बारिश (Rainfall) के लिए पानी का एक साथ आसमान (Sky) में होना ही काफी नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
बारिश (Railfall) की प्रक्रिया (process) देखने में सरल लगती है, लेकिन इसे प्रभावित करने वाले बहुत सा कारक (Factors) होते हैं जिसमें भूगोल, जलवायु, स्थानीय और मौसमी कारण प्रमुख हैं.
- News18Hindi
- Last Updated : September 25, 2020, 22:00 IST
बारिश (Rainfall) के बारे में सभी लोग जानते हैं. बादल (Clouds) कैसे बनते हैं और कब उससे बारिश होती है. ऐसे सवालों का जवाब आमतौर पर सभी को मालूम तो होता है, लेकिन अगर इस पूरी प्रक्रिया (process) का बताने को कहा जाए तो क्या बहुत ही कम लोग इस बता पाएंगे. इस तरह के सवाल जब बच्चे पूछते हैं और हम वास्तव में ही उनकी जिज्ञासा शांत करना चाहते हैं तो मुश्किल होती है.
पहले समझें पानी को
पृथ्वी पर पानी के तीन रूप हैं. भाप, तरल
पानी और ठोस बर्फ. जब पानी गर्म होता है तो वह भाप बनकर या गैस बनकर हवा में ऊपर उठता है. जब ऐसी भाप बहुत अधिक मात्रा में ऊपर जमा होती जाती है तो वह बादलों का रूप ले लेती है. इस पूरी प्रक्रिया को वाष्पीकरण ( कहते हैं.
क्या केवल पानी ठंडा होने पर होने लगती है बारिश
जब बादल ठंडे होते हैं तो गैसीय भाप तरल पानी में बदलने लगती है और ज्यादा ठंडक होने पर बर्फ में भी बदलने लगती है. वाष्प के सघन होने की प्रक्रिया को संघनन कहते हैं. लेकिन बारिश होने के लिए केवल यही काफी नहीं है.
पहले तरल बूंदें जमा होती हैं और बड़ी बूंदों में बदलती हैं. जब ये बूंदें भारी हो जाती हैं तब कहीं जा कर बारिश होती है. पानी के आसमान से नीचे आने की प्रक्रिया को वर्षण (precipitation) कहते हैं.
अनेक रूप में वर्षण
वर्षण के कई
रूप होते हैं. यह बारिश (Rainfall), ओले गिरना, हिमपात आदि के रूप में हो सकता है. जब पानी तरल रूप में न गिर कर ठोस रूप में गिरता है तो उसे हिमपात कहेंगे. वहीं बारिश के साथ बर्फ के टुकड़े गिरना ओलों (Hailstones) का गिरना कहलाता है. इसके अलावा कई जगह सर्दियों में पानी की छोटी छोटी बूंदें भी गिरती हैं जिन्हें हम ओस (Dew) कहते हैं.
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अलग-अलग सिस्टम के कारण होती है बारिश
अभी बात अगर सिर्फ बारिश की करें तो बारिश हर जगह नहीं होती और हर जगह एक सी नहीं होती है. पृथ्वी बहुत सारी प्रक्रियाएं हैं जिनके कारण किसी स्थान पर बारिश होती है. इनमें भारत में सबसे जानी मानी प्रक्रिया है मानसून की प्रक्रिया जिसकी वजह से एक ही इलाके में एक से तीन चार महीने तक लगातार या रुक रक कर बारिश होती है. वहीं कई बार बेमौसम बारिश होती है
जिसे स्थानीय वर्षा कहा जाता है. कई बार समुद्र से चक्रवाती तूफान बारिश लाकर तबाही तक ला देते हैं.
बारिश की वजहें
बारिश की वजह एक नहीं होती है. समुद्र स्थल
से दूरी, इलाके में पेड़-पौधों की मात्रा, पहाड़ों से दूरी, हवा के बहने का पैटर्न और जलवायु के अन्य तत्व मिलकर यह तय करते हैं कि किसी जगह पर बारिश कैसी, कब-कब और कितनी होगी. कई जगह रोज नियमित रूप से दोपहर तीन बजे के आसपास बारिश होती है तो कई जगह सालों तक एक दो बार ही बारिश हो पाती है.
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वैसे बारिश की वजहों को स्थानीय, वैश्विक और मौसमी कारणों बांटा जाए तो इसके पैटर्न को समझने में आसानी हो जाती है. जैसे भारत में गर्मी के मौसम के दूसरे भाग में बारिश होती है जिसे मानसून या बरसात का मौसम कहते हैं. इसका कारण भारत की भौगोलिक स्थिति यानी कि वैश्विक है और इस वजह से हमारे देश में बारिश का खास मौसम है. वहीं कई जगह ठंड के मौसम में बारिश होती है. समुद्र के किनारे वाले इलाकों में बारिश कभी भी हो सकती है, लेकिन वहां भी आसपास के भूगोल और जलावायु का प्रभाव जरूर होता है.undefined
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Tags: Climate Change, Research, Science
FIRST PUBLISHED : September 25, 2020, 21:59 IST
Source विज्ञान आपके लिये, जनवरी-मार्च, 2016 जब पानी एक बूँद के रूप में गिरता है तो पृष्ठ तनाव के कारण पानी की बूँद का आकार गोल हो जाता है।
ठीक इसी तरह जब आसमान से पानी गिरता है तो वह बूँद के रूप में होता है, जोकि गोल होती है। जब तापमान शून्य से कम होता है तो ये गोल बूँदें ही बर्फ बन जाती हैं। कई बार इनमें बर्फ की कई सतहें होती हैं, जिसके कारण ये बड़े आकार के ओले के रूप में गिरती हैं।
कई बार आपने देखा होगा कि बारिश के दौरान अचानक पानी की बूँदों के साथ बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े गिरने लगते हैं, जिन्हें हम ओले यानि हेल स्टोर्म कहते हैं। क्या अपने कभी सोचा है कि ये ओले कैसे बनते हैं और फिर अचानक जमीन पर क्यों गिरने लगते हैं?
यह तो हम जानते ही हैं कि बर्फ पानी की ही एक अवस्था है और यह पानी के जमने से बनती है। जब भी पानी का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या इससे कम हो जाता है तो वह बर्फ बन जाता है। जैसे-जैसे हम समुद्र तल की अपेक्षा ऊँचाई की ओर बढ़ते हैं, तो तापमान धीरे-धीरे कम होता जाता है। यही कारण है कि गर्मी के मौसम में भी पहाड़ों पर ठंडक होती है। आपको पता होना चाहिए कि वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया के द्वारा नदियों, तालाबों, झीलों तथा समुद्र का पानी भाप बनकर ऊपर उठता रहता है, जिसके फलस्वरूप बादल बनते रहते हैं। और यही बादल समय-समय पर बारिश करते रहते हैं।
लेकिन जब आसमान में तापमान शून्य से कई डिग्री कम हो जाता है तो वहाँ हवा में मौजूद नमी संघनित हो जाती है और यह पानी की छोटी-छोटी बूँदों के रूप में जम जाती है। इन जमी हुई बूँदों पर धीरे-धीरे और पानी जमता जाता है और अंततः ये बर्फ के गोल टुकड़ों का रूप धारण कर लेती हैं। जब इन टुकड़ों का वजन काफी अधिक हो जाता है तो नीचे गिरने लगते हैं। गिरते समय वायुमंडल में मौजूद गरम हवा से टकरा कर ये पिघलने लगते हैं और पानी की बूँदों में बदल जाते हैं, जोकि बारिश के रूप में नीचे गिरते हैं। लेकिन बर्फ के अधिक मोटे और भारी टुकड़े जो पूरी तरह पिघल नहीं पाते हैं, वे बर्फ के छोटे-छोटे गोल-गोल टुकड़ों के रूप में ही धरती पर गिरते हैं।
बारिश के साथ गिरने वाले बर्फ के इन्हीं छोटे-छोटे गोल टुकड़ों को हम ओले कहते हैं। आमतौर से जब ओले गिरते हैं, तो बादलों में गड़गड़ाहट और बिजली की चमक बहुत अधिक होती है। जब कभी भी आप बादलों में गड़गड़ाहट और बिजली की चमक देखें तो समझ लीजिये कि बादलों का कुछ भाग निश्चित ही हिमांक से ऊपर है तथा कुछ भाग हिमांक से नीचे है। समान्यतः बादलों की गड़गड़ाहट उस समय होती है जब दिन गरम हों और वायु में काफी नमी हो। गरम और नम हवा ठंडी और शुष्क हवा से ऊपर उठना चाहती है। जैसे-जैसे यह ऊपर उठती है तो यह ठंडी होती जाती है और जल कणों के रूप में संघनित होती जाती हैं, और छोटे-छोटे बर्फ के गोल टुकड़ों का आकार ले लेती है।
हो सकता है आप सोच रहे हों कि ओले गोल ही क्यों होते हैं? दरअसल, जब पानी एक बूँद के रूप में गिरता है तो पृष्ठ तनाव के कारण पानी की बूँद का आकार गोल हो जाता है। ठीक इसी तरह जब आसमान से पानी गिरता है तो वह बूँद के रूप में होता है, जोकि गोल होती है। जब तापमान शून्य से कम होता है तो ये गोल बूँदें ही बर्फ बन जाती हैं। कई बार इनमें बर्फ की कई सतहें होती हैं, जिसके कारण ये बड़े आकार के ओले के रूप में गिरती हैं।