अनुप्रास अलंकार के भेद कौन कौन से हैं? - anupraas alankaar ke bhed kaun kaun se hain?

अलंकार अक्षर का शाब्दिक अर्थ है आभूषण अर्थात गहना ।जिस प्रकार नारी अलंकार से युक्त होने पर सुंदर दिखती है उसी प्रकार काव्य होता है। महाकवि केशव ने अलंकारों को काव्य का अपेक्षित गुण माना है। उनके अनुसार "भूषण बिनु न विराजहि कविता,वनिता,मित्त।"उनकी दृष्टि में कविता तथा नारी भूषण के बिना शोभित नही होते हैं।

अलंकार के प्रमुख भेद[संपादित करें]

(1)शब्दालंकार,(2)अर्थालंकार।

शब्दालंकार[संपादित करें]

(1)शब्दालंकार जब कुछ विशेष शब्दों के कारण काव्य में चमत्कार पैदा होता है,वहाँ शब्दालंकार होता है। शब्दालंकार के अंतर्गत अनुप्रास,श्लेष,यमक तथा उसके भेद।

अर्थालंकार[संपादित करें]

(2)अर्थालंकार जो काव्य में अर्थगत चमत्कार होता है,वहाँ अर्थालंकार होता है।अर्थालंकार के अंतर्गत उपमा,रूपक,उत्प्रेक्षा,भ्रांतिमान,सन्देह,अतिशयोक्ति, अनंवय,प्रतीप,दृष्टांत आदि।


जहां एक या अनेक वर्णों की क्रमानुसार आवृत्ति केवल एक बार हो अर्थात एक या अनेक वर्णों का प्रयोग केवल दो बार हो, वहां छेकानुप्रास होता है। छेकानुप्रास का एक उदाहरण द्रष्टव्य है—

देखौ दुरौ वह कुंज कुटीर में बैठो पलोटत राधिका पायन।

मैन मनोहर बैन बजै सुसजै तन सोहत पीत पटा है।

उपर्युक्त पहली पंक्ति में 'द' और 'क' का तथा दूसरी पंक्ति में 'म' और 'ब' का प्रयोग दो बार हुआ है।

वर्णों की आवृत्ति को अनुप्रास कहते हैं। उदाहरण -

चारु चन्द्र की चंचल किरणें,

खेल रहीं थीं जल-थल में।

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी,

अवनि और अम्बरतल में॥

अनुप्रास के प्रकार[संपादित करें]

छेकानुप्रास जब वर्णों की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है तो वह छेकानुप्रास कहलाता है। उदाहरण -

मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥

वृत्यानुप्रासː जब एक ही वर्ण की आवृत्ति अनेक बार होती है तो वृत्यानुप्रास होता है। उदाहरण -

काम कोह कलिमल करिगन के।

लाटानुप्रास जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति होती है तो लाटानुप्रास होता है। उदाहरण -

वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिये मरे।

अन्त्यानुप्रास जब अन्त में तुक मिलता हो तो अन्त्यानुप्रास होता है। उदाहरण -

मांगी नाव न केवटु आना। कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना॥

श्रुत्यानुप्रास जब एक ही वर्ग के वर्णों की आवृत्ति होती है तो श्रुत्यानुप्रास होता है। उदाहरण -

दिनान्त था थे दिननाथ डूबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।

(यहाँ पर त वर्ग के वर्णों अर्थात् त, थ, द, ध, न की आवृति हुई है।)

सन्दर्भ[संपादित करें]

Anupras alankar ke sabhi bhed with lots of examples.

जिस प्रकार स्त्रियां अपने सौंदर्य के लिए शरीर पर आभूषण धारण करती है। उसी प्रकार काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए साहित्य को , और मुखर , प्रभावी और सुंदर बनाने के लिए अलंकार का प्रयोग किया जाता है।

अलंकार तीन प्रकार के हैं – 1 शब्दालंकार 2 अर्थालंकार 3 अभयालंकार।

( यहाँ हम केवल अनुप्रास अलंकार के विषय में विस्तार से लिख रहे हैं।)

सभी अलंकार के भेद और परिभाषा पढ़ने के लिए क्लिक करें

अनुप्रास अलंकार के भेद ( Anupras alankar ke bhed )

अनुप्रास दो शब्दों के मेल से बना है।  अनु + प्रास = अनु अर्थात पीछे प्रास अर्थात  वर्ण अर्थात वह वर्ण जो बार बार वाक्य में प्रयोग हो उसे अनुप्रास अलंकार कहते है।

जब समान व्यंजनों की ‘ आवृत्ति ‘ अर्थात उनके बार-बार प्रयोग से कविता में सौंदर्य की उत्पत्ति होती है , तो व्यंजनों की इस आवृत्ति को ‘ अनुप्रास अलंकार ‘ कहते हैं। अनुप्रास के पांच भेद है –
१ छेकानुप्रास अलंकार ( Chhek anupras alankar )
२ वृत्यनुप्रास अलंकार ( Vritya anupras alankar )
३ लाटानुप्रास अलंकार ( Laat anupras alanakr )
४ श्रुत्यानुप्रस अलंकार ( Shrutya anupras alankar )
५ अंतानुप्रास अलंकार ( Ant anupras alankar )

प्रथम तीन अलंकार का विशेष महत्व है , उनका परिचय निम्नलिखित है।

१ छेकानुप्रास अलंकार – जहां एक या अनेक वर्णों की केवल एक बार आवृत्ति हो जैसे –

” कानन कठिन भयंकर भारी , घोर घाम हिमवारि बयारी। ”

इस पद्यांश के पहले चरण में ‘ क ‘ तथा ‘ भ ‘वर्णों की एवं दूसरे चरण में ‘ घ ‘ वर्ण की एक – एक बार आवृत्ति हुई है। अतः छेकानुप्रास अलंकार है।

२ वृत्यनुप्रास अलंकार – जहां एक या अनेक वर्णों की अनेक बार आवृत्ति हो। जैसे –

” चारु चंद्र की चंचल किरणें , खेल रही थी जल – थल में। ”

यहां कोमल – वृत्ति के अनुसार ‘ च ‘ वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हुई है। अतः वृत्यनुप्रास अलंकार है।

३ लाटानुप्रास अलंकार – तात्पर्य मात्र के भेद से शब्द व अर्थ दोनों के भेद से है।

” लड़का तो लड़का ही है।”

यहाँ लड़का सामान्य बालक और एक लड़का से संबंध होनहार से है।

४ श्रुत्यानुप्रस अलंकार – जिस वाक्य को सुनने से कानो को मधुर लगे ऐसे पुनः आवृत्ति वाले वर्णो के कारण शब्द कर्ण प्रिय हो उन्हें  श्रुत्यानुप्रस अलंकार कहते है।

” रघुपति राघव राजा राम।”

५ अंतानुप्रास अलंकार – जिस वाक्य के अंत में तुकबंदी हो वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है।

” खेदि खेदि खाती दिह दारुन दलन के। ”

अनुप्रास अलंकार के ढेर सरे उदहारण उदाहरण ( Anupras alankar ke udahran ) –

” कल कानन कुण्डल मोर पखा उर पै बनमाल बिराजति है।”

” मैं मसजिद , काबे कैलास , कौने क्रिया – कर्म , तो तुरतै , कहै कबीर , सब स्वाँसो की स्वॉंस में। ”

” जागे जुगती , कुड कपट काया का निकस्या , जो जल , कहै कबीर। ”

” कालिंदी कूल कदंब की डारिन। ”

” चमक गई चपला चम – चम।”

” खेदि खेदि खाती दिह दारुन दलन के। ”

” जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप , विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप। ।”

” बरसत बारिद बूँद गहि।”

” खा – खाकर कुछ पाएगा नहीं। ”

” चरर मरर खुल गए अरर स्वरफूटों से।”

” नवौ निधि के सुख , ब्रज के बन – बाग तड़ाग निहारौं। ”

” कोटिक ए कलधैत के घाम करील के कुंजन ऊपर वारौं। ”

” लै लकुटी , गोधन ग्वारिन , सब स्वाँग , सब स्वाँग , मुरली मुरलीधर। ”

” फूल फूल , चतुर चिड़िया , दूर दिशाओं , कांटेदार कुरूप।
जहां जुगल जोड़ी रहती है। ”

” रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै ,सांसैं भरि कहत दई दई। ।”

” ध्वनि – मयी कर के गिरि – कंदरा , कलित – कानन – केलि – निकुंज को। ”

” दरवाजे – खिड़कियां खुलने झुक झांके , बरस बाद , किवार की , पानी परात , दामिनी धमकी। ”

” जिंदगी जीने , क्रुद्ध करना , दक्षिण दिशा , लाँघ लेना , पहुंच पाना , क्या काले। ”

” विमल वाणी ने विणा ली। ”

” लगा दी किसने आकर आग , कहाँ था संशय के नाग। ।”

” पुरइनि पात रहत , ज्यों जल , मन की मन ही मांझ। ”

” संदेसनि सुनी – सुनी विरहिनि विरह दही , घीर घरहिं। ”

” हमारे हरि हारिल , नंद – नंदन करुई ककरी। ”

” तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। ”

” चमार सी चन्दन सी चंद सी , चांदनी चमेली चारु चंद सुघर है। ।”

” रघुपति राघव राजा राम। ”

” पूत कपूत तो का धन संचय , पूत सपूत तो का धन संचय।”

” मुदित महिपति मंदिर आए , सेवक सचिव सुमंत बुलाए । ”

” सहज सुभाय सुभग तन गोरे। ”

” तू मोहन के उरबसी हवे उरवसी समान। ”

” कुकी कुकी केकी कलित , कुंजन , करत कलोल।

” तेगबहादुर हाँ वे ही थे गुरु पदवी के पात्र समर्थ , तेगबहादुर हाँ वे ही थे गुरु पदवी थी जिनके पास। ।”

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अनुप्रास अलंकार के भेद कितने होते हैं?

अनुप्रास अलंकार के भेद.
छेकानुप्रास अलंकार.
वृत्यानुप्रास अलंकार.
लाटानुप्रास अलंकार.
अन्त्यानुप्रास अलंकार.
श्रुत्यानुप्रास अलंकार.

अनुप्रास अलंकार किसका भेद है?

ऊपर दिए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं की दो शब्दों में 'क' वर्ण की आवृति हो रही है, एवं हम जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आएगा। तरनी तनुजा तात तमाल तरुवर बहु छाए।

अनुप्रास के 5 उदाहरण क्या हैं?

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण 37 और राम नाम-अवलंब बिनु परमार्थ की आस , बरसत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास। ३४ रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। विमल वाणी ने वीणा ली ,कमल कोमल क्र में सप्रीत। कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी फेरि।

अलंकार के दो भेद कौन से हैं?

अलंकार के भेद (1) शब्दालंकार– ये वर्णगत, वाक्यगत या शब्दगत होते हैं; जैसे-अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि। (2) अर्थालंकार– अर्थालंकार की निर्भरता शब्द पर न होकर शब्द के अर्थ पर आधारित होती है। मुख्यतः उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, दृष्टांत, मानवीकरण आदि मुख्य अर्थालंकार हैं

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