अंग्रेज़ों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन से नए अवसर पैदा हुए जो 'निम्न' मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे?
शहरों के विस्तार के कारण मज़दूरी की काफ़ी माँग पैदा हुई।
शहरों में नालियाँ बनाई जानी थीं, सड़कें बिछनी थीं, इमारतों का निर्माण होना था और शहरों को साफ किया जाना था। इसके लिए कुलियों, खुदाई करने वालों, बोझा ढोने वालों, ईंट बनाने वालों, नालियाँ साफ़ करने वालों, सफाईकर्मियों, पालकी ढोने वालों, रिक्शा खींचने वालों की ज़रूरत थी। इन कामो को सँभालने के लिए गाँवों और छोटे कस्बो के गरीब शहरों की तरफ जाने लगे जहाँ मज़दूरी की माँग पैदा हो रही थी। शहर जाने वालों में से बहुत सारे निम्न जातियों के लोग भी थे।
कुछ लोग असम, मॉरिशस, त्रिनिदाद और इंडोनेशिया आदि स्थानों पर बागानों में काम करने भी चले गए। परन्तु गरीबों, निचली जातियों के लोगों को यह गाँवों में स्वर्ण ज़मींदारों द्वारा उनके जीवन पर दमनकारी कब्ज़े और दैनिक अपमान से छूट निकलने का एक मौका था।
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प्राचीन ग्रंथो के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली?
राजा राममोहन रॉय जैसे सुधारक जो संस्कृत, फ़ारसी तथा अन्य कई भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने अपने लेखन के ज़रिए यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि प्राचीन ग्रंथो में विधवाओं को जलाने की अनुमति कही नहीं दी गयी है।
प्राचीन ग्रंथों के उनके ज्ञान ने उन्हें बहुत अधिक आत्मविश्वास और नैतिक समर्थन दिया जो उन्होंने नए कानूनों को बढ़ावा देने में उपयोग किया। जब लोगों ने उन सुधारों के खिलाफ आवाज उठाई तो वे डर नहीं पाए।
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ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानतयों की आलोचनाओं को किस तरह सही ठहराया?
ज्योतिराव फुले ने ब्राह्मणों के इस दावे पर खुलकर हमला बोला कि आर्य होने के कारण वे औरों से श्रेष्ठ हैं।
(1) फुले का तर्क था कि आर्य विदेशी थे, जो उपमहाद्वीप के बाहर से आए थे और उन्होंने इस मिट्टी के असली वारसियों - आर्यों के आने से पहले यहाँ रह रहे मूल निवासियों - को हराकर उन्हें गुलाम बना लिया था।
(2) जब आर्यों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया तो वे पराजित जनता को नीच, निम्न जाती वाला मानने लगे।
(3) फुले के अनुसार 'ऊँची' जातियों का उनकी ज़मीन और सत्ता पर कोई अधिकार नहीं हैं: यह धरती यहाँ के देशी लोगों की, कथित निम्न जाती के लोगों की है।
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निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया:
राममोहन रॉय
दयानन्द सरस्वती
वीरेशलिंगम पंतुलु
ज्योतिराव फुले
पंडिता रमाबाई
पेरियार
मुमताज़ अली
ईश्वरचंद्र विद्यासागर
राममोहन रॉय: राजा राममोहन रॉय ने ब्रह्मा समाज की स्थापना की। उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1829 में 'सती प्रथा' पर रोक लगा दी गई थी।
दयानन्द सरस्वती: स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 में 'आर्य समाज' की स्थापना की तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
वीरेशलिंगम
पंतुलु: वीरेशलिंगम पंतुलु ने एक एसोसिएशन की स्थापना की तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
ज्योतिराव फुले: ज्योतिराव फुले ने लड़कियों की शिक्षा का समर्थन किया। उन्होंने जाति व्यवस्था समेत सभी प्रकार की असमानताओं का विरोध किया।
पंडिता रमाबाई: पंडिता रमाबाई ने पुरषों के साथ महिलाओं की समानता का समर्थन किया। उन्होंने उच्च जाती की महिलाओं की दयनीय अवस्था का प्रतिकार किया। उन्होंने पुणे में एक 'विधवा गृह' की भी स्थापना की।
पेरियार: पेरियार ने समानता की वकालत की। उन्होंने 'आत्म-सम्मान आंदोलन' की नींव रखी तथा सत्ता पर ब्राह्मणों के वर्चस्व को ललकारा।
मुमताज़ अली: मुमताज़ अली ने महिला शिक्षा का समर्थन किया।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर: ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह तथा लड़कियों की शिक्षा का समर्थ किया। उन्होंने लड़िकयों के लिए स्कूल भी खोले।
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लड़कियों को स्कूल ने भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण होते थे?
लड़कियों को स्कूल ने भेजने के पीछे कारण थे:
(i) लोगो को भय था कि स्कूल वाले लड़कियों को घर से निकाल ले जाएँगे और उन्हें घरेलू कामकाज नहीं करने देंगे।
(ii) स्कूल जाने के लिए लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से गुजर कर जाना पड़ता था। बहुत सारे लोगों को लगता था कि इससे लड़कियाँ बिगड़ जाएँगी।
(iii) उनकी मान्यता थी कि लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से दूर रहना चाहिए। इससे उनके आचरण पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
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