1840 के दशक के बाद रोजगार की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - 1840 ke dashak ke baad rojagaar kee sthiti par sankshipt tippanee likhie

Rajasthan Board RBSE Class 10 Social Science Important Questions History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग Important Questions and Answers. 

RBSE Class 10 Social Science Important Questions History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. 
स्पिनिंग जेनी का आविष्कार किसने किया? 
(अ) स्टीफेन्सन
(ब) जेम्स हारग्रीब्ज 
(स) जान के 
(द) आर्कटाइट। 
उत्तर:
(ब) जेम्स हारग्रीब्ज 

प्रश्न 2. 
कम्पनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए जो वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त किये, वे कहलाते थे-
(अ) एजेन्ट
(ब) राजस्व अधिकारी 
(स) आमिल 
(द) गुमाश्ते। 
उत्तर:
(द) गुमाश्ते।

प्रश्न 3. 
मुम्बई में पहली कपड़ा मिल स्थापित हुई-
(अ) 1804 में
(ब) 1816 में 
(स) 1854 में 
(द) 1855 में। 
उत्तर:
(स) 1854 में 

प्रश्न 4. 
बंगाल में पहली जूट मिल स्थापित हुई-
(अ) 1854 में
(ब) 1865 में 
(स) 1815 में 
(द) 1855 में।
उत्तर:
(द) 1855 में।

प्रश्न 5. 
1830-40 के दशकों में किस भारतीय उद्यमी ने 6 संयुक्त उद्यम कम्पनियाँ स्थापित की थीं?
(अ) द्वारकानाथ टैगोर 
(ब) रवीन्द्रनाथ टैगोर 
(स) अवनीन्द्रनाथ टैगोर 
(द) जी.डी. बिडला। 
उत्तर:
(अ) द्वारकानाथ टैगोर

प्रश्न 6. 
भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित इलाके के लिए आमतौर पर किस शब्द का प्रयोग किया जाता है? 
(अ) प्राच्य
(ब) नई दुनिया 
(स) अमेरिका 
(द) आदि 
उत्तर:
(अ) प्राच्य

प्रश्न 7. 
'दो जादूगर' चित्र में अलादीन किसका प्रतीक है? 
(अ) दक्षिण और रुढ़िवादिता का
(ब) उत्तर और तर्कवाद का 
(स) पश्चिम और आधुनिकता का
(द) पूरब और अतीत का 
उत्तर:
(द) पूरब और अतीत का

प्रश्न 8. 
विक्टोरिया काल में ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग किस प्रकार की वस्तुओं को प्राथमिकता देते थे?
(अ) मशीन निर्मित 
(ब) हस्तनिर्मित 
(स) स्वदेशी 
(द) आयातित 
उत्तर:
(ब) हस्तनिर्मित

प्रश्न 9. 
1917 में कलकत्ता में देश की पहली जूट मिल लगाने वाले व्यवसायी थे-
(अ) डिनशॉ पेटिट 
(ब) जमशेद जी टाटा 
(स) सेठ हुकुमचंद्र 
(द) द्वारकानाथ टैगोर 
उत्तर:
(स) सेठ हुकुमचंद्र 

प्रश्न 10. 
भारत का पहला लौह एवं इस्पात संयंत्र कहाँ स्थापित हुआ? 
(अ) बम्बई में 
(ब) जमशेदपुर में 
(स) अहमदाबाद में 
(द) बोकारो में
उत्तर:
(ब) जमशेदपुर में 

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. ऐसा व्यक्ति जो रेशों के हिसाब से ऊन को 'स्टेपल' करता है या छाँटता है, ....... कहलाता है? 
2. ........ नये युग का पहला प्रतीक थी। 
3. विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में ....... की कोई कमी नहीं थी। 
4. उद्योगपति नये मजदूरों की भर्ती के लिए प्रायः एक ....... रखते थे। 
5. बच्चों की चीजों का प्रचार करने के लिए ........ की छवि का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता था।
उत्तरमाला:
1. स्टेपलर 
2.कपास (कॉटन) 
3. मानव श्रम 
4. जॉबर 
5. बाल कृष्ण। 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
इंग्लैण्ड में सबसे पहले कारखाने कब खुले? 
उत्तर:
1730 के दशक में। 

प्रश्न 2. 
किसने अपने भाप के इंजन को पेटेन्ट कराया और कब? 
उत्तर:
1871 में जेम्स वाट ने अपने भाप के इंजन को पेटेन्ट कराया। 

प्रश्न 3. 
ब्रिटेन में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में केवल हाथ से तैयार किये जाने वाले दो उत्पादों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • हथौड़े
  • कुल्हाड़ी। 

प्रश्न 4. 
भारत के किन दो बन्दरगाहों से विदेशों के साथ व्यापार चलता था? 
उत्तर:

  • सूरत
  • हुगली। 

प्रश्न 5. 
औपनिवेशिक काल में किन दो बन्दरगाहों का महत्व बढ़ गया था और किनका महत्व कम हो गया था? 
उत्तर:
मुम्बई व कोलकाता बन्दरगाहों का महत्व बढ़ गया था तथा सूरत और हुगली का महत्व कम हो गया था। 

प्रश्न 6. 
1850 के दशक तक देश के अधिकांश बुनकर क्षेत्रों में गिरावट और बेकारी क्यों व्याप्त थी? 
उत्तर:
देश के बाजारों में मैनचेस्टर के आयातित माल की भरमार होने से। 

प्रश्न 7. 
भारत के दो प्रारम्भिक उद्योगपतियों के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. जमशेदजी जीजीभोये
  2. द्वारकानाथ टैगोर।

प्रश्न 8. 
गिल्ड्स से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गिल्ड्स उत्पादकों के संगठन होते थे, जो कारीगरों को प्रशिक्षण देते, उत्पादकों पर नियन्त्रण रखते तथा प्रतिस्पर्धा और मूल्य तय करते थे।

प्रश्न 9. 
आदि-औद्योगीकरण का अर्थ स्पष्ट करें। 
उत्तर:
फैक्ट्रियों की स्थापना से पहले की औद्योगिक अवस्था को आदि-औद्योगीकरण कहा जाता है। 

प्रश्न 10. 
आदि-औद्योगिक व्यवस्था से किसानों को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:

  • आदि-औद्योगिक व्यवस्था से किसानों की आय में वृद्धि हुई। 
  • अब उन्हें सम्पूर्ण परिवार के श्रम संसाधनों को प्रयुक्त करने का अवसर मिल गया।

प्रश्न 11. 
'स्टेपलर्स' से क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:
'स्टेपलर' उस व्यक्ति को कहते थे जो रेशों के हिसाब से ऊन को स्टेपल करता है या छाँटता है। 

प्रश्न 12. 
फुलर्ज से क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:
जो व्यक्ति 'फुल' करता है अर्थात् चुन्नटों के सहारे कपड़े को समेटता है वह 'फुलर' कहलाता है। 

प्रश्न 13. 
आदि-औद्योगिक व्यवस्था की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • इस व्यवस्था पर सौदागरों का नियन्त्रण था। 
  • वस्तुओं का उत्पादन कारखानों की बजाय घरों में होता था।

प्रश्न 14. 
'कार्डिंग' से क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:
कार्डिंग वह उत्पादन प्रक्रिया थी जिसमें कपास या ऊन आदि रेशों को कताई के लिए तैयार किया जाता था। 

प्रश्न 15. 
स्पिनिंग जेनी का आविष्कार किसने किया और कब किया? 
उत्तर:
1764 में जेम्स हारग्रीव्ज ने स्पिनिंग जेनी का आविष्कार किया। 

प्रश्न 16. 
1750 के दशक के बाद किन भारतीय बन्दरगाहों का महत्त्व बढ़ गया था? 
उत्तर:
1750 के दशक के बाद मुम्बई तथा कोलकाता नामक बन्दरगाहों का महत्त्व बढ़ गया था। 

प्रश्न 17. 
गुमाश्ता कौन थे?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारतीय बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने तथा कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त कर दिए जिन्हें 'गुमाश्ता' कहा जाता था।

प्रश्न 18. 
भारतीय बाजार में मैनचेस्टर के आयातित मालों की भरमार से भारतीय बुनकरों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारतीय बाजार में मैनचेस्टर के आयातित मालों की भरमार से भारत के अधिकतर बुनकर क्षेत्रों में गिरावट आ गई और बेरोजगारी फैल गई।

प्रश्न 19. 
1772 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकारी हेनरी पतूलो ने क्या कहा था?
उत्तर:
हेनरी पतूलो ने कहा था कि भारतीय कपड़ों की माँग कभी कम नहीं हो सकती क्योंकि संसार के किसी और देश में इतना अच्छा माल नहीं बनता।

प्रश्न 20. 
भारत में पहली कपड़ा मिल कब और कहाँ स्थापित हुई? 
उत्तर:
मुम्बई में पहली कपड़ा मिल 1854 में स्थापित हुई। 

प्रश्न 21. 
भारत में पहली और दूसरी जूट मिल कब और कहाँ स्थापित हुईं? 
उत्तर:
बंगाल में 1855 में पहली जूट मिल तथा 1862 में दूसरी जूट मिल स्थापित हुई। 

प्रश्न 22. 
'जॉबर' कौन था? उसका क्या कार्य था?
उत्तर:
उद्यमी मिलों में नये मजदूरों की भर्ती के लिए एक विश्वस्त कर्मचारी रखते थे, जो 'जॉबर' कहलाता था। यह अपने गाँव से लोगों को उद्योगों में कार्य हेतु लाता था।

प्रश्न 23. 
'फ्लाई शटल' के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
फ्लाई शटल रस्सियों और पुलियों के द्वारा चलने वाला एक यान्त्रिक औजार है जिसका बुनाई के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 24. 
फ्लाई शटल से क्या लाभ हुए? 
उत्तर:
फ्लाई शटल से कामगारों की उत्पादन क्षमता बढ़ी, उत्पादन तेज हुआ तथा श्रम की माँग में कमी आई।

प्रश्न 25. 
बुनकरों ने कपड़ों का उत्पादन बढ़ाने के लिए क्या उपाय किया? 
उत्तर:
बुनकरों ने कपड़ों का उत्पादन बढ़ाने के लिए फ्लाई शटल वाले करघों का प्रयोग करना शुरू किया। 

प्रश्न 26. 
भारत के किन प्रदेशों में अधिकतर फ्लाई शटल वाले करघों का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
त्रावनकोर, मद्रास, मैसूर, कोचीन, बंगाल आदि प्रदेशों में फ्लाई, शटल वाले करघों का अधिक प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 27. 
उद्यमी अपने माल की अधिकाधिक बिक्री करने तथा नए उपभोक्ताओं को आकृष्ट करने के लिए किन लेबल लगे हुए विज्ञापनों का प्रयोग करते थे?
उत्तर:
उद्यमी भारतीय देवी-देवताओं के चित्र, महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों तथा नवाबों के लेबल लगे विज्ञापनों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 28. 
ब्रिटेन में सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा किसने प्रस्तुत की थी? 
उत्तर:
ब्रिटेन में सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा रिचर्ड आर्कराइट ने प्रस्तुत की थी। 

प्रश्न 29. 
भारत में कपड़ा बुनकरों को एक साथ किन दो समस्याओं का सामना करना पड़ा? 
उत्तर:

  • भारत में कपड़ा बुनकरों का निर्यात बाजार ढह रहा था। 
  • स्थानीय बाजार सिकुड़ने लगा था। 

प्रश्न 30. 
अमेरिकी गृह-युद्ध का भारतीय बुनकरों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अमेरिकी गृह-युद्ध के फलस्वरूप अमेरिका से कपास की आमद बंद हो गई। कच्चे कपास की अत्यधिक कीमत के कारण बुनकरों को कच्चे माल के लाले पड़ गए। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Type-I)

प्रश्न 1. 
'नयी सदी के उदय' और 'दो जादूगर' तस्वीरें क्या बतलाती है?
उत्तर:
ये तस्वीरें आधुनिक विश्व की विजयगाथा कहती हैं। इस गाथा में आधुनिक विश्व द्रुत तकनीकी बदलावों व आविष्कारों, मशीनों व कारखानों, रेलवे और वाष्पपोतों की दुनिया के रूप में दर्शाया गया है। इसमें औद्योगीकरण का इतिहास विकास की कहानी के रूप में सामने आता है और आधुनिक युग तकनीक प्रगति के भव्य युग के रूप में उभरता है। 

प्रश्न 2. 
गाँवों में गरीब किसान और दस्तकार यूरोप के शहरी सौदागरों के लिए काम करने के लिए क्यों तैयार हो गए?
उत्तर:
सत्रहवीं तथा अठारहवीं शताब्दी में गाँवों में खुले खेतों के समाप्त होने तथा कॉमन्स की बाड़ाबन्दी से छोटे और गरीब किसानों को आय के नवीन स्रोत ढूँढ़ने पड़ रहे थे। जब शहरी सौदागरों ने उन्हें माल का उत्पादन करने के लिए पेशगी राशि दी, तो किसान उनके लिए तुरन्त काम करने के लिए तैयार हो गए।

प्रश्न 3. 
गिल्ड्स से आप क्या समझते हैं? इनके क्या कार्य थे?
उत्तर:
यूरोपीय शहरों में विभिन्न व्यापारियों, उत्पादकों, दस्तकारों द्वारा अपने हितों की रक्षा के लिए बनाये गये संगठन गिल्ड्स कहलाते थे। गिल्ड्स से जुड़े उत्पादक कारीगरों को प्रशिक्षण देते थे, उत्पादकों पर नियन्त्रण रखते थे, प्रतिस्पर्धा तथा मूल्य तय करते थे तथा व्यवसाय में नए लोगों को आने से रोकते थे।

प्रश्न 4. 
"आदि-औद्योगिक व्यवस्था से शहरों और गाँवों के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित हुआ।" व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आदि-औद्योगिक व्यवस्था से शहरों और गाँवों के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हुआ। यद्यपि सौदागर शहरों में रहते थे, परन्तु उनके लिए ऊन खरीदने, सूत कातने, बुनकर, फुलर्स तथा रंगसाजी का काम अधिकतर गाँवों में चलता था। लन्दन में तो कपड़ों की फिनिशिंग होती थी।

प्रश्न 5. 
17वीं तथा 18वीं शताब्दी में छोटे तथा गरीब किसान शहरी सौदागरों के लिए काम करने के लिए क्यों तैयार हो गए थे?
उत्तर:
17वीं तथा 18वीं सदी में छोटे तथा गरीब किसानों के पास छोटे-छोटे खेत तो थे, परन्तु वे खेत परिवार के सदस्यों का पेट नहीं भर सकते थे। इसलिए जब शहरी सौदागर उनके पास आए और उन्होंने उत्पादन के लिए पेशगी धनराशि दी तो किसान उनके लिए काम करने को तुरन्त तैयार हो गए।

प्रश्न 6. 
बाजार में श्रम की प्रचुरता के मजदूरों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
बाजार में श्रम की प्रचुरता से मजदूरों का जीवन बहुत प्रभावित हुआ। काम पाने के लिए गाँवों से बड़ी संख्या में मजदूर शहरों में आने लगे । रोजगार चाहने वाले बहुत से लोगों को कई सप्ताहों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। वे पुलों के नीचे निजी तथा विधि विभाग द्वारा संचालित रैनबसेरों में रहते थे। 

प्रश्न 7. 
उद्योगों में मौसमी आधार पर काम करने वाले कामगारों की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अनेक उद्योगों में कामगार मौसमी आधार पर काम करते थे, इसलिए उन्हें बीच-बीच में काफी समय तक खाली बैठना पड़ता था। कुछ लोग सर्दियों के बाद गाँवों में चले जाते थे, परन्तु अधिकतर मजदूर शहर में रहते हुए ही कोई छोटा-मोटा काम ढूँढ़ने का प्रयास करते थे।

प्रश्न 8. 
"उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में वेतन बढ़ने के बाद भी मजदूरों की दशा में सुधार का स्पष्ट पता नहीं चलता।" व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में मजदूरों के वेतनों में कुछ वृद्धि हुई, परन्तु इससे उनकी दशा में सुधार का पता नहीं चलता क्योंकि मजदूरों की आय केवल वेतन की दर पर ही निर्भर नहीं होती थी। यह रोजगार की अवधि पर भी निर्भर करती थी।

प्रश्न 9. 
जमशेदजी जीजीभोये के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
जमशेदजी जीजीभोये- जमशेदजी जीजीभोये एक पारसी बुनकर के बेटे थे। अपने समय के बहुत सारे लोगों की तरह उन्होंने भी चीन के साथ व्यापार और जहाजरानी का काम किया था। उनके पास जहाजों का एक विशाल बेड़ा था। अंग्रेज और अमेरिकी जहाज कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण 1850 के दशक तक उन्हें सारे जहाज बेचने पड़े।

प्रश्न 10. 
जॉबर कौन होते थे? उनके कार्यों को स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
जॉबर-उद्योगपति नए मजदूरों की भर्ती के लिए प्रायः एक व्यक्ति रखते थे जो जॉबर कहलाता था। इन्हें अलग-अलग इलाकों में सरदार या मिस्त्री भी कहते थे। जॉबर कोई पुराना और विश्वस्त कर्मचारी होता था।

जॉबर के कार्य-वह अपने गाँव से लोगों को लाता था, उन्हें काम का भरोसा देता था, उन्हें शहर में जमने के लिए मदद देता था और मुसीबत में पैसे से मदद करता था। बाद में जॉबर मदद के बदले पैसे व तोहफों की माँग करने लगे और मजदूरों की जिंदगी को नियंत्रित करने लगे।

प्रश्न 11. 
भारत में औद्योगिक उत्पादन पर प्रभुत्व रखने वाली यूरोपीय प्रबन्धकीय एजेन्सियों की कुछ विशेष प्रकार के उत्पादों में ही रुचि क्यों थी?
उत्तर:
भारत में औद्योगिक उत्पादन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने वाली यूरोपीय प्रबन्धक एजेन्सियों की कुछ विशेष प्रकार के उत्पादों, जैसे-चाय, कॉफी के बागान, खनन, नील व जूट व्यवसाय में ही रुचि थी। ये ऐसे उत्पाद थे जिनकी मुख्य रूप से निर्यात के लिए आवश्यकता थी।

प्रश्न 12. 
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में भारत की प्रारम्भिक सूती मिलों में मोटे सूती धागे का उत्पादन क्यों किया जाता था?
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में जब भारतीय व्यवसायी उद्योग स्थापित करने लगे. उस समय भारत आने वाले ब्रिटिश मालों में धागा बहुत अच्छा नहीं था। इसलिए भारत की प्रारम्भिक सूती मिलों में कपड़े की बजाय मोटे सूती धागे ही बनाए जाते थे। इस धागे का भारत के हथकरघा बुनकर प्रयोग करते थे अथवा उन्हें चीन को निर्यात कर दिया जाता था।

प्रश्न 13. 
"प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में मैनचेस्टर की पहले वाली स्थिति नहीं रही।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में मैनचेस्टर की पहले वाली स्थिति नहीं रही। आधुनिकीकरण के अभाव, प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने तथा कपास के उत्पादन में कमी आदि कारणों से ब्रिटेन से होने वाले सूती कपड़े के निर्यात में भारी गिरावट आ गई। उपनिवेशों में स्थानीय उद्योगपतियों ने घरेलू बाजारों पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 14. 
मिलों के साथ प्रतिस्पर्धा का मुकाबला कर पाने के मामले में महीन वस्त्र बुनने वाले बुनकर अन्य लोगों से अच्छी स्थिति में क्यों थे?
उत्तर:
अच्छे किस्म के कपड़े की माँग केवल उच्च वर्ग के लोगों में ही थी। उसमें उतार-चढ़ाव भी कम आते थे। फसलें खराब होने अथवा अकालों से बनारसी अथवा बालूचरी साड़ियों की बिक्री पर प्रभाव नहीं पड़ता था। इसके अतिरिक्त कारखाने विशेष प्रकार की बुनाई की नकल नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 15. 
नये उपभोक्ता पैदा करने में विज्ञापनों की भूमिका की विवेचना कीजिए। 
उत्तर:
नये उपभोक्ता पैदा करने में विज्ञापनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। विज्ञापन विभिन्न उत्पादों को आवश्यक और वांछनीय बना देते हैं। वे लोगों की सोच बदल देते हैं तथा नई आवश्यकताएँ उत्पन्न कर देते हैं। विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों के बाजार के विस्तार में और एक नयी उपभोक्ता संस्कृति का निर्माण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रश्न 16. 
लेबलों ने मैनचेस्टर के कपड़ों के लिए भारत में बाजार तैयार करने में क्या सहायता पहँचाई?
उत्तर:
लेबल से खरीददारों को कम्पनी का नाम व उत्पादन का स्थान ज्ञात हो जाता था। लेबल चीजों की गुणवत्ता का प्रतीक भी था। जब किसी लेबल पर मोटे अक्षरों में 'मेड इन मैनचेस्टर' लिखा दिखाई देता तो खरीददारों को कपड़ा खरीदने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होता था।

प्रश्न 17. 
फ्लाइंग शटल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
फ्लाइंग शटल (फ्लाइ शटल) रस्सियों और पुलियों के द्वारा चलने वाला एक यांत्रिक औजार है जिसका बुनाई के लिए प्रयोग किया जाता है। यह क्षैतिज धागे को लम्बवत् धागे में पिरो देती है। इससे बुनकरों को बड़े करघे चलाना और चौड़े अरज के कपड़ा बनाने में सहायता मिली। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Type-II)

प्रश्न 1. 
'नयी सदी के उदय' (डॉन ऑफ द सेंचुरी) में क्या बतलाया गया है? वर्णन कीजिये।
उत्तर:
ई.टी.पॉल म्यूजिक कंपनी ने सन् 1900 में संगीत की एक किताब प्रकाशित की थी जिसकी जिल्द पर दी गई तस्वीर में 'नयी सदी के उदय' (डॉन ऑफ द सेंचुरी) का ऐलान किया था।

तस्वीर के मध्य में एक देवी जैसी तस्वीर है। यह देवी हाथ में नयी शताब्दी की ध्वजा लिए प्रगति का फरिश्ता दिखाई देती है। उसका एक पाँव पंखों वाले पहिये पर टिका हुआ है। यह पहिया समय का प्रतीक है। उसकी उड़ान भविष्य की ओर है। उसके पीछे उन्नति के चिह्न तैर रहे हैं: रेलवे, कैमरा, मशीनें, प्रिंटिंग प्रेस और कारखाना।
अर्थात् यह चित्र भविष्य की उन्नति को बतला रहा है। 

प्रश्न 2. 
'दो जादूगर' चित्र द्वारा क्या दर्शाया गया है? 
उत्तर:
यह तस्वीर एक व्यापारिक पत्रिका के पन्नों पर सौ साल से भी पहले छपी थी।
इस तस्वीर में दो जादूगर दिखाए गए हैं। ऊपर वाले हिस्से में प्राच्य (Orient) इलाके का अलादीन है जिसने अपने जादुई चिराग को रगड़ कर एक भव्य महल का निर्माण कर दिया है। नीचे एक आधुनिक मेकैनिक है जो अपने आधुनिक औजारों से एक नया जादू रच रहा है। वह पुल, पानी के जहाज, मीनार और गगनचुंबी इमारतें बनाता है।

यहां अलादीन पूरब और अतीत का प्रतीक है तथा मेकैनिक पश्चिम और आधुनिकता का प्रतीक है।

प्रश्न 3. 
आदि-औद्योगीकरण क्या है? भारतीय बुनकरों पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने किस प्रकार नियंत्रण स्थापित किया?
उत्तर:
आदि-औद्योगीकरण का अर्थ इंग्लैण्ड और यूरोप में फैक्ट्रियों की स्थापना से पहले के औद्योगिक उत्पादन को 'आदि-औद्योगीकरण' कहा जाता है।

भारतीय बुनकरों पर नियंत्रण-

  • कम्पनी ने कपड़ा व्यापारियों और दलालों को खत्म करके बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित किया।
  • कम्पनी को माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीददारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी।

प्रश्न 4. 
"विक्टोरियाकालीन ब्रिटेन में कुलीन और पूँजीपति वर्ग द्वारा हस्तनिर्मित वस्तुओं को पसंद किया जाता था।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विक्टोरियाकालीन ब्रिटेन में कुलीन और पूँजीपति वर्ग द्वारा हस्तनिर्मित वस्तुओं को पसंद किया जाता था, क्योंकि

  • हाथ से बनी चीजों को श्रेष्ठता तथा सुरुचि का प्रतीक माना जाता था। 
  • हाथ से बनी चीजों की फिनिशिंग आकर्षक होती थी। उनको एक-एक करके बनाया जाता था। 
  • हाथ से बनी चीजों का डिजायन अच्छा होता था। अतः मशीन से बनी चीजों को उपनिवेशों में निर्यात कर दिया जाता था।

प्रश्न 5. 
"अठारहवीं शताब्दी में हुए आविष्कारों ने उत्पादन प्रक्रिया के हर चरण की कुशलता बढ़ा दी।" विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में हुए आविष्कारों ने उत्पादन प्रक्रिया के हर चरण की कुशलता बढ़ा दी। इसकी पुष्टि निम्नलिखित तथ्यों से होती है-

  • इन आविष्कारों से प्रत्येक मजदूर अधिक उत्पादन करने लगा। अब पहले की अपेक्षा अधिक मजबूत धागों व रेशों का उत्पादन होने लगा। स्पिनिंग जेनी के आविष्कार से एकसाथ सूत के आठ धागे काते जा सकते थे।
  • 1769 में रिचर्ड आर्कराइट ने 'वाटरफ्रेम' नामक सूत कातने की मशीन का आविष्कार किया। इसने भावी कारखाना पद्धति को जन्म दिया।
  • अब नई मशीनों द्वारा कारखानों में उत्पादन की समस्त प्रक्रियाएँ एक ही छत के नीचे और एक ही स्वामी के हाथों में आ गईं, फलस्वरूप उत्पादन प्रक्रिया, गुणवत्ता तथा मजदूरों पर निगरानी रखना सम्भव हो गया। परन्तु जब तक गाँवों में उत्पादन होता रहा, तब तक यह सब सम्भव नहीं था।

प्रश्न 6. 
कपड़ा उद्योग जगत में क्रान्ति लाने वाले किन्हीं चार प्रमुख आविष्कारों के नाम बताइए। 
उत्तर:
कपड़ा उद्योग में क्रान्ति लाने वाले चार प्रमुख आविष्कार निम्नलिखित हैं-

  • स्पिनिंग जेनी-इसका आविष्कार 1764 ई. में हारग्रीव्ज ने किया। इसकी सहायता से आठ सूत एक साथ काते जा सकते थे।
  • फ्लाइंग शटल-इसका आविष्कार 1733 ई. में जॉन के ने किया। इससे जुलाहे बड़ी तेजी से काम करने लगे।
  • स्पिनिंग फ्रेम-इस मशीन का आविष्कार 1769 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने किया। यह जल की शक्ति से चलती थी। अब हाथ से सूत कातने की आवश्यकता नहीं थी।
  • म्यूल-1779 में क्राम्पटन ने म्यूल नामक मशीन बनाई जिसमें बारीक सूत अधिक परिमाण में निकलने लगा। 

प्रश्न 7. 
बुनकरों एवं गुमाश्तों के बीच टकराव की स्थिति का क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर:
गुमाश्ते बुनकरों के साथ कठोर एवं अपमानजनक व्यवहार करते थे। माल समय पर तैयार न होने पर उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता था। बुनकरों की पिटाई की जाती थी और उन्हें कोड़े लगाए जाते थे।

गुमाश्तों के व्यवहार से बुनकरों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ। कर्नाटक और बंगाल में अनेक स्थानों पर बुनकर गाँव छोड़कर भाग गए। वे अपने सम्बन्धियों के यहाँ जाकर किसी और गाँव में अपना करघा लगा लेते थे। अनेक स्थानों पर उन्होंने कम्पनी और उसके अधिकारियों का विरोध किया और गाँव के व्यापारियों के साथ मिलकर विद्रोह कर दिया। कुछ समय बाद अनेक बुनकरों ने कर्जा लौटाने से इनकार कर दिया। उन्होंने करघे बन्द कर दिए और खेतों में मजदूरी करने लगे। 

प्रश्न 8. 
"उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय सूती वस्त्र उद्योग का पतन होने लगा।" व्याख्या कीजिए।
अथवा 
"उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में भारतीय कपड़े के निर्यात में गिरावट आने लगी।" विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में भारतीय सूती वस्त्र उद्योग का पतन होने लगा। इसके लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं- 

  • इंग्लैण्ड में कपास उद्योग के विकास के लिए उद्योगपतियों के दबाव में सरकार ने भारतीय कपड़े पर आयात शुल्क लगा दिया ताकि मैनचेस्टर में बने कपड़े बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैण्ड में सरलता से बिक सकें।
  • इंग्लैण्ड के उद्योगपतियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर भी दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय बाजारों में भी बेचे।
  • ब्रिटेन से भारत में आने वाला कपड़ा सस्ता और सुन्दर था। भारतीय वस्त्र इनका मुकाबला नहीं कर सके। 
  • भारतीय बुनकरों को अच्छी किस्म के कपास की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी। 

प्रश्न 9. 
ब्रिटिश औद्योगीकरण के कारण भारतीय बुनकरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा?
अथवा 
उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय बनकरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? 
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय बुनकरों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा-
(1) बुनकरों का निर्यात बाजार नष्ट हो रहा था और स्थानीय बाजार सिकुड़ रहा था। स्थानीय बाजार में मैनचेस्टर के आयातित मालों की भरमार थी। कम लागत पर मशीनों से बनने वाले आयात किए गए कपास उत्पाद इतने सस्ते थे कि संजीव पास बुक्स बुनकर उनका मुकाबला नहीं कर सकते थे। 1850 के दशक तक देश के अधिकांश बुनकर प्रदेशों में गरीबी व बेरोजगारी फैल गई थी।

(2) 1860 के दशक में अमेरिका में गृहयुद्ध आरम्भ होने पर भारतीय बुनकरों के लिए कच्चा माल मिलना अत्यन्त कठिन हो गया। उन्हें मनमानी कीमत पर कच्ची कपास खरीदनी पड़ती थी। इस स्थिति में बुनकरों के लिए जीवन निर्वाह करना कठिन हो गया।

(3) उन्नीसवीं सदी के अन्त में भारतीय कारखानों में उत्पादन होने लगा और बाजार मशीनों की बनी चीजों से भर गए थे। इससे बुनकर उद्योग पतनोन्मुख हो गया।

प्रश्न 10. 
बीसवीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण की व्यवस्था में आए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) स्वदेशी आन्दोलन के प्रसार से भारत के राष्ट्रवादियों ने लोगों को विदेशी कपड़े के बहिष्कार के लिए प्रेरित किया।
(2) औद्योगिक समूह अपने सामूहिक हितों की रक्षा के लिए संगठित हो गए और उन्होंने आयात शुल्क बढ़ाने तथा अन्य रियायतें देने के लिए भारत सरकार पर दबाव डाला।
(3) 1906 के पश्चात् चीन भेजे जाने वाले भारतीय धागे के निर्यात में भी कमी आने लगी थी। चीनी बाजार चीन और जापान की मिलों के उत्पाद से भर गए थे। परिणामस्वरूप भारत के उद्योगपति धागे की बजाय कपड़ा बनाने लगे। सन् 1900 से 1912 की अवधि में भारत में सूती कपड़े का उत्पादन दोगुना हो गया था।

प्रश्न 11. 
उत्पादों की बिक्री में कैलेण्डरों की भूमिका का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) कैलेण्डर निरक्षर लोगों की समझ में भी आ जाते थे। ये कैलेंडर चाय की दुकानों, कार्यालयों व मध्यवर्गीय लोगों के घरों में लटके रहते थे। इन कैलेंडरों को लगाने वाले लोग विज्ञापनों को भी प्रतिदिन अर्थात् पूरे वर्ष देखते थे। इन कैलेंडरों में भी नए उत्पादों को बेचने के लिए देवताओं के चित्र अंकित होते थे। इस कारण लोग इन उत्पादों को खरीदने के लिए प्रेरित हो जाते थे।

(2) महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों व नवाबों के चित्रों का कैलेन्डरों में खूब प्रयोग होता था। इनका सन्देश प्रायः यह होता था--यदि आप इस शाही व्यक्ति का सम्मान करते हैं, तो इस उत्पाद का भी सम्मान कीजिए।
इस प्रकार उत्पादों की बिक्री बढ़ाने में कैलेण्डर सहायक थे। 

प्रश्न 12. 
बाजार में श्रम की बहुतायत से मजदूर वर्ग के जीवन पर पड़ने वाले कोई तीन प्रभाव बताइए।
अथवा 
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में मजदूरों के लिए रोजगार के साधनों की उपलब्धता की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
अथवा 
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में मजदूरों की जिन्दगी कैसे प्रभावित हुई? 
उत्तर:
(1) नौकरियों के समाचार गाँवों में पहुँचते ही मजदूर बड़ी संख्या में शहरों की ओर चले जाते थे।
(2) शहरों में नौकरी मिलने की सम्भावना मित्रों, रिश्तेदारों से जान-पहचान पर निर्भर करती थी। किसी कारखाने में यदि मजदूरों का कोई रिश्तेदार या मित्र लगा हुआ होता था, तो उन्हें नौकरी मिलने की अधिक सम्भावना होती थी।

(3) रोजगार चाहने वाले लोगों को हफ्तों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। वे पुलों के नीचे या रैन-बसेरों में रात काटते थे। कुछ बेरोजगार शहर में बने निजी रैन-बसेरों में रहते थे।
(4) अनेक उद्योगों में मौसमी काम के कारण कामगारों को बीच-बीच में बहुत समय तक खाली बैठना पड़ता था। काम का सीजन गुजर जाने के बाद गरीब पुनः सड़क पर आ जाते थे और कुछ लोग सर्दी में अपने गाँवों में चले जाते थे। परन्तु अधिकतर मजदूर शहरों में ही छोटा-मोटा काम ढूंढ़ने का प्रयास करते थे।

प्रश्न 13." 
1750 के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियंत्रण वाला नेटवर्क टूटने लगा था।" व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1750 के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियंत्रण के नेटवर्क के टूटने के निम्नलिखित कारण थे-

  • स्थानीय दरबारों से अनेक रियायतें प्राप्त करने तथा व्यापार पर इजारेदारी अधिकार प्राप्त करने से यूरोपीय कम्पनियों की शक्ति बढ़ती जा रही थी।
  • इस कारण सूरत व हुगली दोनों पुराने बन्दरगाह कमजोर पड़ गए थे। इन बन्दरगाहों से होने वाले निर्यात में बहुत कमी आई।
  • अब मुम्बई व कोलकाता बंदरगाहों की स्थिति सुदृढ़ हो गई। नये बन्दरगाहों के द्वारा होने वाला व्यापार यूरोपीय कम्पनियों के नियंत्रण में था और यूरोपीय जहाजों के द्वारा होता था।
  • अनेक पुराने व्यापारिक घराने नष्ट हो चुके थे। शेष बचे घरानों के पास भी यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के नियंत्रण वाले नेटवर्क में काम करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था।

प्रश्न 14. 
प्रथम विश्व युद्ध ने भारत में औद्योगिक विकास को कैसे बढ़ावा दिया?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत के औद्योगिक विकास को बहुत बढ़ावा दिया। ब्रिटिश कारखाने सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए युद्ध सम्बन्धी उत्पादन में व्यस्त थे। इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया। परिणामस्वरूप भारतीय बाजारों को एक विशाल देशी बाजार मिल गया। युद्ध लम्बा खिंच जाने से भारतीय कारखानों में भी सेना के लिए जूट की बोरियाँ, सैनिकों के लिए वर्दी के कपड़े, टेंट तथा चमड़े के जूते, घोड़ों व खच्चरों की जीन तथा अनेक प्रकार के सामान बनने लगे। इनके निर्माण के लिए अनेक नये कारखाने लगाए गए तथा पुराने कारखाने कई पारियों में चलने लगे। कारखानों में मजदूरों को बड़ी संख्या में काम पर रखा गया और प्रत्येक को पहले से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता था। अतः युद्ध के दौरान औद्योगिक उत्पादन तेजी से बढ़ा। 

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
भारतीय और ब्रिटिश निर्माताओं ने नये उपभोक्ता पैदा करने के लिए किन तरीकों को अपनाया? लिखिए। 
उत्तर:
भारतीय और ब्रिटिश निर्माताओं ने नये उपभोक्ता पैदा करने के लिए निम्नलिखित तरीकों को अपनाया-
1. विज्ञापन बाजार के फैलाव व नये उपभोक्ताओं को अपने माल से जोड़ने के लिए उत्पादक समाचार पत्रपत्रिकाओं, होर्डिंग्स आदि के माध्यम से विज्ञापन देते थे। इन विज्ञापनों ने उत्पादों को अतिआवश्यक और वांछनीय बना दिया था।
2. लेबल लगाना अपने उत्पादों के बाजार को फैलाने के लिए उत्पादक लेबल लगाने का प्रयोग करते थे। जैसे 'मेड इन मैनचेस्टर' का लेबल वस्तुओं की गुणवत्ता का प्रतीक होता था। लेबलों पर अक्षरों के साथ-साथ भारतीय देवी-देवताओं की तस्वीर भी होती थी, जिससे भारतीयों को उत्पाद में अपनेपन का एहसास होता था।
3. कैलेण्डर-निर्माता अपने उत्पादों को बेचने के लिए कैलेण्डर अपनाने लगे थे, इससे उत्पाद निरक्षरों को भी प्रभावित करते थे। इन कैलेण्डरों में भी नये उत्पादों को बेचने के लिए देवी-देवताओं के चित्र भी प्रस्तुत किए जाते थे।
4. महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के चित्र-देवी-देवताओं के चित्रों के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों, नवाबों के चित्र विज्ञापनों में प्रयोग किए जाते थे, जो गुणवत्ता के प्रमाण होते थे।

प्रश्न 2. 
इंग्लैण्ड में कारखानों का उदय कब हुआ? इससे उत्पादन प्रक्रिया में क्या परिवर्तन हए?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में कारखानों का उदय-इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम 1730 के दशक में कारखाने खुले। परन्तु उनकी संख्या में तीव्र गति से वृद्धि अठारहवीं सदी के अन्त में ही हुई।
उत्पादन-प्रक्रिया में परिवर्तन-इस वृद्धि से उत्पादन-प्रक्रिया में निम्नलिखित परिवर्तन हुए
(1) नवीन आविष्कार-अठारहवीं सदी में अनेक ऐसे आविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया (कार्डिंग, ऐंठना व कताई, लपेटने) के प्रत्येक चरण की कुशलता बढ़ा दी। प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया और पहले की अपेक्षा अधिक सुदृढ़ धागों एवं रेशों का उत्पादन होने लगा। इसके बाद रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा प्रस्तुत की। इसने भावी कारखाना पद्धति को जन्म दिया।

(2) महंगी नई मशीनों को कारखानों में लगाना-अब महंगी नई मशीनें खरीद कर उन्हें कारखानों में लगाया जा सकता था।
(3) उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी-अब कारखाने में समस्त प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में आ गई थीं। इसके फलस्वरूप उत्पादन-प्रक्रिया पर निगरानी रखना, गुणवत्ता का ध्यान रखना और मजदूरों के काम पर नजर रखना सम्भव हो गया था। जब तक उत्पादन गाँवों में हो रहा था, तब तक ये बातें सम्भव नहीं थीं।

(4) विशाल कारखानों की स्थापना-उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में कारखाने इंग्लैण्ड के अभिन्न अंग बन गए थे। ये नए कारखाने बहुत विशाल थे।

प्रश्न 3. 
औद्योगीकरण की प्रक्रिया कितनी तेज थी? क्या औद्योगीकरण का अर्थ केवल फैक्ट्री उद्योगों के विकास तक ही सीमित होता है?
अथवा 
"अब इतिहासकार इस बात को मानने लगे हैं कि उन्नीसवीं सदी के मध्य का औसत मजदूर मशीनों पर काम करने वाला नहीं, बल्कि परम्परागत कारीगर और मजदूर ही होता था।" व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया-उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में औद्योगीकरण की गति धीमी थी। इसलिए इतिहासकारों का मानना है कि उन्नीसवीं सदी के मध्य का औसत मजदूर मशीनों पर काम करने वाला नहीं, बल्कि परम्परागत कारीगर और मजदूर ही था। साथ ही औद्योगीकरण का अर्थ केवल फैक्ट्री उद्योगों के विकास तक ही सीमित नहीं होता है। इस तथ्य की पुष्टि निम्नलिखित उदाहरणों से होती है-

(1) सूती उद्योग, कपास उद्योग का विकास सूती उद्योग और कपास उद्योग ब्रिटेन के सबसे अधिक विकसित उद्योग थे। कपास उद्योग का तीव्र गति से विकास हो रहा था और यह उद्योग 1840 के दशक तक औद्योगीकरण के पहले चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था।

(2) परम्परागत उद्योगों का महत्त्व–नये उद्योग परम्परागत उद्योगों को इतनी सरलता से पीछे नहीं धकेल सकते थे। अब भी परम्परागत उद्योगों का महत्त्व बना हुआ था। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में भी तकनीकी रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या कुल मजदूरों में 20 प्रतिशत से अधिक नहीं थी। यद्यपि वस्त्र उद्योग एक गतिशील उद्योग था, परन्तु उसका अधिकतर उत्पादन कारखानों में न होकर घरेलू इकाइयों में होता था।

(3) परम्परागत उद्योगों की उन्नति–परम्परागत उद्योग पूरी तरह गतिहीन नहीं थे। खाद्य संस्करण, निर्माण, पॉटरी, कांच उद्योग, चर्म शोधन, फर्नीचर और औजारों के उत्पाद जैसे अनेक गैर-मशीनी क्षेत्रों में उन्नति हो रही थी।

(4) प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों की धीमी गति-प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों की गति धीमी थी। इसका कारण यह था कि नई तकनीक महँगी थी। सौदागर एवं व्यापारी बड़ी सावधानीपूर्वक उसका प्रयोग करने के पक्ष में थे।

प्रश्न 4. 
मशीन उद्योगों के युग से पहले अन्तर्राष्ट्रीय कपड़ा बाजार में भारतीय वस्त्र उत्पादों की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
मशीन उद्योगों के युग से पहले भारतीय वस्त्र उत्पादों की स्थिति-मशीन उद्योगों के युग से पहले भारत के वस्त्र उत्पादों की स्थिति का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) अन्तर्राष्ट्रीय कपड़ा बाजार में भारतीय वस्त्र उत्पादों का दबदबा-मशीन उद्योगों के युग से पहले अन्तर्राष्ट्रीय कपड़ा बाजार में भारत के रेशमी एवं सूती कपड़ों का ही दबदबा था क्योंकि भारत में पैदा होने वाला कपास बारीक किस्म का था।

(2) भारतीय कपड़े का निर्यात-आर्मीनियन तथा फारसी व्यापारी पंजाब से अफगानिस्तान, पूर्वी फारस और मध्य एशिया के मार्ग से यहाँ का सामान ले जाते थे। यहाँ का बना महीन कपड़ा ऊँटों की पीठ पर लाद कर पश्चिमोत्तर सीमा से पहाड़ी दरों और रेगिस्तानों के पार ले जाया जाता था। प्रमुख पूर्व औपनिवेशिक बन्दरगाहों सूरत तथा हुगली से समुद्री व्यापार होता था जो काफी विकसित था।

(3) भारतीय व्यापारियों तथा बैंकरों की भूमिका निर्यात व्यापार के इस जाल में अनेक भारतीय व्यापारी तथा बैंकर सक्रिय थे। वे उत्पादन में पैसा लगाते थे, सामान को लेकर जाते थे तथा उसे निर्यातकों को पहुँचाते थे। माल भेजने वाले आपूर्ति सौदागरों के द्वारा बन्दरगाह, नगर, देश के भीतरी प्रदेशों से जुड़े हुए थे। ये सौदागर बुनकरों को पेशगी देते थे, उनसे तैयार कपड़ा खरीदते थे तथा उसे बन्दरगाहों तक पहुँचाते थे। बन्दरगाहों पर जहाजों के मालिक और निर्यात-व्यापारियों के दलाल कीमत पर मोल-भाव करते थे तथा आपूर्ति सौदागरों से माल खरीद लेते थे।

प्रश्न 5. 
भारत के प्रमुख प्रारम्भिक उद्यमियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी के अन्त तक कुछ उद्यमियों ने भारत में उद्योग स्थापित करने का निश्चय कर लिया। ऐसे प्रमुख उद्यमी निम्नलिखित थे-
(1) द्वारकानाथ टैगोर-बंगाल के द्वारकानाथ टैगोर ने चीन के साथ व्यापार में खूब धन कमाया था। अतः वे अपना धन उद्योगों में निवेश करने लगे। 1830-40 के दशकों में उन्होंने 6 संयुक्त उद्यम कम्पनियाँ स्थापित की थीं, परन्तु 1840 के दशक में आए व्यापक व्यावसायिक संकटों के कारण टैगोर के उद्योग भी समाप्त हो गए।

(2) डिनशॉ पेटिट तथा जमशेदजी नुसरवानजी टाटा-मुम्बई में डिनशॉ पेटिट तथा देश में विशाल औद्योगिक साम्राज्य स्थापित करने वाले जमशेदजी नुसरवानजी टाटा जैसे पारसियों ने आंशिक रूप से चीन को निर्यात करके तथा आंशिक रूप से इंग्लैण्ड को कच्ची कपास निर्यात करके खूब धन कमा लिया था।

(3) सेठ हुकुमचन्द मारवाड़ी व्यवसायी सेठ हुकुमचन्द ने भी चीन के साथ व्यापार करके पैसा कमा लिया था। उन्होंने 1917 में कोलकाता में देश की पहली जूट मिल स्थापित की।
(4) बिड़ला परिवार यही काम प्रसिद्ध उद्योगपति जी.डी. बिड़ला के पिता तथा दादा ने किया था।

(5) अन्य चीन के व्यापार के अतिरिक्त भारतीय उद्यमियों ने पूँजी इकट्ठा करने के लिए अन्य व्यापारिक स्रोतों का उपयोग किया। मद्रास के कुछ सौदागर बर्मा से व्यापार करते थे, जबकि कुछ अन्य व्यापारी मध्य-पूर्व व पूर्वी अफ्रीका से व्यापार करते थे। जब उन्हें उद्योगों में निवेश करने का अवसर मिला, तो उनमें से अनेक व्यापारियों ने फैक्ट्रियाँ स्थापित की।

प्रश्न 6. 
यूरोपीय प्रबन्धकीय एजेन्सियों द्वारा भारतीय उद्योगों पर किस प्रकार नियन्त्रण स्थापित किया गया?
उत्तर:
यूरोपीय प्रबन्धकीय एजेन्सियों द्वारा भारतीय उद्योगों पर नियन्त्रण स्थापित करना भारतीय व्यापार पर औपनिवेशिक देशों के नियन्त्रण स्थापित होने के बाद भारतीय व्यवसायियों के लिए व्यापार का क्षेत्र सीमित होता गया। भारतीय व्यवसायियों के लिए अपना तैयार माल यूरोप में बेचना निषिद्ध कर दिया गया। अब वे मुख्य रूप से कच्चे माल और अनाज, कच्ची कपास, अफीम, गेहूं और नील का ही निर्यात कर सकते थे क्योंकि अंग्रेजों को इन वस्तुओं की आवश्यकता थी। धीरे-धीरे जहाजरानी व्यवसाय का द्वार भी उनके लिए बन्द कर दिया था।

प्रथम विश्व युद्ध तक यूरोपीय प्रबन्धकीय एजेन्सियों का भारतीय उद्योगों के विशाल क्षेत्र पर नियन्त्रण स्थापित था। इनमें हीगलर्स एंड कम्पनी, एन्ड्रयू यूल और जार्डीन स्किनर एंड कम्पनी सबसे बड़ी कम्पनियाँ थीं। ये एजेन्सियाँ पूँजी की व्यवस्था करती थीं, संयुक्त उद्यम कम्पनियाँ स्थापित करती थीं तथा उनका प्रबन्धन सम्भालती थीं। अधिकांश मामलों में भारतीय वित्तपोषक पूँजी उपलब्ध कराते थे, जबकि निवेश और व्यवसाय से सम्बन्धित निर्णय यूरोपीय एजेन्सियाँ लेती थीं। यूरोपीय व्यापारियों-उद्योगपतियों के अपने वाणिज्यिक परिसंघ थे, जिनमें भारतीय व्यवसायियों को सम्मिलित नहीं किया जाता था। 

प्रश्न 7. 
औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं? इसका प्रारम्भ इंग्लैण्ड में ही क्यों हुआ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
औद्योगिक क्रान्ति के सबसे पहले इंग्लैण्ड में शरू होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
औद्योगीकरण का अर्थ औद्योगीकरण से आशय है-कल-कारखानों का विकास तथा बड़े पैमाने पर फैक्ट्रियों से होने वाले उत्पादन से है।
निम्नलिखित अनुकूल परिस्थितियों के कारण औद्योगिक क्रान्ति सबसे पहले इंग्लैण्ड में शुरू हुई.-
(1) लोहा व कोयला की उपलब्धियाँ-इंग्लैण्ड में वेल्स, स्कॉटलैण्ड आदि में उद्योगों के लिए मशीनों और ईंधन के लिए लोहे व कोयले की खाने अवस्थित थीं।
(2) जल यातायात की सुविधा-माल के यातायात के लिए जलीय जहाजों का निर्माण करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था थी।
(3) उपनिवेशवाद-एशिया, अफ्रीका के उपनिवेशीय देशों से उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध हो जाता था और तैयार माल के लिए बाजार उपलब्ध था।
(4) पूँजी का संचय-इंग्लैण्ड ने विदेशी व्यापार से अधिक मात्रा में पूँजी कमा ली थी जिससे उद्योगों की स्थापना में सहायता मिली।
(5) अन्य कारक-(i) उद्योगों के लिए श्रमिकों की कमी नहीं थी। 
(ii) व्यापारिक वर्ग के हाथों में राजनीतिक सत्ता आ गई थी। 
(ii) इंग्लैण्ड के निवासी साहसी तथा उत्साही थे। इससे उद्योगों की स्थापना और संचालन को सहायता मिली।

प्रश्न 8. 
16वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति मिश्रित वरदान सिद्ध हुई। इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रान्ति का श्रीगणेश इंग्लैण्ड में हुआ। इसके परिणामस्वरूप मानवीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए, किन्तु साथ ही इससे अनेक समस्याएँ भी उठ खड़ी हुईं। इसलिए इसे मिश्रित वरदान के रूप में देखा जा सकता है।

लाभ-
(1) नवीन स्थानों की खोज-उत्पादन बढ़ने से उसके लिए नये बाजारों की आवश्यकता पड़ी जिसके लिए नई दुनिया की खोज की गई।
(2) पूँजी निर्माण तथा बैंकों का प्रचलन-व्यापारियों ने उद्योगों की स्थापना के लिए पूँजी जमा करना शुरू की तथा लाभ को पुनः व्यापार में लगाया। इससे बैंकिंग व्यवस्था का उदय हुआ।

(3) भाप एवं बिजली का ऊर्जा के रूप में आविष्कार-इसमें भाप की ऊर्जा का आविष्कार हुआ, जिससे समुद्री जहाज तथा रेलें चली तथा यातायात में क्रान्ति हुई। बिजली के आविष्कार ने तार के द्वारा ऊर्जा को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना सम्भव बनाया।

(4) वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति औद्योगिक क्रान्ति से वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ तथा वैज्ञानिक व तकनीकी प्रगति हुई।

(5) मानकीकरण एवं विशिष्टीकरण-कारखाना प्रणाली के फलस्वरूप माप, कीमत व द्रव्य के सामान्य मानक निर्धारित हुए। इसी तरह भर्ती के लिए मानक परीक्षण, मानक वेतन निर्धारित हुए तथा उत्पादन के क्षेत्र में विशिष्टीकरण के द्वारा कार्यक्षमता और उत्पादन में वृद्धि हुई।

(6) जनतंत्रीकरण-औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप व्यक्तिवाद तथा नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उदय के साथ-साथ प्रजातांत्रिक विचारों का भी उदय हुआ।

औद्योगिक क्रान्ति के दोष- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप गन्दी बस्ती का निर्माण, आवास की समस्या, शराबखोरी, प्रशासनिक भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद पनपा।
इस प्रकार यह एक मिश्रित वरदान सिद्ध हुई।

प्रश्न 9. 
भारत के औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूर कहाँ से आते थे? कारखानों में काम मिलने में उन्हें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था?
उत्तर:
भारतीय औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों का आना-
(1) मजदरों का आस-पास के जिलों से आना-अधिकतर भारतीय औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूर आस-पास वे. जिलों से आते थे। जिन मजदूरों एवं कारीगरों को गाँवों में काम नहीं मिलता था, वे औद्योगिक केन्द्रों की ओर जाने लगते थे। 1911 में मुम्बई में सूती कपड़ा उद्योग में काम करने वाले 50 प्रतिशत से अधिक मजदूर निकट के रत्नागिरी जिले से आए थे। कानपुर की मिलों में काम करने वाले अधिकतर मजदूर कानपुर जिले के ही गाँवों से आते थे।

(2) दूर-दूर के स्थानों से भी मजदूरों का आना-जब कारखानों में काम बढ़ जाता था, तो इसका समाचार सुनकर दूर-दूर के स्थानों से भी मजदूर आने लगते थे। उदाहरण के लिए, संयुक्त प्रान्त के लोग मुम्बई की कपड़ा-मिलों में तथा कोलकाता की जूट मिलों में काम करने के लिए पहुँचने लग गए थे।

काम मिलने के बारे में कठिनाइयाँ-
(1) कारखानों में नौकरी पाना कठिन होना-कारखानों में नौकरी पाना सदैव ही कठिन था। यद्यपि मिलों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ मजदूरों की मांग भी बढ़ रही थी, फिर भी कारखानों में नौकरी पाना कठिन था। इसका कारण यह था कि रोजगार चाहने वालों की संख्या रोजगारों की तुलना में सदैव अधिक रहती थी। मिलों में प्रवेश भी निषिद्ध था।

(2) मजदूरों की भर्ती के लिए एक जॉबर रखना उद्योगपति नए मजदूरों की भता के लिए प्रायः एक जॉबर रखते थे। जॉबर कोई पुराना और विश्वस्त कर्मचारी होता था। वह अपने गाँव से लोगों को लाता था तथा उन्हें काम देने का आश्वासन देता था। वह उन्हें शहर में आबाद होने के लिए सहायता देता था और मुसीबत में पैसे से सहायता करता था। कालान्तर में जॉबर सहायता के बदले पैसे व उपहार की माँग करने लगे और मजदूरों के जीवन को नियन्त्रित करने लगे। 

प्रश्न 10. 
"प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी भारत में लघु उद्योगों की बहुलता थी।" व्याख्या कीजिए।
अथवा 
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी भारत में लघु उद्योगों की बहुलता के क्या कारण थे?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी भारत में लघु उद्योगों की बहुलता-यद्यपि प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् फैक्ट्री उद्योगों में निरन्तर वृद्धि हुई। अधिकांश उद्योग बंगाल और मुम्बई में स्थित थे। शेष सम्पूर्ण भारत में छोटे स्तर के उद्योग ही थे। पंजीकृत फैक्ट्रियों में कुल औद्योगिक श्रम-शक्ति का एक बहुत छोटा भाग ही काम करता था। यह संख्या 1911 में 5 प्रतिशत तथा 1931 में 10 प्रतिशत थी। शेष मजदूर गली-मोहल्लों में स्थित छोटी-छोटी वर्कशाप तथा घरेलू इकाइयों में काम करते थे।

लघु उद्योगों की बहुलता के कारण-लघु उद्योगों की बहुलता के निम्नलिखित कारण थे-
(1) तकनीकी परिवर्तन-लघु उद्योगों की बहुलता के पीछे आंशिक रूप से तकनीकी परिवर्तनों का हाथ था। यदि लागत में बहुत अधिक वृद्धि न हो और उत्पादन बढ़ सकता हो, तो हाथ से काम करने वालों को नई तकनीक अपनाने में कोई संकोच नहीं होता। इसलिए, बीसवीं सदी के दूसरे दशक तक बुनकर 'फ्लाई शटल' वाले करघों का प्रयोग करते थे। इससे कामगारों की क्षमता बढ़ी, उत्पादन में वृद्धि हुई और श्रम की माँग में कमी आई। 1941 तक भारत में 35 प्रतिशत से अधिक हथकरघों में फ्लाई शटल लगे होते थे। त्रावणकोर, मद्रास, मैसूर, कोचीन, बंगाल आदि प्रदेशों में तो 70-80 प्रतिशत करघे फ्लाई शटल वाले थे।

(2) छोटे-छोटे सुधार- इसके अतिरिक्त भी अनेक छोटे-छोटे सुधार किए गए जिनसे बुनकरों को अपनी उत्पादकता बढ़ाने तथा मिलों से मुकाबला करने में सहायता मिली।

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