16वीं सदी के यूरोप में महिलाओं की स्थिति का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए - 16veen sadee ke yoorop mein mahilaon kee sthiti ka aalochanaatmak pareekshan keejie

यूरोप में महिलाएं

यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हुए ताजा सर्वे सभी को चौंकाते हैं। सर्वे यह बताता है कि एक-तिहाई से अधिक यूरोपीय महिलाएं शारीरिक या यौन-हिंसा का शिकार हुई हैं। लगभग इतनी ही महिलाएं मानती हैं कि...

लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 11 Mar 2014 10:48 PM

यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हुए ताजा सर्वे सभी को चौंकाते हैं। सर्वे यह बताता है कि एक-तिहाई से अधिक यूरोपीय महिलाएं शारीरिक या यौन-हिंसा का शिकार हुई हैं। लगभग इतनी ही महिलाएं मानती हैं कि वे जब बच्ची थीं, तभी उन्हें इन यातनाओं से गुजरना पड़ा था। वहीं, 12 फीसदी औरतें कहती हैं कि बचपन में जान-पहचान वाले व्यक्ति ने उनका शारीरिक शोषण किया था। यूरोपीय महिलाएं बड़ी संख्या में मानती हैं कि उनका पीछा किया जाता है और उन्हें शारीरिक व साइबर-उत्पीड़न के दौर से गुजरना पड़ता है। सोशल मीडिया, ई-मेल या टेक्स्ट मैसेज के जरिये उन्हें परेशान किया जाना आम है। सबसे दुखद आंकड़ा यह हो सकता है कि शोषित महिलाओं में सिर्फ 14 फीसदी साथी द्वारा बदसलूकी के मामले को थाने में ले जाती हैं। वहीं 13 फीसदी महिलाएं किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा की गई बदसलूकी के मामले की शिकायत करती हैं। इससे यह साफ हो जाता है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के अधिकतर मामलों की शिकायत नहीं होती, इसलिए अपराधियों को सजा नहीं मिलती है। यूरोपियन यूनियन एजेंसी फॉर फंडामेंटल राइट्स द्वारा यह सर्वे किया गया है और इसके नतीजे यूरोप में महिलाओं की स्थिति को दर्शाते हैं। इसके तहत, यूरोपीय संघ के 28 सदस्य देशों की 42,000 महिलाओं से सवाल पूछे गए। उनके जवाबों ने यह बता दिया कि परिवार और सामाजिक जीवन के हर पहलू में औरतों के लिए दुख-दर्द के कांटे बोये जाते हैं। हैरत की बात यह है कि लिंग-समानता के लंबे-चौड़े इतिहास के बावजूद यह क्षेत्र महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में अव्वल नजर आता है। डेनमार्क की 50 फीसदी महिलाएं शारीरिक या यौन-उत्पीड़न की बात मानती हैं। फिनलैंड में यह आंकड़ा 47 प्रतिशत है, स्वीडन में 46 प्रतिशत। पौलेंड में यह सबसे कम 10 प्रतिशत है। ब्रिटेन और फ्रांस में तो 44 प्रतिशत है। बेशक, इस स्थिति को सुधारने में यूरोप सक्षम है। उच्च मानवाधिकार मानकों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता गर्व की बात है, लेकिन आधी आबादी की इस दयनीय स्थिति के बारे में भी उसे सोचने की जरूरत है।
द न्यूयॉर्क टाइम्स, अमेरिका

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