावरण के साथ अनकूलन की क्षमता बढ़ती है तथा रोगों से बचने की प्रतिरोधक शक्ति भी विकसित होती है।

5. व्यक्तित्व के विकास में खेलों का महत्त्व – व्यक्तित्व के समुचित विकास में भी खेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। खेलों के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व सम्बन्धी विभिन्न गुणों का विकास होता है तथा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है।

6. खेलों का शैक्षिक महत्त्व – विभिन्न दृष्टिकोणों से खेल के शैक्षिक महत्त्व को भी स्वीकार किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन की गम्भीर एवं महत्त्वपूर्ण समस्या है। अब यह माना जाने लगा है कि यदि बालक की पाश्विक मूल प्रवृत्तियों का शोधन हो जाये, तो वह सामान्य रूप से अनुशासित रह सकता है तथा खेल के माध्यम से इस उद्देश्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है। ऐसा देखा गया है कि बच्चे खेल के मैदान में आज्ञा-पालन

सरलता से कर लेते हैं। आज्ञा-पालन की यह आदत अन्य क्षेत्रों में भी प्रकट होने लगती है। शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक ज्ञान प्रयोग करके ही प्राप्त किया जा सकता है अर्थात् प्रयोगात्मक कार्य उत्तम समझा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में खेल के समावेश से यह उद्देश्य पूरा हो जाता है। शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्धारण में भी खेल के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। खेल से बालकों में स्वतन्त्रता, स्वाभाविकता तथा स्फूर्ति का संचार होता है।

प्रश्न 4. (A)
बच्चों के जीवन में खेल की दो उपयोगिताएं बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 4 का उत्तर।

प्रश्न 5.
जन्म से छ: साल तक के बच्चों के लिये खेल की सामग्री का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बालक के खेलों के लिए खिलौनों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक आयु की अपनी-अपनी माँग होती है। बच्चों को वही खिलौने देने चाहिएं जो कि उनके लिए उपयोगी हों।

1. जन्म से एक वर्ष तक के बच्चों के खिलौने – तीन से नौ महीने के बालक में प्रवृत्ति होती है कि वह प्रत्येक वस्तु को अपने मुँह में रखता है। अत: उनके लिए ऐसे खिलौने होने चाहिएं जो नरम हों, रबर, स्पंज, कपड़े आदि के बने हों। यह ध्यान रखना चाहिए कि खिलौना गन्दा न हो, उस पर धूल-मिट्टी न लगी हो। खिलौने की बनावट ऐसी हो कि यदि बच्चा उसे मुंह में रखे तो उसे कोई चोट न आए और सरलता से मुंह में रख सके। इस आयु में बच्चों को ध्वनि अच्छी लगती है। अतः उसे ध्वनि करने वाले खिलौने जैसे झुनझुना, सीटी लगे रबर के खिलौने भी दिये जा सकते हैं।

2. एक से दो साल के बच्चों के खिलौने – ऐसे बच्चों को रबर, लकड़ी, प्लास्टिक आदि के बने खिलौने जैसे जानवर, ट्रेन, मोटर, हवाई जहाज़ आदि खेलने के लिए देना चाहिए जिससे उनके वातावरण का ज्ञान बढ़े। एक-दूसरे में फंसने वाले खिलौने भी देने चाहिएं जिससे उनके स्नायुओं का विकास होता है तथा रचनात्मक कार्यों से मानसिक विकास भी होता है। दो साल के बच्चे में नकल करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। ऐसे बच्चों को गुड़िया आदि खेलने के लिए दिए जा सकते हैं।

3. तीन-चार साल के बच्चों के खिलौने – इस अवस्था में बच्चों को मोटर, ट्रेन, हेलीकॉप्टर आदि चाबी से चलने वाले खिलौने देने चाहिएं। खेल-कूद का सामान भी देना चाहिए, जैसे-गेंद, बल्ला आदि। इसके अलावा बिल्डिग ब्लॉक, मीनार बनाने का सामान, सीढ़ी बनाने का सामान आदि। इसके द्वारा बालक का मानसिक, गत्यात्मक विकास होता है। अब बच्चा रंग और माडलिंग में विशेष रुचि लेने लगता है। वह फर्श, दीवार पर लकीरें खींचता है। बालक को माडलिंग के लिए मिट्टी व प्लास्टीसीन देना चाहिए।

4. पाँच साल का बालक चित्र बनाने लगता है। उसे रंग दिए जा सकते हैं। वह कैंची से कागज़ काट सकता है।

5. छ: साल का बालक छोटे – छोटे खिलौने जैसे बर्तन, गुड़िया, इंजन, सोफा सैट आदि पसन्द करता है। बालक अब छोटे-छोटे ड्रामा भी खेलता है। इसलिए उसे ड्रामा से सम्बन्धित सामग्री प्रदान करनी चाहिए। घरेलू खेलों में बालक को लूडो, साँप-सीढ़ी आदि खेलने को देना चाहिए। इस समय बच्चा ट्राइसिकल व बाइसिकिल भी चलाना सीख जाता है। चाबी वाले बड़े खिलौने भी बालकों को पसन्द आते हैं।

प्रश्न 6.
खेल के गुण उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर :
खेल के निम्नलिखित गुण हैं –
1. खेल बच्चों को आनन्दित करता है।
उदाहरण – बच्चा रसोई में जाता है और कटोरी, चम्मच उठाकर उन्हें बजाने लगता है। उसे ध्वनि सुनने में मजा आता है। अतः वह उसे बजाता ही जाता है। वह यह खेल इसीलिए खेल रहा है क्योंकि उसे मजा आ रहा है।

2. खेल एक स्वाभाविक क्रिया है।
उदाहरण – एक बच्ची अपनी गुड़िया से खेल रही है। वह गुड़िया को नहलाती है, उसके बाल संवारती है, उससे बातें करती है, एवम् उसे थपकियां देकर सुलाती है। यह सब कुछ स्वाभाविक है। कोई उसे गुड़िया से इस तरह खेलना नहीं सिखाता।

3. खेल गम्भीर होता है।
उदाहरण – बच्चा किताब लेकर पढ़ता है। हालांकि उसने किताब उल्टी पकड़ी होती है पर फिर भी वह उसे गम्भीरता से पढ़ता है व एक काल्पनिक कहानी भी गढ़ लेता है।

4. खेल जिज्ञासा से पूर्ण होता है।
उदाहरण – जब भी बच्चे को नया खिलौना दिया जाता है वह उसे जिज्ञासापूर्ण नज़रों से देखता है। फिर वह उसे उलट-पुलट कर देखेगा और कभी तो खोलकर उसे अन्दर लगे कल-पुर्जी के बारे में जानने की कोशिश करेगा क्योंकि उसके अन्दर नई चीज़ के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है।

5. खेल शान्त या चंचल होता है।
उदाहरण – कभी बच्चा चुपचाप कमरे के एक कोने में बैठ जाता है और अपने हाथ में पकड़ी हुई चीज़ से खेलता है; जैसे ताला-चाबी। वह चाबी से ताले को खोलने की कोशिश करता है। इस तरह वह शान्ति से खेल रहा है।
कभी-कभी बच्चा चारपाई पर कूदता है और इस हलचल का आनन्द लेता है। इस खेल में चंचलता है।

प्रश्न 7.
नीचे दिए गए खेलों को खेल के गुणों के आधार पर वर्गीकृत कीजिए। वर्गीकरण के लिए निम्नलिखित चिन्हों का प्रयोग करें
स्वः स्वाभाविक
च : चंचल
ग : गम्भीर
नि: निरुद्देश्य जि: जिज्ञासापूर्ण शां: शान्त –
1. पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है।
2. अपने कमरे में बैठकर बच्चा ताश से खेलता है।
3. बच्चा फुटबाल खेल रहा है।
4. फिसल पट्टी पर बार-बार चढ़कर फिसलता है।
5. एक गिलास से दूसरे गिलास में पानी पलटता है।
6. किताब के पन्ने पलटता है।
7. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखता है।
8. गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है।
9. झुनझुना बजाता जाता है।
10.  निरन्तर कूदता रहता है।
उत्तर :
1. स्व. 2. शां. 3. चं. 4. नि. 5. नि. 6. जि. 7. जि. 8. नि. 9. ग. 10. ग.।

प्रश्न 8.
खेलों का बच्चों के विकास पर क्या लाभप्रद प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेल की क्या आवश्यकता है ?
अथवा
बच्चों के जीवन में खेल के कोई दो महत्त्व लिखें।
उत्तर :
खेल इसीलिए आवश्यक है क्योंकि वह बच्चे के विकास के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक।
1. शारीरिक विकास – खेल शरीर के विकास को प्रभावित करते हैं। खेल से बच्चे की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है। खेल से हाथों व आंखों के समन्वय में ताल-मेल बैठाता है। बचा शरीर को सन्तुलित करना सीखता है। इसके अलावा खेलते समय बच्चे अपने शरीर की मांसपेशियों और गति पर नियन्त्रण पाना सीखते हैं।

2. मानसिक विकास – खेल द्वारा बच्चा अपने आस-पास की वस्तुओं के बारे में सब कुछ जान लेता है जैसे रंग, आकार इत्यादि। वह विभिन्न चीज़ों को देखता है, छूता है, अनुभव करता है, चखता है और इस तरह से उन्हें जान लेता है।

3. सामाजिक विकास – बच्चे खेल द्वारा ओर सामाजिक बनते हैं अर्थात् वह सामाजिक व्यवहार सीखते हैं जैसे अपनी चीजें दूसरों के साथ बांटना, अपनी बारी का इन्तज़ार करना, दोस्तों के साथ ताल-मेल बिठाना आदि। इसके अलावा खेल द्वारा बच्चे नकल से वयस्कों (adults) की भूमिकाएं सीखते हैं।

4. भावनात्मक विकास – बच्चे खेल द्वारा अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण करना सीखते हैं। उन्हें अपने रोने, हंसने, चिल्लाने पर काबू करना आ जाता है। उन्हें यह समझ आ जाती है कि अपने मन के भावों को किस तरह बाहर लाना है और उनकी दूसरों के सामने अभिव्यक्ति कैसे करनी है।

5. नैतिक विकास – खेल द्वारा बच्चे अनेक नैतिकता की बातें सीखते हैं जैसे सच्चाई, ईमानदारी, गुस्सा न करना, झूठ न बोलना आदि।

प्रश्न 9.
कॉलम ” में दिए गए कथनों को कॉलम ‘II’ के कथनों से मिलाएं।

कॉलम – I कॉलम – II
1. खेल से बच्चे 1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे 2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो 3. तो वह आकार के विषय में जानता है
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे 4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है 5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
6. उसे स्कूल में खेलना होगा।

उत्तर :

कॉलम – I कॉलम – II
1. खेल से बच्चे 4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे 1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो 5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे 2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है 3. तो वह आकार के विषय में जानता है

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से उन कथनों पर (✓) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को दर्शाते हैं और उन पर (✗) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को नहीं दर्शाते।
1. लम्बाई में बढ़ोत्तरी
2. गत्यात्मक नियन्त्रण
3. गुस्से पर नियन्त्रण
4. आसन सुधरता है
5. भाषा का विकास
6. गणित के सवाल हल करना
7. बेहतर निबन्ध लिख पाना
8. अपनी बारी का इन्तजार करना
9. आऊट दिए जाने पर बिना बहस किए चले जाना
10. गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
(1), (4), (6), (7) ✗ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को नहीं दर्शाते। (2), (3), (5), (8), (9) (10) ✓ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को दर्शाते हैं।

प्रश्न 11.
खिलौने खरीदते वक्त आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे जिनके आधार पर आप खिलौनों का चयन करेंगे ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों का चयन करते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगे ?
अथवा
खिलौनों का चुनाव करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखोगे ?
उत्तर :
खिलौने खरीदते समय या उनका चयन करते समय हम अग्रलिखित बातों का ध्यान रखेंगे –

1. बच्चे की उम्र – खिलौनों का चयन करते समय बच्चे की आयु का ध्यान अवश्य रखें; जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए झुनझुना खरीदें क्योंकि उसे आवाज़ अच्छी लगती है। एक साल के बच्चे के लिए ऐसा खिलौना खरीदें जिसे रस्सी से खींचा जा सकता है इत्यादि।
2. खिलौने का सुरक्षित होना – जो खिलौने आप बच्चे के लिए ले रहे हैं वह सुरक्षित होने चाहिएं। वह खुरदरे या नोकीले नहीं होने चाहिएं। उन पर लगे रंग आई० एस० आई० प्रमाणित होने चाहिएं। घटिया रंग ज़हरीले होते हैं।
3. खिलौने टिकाऊ हों – जहां तक सम्भव हो नाजुक और कमज़ोर खिलौने न खरीदें। प्लास्टिक के खिलौनों की अपेक्षा लकड़ी व रबड़ के खिलौने ज्यादा चलते हैं।
4. खिलौने महंगे न हों – खिलौने महंगे न हों अन्यथा आप सारा समय बच्चे को ध्यान से खेलने की हिदायत देते रहेंगे। इससे बच्चा ठीक से खेल नहीं पाएगा और खिलौने से खेलना छोड़ देगा।
5. खिलौने आकर्षक हों – बच्चे का खिलौना खरीदते समय यह देख लें कि खिलौना देखने में आकर्षक हो। यदि बच्चे को खिलौने का रंग या आकार पसन्द नहीं आएगा तो वह उससे नहीं खेलेगा।

प्रश्न 12.
बच्चों के लिए खेल का क्या महत्त्व है ?
अथवा
खेल बच्चों के लिए क्यों जरूरी है ?
उत्तर :

  1. खेलने से बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास अधिक होता है।
  2. खेल द्वारा बच्चा अपने साथियों के साथ मिल-जुल कर रहना सीखता है।
  3. खेलों द्वारा बच्चे जिन्दगी में जीत तथा हार को सहना सीखते हैं।
  4. खेलों द्वारा बच्चे की काल्पनिक शक्ति भी विकसित होती है।।
  5. खेलों में व्यस्त रहने के कारण बच्चा बुरे कार्यों से बचा रहता है।
  6. खेलों द्वारा बच्चे अपने जीवन में भिन्न-भिन्न भूमिकाएं निभाना सीखते हैं।

जैसे लड़कियां गुड़िया के खेल द्वारा एक माँ, बहन तथा दोस्त की भूमिका निभाना सीखती हैं। इसी तरह लड़के खेलों द्वारा डॉक्टर पुलिस, फौजी, व्यापारी आदि बनना सीखते हैं।

प्रश्न 13.
(क) बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न खेलों के लिए खेल सामग्री का चुनाव करते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
(ख) तीन वर्षीय बालिका की माता को सुरक्षित खिलौना खरीदने के लिए कौन-कौन सी बातों का निरीक्षण करना होगा ?
उत्तर :
(क) 1. आयु वर्ग (Age Group) – प्रत्येक आयु में बच्चे का शरीर तथा मानसिक विकास एक जैसा नहीं होता। इस लिए बच्चे के खिलौनों का चुनाव उनकी आयु को ध्यान में रख कर करना चाहिए जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए भार में हल्के तथा आवाज़ पैदा करने वाले खिलौने लेने चाहिएं। जब बच्चा चलने लग जाए तो उस को चाबी वाले खिलौने तथा चलने वाले खिलौने पसंद आते हैं। इस के बाद 2-3 साल वर्ष के बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न ब्लाक्स (blocks) का चुनाव किया जाना चाहिए। आजकल बाजार में प्रत्येक आयु वर्ग के बच्चों के मानसिक तथा शारीरिक विकास को ध्यान में रखते हुए कई तरह के खिलौने तथा गेम्स मिलती हैं जैसे बिज़नस गेम, विडियो गेम, कैरम बोर्ड आदि। कोई भी खेल या खिलौना खरीदते समय बच्चे की आयु को ध्यान में रखना चाहिए।

2. रंगदार (Colourful) – बच्चों के खिलौने भिन्न-भिन्न रंगों तथा आकर्षक होने चाहिए। प्राय: बच्चों को तेज़ रंग जैसे लाल, पीला, नीला, संगतरी आदि पसंद होते हैं। परन्तु यह ध्यान में रखें कि खिलौनों के रंग पक्के हों क्योंकि बच्चे को प्रत्येक वस्तु मुंह में डालने की आदत होती है। यदि रंग घुलनशील हो, तो बच्चे को हानि पहुँच सकती है।

3. अच्छी गुणवत्ता (Good Quality) – प्रायः खिलौने रबड़ तथा प्लास्टिक के बने होते हैं। खिलौने खरीदने के समय यह देखना आवश्यक है कि बढ़िया रबड़ या प्लास्टिक का प्रयोग किया गया हो जो जल्दी टूट न सके। घटिया गुणवत्ता के खिलौने शीघ्र टूट जाते हैं तथा बच्चे टूटे-फूटे टुकड़े उठा कर मुंह में डाल सकता है। जो बच्चे के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं।

4. शिक्षात्मक (Educational) – खिलौने शिक्षात्मक होने चाहिए ताकि बच्चा उनके साथ खेलता हुआ कुछ ज्ञान भी प्राप्त कर सके क्योंकि बच्चा खेलों द्वारा अधिक सीखता है। भिन्न-भिन्न रंगों, आकारों तथा संख्या का ज्ञान बच्चे को आसानी से खिलौनों की सहायता के साथ दिया जा सकता है।

5. सफाई में आसानी (Easy to Learn) – खिलौने ऐसी सामग्री के बने हों जिन्हें सरलता के साथ साफ किया जा सके जैसे प्लास्टिक तथा सिंथैटिक खिलौने सरलता से साफ हो सकते हैं।

6. सुरक्षित सामग्री (Safe Material) – खिलौनों का सामान मज़बूत नर्म, रंगदार तथा भार में हल्का होना चाहिए। खिलौनों के भिन्न-भिन्न भाग ठीक ढंग से मज़बूती के साथ जुड़े हो। इनकी नुक्करें तेज़ न हों नहीं तो यह बच्चे को खेल के समय हानि पहुंचा सकती हैं।

7. लड़के तथा लड़कियों के खिलौने (Boys and Girls Toys) – खिलौने लड़के तथा लड़कियों के लिए भिन्न-भिन्न खरीदने चाहिएं। लड़कियां अधिकतर गुड़िया, घरेलू सामान तथा श्रृंगार के सामान से खेलना पसन्द करती हैं जबकि लड़के कारों, बसों, ट्रैक्टर, बैटबाल, फुटबाल आदि के साथ खेलना पसन्द करते हैं। खिलौनों का चुनाव बच्चे की आयु तथा लिंग को ध्यान में रख कर करना चाहिए।

8. खिलौनों की कीमत (Cost of Toys) – अधिक महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं क्योंकि महंगे खिलौने टूट जाने पर माँ-बाप बच्चों को डांटते हैं पर बच्चा सदा ही अपने ढंग से खेलना चाहता है। इसलिए खिलौना इतना महंगा न हो कि खराब होने पर दु:ख हो।

9. संभालने का स्थान (Storage Space) – खिलौनों को संभालने के लिए व्यापक स्थान होना चाहिए ताकि उनको ठीक ढंग से रखा जा सके तथा खिलौने टूट-फूट से बच सकें। इसलिए हर नया खिलौना खरीदने से पहले उस को सम्भालने के स्थान को ध्यान में रखना आवश्यक है।

10. खिलौने बहुत अधिक न खरीदें (Not to Buy too Many Toys) – यदि घर में बहुत अधिक खिलौने हों, तो बच्चा किसी भी खिलौने का पूरा लाभ नहीं उठाता इसलिए बहुत अधिक खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।

बच्चों के खेलने के लिए कौन-से भिन्न-भिन्न किस्म के खिलौने होते हैं –

  1. रंगदार तथा आवाज़ करने वाले खिलौने
  2. चलने वाले खिलौने
  3. चाबी वाले खिलौने
  4. भिन्न-भिन्न तरह के ब्लाक्स
  5. घर में खेलने वाली खेलें जैसे लुडो, कैरम-बोर्ड, बिजनैस, वीडियो गेम आदि।
  6. विशेषतः लड़कियों के लिए किचन सैट, डरैसिंग सैट, डॉक्टर सैट, गुड़िया आदि।
  7. घर से बाहर खेलने वाली खेल जैसे बैडमिंटन, बैटबाल, हॉकी, फुटबाल, रस्सी कूदना आदि।

(ख) देखें प्रश्न (क) का उत्तर।

एक शब्द/रक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) एक शब्द में उत्तर दें –

प्रश्न 1.
साथियों की संख्या के आधार पर खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 2.
किसके अनुसार खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है ?
उत्तर :
थॉमसन के अनुसार।

प्रश्न 3.
गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देना कैसा खेल है ?
उत्तर :
निरुद्देश्य खेल।

प्रश्न 4.
फुटबॉल खेलना कैसा खेल हैं ?
उत्तर :
चंचल खेल।

प्रश्न 5.
पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है कैसा खेल है ?
उत्तर :
स्वभाविक खेल।

प्रश्न 6.
शतरंज कैसा खेल है ?
उत्तर :
शान्त तथा दिमागी।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. लूडो ………… खेल है।
2. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखना ……… खेल है।
3. खेलों से बच्चों को ………… की प्राप्ति होती है।
4. शुरू में बालक ……… खेल खेलता है।
उत्तर :
1. घरेलू
2. जिज्ञासापूर्ण
3. आनन्द
4. स्वप्रेरित।

(ग) निम्न में गलत अथवा ठीक बताएं –

1. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे संवेगात्मक व्यवहार सीखते है।
3. जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन होता है। उसका मानसिक व शारीरिक विकास सन्तोषजनक नहीं होता।
4. खिलौनों का रंग पक्का होना चाहिए।
5. बच्चे का पतंग लेकर भागना खेल नहीं है।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक
5. गलत।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
घर के अन्दर खेले जाने वाला खेल नहीं है –
(A) हॉकी
(B) ताश
(C) शतरंज
(D) कैरम।
उत्तर :
हॉकी।

प्रश्न 2.
निम्न में खेल नहीं है –
(A) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(B) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(C) माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना
(D) बच्चे का पतंग लेकर भागना।
उत्तर :
माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना।

प्रश्न 3.
कार्लग्रूस ने खेलों को कितने भागों में बांटा है –
(A) एक
(B) तीन
(C) पांच
(D) सात।
उत्तर :
पांच।

प्रश्न 4.
निम्न में चंचल खेल है –
(A) पार्क में पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है
(B) फुटबाल खेलना
(C) गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है
(D) खिलौना तोड़ कर उसके अन्दर देखता है।
उत्तर :
फुटबाल खेलना।

प्रश्न 5.
निम्न में खेल कार्य नहीं है
(A) गणित के सवाल हल करना
(B) गत्यात्मक नियन्त्रण
(C) गुस्से पर नियन्त्रण
(D) गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
गणित के सवाल हल करना

प्रश्न 6.
ऑक्सीकरण की क्रिया कब पूर्ण होती है-
(A) हाइड्रोजन मिलने पर
(B) ऑक्सीजन मिलने पर
(C) नाइट्रोजन मिलने पर
(D) कार्बन डाइऑक्साइड मिलने पर।
उत्तर :
ऑक्सीजन मिलने पर।

प्रश्न 7.
समूह में खेलते हुए बच्चे ……………. सीखते हैं
(A) काल्पनिक व्यवहार
(B) सामाजिक व्यवहार
(C) संवेगात्मक व्यवहार
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 8.
कमरे में बैठकर ताश खेलने को खेल के गुणों के आधार पर किस प्रकार के खेल में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(A) निरुद्देश्य खेल
(B) जिज्ञासापूर्ण खेल
(C) शान्त खेल
(D) गम्भीर खेल।
उत्तर :
शान्त खेल।

प्रश्न 9.
खिलौने को खरीदते समय किस बात को ध्यान में रखना चाहिए :
(A) आयु वर्ग
(B) रंग-बिरंगे
(C) अच्छी गुणवत्ता
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 10.
नैतिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है –
(A) सहनशीलता की भावना का विकास
(B) तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होना
(C) व्यायाम होना
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
सहनशीलता की भावना का विकास।

प्रश्न 11.
खेलों से बच्चों को …………. की प्राप्ति होती है –
(A) पैसों
(B) आनन्द
(C) ऊर्जा.
(D) समयः।
उत्तर :
आनन्द।

प्रश्न 12.
जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका ………… सन्तोषजनक नहीं होता
(A) मानसिक विकास
(B) शारीरिक विकास
(C) मानसिक और शारीरिक विकास
(D) सामाजिक विकास।
उत्तर :
मानसिक और शारीरिक विकास।

प्रश्न 13.
खेल की क्रियाएं आयु के साथ ………. हैं।
(A) घटती
(B) बढ़ती
(C) समान रहती
(D) सामान्य।
उत्तर :
घटती।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से बौद्धिक खेल कौन-सा है ?
(A) हॉकी खेलना
(B) शतरंज
(C) दौड़ लगाना
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

प्रश्न 15.
शुरू में बालक कौन-से खेल खेलता है ?
(A) स्वप्रेरित
(B) कल्पनात्मक
(C) रचनात्मक
(D) क्रीड़ाएं।
उत्तर :
स्वप्रेरित।

प्रश्न 16.
क्रीड़ायें बच्चों के लिए फायदेमंद हैं, क्योंकि ये प्रदान करती हैं –
(A) मनोरंजन
(B) धन
(C) भोजन
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
मनोरंजन।

प्रश्न 17.
बालकों के जीवन में मनोरंजन का क्या महत्त्व है ?
(A) सहनशीलता, त्याग, सच्चाई जैसे गुण उत्पन्न होते हैं
(B) संवेगों का प्रकाशन और नियंत्रण
(C) नैतिक व मानसिक विकास में सहायक
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 18.
गतिशील खेल कौन-सा है ?
(A) खिलौनों से खेलना
(B) उछलना-कूदना
(C) पहेलियां बूझना
(D) शतरंज खेलना।
उत्तर :
उछलना-कूदना।

प्रश्न 19.
खेलने से बच्चों का………… विकास होता है।
(A) शारीरिक
(B) मानसिक
(C) सामाजिक
(D) शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।
उत्तर :
शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।

प्रश्न 20.
खेलों को कौन-सा तत्त्व प्रभावित करता है ?
(A) साधन
(B) ऋतु
(C) वातावरण
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

प्रश्न 21.
घर के भीतर खेला जाने वाला कौन-सा खेल है ?
(A) ताश
(B) कैरम
(C) शतरंज
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

प्रश्न 22.
……………. से हड्डियों की मजबूती आती है।
(A) लोहा
(B) आयोडीन
(C) कैल्शियम
(D) वसा।
उत्तर :
कैल्शियम।

प्रश्न 23.
घर के भीतर खेले जाने वाला खेल कौन-सा है ?
(A) शतरंज
(B) हॉकी
(C) फुटबाल
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

खेल HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य।

→ बालकों का खेलना एक स्वाभाविक क्रिया है जो आत्म प्रेरित होती है और आनन्ददायक भी होती है।
→ खेल तथा मनोरंजन बालक के जीवन में प्रसन्नता, चंचलता, उत्साह, स्फूर्ति तथा स्वतन्त्रता के भाव उत्पन्न करते हैं।
→ खेल की अनेक विशेषताएं होती हैं जैसे यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, यह एक आत्मप्रेरित, शारीरिक व मानसिक प्रवृत्ति है, खेल का कोई गुप्त लक्ष्य नहीं होता, खेल का मुख्य लक्ष्य आनन्द और आत्म विश्वास प्राप्त करना होता है, बालक खेल के अन्तिम परिणाम पर कोई विचार नहीं करते आदि।
→ खेल और कार्य में अन्तर होता है।
→ खेल का बालक के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। खेल के आधार पर बालक के अनेक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक आदि गुणों का विकास होता है।
→ खेल के साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के होते हैं

  • समानान्तर खेल
  • सहचारी खेल तथा
  • सामूहिक खेल।

→ खेल के स्थान के आधार पर खेल दो प्रकार के होते हैं –
(i) घर के भीतर खेले जाने वाले खेल (इनडोर गेम्स) – जैसे ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, चायनीज चेकर, सांप-सीढ़ी आदि।
(ii) घर के बाहर खेले जाने वाले खेल (आउटडोर गेम्स) – जैसे क्रिकेट, फुटबाल, हाकी, बैडमिन्टन आदि।

→ ऐसा देखा गया है कि जो बालक पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त खूब खेलता है, वह सामान्यतः कुशाग्र बुद्धि का होता है।

→ खेल एक ऐसी क्रिया है जो बच्चे को अच्छी लगती है। बच्चा उसे अपनी खुशी से शुरू करता है। उसे करते हुए वह आनन्द अनुभव करता है और जब चाहे उसे समाप्त कर देता है। बच्चे का सारा दिन खेल से भरा होता है।

→ खेल के निम्नलिखित गुण हैं –

  • खेल अनायास व स्वाभाविक होता है।
  • खेल आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है।
  • खेल की शुरुआत बच्चा स्वयं करता है।
  • खेल बच्चे के लिए मज़ा है।
  • खेल कभी-कभी गंभीर एवं जिज्ञासा से पूर्ण भी हो सकता है।
  • खेल चंचल या शांत भी हो सकता है।

→ खेल बच्चे के शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक संवेगों के विकास एवम् नैतिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
→ खेल से बच्चे का शारीरिक विकास होता है, उसे बहुत चीज़ों का ज्ञान मिलता है, वह नई चीजें बनाना सीखता है, वह सामाजिक होकर अपने दोस्तों से तालमेल बिठाना सीखता है और अपने भावों पर नियन्त्रण पाना सीखता है। इसके अलावा सच बोलना, ईमानदार बनना आदि नैतिक गुण भी वह अपनाता है।

→ आयु के साथ खेल भी बदलते हैं। बहुत छोटे बच्चे (0-2 महीने तक) अपने आप से खेलना पसन्द करते हैं। वह अपने हाथ-पैर चलाते रहते हैं।

→ 2 महीने से 2 वर्ष के बच्चे खिलौनों को देखना व उनसे खेलना पसन्द करते हैं। अकेले बैठे हुए भी वह अपने खिलौनों से खेलते रहते हैं। दो साल के बच्चे समूह में खेलना पसन्द करते हैं हालांकि समूह का प्रत्येक बच्चा अपनी धुन में मस्त होता है।

→ दो साल से छः साल के बच्चों के खेलों में और बदलाव आ जाता है। वह साथ-साथ खेलना शुरू कर देते हैं। वह एक खिलौने से भी खेल सकते हैं।

→ बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं व अधिक सामाजिक बनते हैं। वह नए दोस्त बनाते हैं। उनके निर्धारित समूह होते हैं और वह नियम वाले खेल भी खेलते हैं। बड़े बच्चे अकेले भी खेल सकते हैं और समूह में भी।

→ खेलने के तरीके बदलने के साथ-साथ खिलौने भी बदल जाते हैं। अत: बच्चों को खिलौने खरीदते समय उनकी उम्र, खिलौने का टिकाऊपन, सुरक्षा, आकर्षणता, वृद्धि का स्तर आदि बातों का ध्यान अवश्य रखें।

→ यदि कीमती खिलौने खरीदने की बजाए आप बच्चों को घर के बने खिलौने देंगे जैसे कपड़े की बनी बिल्ली, माचिस की डिब्बी का झुनझुना आदि तो बच्चे इसे ज्यादा पसन्द करेंगे। ऐसे खिलौनों के साथ वह अपनी इच्छानुसार उठक-पटक कर सकते हैं। इस तरह वह नए विचार और खेल सोच पाते हैं।

→ यदि आप बच्चे को कीमती खिलौने देते हैं। तो आप सारा समय बच्चे को यही हिदायत देते हैं कि खिलौने टूट न जाएं। इस तरह बच्चा ठीक से खेल नहीं पाता और परिणामस्वरूप जल्द ही ऐसे खिलौने से खेलना छोड़ देता है। अतः घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर है।

खेल बच्चों के लिए क्यों आवश्यक है?

खेल से बच्चों का शारीरिक विकास, संज्ञानात्मक विकास, संवेगात्मक विकास, सामाजिक विकास एवम् नैतिक विकास को बढ़ावा मिलता है किन्तु अभिभावकों की खेल के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति एवम् क्रियाकलाप ने बुरी तरह प्रभावित किया हैं। अतः यह अनिवार्य है कि शिक्षक और माता-पिता खेल के महत्व को समझें।

बालक के जीवन में खेलों का क्या महत्व है?

बच्चों के सर्वांगीण विकास में खेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन खेलों द्वारा बालकों में त्वरित निर्णय क्षमता , वस्तुओं की जानकारी , समायोजन , समन्वय , सद्भाव , साहस , सहअस्तित्व जैसे गुणों का स्वभाव में स्वतः ही विकास हो जाता है एकल व समूह दोनों रूपों में खेले जाते हैं।

खेलों की जीवन में आवश्यकता क्यों है?

स्वस्थ शरीर और दिमाग काे विकसित करने के लिए खेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। खेल कई प्रकार के होते हैं, जाे हमारे शारीरिक के साथ मानसिक विकास में मदद करते हैं। लगातार पढ़ाई के दौरान कई बार तनाव की स्थिति होती है। ऐसे में खेल इस तनाव को दूर करने का बेहतर माध्यम है।

खेल का उद्देश्य क्या है?

खेल और खेलों का महत्व – खेल का मुख्य उद्देश्य, शारीरिक व्यायाम है। यह एक प्रसिद्ध उद्धरण है, “एक ध्वनि शरीर में एक ध्वनि दिमाग होता है”। जीवन में सफलता के लिए शरीर का स्वास्थ्य आवश्यक है। अस्वस्थ व्यक्ति हमेशा कमजोरी महसूस करता है, इस प्रकार आत्मविश्वास खो देता है और इसलिए बहुत सुस्त और सक्रिय हो जाता है।

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